Saturday, July 27, 2024
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173. दिल्ली सल्तनत से मुक्त होने पर गुजरात में मुस्लिम जनसंख्या का प्रसार हुआ!

पाठकों को स्मरण होगा कि महमूद गजनवी ने सोमनाथ के मन्दिर को लूटकर अथाह सम्पत्ति प्राप्त की थी। तब से प्रत्येक मुसलमान शासक एवं विदेशी आक्रांता गुजरात को लूटने के लिए लालायित रहता था।

मुहम्मद गौरी, इल्तुतमिश, बलबन तथा अल्लाउद्दीन खिलजी आदि द्वारा गुजरात पर कई आक्रमण किये गए किंतु मुहम्मद गौरी, इल्तुतमिश एवं बलबन द्वारा किए गए आक्रमण गुजरात के चौलुक्य शासकों द्वारा विफल कर दिए गए। इन्हें इतिहास में सोलंकी भी कहा जाता है। जालौर, जैसलमेर तथा चित्तौड़ के राजपूतों ने भी इस अवधि में गुजरात के लिए रक्षापंक्ति का कार्य किया।

ई.1297 में अल्लाउद्दीन खिलजी की सेनाओं को गुजरात में पहली बार सफलता प्राप्त हुई। उस समय गुजरात में बघेला राज्य कर रहे थे। अल्लाउद्दीन खिलजी ने गुजरात को दल्ली सल्तनत में मिला लिया। उसने गुजरात की सम्पदा को लूटने में महमूद गजनवी से भी अधिक सफलता प्राप्त की। इसके बाद एक शताब्दी तक गुजरात दिल्ली सल्तनत के अधीन बना रहा।

दिल्ली के सुल्तानों समस्या यह थी कि यदि वे गुजरात के मुस्लिम प्रांतपति को मजबूत बनाने का प्रयास करते थे तो वह प्रांतपति स्वतंत्र होकर अलग सल्तनत की स्थापना का प्रयास करने लगते थे और यदि दिल्ली के सुल्तान गुजरात के प्रांतपति को कमजोर बनाए रखने का प्रयास करते थे तो उस क्षेत्र की हिन्दू शक्तियां इन प्रांतों में अपने खोए हुए राज्य की पुनर्स्थापना के लिए प्रयास करने लगती थीं।

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इस दुविधा के कारण गुजरात जब तक दिल्ली सल्तनत के अधीन रहा, गुजरात के मुस्लिम सूबेदार गुजरात पर अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर सके। इस काल में गुजरात में मुस्लिम जनसंख्या एवं मुस्लिम संस्कृति का प्रसार तो हुआ किंतु वह अधिक जोर नहीं पकड़ सका।

ई.1391 में दिल्ली के सुल्तान नासिरुद्दीन मुहम्मद तुगलक ने जफर खाँ नामक एक अमीर को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया। तैमूर के आक्रमण के समय जफर खाँ ने स्वयं को दिल्ली के प्रभुत्व से मुक्त कर लिया तथा मुजफ्फरशाह के नाम से गुजरात का स्वतंत्र शासक बन बैठा। मध्ययुगीन हिन्दू राजवंशों की भाँति गुजरात के नये मुस्लिम राजवंश का इतिहास भी पड़ौसी राज्यों के विरुद्ध हिंसा एवं संघर्षों से भरा पड़ा है।

मालवा एवं गुजरात में स्वतंत्र मुस्लिम राज्यों की स्थापना के बाद राजपूताने का प्रबल मेवाड़ राज्य तीन ओर से मुस्लिम राज्यों से घिर गया- उत्तर में दिल्ली सल्तनत, पश्चिम में गुजरात तथा दक्षिण में मालवा। ये तीनों मुस्लिम शक्तियां, मेवाड़ के जगमगाते हुए हिन्दू राज्य पर झपटने के लिये लालायित रहती थीं।

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ई.1411 में मुजफ्फरशाह के नाती अहमदशाह ने अपने नाना मुजफ्फरशाह को विष देकर मार डाला और स्वयं गुजरात का सुल्तान बन गया। उसने ई.1442 तक गुजरात पर शासन किया। अहमदशाह ने मालवा, असीरगढ़, राजपूताना तथा अन्य पड़ौसी राज्यों के विरुद्ध कई युद्ध लड़े और अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। इतिहासकारों ने लिखा है कि अहमदशाह ने अहमदाबाद नामक प्रसिद्ध नगर की नींव डाली किंतु यह बात सही नहीं है। इस स्थान पर अत्यंत प्राचीन काल से भीलों का राज्य था जिसे अशवाल कहा जाता था। चौलुक्य राजा कर्णदेव (प्रथम) ने अशवाल के स्थान पर कर्णावती नामक नगर बसाया। अहमदशाह ने कर्णावती का नाम बदलकर अहमदाबाद कर दिया।

गुजरात में स्वतंत्र मुस्लिम राज्य की स्थापना होने पर गुजरात में मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी तथा मुस्लिम संस्कृति का भी विस्तार होने लगा। बड़ी संख्या में गुजरात के हिन्दू मुसलमान बनने लगे। जिन मंदिरों की रक्षा के लिए गुजरात के लोग अपने प्राणों की आहुति दिया करते थे, अब वे मुसलमान बनकर उन्हीं मंदिरों को तोड़ने लगे। मुसलमान बनने वाले गुजरातियों को गुजरात के सुल्तान अपनी सेना में बड़े पदों पर नियुक्त करते थे।

कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि गुजरात के सुल्तान अहमदशाह ने अपने सम्पूर्ण राज्यकाल में कभी हार नहीं खाई किंतु यह बात गलत है। मेवाड़ के महाराणा मोकल ने अहमदशाह को युद्ध में करारी मात दी जिसके कारण अहमदशाह को युद्ध का मैदान छोड़कर भाग जाना पड़ा। महाराणा मोकल की तरफ से इस युद्ध का नेतृत्व मारवाड़ का राजा रणमल्ल कर रहा था।

महाराणा मोकल के बाद महाराणा कुंभा मेवाड़ का स्वामी हुआ। उसके शिलालेखों के अनुसार महाराणा कुंभा के प्रबल पराक्रम के कारण दिल्ली और गुजरात के मुस्लिम शासकों ने महाराणा को छत्र भेंट करके उसे ‘हिन्दुसुरत्राण’ का विरुद प्रदान किया था। उस समय दिल्ली पर सैय्यद मुहम्मदशाह का तथा गुजरात पर अहमदशाह का शासन था। इस घटना के सम्बन्ध में अधिक विवरण प्राप्त नहीं होता।

डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव अहमदशाह की गणना गुजरात के महानतम शासकों में करते हैं किंतु यह बात सही नहीं है। अहमदशाह एक धर्मान्ध शासक था और अपनी गैर-मुस्लिम प्रजा के साथ उसका व्यवहार असहिष्णुतापूर्ण था। हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों एवं मूर्तियों को नष्ट करना अहमदशाह के लिए सामान्य बात थी। उसकी मृत्यु के बाद गुजरात में तीन-चार निर्बल सुल्तान हुए।

ई.1456 में मेवाड़ के शासक महाराणा कुंभा ने नागौर पर अभियान किया। महाराणा के भय से नागौर के मुस्लिम सुल्तान शम्स खाँ ने गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन से अपनी पुत्री का विवाह करके गुजरात की सेना प्राप्त कर ली। गुजरात की सेना नागौर दुर्ग के चारों ओर सुरक्षा-घेरा बनाकर बैठ गई।

महाराणा कुंभकर्ण ने गुजरात के सुल्तान का उपहास करते हुए नागौर पर अधिकार कर लिया तथा नागौर में फीरोज द्वारा निर्मित ऊँची मस्जिद को जलाकर राख कर दिया। महाराणा की सेना ने नागौर दुर्ग को तोड़ डाला तथा उसके चारों ओर बनी खाई को मिट्टी से भर दिया। महाराणा ने गुजरात तथा नागौर की सेनाओं के हाथियों को छीन लिया, असंख्य यवनों को दण्ड दिया तथा उनकी यवनियों को कैद कर लिया।

इस अपमानजनक पराजय से तिलमिला कर गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन ने महाराणा के अधिकार वाले कुम्भलगढ़ तथा आबू पर आक्रमण किया। दोनों ही स्थानों पर गुजरात की सेनाओं की करारी पराजय हुई और सुल्तान कुतुबुद्दीन महाराणा कुंभा से संधि करके गुजरात लौट गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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