Sunday, December 8, 2024
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मेवस्थान

भारत में मेवस्थान बनाने की योजना

जब भारत आजाद होने लगा तो मुसलमानों ने अपने लिए अलग देश की मांग की, सिक्खों ने अपने लिए अलग देश की मांग की, उसी प्रकार मेवात के मेवों ने भी अपने लिए अलग मेवस्थान नामक देश की मांग की। हालांकि मेवात के मेव मुसलमान ही थे किंतु वे पाकिस्तान में नहीं जाना चाहते थे अपितु उन्होंने गुड़गांव के आसपास के क्षेत्र में ही मेवस्थान की स्थापना का सपना देखा।

कांग्रेस में शामिल वामपंथी विचारों के नेता डॉ. अशरफ के विद्यार्थी काल में शिक्षा प्राप्ति हेतु अलवर राज्य द्वारा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई थी। वह मेव मुसलमान था तथा कांग्रेस में रहकर मेवों की राजनीति करता था। उसने अलग मेवस्थान प्रस्थापित कर पाकिस्तान में संलग्न होने का शरारतपूर्ण सुझाव दिया था। मेवस्थान के लिए मची मारकाट से मार्च 1947 तक इस पूरे क्षेत्र में शांति व्यवस्था सर्वथा भंग हो गई।

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गुड़गांवा में मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं ने बहुत लूटमार मचा रखी थी। वहाँ का डिप्टी कमिश्नर गुण्डों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर रहा था। वल्लभभाई पटेल ने गुड़गांवा पहुंचकर डिप्टी कमिश्नर से इसके बारे में सवाल पूछे तो डिप्टी कमिश्नर ने उत्तर देने से इन्कार कर दिया। वल्लभभाई अपना सा मुख लेकर वापस आ गए। गुड़गांवा जिले में मेव जाति के मुसलमान बड़ी भारी संख्या में बसे हुए थे।

सन् 1947 के आरम्भ से जुलाई 1947 तक जिला गुड़गांवा के गांव-गांव में बलवे हुए। वहाँ के गूजर और जाटों ने मुसलमानों का विरोध किया। इस पर भी हिन्दुओं के सैंकड़ों गांव जला डाले गए और वहाँ के गूजर, अहीर तथा जाट दिल्ली और गुड़गांवा में आश्रय पाने के लिए एकत्रित होने लगे। योजना कुछ ऐसी थी कि दिल्ली और गुड़गांवा हिन्दुओं से खाली करा दिए जाएं और यहाँ पर मुस्लिम लीग का अधिकार जमा लिया जाए। इसके लिए शस्त्रास्त्र भी स्मगल करके लाए गए थे।

मुस्लिम लीग की यह योजना कुछ तो दिल्ली के हिन्दू युवकों ने विफल कर दी और कुछ अलवर राज्य जो जिला गुड़गांवा के किनारे पर था, ने चलने नहीं दी। अलवर के राजा ने अपने राज्य का मुख्यमंत्री हिन्दू सभा के एक नेता को बना रखा था। इस राज्य के प्रयत्न से वहाँ के मेव अपनी योजना में सफल नहीं हो सके।

गांधीजी के सहयोगी मास्टर प्यारे लाल ने लिखा है-

‘मुस्लिम लीग और इसके सहायकों के षड्यंत्र के सूत्रों का नवीन प्रमाण मिला था। कुछ सैनिक अधिकारी जो युद्धकाल में जापान की सेना के पीछे बर्मा में ब्रिगेडियर विंगेट के अधीन काम कर रहे थे, विध्वंसात्मक कार्यवाही करते पकड़े गए। वह किस प्रकार हिन्दुस्तान में घुस सके, यह एक रहस्यमय बात है।

शस्त्रास्त्र के अवैधानिक रूप से हिन्दुस्तान में लाने की कार्यवाही बहुत तेजी से चल रही थी। इसमें हिन्दुस्तानी सेना के अंग्रेज अधिकारी सक्रिय सहयोग दे रहे थे।

यह एक खुली निंदनीय बात थी। अवैधानिक शस्त्रास्त्रों के छिपे हुए कोश जिनमें हजारों स्टेनगन्स थीं, नागपुर, जबलपुर, कानपुर और कई स्थानों पर पाए गए। कांग्रेस हाईकमाण्ड को इन कोशों के लिखित प्रमाण मिले थे और पता चला था कि ब्रिटिश सरकार का राजनीतिक विभाग भी इस कार्य में सम्मिलित है।

यह विभाग कुछ राजाओं-महाराजाओं से मिलकर एक षड्यंत्र बना रहा था, जिससे हिन्दुस्तान की एकता भंग हो सके। ऐसे भी प्रमाण मिले, जिससे एक व्यवस्थित योजना का पता चला कि शस्त्रास्त्र देशी रियासतों से हिन्दुस्तान भर में भेजकर एक डी-डे मनाया जा सके।’

बहुत से शस्त्रास्त्र मस्जिदों में एकत्रित किए हुए मिले। ये निःसंदेह मुस्लिम लीगी राज्य स्थापित करने के लिए थे।…. जबलपुर, नागपुर इत्यादि नगरों में जो शस्त्रास्त्रों के कोश मिले थे, वे कदाचित् मुस्लिम लीग के विशाल षड़्यंत्र का ही परिणाम था। इन कोशों के निर्माण में राजा-महाराजाओं का कितना हाथ था, कहना कठिन है।

……. वास्तविक बात यह है कि अंतरिम सरकार बनने के अपरांत पूरे हिन्दुस्तान में मुस्लिम लीग का षड़्यंत्र चल रहा था जिससे यदि पूर्ण हिन्दुस्तान नहीं तो हिन्दुस्तान के बहुत से भाग को पाकिस्तान बनाया जा सके। मेवस्थान की योजना भी उसी षड़यंत्र का अंग थी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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