जब अकबर जंगल में काफी आगे तक चला गया तो बैरामखाँ ने तार्दीबेग को अपने डेरे पर बुलवाया। जैसे ही तार्दीबेग बैरामखाँ के डेरे पर पहुँचा, बैराम खाँ ने तलवार निकाल कर तार्दीबेग की हत्या कर दी।
अकबर की सहमति पाकर बैरामखाँ ने खिज्र खाँ को सिकंदर सूर से निबटने के लिये तैनात किया और स्वयं अकबर को लेकर दिल्ली की ओर बढ़ा। सरहिंद पर आगरा, दिल्ली और संभल के तीनों भगोड़े सूबेदार अकबर से आ मिले। इन तीनों ने भी अकबर को सलाह दी कि यदि जान प्यारी है तो दिल्ली जाने की बजाय काबुल को लौट चलो। अकबर एक बार फिर विचलित हो गया।
अकबर की इस ऊहापोह से निबटने के लिये बैराम खाँ ने एक योजना बनाई। उसने सरहिन्द के जंगल में शिकार का आयोजन किया। उसने स्वयं को और तार्दीबेग खाँ को इस शिकार से दूर रखा। जब अकबर जंगल में काफी आगे तक चला गया तो बैराम खाँ ने तार्दीबेग को अपने डेरे पर बुलवाया। जैसे ही तार्दीबेग बैराम खाँ के डेरे पर पहुँचा, बैराम खाँ ने तलवार निकाल कर तार्दीबेग की हत्या कर दी।
जब शाम को अकबर अपने डेरे पर लौटा तो उसे तार्दीबेग की हत्या के समाचार मिले। अकबर यह सुनकर सकते में आ गया। अमीर तार्दीबेग खाँ हुमायूँ का विश्वस्त सिपहसलार था। जिस समय बैराम खाँ एक साधारण सिपाही की हैसियत रखता था, उस समय भी तार्दीबेग खाँ हुमायूँ के बराबर बैठकर सलाह मशविरा दिया करता था। अकबर तिलमिलाया तो खूब किंतु कुछ कहने की स्थिति में नहीं था।
बैराम खाँ ने अपने मंत्री मौलाना पीर मोहम्मद शिरवानौ को अकबर की सेवा में भेजा। मौलाना शिरवानौ बैराम खाँ का विश्वसनीय आदमी था। वह न केवल बैराम खाँ का संदेश लेकर गया अपितु बादशाह के दिल में बैराम खाँ के लिये फिर से जगह बनाने का उद्देश्य लेकर भी गया। मौलाना पर यह जिम्मेदारी भी छोड़ी गयी कि वह अकबर के दिल का सच्चा हाल पता लगाकर आये ताकि आगे की कार्यवाही की जा सके।
मौलाना ने फर्श तक झूलती हुई लम्बी दाढ़ी हिलाते हुए बादशाह को कोर्निश बजाई। बादशाह ने उसे बैठने तक को नहीं कहा। मौलाना ने दुबारा कोर्निश बजाई और निवेदन किया- ‘बादशाह सलामत मैं इस समय अपने पाकरूह मालिक खानका बैराम खाँ की ओर से आपकी सेवा में हाजिर हुआ हूँ।’
बादशाह ने मौलाना की बात का कोई जवाब नहीं दिया। मौलाना काफी देर तक चुपचाप खड़ा रहा। काफी देर बाद बादशाह ने मौलाना की ओर आँखें घुमाकर कहा- ‘कहता क्यों नहीं कि तुझे क्या कहना है? पत्थर के बुत की तरह बेजान होकर क्यों खड़ा है?’
– ‘बादशाह सलामत! मेरे पाकरूह मालिक खानका बैराम खाँ ने अर्ज किया है कि नमक हराम तार्दीबेग जानबूझ कर दिल्ली की लड़ाई बीच में छोड़कर भाग आया था। वह कभी भी मुगल सल्तनत का विश्वसनीय नहीं था। यदि तार्दीबेग की हत्या नहीं की जाती तो दूसरे अमीर भी कोताही बरतने लगते। इसका परिणाम यह होता कि आप हिन्दुस्थान में रहकर जो कुछ हासिल किया चाहते हैं वह आपको कभी भी हासिल नहीं होता।’
– ‘तेरे पाकरूह मालिक ने तुझे यह नहीं बताया कि उसे दण्ड देने से पहले बादशाह सलामत से पूछा क्यों नहीं गया?’ अकबर ने क्रोधित होकर पूछा।
– ‘बादशाह हुजूर का गुस्सा बेवजह नहीं है। मेरे मालिक ने कहलवाया है कि बादशाह सलमात बड़े ही पाकरूह, नर्मदिल इंसान हैं। यदि उनसे पूछा जाता तो वे कभी भी तार्दीबेग को मारने के लिये राजी नहीं होते। ऐसी स्थिति में भी उस नमक हराम को तो मारना ही था। तब हद से ज्यादा बेअदबी होती। हुक्म न मानने से मुल्क और लश्कर में बहुत खलल और फसाद पैदा होता।’
– ‘तो अब क्या चाहते हो? अकबर बैराम खाँ का जवाब सुनकर दहल गया।
– ‘खानका ने अर्ज की है कि उन्हें माफी दी जावे और यह घोषणा करवाई जावे कि तार्दीबेग का खून बादशाह सलामत के हुक्म से किया गया है।’
– ‘क्यों?’
– ‘ताकि सब कपटी लोगों के दिल में दहशत पैदा हो जावे और कोई भी अमीर नमक हरामी करने की हिम्मत न करे।’
– ‘ठीक है। खानका को हमारी खिदमत में भेज।’
अकबर का जवाब सुनकर मौलाना ने गर्दन ऊपर उठाई और सीधे ही बादशाह की आँखों में झांकते हुए बोला- ‘हुजूर! बड़े बादशाह हुजूर हुमायूँ ने एक बार कहा था कि खानका बैराम खाँ ने जितने अहसान मुगलिया सल्तनत पर किये हैं उन अहसानों के बदले मुगल खानदान के कई शहजादे बैराम खाँ पर कुरबान किये जा सकते हैं।’
– ‘क्या यह भी तुम्हारे पाकरूह मालिक ने कहलवाया है?’ अकबर ने हँसकर पूछा।
– ‘नहीं! यह तो मैं अपनी ओर से बादशाह हुजूर की खिदमत में पेश कर रहा हूँ।’ मौलाना ने भी हँसकर जवाब दिया।
– ‘और कुछ?’
– ‘हाँ हुजूर! एक बात और।’
– ‘क्या मौलाना? और क्या??’
– ‘मेरी अर्ज ये है कि जब खानका आपकी खिदमत में हाजिर हों तो हुजूर यह नहीं भूलें कि जिस समय बड़े बादशाह हुजूर ने खानका पर मुगल शहजादे कुर्बान करने की बात कही थी, उस समय से लेकर अब तक चंगेजी खानदान पर खानका के अहसानों की फेहरिश्त और भी लम्बी हो गयी है।’ मौलाना की बात सुनकर बादशाह का चेहरा सूख गया।
मौलाना कोर्निश बजाकर डेरे से बाहर हो गया। उसका काम हो गया था। बादशाह के आदेश पर बैराम खाँ उसी रात अकबर के डेरे पर हाजिर हुआ। अकबर ने खड़े होकर अपने अतालीक बैराम खाँ का स्वागत किया जो अब केवल अतालीक भर न था। सच्चाई तो यह थी कि बैराम खाँ उस समय मुगलिया सल्तनत की समस्त शक्तियों का स्वामी था।
-अध्याय 39, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ऐतिहासिक उपन्यास चित्रकूट का चातक।



