Saturday, December 7, 2024
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भीमराव अम्बेडकर की नियुक्ति में पटेल की भूमिका

सरदार पटेल ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाने का निश्चय किया किंतु भीमराव अम्बेडकर की नियुक्ति में कठिनाई यह थी कि उस काल की कांग्रेस में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का कद इतना ऊँचा नहीं था।

जिस समय भारत की संविधान सभा का गठन हुआ और संविधान का प्रारूप बनाने के लिए प्रारूप समिति का गठन किया गया, तब कांग्रेस को एक ऐसे नेता की तलाश थी जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का ज्ञाता हो तथा भारत की राजनीति में सभी पक्षों को स्वीकार हो सके। गांधी, जिन्ना एवं नेहरू लंदन में बैरिस्ट्री की पढ़ाई करके आए थे।

ये तीनों ही अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के ज्ञाता थे किंतु ये तीनों ही संविधान का प्रारूप बनाने के लम्बे कार्य को करने के लिए समय निकालने में असमर्थ थे। इसलिए सरदार पटेल की दृष्टि डॉ. भीमराव अम्बेडकर पर गई जो गांधी, जिन्ना एवं नेहरू की तरह लंदन में रहकर बैरिस्ट्री की पढ़ाई करके आए थे तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के ज्ञाता थे।

सरदार पटेल ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाने का निश्चय किया किंतु भीमराव अम्बेडकर की नियुक्ति में कठिनाई यह थी कि उस काल की कांग्रेस में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का कद इतना ऊँचा नहीं था। इससे भी बड़ी कठिनाई यह थी कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर के गांधीजी एवं जिन्ना दोनों से सम्बन्ध अच्छे नहीं थे।

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अम्बेडकर सरे आम गांधीजी की आलोचना किया करते थे और उन्हें राजनीति से संन्यास लेने की सलाह दिया करते थे। इसलिए किसी कांग्रेसी नेता में हिम्मत नहीं थी कि इतनी महत्वपूर्ण समिति के लिए अम्बेडकर का नाम सुझा सके। सरदार पटेल डॉ. भीमराव अम्बेडकर की योग्यता, विद्वता एवं परिश्रमशील स्वभाव से परिचित थे। उन्होंने यह भी पता था कि उस काल की राजनीति में डॉ. अम्बेडकर ही एक मात्र ऐसे कानूनविद् थे जिन्हें हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच की समस्या की गहराई तक जानकारी थी।

डॉ. अम्बेडकर अनेक बार सार्वजनिक मंचों से हिन्दुओं में व्याप्त छुआछूत एवं भेदभाव की समस्या पर बोल चुके थे किंतु इसके साथ ही वे इस्लाम के सम्बन्ध में भी खुलकर विचार प्रकट करने का साहस रखते थे। वे जानते थे कि यदि मुसलमान भारत में रहे तो वे कभी भी हिंदुओं को शांति से नहीं जीने देंगे। डॉ. भीमराव अम्बेडकर में एक विशेषता और थी जो उस काल के किसी भी नेता में नहीं थी, वह विशेषता थी उनका सच बोलने के प्रति उत्साह। वे किसी बात को गांधीजी की तरह चाशनी में लपेटकर, अल्पसंख्यकों के प्रति अनावश्यक आग्रह दिखाकर अपनी राजनीति आगे नहीं बढ़ाते थे।

डॉ. अम्बेडकर भारत जैसे विशाल देश में बड़ी संख्या में निवास करने वाली एवं दलित जातियों को शैक्षिक रूप से योग्य बनाकर आर्थिक रूप से सक्षम बनाना चाहते थे। इसलिए अंग्रेजों द्वारा पैदा की गई आरक्षण जैसी बुराइयों से दलित जातियों को अलग रखना चाहते थे।
इसलिए सरदार पटेल ने डॉ. अम्बेडकर को ही प्रारूप समिमिति का अध्यक्ष बनवाने का संकल्प किया।

संविधान सभा में सरदार पटेल ने सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने भीमराव अम्बेडकर की नियुक्ति संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के पद पर करवाने के लिए नेताओं को सहमत किया तथा अम्बेडकर के पक्ष में वातावरण तैयार किया।

सरदार पटेल संविधान सभा की अनेक महत्त्वपूर्ण सामितियों यथा अल्पसंख्यक समिति, आदिवासी समिति, मौलिक अधिकार समिति तथा प्रांतीय संविधान समिति के अध्यक्ष थे।

पटेल ने संविधान सभा में प्रांतीय संविधान का मॉडल प्रस्तुत किया जिसमें राज्यपालों को अत्यंत सीमित अधिकार दिये गये। पटेल चाहते थे कि राज्यपाल किसी भी स्थिति में, चुनी गई सरकार के कामकाज को प्रभावित न करें। पटेल ने ही राष्ट्रपति द्वारा संसद में दो एंग्लो इण्डियन्स को नामित करने का प्रावधान करवाया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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