एक समय था जब मुगलिया भवनों (Mughal Buildings) की सजावट बड़ी शानो-शौकत से की जाती थी किंतु औरंगजेब (Aurangzeb) के समय में न केवल वह परम्परा इस्लाम विरोधी घोषित हो गई अपितु भारत के लाखों सुंदर भवनों को तोड़कर नष्ट भी किया गया, विशेषकर हिन्दू भवनों को!
बाबर (Babur) के सेनापति मीर बाकी (Mir Baqi) ने हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य देव श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या (Ram Janmbhumi Ayodhya) में स्थित मंदिर को तोड़कर उसके स्थान पर बाबरी मस्जिद (Babari Maszid) की स्थापना की थी ताकि भारत में बाबर की स्मृति को चिरस्थाई रखा जा सके। बाबर की सेनाओं द्वारा अयोध्या के अलावा कुछ और मंदिरों को भी तोड़कर उन पर मस्जिदें बनाई गई थीं। ये सभी मस्जिदें उन्हीं मंदिरों से प्राप्त पत्थरों से बनाई गई थीं जिन पर साधारण चूने का पलस्तर किया गया था।
हुमायूँ (Humayun) ने भारत में अपनी स्मृति को बनाए रखने के लिए दिल्ली के पुराने किले में एक शानदार पुस्तकालय का निर्माण करवाया जिसे अब शेरगढ़ (Shergarh) के नाम से जाना जाता है। इसके निकट ही उसने एक मस्जिद भी बनवाई थी जो अब भी देखी जा सकती है। हुमायूँ के काल की मस्जिदों में भी स्थानीय पत्थरों का प्रयोग हुआ था किंतु शेरगढ़ की बाहरी दीवार को लाल बलुआ पत्थर की टाइलों से सजाया गया था।
अकबर (Akbar) पहला मुगल बादशाह था जिसने आगरा के लाल किले को सजा-संवारकर नया रंग-रूप दिया। उसके बाद पहले आगरा का लाल किला (Red Fort Of Agra) और बाद में दिल्ली का लाल किला (Red Fort of Delhi) बड़ी शान के साथ पूरे भारत में विशाल भवनों के निर्माण के लिए आदेश जारी करते रहे।
अकबर ने दिल्ली में हुमायूँ का मकबरा (Tomb of Humayun), अजमेर में अकबरी मस्जिद (Akbari Masjid) , फतहपुर सीकरी में शाही-महल, बुलंद दरवाजा (Buland Darwaja) तथा शेख सलीम चिश्ती की मजार (Tomb of Sheikh Salim Chishti) का निर्माण करवाया ताकि भारत में अकबर (Akbar) की कीर्ति अक्षय रह सके। अकबर के समय बने समस्त भवनों में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग हुआ है जो अकबर की सामान्य आर्थिक स्थिति की कहानी कहते हैं।
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जहांगीर (Jahangir) ने भवन निर्माण की तरफ अधिक ध्यान नहीं दिया था किंतु फिर भी उसने सिकंदरा में अकबर का भव्य मकबरा बनवाया जिसमें लाल बलुआ पत्थर के साथ-साथ सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया था।
जहांगीर की चहेती बेगम नूरजहां (Noorjahan) ने आगरा में अपने पिता एतमादुद्दौला का मकबरा (Tomb of Itimad-ud-Daulah) बनवाया। यह पहला भवन था जिसमें भारत के मुगलों ने पूरी तरह सफेद संगमरमर का प्रयोग किया था। इसकी दीवारों, छतों एवं फर्श में मुगलों ने हीरा, मोती, पन्ना, याकूत, गोमेद, नीलम आदि बहुमूल्य रत्नों की जड़ाई करवाई थी। सफेद संगमरमर तथा बहुमूल्य रत्नों की भरमार से यह जाना जा सकता है कि इस समय तक भारत के मुगल कितने धनी हो गए थे और आगरा का लाल किला कितने महंगे रत्नों से भर गया था।
मुगल सिपाही दिन-रात भारत के हिन्दू राजाओं एवं अफगान अमीरों से हीरे-मोती और सोना-चांदी छीन रहे थे और ला-ला कर आगरा के लाल किले में भर रहे थे। जहांगीर ने लाहौर में अपनी प्रेयसी अनारकली का मकबरा तथा अपनी माँ की स्मृति में बेगम-शाही-मस्जिद का निर्माण करवाया था। जहांगीर के सेनापति वजीर खाँ ने लाहौर में एक विशाल मस्जिद बनवाई जो उस काल में दुनिया की सबसे अलंकृत और सबसे बड़ी मस्जिद थी। जहांगीर ने लाहौर में स्वयं अपना मकबरा (Tomb of Jahangir) बनाने का आदेश भी आगरा के लाल किले में बैठकर दिया था। यह मुगलों का एकमात्र ऐसा महत्वपूर्ण भवन है जिस पर कोई गुम्बद नहीं है। पंजाब की नूरमहल सराय, काश्मीर का शालीमार बाग (Shalimar Garden) , अजमेर का दौलत बाग, अजमेर का चश्मा ए नूर आदि भी जहांगीर (Jahangir) के शासन काल के प्रमुख भवन हैं। शाहजहाँ (Shahjahan) ने आगरा के लाल किले (Red Fort of Agra) को फिर से सजाया और दिल्ली का लाल किला (Red Fort of Delhi) बनवाया। उसने आगरा और दिल्ली के लाल किलों को सफेद संगमरमर के नए भवनों से भर दिया जिनमें महंगे रत्न जड़े गए थे।
दिल्ली का चांदनी चौक, दिल्ली की जामा मस्जिद, आगरा की मोती मस्जिद, लाहौर का शीश महल, लाहौर की मोती मस्जिद, लाहौर का शालीमार उद्यान, लाहौर का नूरजहां का मकबरा (Tomb of Noorjahan) शाहजहाँ के काल में ही बनवाए गए। शाहजहाँ ने सिंध सूबे में स्थित थट्टा में दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनवाई। कश्मीर का निशात बाग भी शाहजहाँ के काल में बना।
शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया आगरा का ताजमहल मुगलों की सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है। यह मूलतः दिल्ली के प्राचीन हिन्दू राजाओं का विशाल महल था जिसे तेजोमय महल कहा जाता था। आम्बेर के कच्छवाहों ने मुगलों से दोस्ती हो जाने के बाद इस भवन को किसी हिन्दू राजा के वंशजों से खरीदा था। जब शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल (Mumtaj Mahal) के लिए एक मकबरा बनवाने की योजना बनाई तो कच्छवाहों ने यह भवन शाहजहाँ को समर्पित कर दिया।
शाहजहाँ (Shahjahan) ने तेजोमयम महल के मूल तहखानों को ज्यों का त्यों रखते हुए, उसके बाहरी भाग का नए सिरे से निर्माण करवाया और उसकी दीवारों और छतों को संसार के श्रेष्ठ रत्नों से पाट दिया। आज तक धरती पर ऐसा कोई भवन नहीं बना है जिसकी दीवारों पर इतने रत्न लगे हों।
इस प्रकार मुगल सैनिक पूरे भारत को लूट कर लाल किलों को महंगे रत्नों से भर रहे थे और लाल किलों में बैठे उनके मालिक इन रत्नों को इन भवनों में लगा रहे थे। शाहजहां कालीन मुगलिया भवनों की सजावट देखते ही बनती थी।
जब मुगलों का काल चला गया तो जमना पार से आए भरतपुर के जाटों, नर्बदा पार से आए मराठों, हिन्दूकुश पर्वत को पार करके आए अफगानों और सात समंदर पार करके आए अंग्रेजों ने एक-एक करके इन हीरे-मोतियों और महंगे रत्नों को उखाड़ लिया। कहा जाता है कि ई.1857 की क्रांति के समय जब अंग्रेजों ने आगरा पर अधिकार किया, उससे लगभग सौ साल पहले ही जाटों और मराठों ने ताजमहल (Taj Mahal) से सारे रत्न निकाल लिए थे इसलिए अंग्रेज सिपाहियों को ताजमहल से केवल लैपिज और लजूली नामक कीमती पत्थर ही प्राप्त हो सके थे।
फिलहाल औरंगजेब (Aurangzeb) लाल किलों (Red Forts of Agra and Delhi) का मालिक था और उसने भवनों में रत्न जड़वाना तो दूर, भवन बनाने पर ही रोक लगा दी। इस प्रकार अब न केवल मुगलिया भवनों (Mughal Buildings) की सजावट बंद हो गई अपितु लाल किलों से भवन निर्माण के आदेश जारी होने भी बंद हो गए।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता




