नरीमन ने आरोप लगाया कि सरदार पटेल साम्प्रदायिक हैं!
सरदार पटेल ने केन्द्रीय एवं प्रांतीय विधानसभाओं के चुनावों में कांग्रेस के सदस्यों को टिकट बंटावारा करने हेतु मार्गदर्शी सिद्धांतों का निर्माण किया था। सरदार पटेल इन्हीं सिद्वांतों के आधार पर टिकट देना चाहते थे, इस पर नरीमन सहित कुछ पारसी एवं मुस्लिम नेताओं ने पटेल पर आरोप लगाए कि सरदार पटेल साम्प्रदायिक हैं!
प्रांतीय विधान सभाओं से पहले केन्द्रीय विधान सभा के चुनाव हुए। बम्बई से दो सीटें थीं जिन पर कांग्रेस ने के. एफ. नरीमन तथा डॉ. देशमुख को टिकट दिये। नरीमन उस समय बम्बई कांग्रेस समिति के अध्यक्ष थे। वे चाहते थे कि एक सीट पर तो कांग्रेस नरीमन को टिकट दे तथा दूसरी सीट गैर-कांग्रेसी उम्मीदवार सर कावसजी जहांगीर के लिये छोड़ दे। नरीमन ने खुले आम वक्तव्य दिया कि कांग्रेस बम्बई की एक ही सीट पर चुनाव लड़े तो बेहतर होगा। पटेल ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया।
जब नामांकन भरने का समय आया तो नरीमन ने पर्चा भरने में आनाकानी की। इस पर केंद्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष वल्लभभाई पटेल ने नरीमन के व्यवहार को अनुचित तथा पार्टी विरोधी मानते हुए नरीमन की उम्मीदवारी निरस्त कर दी और कन्हैयालाल मुंशी को कांग्रेस का प्रत्याशी घोषित कर दिया। नरीमन ने नाराज होकर पार्टी से भीतरघात किया जिससे मुंशी बहुत कम मतों के अंतर से हार गये।
केन्द्रीय विधानसभा के बाद प्रांतीय विधान सभाओं के चुनाव हुए। इन चुनावों में नरीमन, बम्बई से जीतकर आये। उन्हें पूरी आशा थी कि विधान सभा में कांग्रेस के नेता वही बनाये जायेंगे किंतु सरदार पटेल तथा पार्टी के शीर्ष नेता, नरीमन की पार्टी विरोधी गतिविधि को भूले नहीं थे। इसलिये नरीमन के स्थान पर बाला साहब खेर को पार्टी का नेता चुना गया।
नरीमन ने इसे अपना अमान समझा और अपने प्रभाव वाले अखबारों में सरदार पटेल के विरुद्ध बहुत सी अनर्गल बातें छपवाईं जिनका सीधा-सीधा अर्थ यह होता था कि सरदार पटेल साम्प्रदायिक हैं इसलिये उन्होंने पारसी धर्म के नरीमन को बम्बई विधान सभा में कांग्रेस का नेता नहीं बनने दिया। इसके बाद नरीमन ने अखबारों की कतरनों के साथ कांग्रेस के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को शिकायत भिजवाई और इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की।
जवाहरलाल ने जवाब दिया कि मैं इसमें सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता, आप चाहें तो मैं इसे कांग्रेस कार्यसमिति में प्रस्तुत कर सकता हूँ। इस पर नरीमन ने जवाहरलाल को लिखा कि कार्यसमिति का निर्णय निष्पक्ष होगा, इसमें मुझे संदेह है। इस पर नेहरूजी ने नरीमन को लिखा कि तब आप अपना प्रकरण लीग ऑफ नेशन्स, प्रिवी काउंसिल या उससे भी ऊपर की किसी संस्था में ले जा सकते हैं। नरीमन ने हार नहीं मानी और सारा प्रकरण गांधीजी को लिख भेजा। गांधीजी को सारी बात पहले से ही ज्ञात थी किंतु उन्होंने नरीमन को सुझाव दिया कि यदि नरीमन चाहें तो मैं (गांधीजी) और डी. एन. बहादुर (एक पारसी नेता) जांच करने को तैयार हैं।
नरीमन ने गांधीजी का प्रस्ताव मान लिया। जब गांधीजी और डी. एन. बहादुर ने निर्णय सुनाया कि सरदार पटेल की कोई गलती नहीं है, तो नरीमन की हवा खराब हो गई। नरीमन ने पहले तो इस निर्णय को स्वीकार कर लिया किंतु बाद में उसे मानने से मुकर गये। इस पर गांधीजी ने जवाहरलाल को लिखा कि नरीमन के पूरे व्यवहार से स्पष्ट है कि उनमें किसी पद को धारण करने की क्षमता नहीं, इसलिये उन्हें भविष्य में कोई पद नहीं दिया जाये।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता