जब से पाकिस्तान अस्तित्व में आया है, वह भारत को अपना सबसे बड़ा शत्रु बताता है तथा भारत से दो बड़ी लड़ाइयां एवं कई बार छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़ चुका है। वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान की सेना ही पाकिस्तान का सबसे बड़ा शत्रु है।
भारत विभाजन के समय पाकिस्तान को भारत के 17.5 प्रतिशत राजस्व स्रोत मिले जबकि सेना का 33 प्रतिशत हिस्सा मिला। अखण्ड भारत की थलसेना का 33 प्रतिशत, नौसेना का 40 प्रतिशत और हवाई सेवा का 20 प्रतिशत मिला। इस कारण ई.1948 में पाकिस्तान के पहले बजट में विशालाकाय सेना के रख-रखाव एवं वेतन-भत्तों के लिए 75 प्रतिशत हिस्सा समर्पित करना पड़ा।
……. इस विशाल सेना को नियंत्रण में रखने के लिए किसी बड़े खतरे का भय दिखाना और सेना को उस खतरे में उलझाये रखना आवश्यक था, अन्यथा यह सेना अपने ही देश के नेताओं और जनता पर कब्जा कर लेती।
जबकि दूसरी ओर पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष इस बड़ी सेना के बल पर पाकिस्तान पर शासन करने का सपना देखने लगे। यही कारण था कि पाकिस्तानी सेना के पहले कमाण्डर इन चीफ अय्यूब खाँ ने यह कहना शुरू कर दिया कि भारत की ब्राह्मणवादी राष्ट्रीयता और अहंकार के कारण पाकिस्तान के निर्माण की जरूरत पड़ी। इसलिए पाकिस्तान की रक्षा के लिए पाकिस्तान को एक बड़ी सेना की आवश्यकता है। इस प्रकार वह पाकिस्तान की गैर-आनुपातिक सेना को कम करने की बजाए, और अधिक बढ़ाने में जुट गया।
तख्ता पलट से बनती हैं पाकिस्तान में सरकारें
अंतराष्ट्रीय पत्रकारिता जगत में पाकिस्तान के लिए विख्यात है कि पाकिस्तान को अल्लाह, आर्मी और अमेरिका चलाते हैं। आर्मी के वर्चस्व के कारण पाकिस्तान में सरकारों के तख्ता-पलट का लम्बा इतिहास रहा है। ई.1951 में भारत का पूर्व नौकरशाह सर गुलाम मुहम्मद पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बना। उसके कार्यकाल में ई.1954 में पाकिस्तान में प्रांतीय विधान सभाओं के लिए चुनाव हुए जिनमें सत्तारूढ़ दल बुरी तरह हार गया।
इस कारण 25 दिसम्बर 1954 को गुलाम मुहम्मद ने संविधान सभा को भंग कर दिया। उसका तर्क था कि जब गवर्नर जनरल जिन्ना सूबे की विधानसभाओं को भंग कर सकते थे तो निश्चित रूप से उनके उत्तराधिकारी भी संघीय संरचनाओं को भंग कर सकते हैं। सत्ता के इस संघर्ष के बीच पाकिस्तान ने मार्शल लॉ का स्वाद पहली बार तब चखा जब एक व्यापक नरसंहार के बाद देश के अहमदिया समुदाय के लोगों को खदेड़ने का अभियान शुरू हुआ।
23 मार्च 1956 से देश में नया संविधान लागू हुआ जिसके माध्यम से पाकिस्तान ने स्वयं को ब्रिटिश कॉमनवैल्थ के अंतर्गत मिले डोमिनियन स्टेटस से मुक्त करके इस्लामिक रिपब्लिक स्टेट घोषित कर लिया। इस संविाधान में देश के लिए संसदीय प्रणाली स्वीकार की गई तथा प्रावधान किया गया कि ई.1959 के आरम्भ में पाकिस्तानी संसद के लिए पहले आम चुनाव करवाए जाएंगे। गवर्नर जनरल का पद समाप्त करके राष्ट्रपति का पद सृजित किया गया।
संसद के नेता को प्रधानमंत्री बनाना प्रस्तावित किया गया जिसे राष्ट्रपति के नीचे रहकर देश का शासन चलाना था। इससे पहले कि पाकिस्तान में आम चुनाव हों, सितम्बर 1958 में सरकार के तख्ता पलट का इतिहास तब एक बार पुनः दोहराया गया जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर मिर्जा ने पाकिस्तान के तत्कालीन संविधान को स्थगित करके प्रधानमंत्री फिरोज खान नून को गद्दी से उतार दिया तथा देश में मिलिट्री शासन की घोषणा कर दी।
मिर्जा द्वारा नियुक्त मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर अय्यूब खान ने 13 दिन बाद अर्थात् 7 अक्टूबर 1958 को राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा का तख्ता पलट दिया और स्वयं को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। जनरल अयूब खान ने पूरे 9 साल पाकिस्तान पर शासन किया।
1 मार्च 1962 से देश में नए संविधान की घोषणा की गई तथा पाकिस्तान को रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान घोषित किया गया। देश में राष्ट्रपति शासन प्रणाली स्वीकार की गई तथा मतदान के लिए अप्रत्यक्ष प्रणाली का प्रावधान किया गया। नए संविधान के तहत 2 फरवरी 1965 को पाकिस्तान में राष्ट्रपति के चुनाव करवाए गए। इन चुनावों में हुई धांधली के बाद राष्ट्रपति अयूब खान को ही फिर से राष्ट्रपति घोषित किया गया। इस प्रकार देश का शासन हमेशा के लिए सेना की छत्रछाया में चला गया। आज भी पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई ही देश पर शासन करती हैं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के जज, सेना के हाथों की कठपुतली होते हैं।
ई.1969 में जनरल याह्या खाँ ने अयूब खाँ का तख्ता पलट दिया तथा स्वयं राष्ट्रपति बन गया। उसने ई.1970 में देश में पहले आम चुनाव करवाए किंतु चुनाव परिणाम आने के बाद सरकार बनवाने में आनाकानी करता रहा। अंत में 7 दिसम्बर 1971 को नूरूल अमीन की सरकार बनी किंतु यह सरकार केवल 13 दिन ही शासन कर सकी।
ई.1973 में जुल्फिकार अली भुट्टो को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवाई गई। उसने यूएनओ में वक्तव्य दिया कि वे भारत से एक हजार साल तक लड़ने के लिए तैयार हैं। भुट्टो ने अपने विश्वस्त सैनिक अधिकारी जनरल जियाउल हक को पाकिस्तानी सेना का प्रमुख बनाया किंतु उसने भुट्टो के साथ गद्दारी करके 4 जुलाई 1977 को भुट्टो को उसकी पार्टी के सदस्यों सहित गिरफ्तार करके नेशनल एसेंबली भंग कर दी और स्वयं राष्ट्रपति बन गया।
यह पाकिस्तान के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाला मार्शल लॉ था। जियाउल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया। ई.1988 में जियाउल हक की एक विमान हादसे में मौत हो गई।
इसके बाद ई.1988 में मरहूम जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा स्थापित पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी दुबारा सत्ता में आई और जुल्फिकार अली भुट्टो की पुत्री बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी। दो साल बाद 1990 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति ग़ुलाम इशाक ख़ान ने भुट्टो सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया।
उसके बाद 1 नवम्बर 1990 से 18 जुलाई 1993 तक नवाज शरीफ की सरकार अस्तित्व में रही। यह सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। ई.1993 से ई.1996 तक बेनजीर भुट्टो दूसरी बार देश की प्रधानमंत्री रही किंतु वह इस बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। ई.1997 के आम चुनावों में पुनः नवाज शरीफ की जीत हुई और 17 फरवरी 1997 से 12 अक्टूबर 1999 तक वह दूसरी बार प्रधानमंत्री के पद पर रहा।
नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया। अक्टूबर 1999 में जब परवेज मुशर्रफ श्रीलंका यात्रा पर गया हुआ था, नवाज शरीफ ने उसे अपदस्थ करके जनरल अजीज को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नियुक्त किया। नवाज शरीफ यह नहीं जानता था कि जनरल अजीज परवेज मुशर्रफ का विश्वस्त है। जनरल परवेज मुशर्रफ ने श्रीलंका से लौटकर नवाज शरीफ और उसके मंत्रियों को गिरफ्तार करके जेल में ठूंस दिया और स्वयं राष्ट्रपति बन गया।
उसी वर्ष अर्थात् ई.1999 में भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने भी पाकिस्तान छोड़ दिया और संयुक्त अरब इमारात के नगर दुबई में जाकर रहने लगी। पाकिस्तान की सैनिक सरकार ने भुट्टो पर लगे भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोपों की जाँच की और बेनजीर भुट्टो को दोष मुक्त कर दिया । 18 अक्टूबर 2007 को बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान लौटी। उसी दिन कराची में एक रैली के दौरान बेनजीर भुट्टो पर दो आत्मघाती हमले हुए जिनमें 140 लोग मारे गए किंतु बेनज़ीर बच गई किंतु 27 दिसम्बर 2007 को एक चुनाव रैली में बेनजीर की हत्या कर दी गई।
ई.2000 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के मामले में दोषी घोषित किया। इस आधार पर परवेज मुशर्रफ नवाज शरीफ को भुट्टो की तरह फांसी पर चढ़ाना चाहता था किंतु सऊदी अरब और अमेरिका ने हस्तक्षेप करके नवाज शरीफ को फांसी पर चढ़ने से बचाया। इस पर मुशर्रफ ने शरीफ को पाकिस्तान से बाहर निकाल दिया। नवाज शरीफ लगभग सात साल तक जेद्दा में रहा।
10 सितम्बर 2007 को नवाज शरीफ पुनः पाकिस्तान लौटा किंतु उसे हवाई-अड्डे से ही तुरन्त जेद्दा वापस भेज दिया गया। वर्ष 2011 में नवाज शरीफ को पाकिस्तान आने की अनुमति मिली और 5 जून 2013 को वह तीसरी बार पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बना। ई.2016 में पानमा पेपर लीक में नाम आने के बाद पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री के पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।
इस कारण 28 जुलाई 2017 को नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटाना पड़ा। तब से नवाज शरीफ पुनः जेल में दिन बिता रहा है। उस पर पाकिस्तान से बाहर जाने पर रोक लगा दी गई है। 18 अगस्त 2018 को इमरान खाँ पाकिस्तान का बाईसवां प्रधानमंत्री बना। वह भी सेना के हाथों की कठपुतली से अधिक कुछ भी नहीं है।
राजनीतिक हत्याओं की स्थली पाकिस्तान
पाकिस्तान राजनीतिक हत्याओं एवं संदेहास्पद परिस्थितियों में मृत्यु की स्थली है। पाकिस्तान बनने के कुछ माह बाद प्रथम गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्ना की मृत्यु उपेक्षा एवं टीबी से हुई। ई.1951 में पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खाँ की हत्या हुई। उसके बाद याह्या खाँ, जुल्फिकार अली भुट्टो, जनरल मुहम्मद जियाउल हक तथा बेनजीर भुट्टो आदि पाकिस्तानी राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री आतंकवादी गतिविधियों, राजनीतिक हत्याओं एवं फांसी आदि के माध्यम से मारे गए।
पुस्तक लिखे जाते समय पूर्व-प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी तथा सैनिक तानाशाह से राष्ट्रपति बना परवेज मुशर्रफ पाकिस्तानी जेलों में बंद हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता