अंतरिम सरकार के मुस्लिम लीगी सदस्य लियाकत अली ने बजट भाषण में एक आयोग बैठाने का प्रस्ताव किया जो उद्योगपतियों और व्यापारियों पर आयकर न चुकाने के आरोपों की जांच करे और पुराने आयकर की वसूली करे। उसने घोषणा की कि ये प्रस्ताव कांग्रेसी घोषणा पत्र के आधार पर तैयार किये गये हैं। कांग्रेसी नेता, उद्योगपतियों और व्यापारियों के पक्ष में खुले रूप में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे।
लियाकत अली ने बहुत चालाकी से काम लिया था। उसने मंत्रिमण्डल की स्वीकृति पहले ही प्राप्त कर ली थी कि बजट साम्यवादी नीतियों पर आधारित हो। उसने करों आदि के विषय में मंत्रिमण्डल को कोई विस्तृत सूचना नहीं दी थी।
जब उसने बजट प्रस्तुत किया तो कांग्रेसी नेता भौंचक्के रह गये। सरदार पटेल और राजगोपालाचारी ने अत्यंत आक्रोश से इस बजट का विरोध किया। वित्तमंत्री की हैसियत से लियाकत अलीखां को सरकार के प्रत्येक विभाग में दखल देने का अधिकार मिल गया था। वह प्रत्येक प्रस्ताव को या तो अस्वीकार कर देता था
या फिर उसमें बदलाव कर देता था। मंत्रिगण, लियाकत अलीखां की अनुमति के बिना एक चपरासी भी नहीं रख सकते थे। अंत में कांग्रेस के अनुरोध पर लार्ड माउण्टबेटन ने लियाकत अली से बात की और करों की दरें काफी कम करवाईं।