Friday, March 29, 2024
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72. पटेल और नेहरू ने गांधीजी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया

जिन्ना पाकिस्तान के लिये छटपटा रहा था और उससे कम कुछ भी लेने को तैयार नहीं था किंतु गांधीजी और मौलाना अबुल कलाम उसे किसी भी कीमत पर पाकिस्तान नहीं देना चाहते थे। इसलिये माउण्टबेटन तय नहीं कर पा रहे थे कि वह अखण्ड भारत को शासन के अधिकार देकर यहाँ से चले जायें या फिर जिन्ना को पाकिस्तान देकर, दोनों देशों को अलग-अलग सत्ता सौंपें!

दोनों ही स्थितियों में उन्हें दो बातों का ध्यान रखना था। एक तो यह कि अंग्रेजी सेनाएं और अंग्रेज अधिकारी अपने परिवारों को लेकर सुरक्षित रूप से भारत से निकल जायें और दूसरी बात यह कि भारत में साम्प्रदायिक दंगे न फैल जायें और अंग्रेज जाति पर करोड़ों निर्दोष भारतीयों की हत्या का आरोप न आ जाये। वायसराय की अपनी नौकरी तथा प्रतिष्ठा पूरी तरह से खतरे में थी।

उन्हीं दिनों माउण्टबेटन की पत्नी एडविना ने भारत के साम्प्रदायिक दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया। एडविना की आंखें, दंगों में मारे गये लोगों के शवों को देखकर पथरा गयीं। एडविना ने दंगाग्रस्त क्षेत्रों से लौटकर अपने पति को समझाया कि कांग्रेस कभी भी भारत का विभाजन स्वीकार नहीं करेगी किंतु यदि अँग्रेज जाति को करोड़ों लोगों की हत्या का आरोप अपने सिर पर नहीं लेना है तो आप जबर्दस्ती भारत का विभाजन कर दें तथा कांग्रेसी नेताओं को इसके लिये तैयार करें।

एडविना से सहमत होकर माउण्टबेटन ने गांधी, नेहरू और पटेल से, भारत के विभाजन के लिये बात की। गांधीजी किसी भी हालत में भारत का विभाजन नहीं चाहते थे। 3 मार्च 1947 को गांधीजी ने कहा कि भारत का विभाजन मेरे शव पर होगा किंतु पटेल और नेहरू ने साम्प्रदायिक दंगों को देखते हुए भारत विभाजन की अनिवार्यता को स्वीकार कर लिया।

इस पर गांधीजी ने माउण्टबेटन के साथ 6 बैठकें कीं जिनमें कुल 14 घंटे का समय लगा। लैरी कांलिंस एवं दॉमिनिक लैपियर ने लिखा है- ‘गांधीजी ने माउण्टबेटन से बार-बार यह कहा कि भारत को तोड़ियेगा नहीं। ……. विभाजन को रोकने के लिये गांधीजी इस सीमा तक आतुर थे कि उन्होंने वही सोच रखा था जो कभी राजा सोलोमन ने सोचा था। बच्चे को काट कर आधा न बांटो। पूरा देश ही जिन्ना को दे दो।

जिन्ना अपनी मुस्लिम लीग के साथ सामने आयें, सरकार बनायें। देश के तीस करोड़ नागरिकों पर राज्य करें।’ इस पर माउण्टबेटन ने गांधीजी को जवाब दिया कि यदि आप इस प्रस्ताव पर कांग्रेस की औपचारिक स्वीकृति लाकर दे सकें तो मैं भी विचार करने को राजी हूँ।’

माउण्टबेटन से मिलने के बाद गांधीजी ने नेहरू और पटेल से बात की। नेहरू और पटेल दोनों ने ही गांधीजी के प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि वे अपना प्रस्ताव वापिस ले लें। इस पर 3 जून 1947 को माउण्टबेटन ने भारत विभाजन की योजना प्रस्तुत की। जिन्ना मारे खुशी के उछल पड़ा। जीवन भर की पराजयों के बाद अंत में उसी की जीत हुई थी।

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