नाना साहब पेशवा उन्नीसवीं सदी के इतिहास में राजनीति की बिसात से बलपूर्वक उठाकर फैंका गया ऐसा दुर्भाग्यशाली मोहरा था जिसका दर्द भारतीय इतिहास में बहुत कम उभर कर सामने आया है।
ई.1857 की क्रांति के बारे में इतिहासकारों की अलग-अलग राय है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस क्रांति में देश व्यापी विभिन्न तत्वों ने भाग लिया जिनमें धार्मिक नेताओं, पूर्व राजाओं, जागीरदारों, कृषकों, कारीगरों, सैनिकों और सामान्य जनता की भागीदारी थी। जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह क्रांति अंग्रेजों से असंतुष्ट चल रहे कुछ राजाओं, मुट्ठी भर बड़े जागीरदारों तथा अंग्रेजी सेनाओं के असंतुष्ट भारतीय सैनिकों तक ही सीमित थी। जनसामान्य ने इसमें भाग नहीं लिया।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 1857 की क्रांति अनायास ही फूट पड़े असंतोष का परिणाम थी जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह सोची-समझी एवं पूर्व नियोजित योजना थी। इसका नेतृत्व अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग लोगों ने किया। इस क्रांति में लाल किले की विशेष भूमिका नहीं थी किंतु क्रांति की देवी ने लाल किले को इस क्रांति के केन्द्र में जबर्दस्ती घसीट लिया।
बहुत से इतिहासकारों की धारणा है कि ईस्वी 1857 की क्रांति का बीजारोपण पेशवा नाना साहब (द्वितीय) ने किया था। पाठकों को स्मरण होगा कि ई.1803 में अंग्रेजों ने मराठों से दिल्ली छीन ली थी। तब से ही अंग्रेज मराठों को कुचलने में लगे रहे और अंत में उन्होंने ई.1818 में पेशवा बाजीराव (द्वितीय) को पेंशन देकर पूना से बाहर निकाल दिया तथा उसे कानपुर के पास बिठूर में रहने के लिए बाध्य कर दिया। पेशवा बाजीराव (द्वितीय) के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसने धोंधू पंत नामक एक बालक को गोद लिया।
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पेशवा बाजीराव (द्वितीय) ई.1852 में मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसका दत्तक पुत्र धोंधू पंत नाना साहब (द्वितीय) के नाम से उसका उत्तराधिकारी हुआ किंतु कम्पनी सरकार ने नाना साहब को पेंशन देने से मना कर दिया। नाना साहब ने पेंशन पाने के लिए लार्ड डलहौजी से पत्राचार किया किंतु जब उसने भी मना कर दिया तो नाना साहब ने अपने सेनापति अजीमुल्ला खाँ को अपना वकील नियुक्त करके महारानी विक्टोरिया के पास लंदन भेजा।
अजीमुल्ला खाँ ने महारानी से मिलकर पेशवा का पक्ष स्पष्ट करने का प्रयास किया किंतु उसे सफलता नहीं मिली। अजीमुल्ला खाँ लंदन से फ्रांस, इटली तथा रूस आदि देशों की यात्रा करता हुआ फिर से भारत आ गया। उसने नाना साहब को ब्रिटिश सरकार की खराब नीयत, अपनी विफलता तथा यूरोपीय देशों में आजादी के लिए चल रहे संघर्षों आदि की जानकारी दी।
इस पर नाना साहब ने भारत में भी राष्ट्रव्यापी स्वातंत्र्य संग्राम आरम्भ करने की योजना बनाई। इस योजना के प्रचार के लिए नाना साहब ने उन रजवाड़ों से सम्पर्क करने की योजना बनाई जिनके राज्य अंग्रेजों ने छीन लिए थे या जिन राजाओं की पेंशनें बंद कर दी थीं। ईस्वी 1856 में नाना साहब ने बिठूर से भारत भर में अपने गुप्त दूत और प्रचारक दिल्ली से लेकर मैसूर तक के विस्तृत क्षेत्र में स्थित रियासतों भिजवाए। ये दूत नाना साहब का गुप्त पत्र लेकर इन रियासतों के राजाओं तक पहुंचे। इस पत्र में बड़े ही रहस्यपूर्ण शब्दों में भिन्न-भिन्न धर्मों के नरेशों और सामंतों को सलाह दी गई थी कि वे लोग आगामी युद्ध के लिए तैयार रहें तथा भारत को पराधीन बनाने के अंग्रेजों के प्रयत्नों को विफल बनाएं।
इसी बीच ईस्वी 1856 में अंग्रेजों के हाथों अवध के नवाब वाजिद नवाब वाजिद अली शाह की गिरफ्तारी और अवध पर अंग्रेजों के अधिकार के समाचारों ने देशी रियासतों के राजाओं और नवाबों को चिंतित कर दिया। वे स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगे। इसलिए पहले से ही असंतुष्ट चल रहे राजाओं ने पेशवा नाना साहब द्वारा बनाई जा रही सशस्त्र क्रांति की योजना में भाग लेना स्वीकार कर लिया।
अवध के पूर्व नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल और अवध के वजीर अलीनकी खाँ ने भी क्रांति की योजना में सहयोग देने का निश्चय किया। वजीर अलीनक़ी खाँ इस समय कलकत्ता में था। उसने अपने गुप्त दूत मुसलमान फकीरों और हिंदू साधुओं के रूप में उत्तर भारत की रियासतों में भिजवाए और उन रियासतों के भारतीय अधिकारियों से पत्र-व्यवहार किया।
ईस्वी 1857 के आरम्भ में पेशवा नाना साहब (द्वितीय) अपने भाई बाला साहब को लेकर कानपुर से भारत के विभिन्न स्थानों के लिये तीर्थयात्रा पर निकला। इस तीर्थयात्रा के दौरान पेशवा उन स्थानों पर भी गया जहाँ अँग्रेजों द्वारा अपदस्थ रजवाड़ों के परिवार रहते थे। उसने कालपी, लखनऊ, आगरा, अम्बाला आदि स्थानों की भी यात्रा की और सैनिक छावनियों में पहुंचकर अंग्रेजी सेनाओं के हिंदुस्तानी सैनिकों से सम्पर्क किया। नाना साहब ने हिन्दुस्तानी सैनिकों को निकट भविष्य में होने वाली राष्ट्रव्यापी क्रांति की गुप्त योजना बताई।
इसके बाद नाना साहब पेशवा ने दिल्ली पहुंच कर लाल किले में बादशाह बहादुरशाह जफर तथा उसकी बेगम जीनत महल से भेंट की। संभवतः इसी दौरान कोई गुप्त संगठन तैयार हुआ जिसने क्रांति के लिये 31 मई 1857 की तिथि निर्धारित की।
इस समय अंग्रेजी पलटनों के भारतीय सिपाही ईस्ट इण्डिया कम्पनी की दूषित नीतियों के कारण अंग्रेज अधिकारियों से नाराज थे। इस कारण अनेक भारतीय रेजीमेंटें नवनिर्मित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से जुड़ गईं जिसने 31 मई 1857 का दिन विद्रोह के लिये नियत किया था।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कोई गुप्त संगठन नहीं बना था, अपितु विद्रोह अचानक फूट पड़ा था जो बाद में बड़े क्षेत्र में फैल गया था, क्योंकि किसी गुप्त संगठन के कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं हुए हैं।
इस क्रांति का जितनी तेजी से प्रचार किया गया, वह भी आश्चर्यजनक था। बंगाल के बैरकपुर से लेकर पख्तूनिस्तान के पेशावर तक और संयुक्त प्रांत के लखनऊ से लेकर महाराष्ट्र के सातारा तक हजारों फकीरों एवं सन्यासियों ने गांव-गांव और सैनिक पलटनों में घूम-घूमकर आजादी की लड़ाई का प्रचार किया। कुछ ही समय में क्रांतिकारियों के पांच प्रमुख केंद्र बन गए- दिल्ली, बिठूर, लखनऊ, कलकत्ता और सतारा।
इस प्रचार की विशेष बात यह थी कि अंग्रेजों को लम्बे समय तक इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। क्रांति का प्रचार होने के साथ-साथ संगठन के केंद्रों की संख्या भी बढ़ने लगी। इन केंद्रों के बीच गुप्त पत्र-व्यवहार आरंभ हो गया।
क्रांति के संदेश का प्रचार करने के लिये तीर्थ-स्थलों, मेलों और उत्सवों का उपयोग किया गया। छद्म सन्यासियों, मदारियों एवं फकीरों द्वारा गांवों के चौकीदारों को रोटी पहुंचाई जाती थी जो प्रसाद के रूप में वितरित की जाती थी। इसी प्रसाद के साथ, सम्पूर्ण भारत में विद्रोह के लिये 31 मई 1857 की तिथि निर्धारित होने का संदेश दिया जाता था।
हालांकि नाना साहब जहाँ भी जाता था, वहाँ सैनिक छावनियों, स्थानीय राजाओं एवं जमींदारों के साथ-साथ जनसामान्य एवं स्थानीय अंग्रेज अधिकारियों से अवश्य मिलता था ताकि अंग्रेजों को उसकी यात्रा के वास्तविक उद्देश्य की जानकारी न हो सके किंतु इस पर भी कुछ अँग्रेज अधिकारियों को नाना साहब पेशवा की इन गतिविधियों की जानकारी हो गई और वे चौकन्ने हो गए।
एक तत्कालीन अँग्रेज अधिकारी विल्सन ने कम्पनी सरकार के उच्च अधिकारियों को सूचित किया कि कम्पनी सरकार के विरुद्ध एक गुप्त संगठन बनाया गया है जिसने भारत-व्यापी विद्रोह के लिये 31 मई 1857 की तिथि निर्धारित की है। विल्सन ने अपने अधिकारियों को सूचित किया कि कम्पनी सरकार की सेनाओं के हिन्दू सैनिकों को गंगाजल तथा तुलसीदल एवं मुसलमान सैनिकों को कुरान की शपथ दिलवाकर भावी विद्रोह के लिये तैयार किया गया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता