– ‘शहजादे!’ एक फुसफुसाहट सी सलीम के कानों में पड़ी। उसने इधर-उधर देखा किंतु कोई दिखाई नहीं दिया। बाहर शाम घिर आई थी तथा कमरे में इतना कम प्रकाश था कि उसमें कुछ भी स्पष्ट देखना संभव नहीं था।
– ‘इधर देखो, इधर।’ सलीम ने फिर दृष्टि घुमाई किंतु कुछ भी दिखायी नहीं दिया।
– ‘इधर पर्दे के पीछे देखो शहजादे।’ फुसफुसाहट दुबारा उभरी। सलीम के कमजोर शरीर में इतनी जान नहीं रही थी कि वह बिना सहारे के स्वयं चल कर पर्दे तक जा सके। दस दिन से शराब की एक बूंद भी नहीं मिली थी। उसे आज ही स्नानागार से बाहर निकाला गया था। इस सब के बावजूद अज्ञात भय ने सलीम को पर्दे तक जाने के लिये विवश किया।
– ‘कौन हो तुम?’ पर्दे के पीछे छिपे हुए आदमी को देखकर सलीम ने पूछा।
– ‘ शश्श्श्………..। धीरे बोलो शहजादे किसी ने सुन लिया तो अनर्थ हो जायेगा।’ पर्दे के पीछे छिपे हुए व्यक्ति ने शहजादे के होठों पर हाथ रख दिया।
– ‘लेकिन तुम हो कौन और क्या चाहते हो?’ सलीम ने पूछा।
– ‘मैं आपके विश्वस्त मित्र उमराव रामसिंह कच्छवाहे का सेवक हूँ।’
– ‘तुम यहाँ छिपकर क्यों खड़े हो?’
– ‘क्योंकि मैं राजा शालिवाहन का पहरा तोड़कर चुपके से यहाँ पहुँचा हूँ।’
– ‘तो क्या कमरे के बाहर अब भी शालिवाहन का पहरा है?’
– ‘हाँ।’
– ‘तो तुम पहरा तोड़ कर क्यों आये, क्या तुम्हें अनुमति नहीं दी गयी?’
– ‘मैंनेअनुमति मांगी ही नहीं।’
– ‘लेकिन क्यों?’
– ‘क्योंकि मैं आपसे गुप्त वार्तालाप करने की इच्छा रखता हूँ।’
– ‘कैसा गुप्त वार्तालाप?’
– ‘मेरे स्वामी ने मुझे आदेश दिया है कि मैं उनका संदेश आप तक पहुँचाऊँ।’
– ‘कैसा संदेश?’
– ‘मेरे स्वामी ने कहलवाया है कि बादशाह सलामत बुरी तरह से बीमार हैं, ईश्वर उन्हें लम्बी उम्र दे लेकिन स्थिति बहुत खराब है। किसी भी समय कुछ भी हो सकता है।’
– ‘लेकिन यह बात मुझे छुप कर क्यों बताई जा रही है?’
– ‘क्योंकि बादशाह की बीमारी की बात बहुत गुप्त रखी जा रही है और केवल कुछ ही लोग जानते हैं।’
– ‘लेकिन क्यों?’
– ‘क्योंकि राजा मानसिंह और खाने आजम कोका नहीं चाहते कि यह समाचार आप तक पहुँचे।’
– ‘क्यों?’
– ‘क्योंकि राजा मानसिंह और खाने आजम कोका, बादशाह सलामत की इच्छानुसार शहजादे खुसरो को हिन्दुस्थान का ताज सौंपने की तैयारियों में लगे हुए हैं।’
– ‘तो फिर तुम मुझे यह सब क्यों बता रहे हो?’
– ‘शहजादे! समझने का प्रयास कीजिये। मैं आपके मित्र कच्छवाहा सरदार रामसिंह का सेवक हूँ। राजा मानसिंह का नहीं।’
– ‘रामसिंह क्या चाहता है?’
– ‘मेरे स्वामी आपको आगरा के तख्त पर बैठा हुआ देखना चाहते हैं।’
– ‘क्यों?’
– ‘यह तो वही जानें, मैं तो उनका संदेशवाहक मात्र हूँ।’
– ‘बादशाह सलामत की इच्छा के विरुद्ध रामसिंह मुझे किस तरह आगरा का ताज सौंपेगा?’
– ‘उन्होंने एक योजना तैयार की है। जिस तरह बादशाह सलामत के चारों ओर राजा मानसिंह का पहरा है, उसी तरह महलों के बाहर मेरे स्वामी रामसिंह ने अपना पहरा बैठा दिया है। उनके सिपाही बड़ी संख्या में फतहपुर सीकरी तथा आगरा के चारों ओर सिमट आये हैं। यदि मानसिंह ने आपको गिरफ्तार किया तो भी वह आपको महल से बाहर नहीं ले जा सकेगा।’
– ‘लेकिन उसने मेरी इस महल के भीतर हत्या कर दी तो?’
– ‘नहीं। राजा मानसिंह हिन्दू है, वह अपने बहनोई की हत्या कदापि नहीं करेगा।’
– ‘लेकिन अब मानबाई तो मर चुकी है और इस बात को लेकर वह मुझसे कई बार झगड़ा भी कर चुका है।’
– ‘फिर भी वह किसी भी सूरत में आपकी हत्या का प्रयास नहीं करेगा और न ही किसी और को करने देगा।’
– ‘लेकिन उसने मुझे कैद किया तो?’
– ‘ऐसी सूरत में मेरे स्वामी रामसिंह अपने आदमियों सहित महलों में प्रवेश करेंगे और आपको मुक्त करवाने का प्रयास करेंगे।’
– ‘अच्छा ठीक है। मुझे क्या करना है?’
– ‘आपको किसी तरह बादशाह सलामत तक पहुँचना है।’
– ‘इसमें क्या कठिनाई है? मैं अभी बादशाह सलामत की सेवा में जाता हूँ।’
– ‘बादशाह सलामत के महल के चारों ओर राजा मानसिंह का कड़ा पहरा है। वह आपको किसी भी हालत में बादशाह तक नहीं पहुँचने देगा।’
– ‘तो फिर?’
– ‘आप सलीमा बेगम से मिलने का प्रयास कीजिये और उनके माध्यम से बादशाह तक पहुंचिये।’
– ‘लेकिन मैंने सुना है कि सलीमा बेगम तो पहले से ही मुझ पर खफा हैं। क्या मैं अपनी माता मरियम उज्जमानी के माध्यम से वहाँ पहुँचूं?’
– ‘नहीं यह उचित नहीं होगा। महारानी जोधाबाई कभी भी बादशाह सलामत के निश्चय के विरुद्ध एक भी शब्द अपने मुँह से नहीं निकालेंगी।’
– ‘तो फिर?’
– ‘मेरे स्वामी ने सुझाव भिजवाया है कि आप सलीमा बेगम के माध्यम से प्रयास कीजिये।’
– ‘ठीक है। मैं ऐसा ही करूंगा लकिन मान लो कि मैं किसी तरह बादशाह सलामत के पास पहुँच गया और उन्होंने मुझे ताज सौंपने के स्थान पर खुसरो को ही बादशाह बनाने की जिद्द बनाये रखी तो?’
– ‘ऐसी स्थिति में हो सकता है कि हमें बादशाह सलामत को गिरफ्तार करना पड़े।’
– ‘क्या रामसिंह मेरे लिये बादशाह सलामत से विद्रोह करेगा?’
– ‘उनकी इच्छा तो नहीं है किंतु आवश्यक हुआ तो यह भी करना पड़ेगा।’
पर्दे के पीछे छिपे हुए रहस्यमय व्यक्ति की बात पूरी हुई ही थी कि राजा शालिवाहन ने कक्ष में प्रवेश किया। सलीम चुपचाप पर्दे के पास से हट गया।