Saturday, July 27, 2024
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जोधपुर राज्य को पाकिस्तान में मिलाने का षड़यंत्र (6)

जोधपुर राज्य में पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों की समस्या

पाकिस्तान से लगने वाली 325 किलोमीटर लम्बी सीमा पर दोनों तरफ के शरणार्थियों का तांता लगा हुआ था। 28 अगस्त 1947 को मारवाड़ जंक्शन में एस. के. मुखर्जी की अध्यक्षता में एक शरणार्थी शिविर खोला गया जिसमें 2 लाख शरणार्थियों के अस्थायी निवास, भोजन, आश्रय तथा चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध करवायी गयीं। शिविर में कई महिलाओं ने बच्चों को भी जन्म दिया जिन्हें स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध करवायी गयीं।

शिशुओं के लिए दूध की व्यवस्था की गयी। बहुत सी संस्थाओं तथा दानी लोगों ने इस शिविर को धन, दवायें, कपड़े तथा भोजन प्रदान किया। बहुत से लोगों ने शिविर में उपस्थित होकर निशुल्क सेवायें प्रदान कीं। महाराजा जोधपुर के अतिरिक्त बी. डी. एण्ड सी. आई. रेलवे, श्री उम्मेद मिल्स पाली तथा सोजत रोड प्रजा मण्डल ने भी शिविर को महत्त्वपूर्ण सहायता उपलब्ध करवायी।

सितम्बर 1947 में सिंध प्रांत के प्रधानमंत्री एम. ए. खुसरो ने अपने सलाहकार एवं सिंध के बड़े नेता मोहम्मद हसीम गजदर को इस आशय से जोधपुर भेजा कि वे जोधपुर के मुसलमानों को समझायें कि वे जोधपुर के सुशासित एवं शांतिपूर्ण राज्य को छोड़कर पाकिस्तान नहीं आयें। जोधपुर राज्य में आये हुए शरणार्थियों को सुविधायें देने के लिए मारवाड़ शरणार्थी एक्ट 1948 बनाया गया।

इस एक्ट के तहत पंजीकृत शरणार्थियों को मारवाड़ राज्य में मारवाड़ियों के समान अधिकारों के आधार पर नौकरियां दी गयीं। जोधपुर राज्य में लगभग 46 हजार शरणार्थी पाकिस्तान से आये जिन्हें राज्य की ओर से मकान, भूखण्ड एवं कर्ज उपलब्ध करवाये गये। शरणार्थियों के लिए राज्य की ओर से विद्यालय तथा नारी-शालायें बनायी गयीं। सिंध से आने वाले अधिकांश शरणार्थी जोधपुर नगर में ही बस गये।

उमरकोट में रहने वाले पुष्करणा ब्राह्मणों ने महाराजा जोधपुर से प्रार्थना की कि महाराजा इस क्षेत्र के पुष्करणा परिवारों को पाकिस्तान से निकालने की व्यवस्था करें क्योंकि इस क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए केवल उँट ही एकमात्र सवारी है तथा बड़े आकार वाले गरीब पुष्करणा ब्राह्मण परिवारों के लिए उँट की पीठ पर इतना लम्बा मार्ग पार करके निकल पाना संभव नहीं है। इन परिवारों ने स्वयं को मूलतः जोधपुर राज्य के शिव एवं पोकरण क्षेत्र की प्रजा बताते हुए महाराजा से रोजगार, काश्त हेतु भूमि एवं आवास की भी मांग की।

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मीरपुरखास के डिप्टी कलक्टर कार्यालय के हैडक्लर्क शामदास ताराचंद ने महाराजा को पत्र लिखकर मांग की कि इस क्षेत्र में पुष्करणा ब्राह्मणों के परिवारों से कुल 50 व्यक्ति राजकीय सेवा में हैं उन्हें जोधपुर राज्य की सेवा में नौकरी दी जाये। इनमें से 1 डिप्टी सुपरिंटेंडेण्ट ऑफ पुलिस, 1 मैडिकल ऑफीसर, 1 नायब तहसीलदार एवं सैकेण्ड क्लास मजिस्ट्रेट, 1 सबइंसपेक्टर ऑफ पुलिस, 5 अंग्रेजी के अध्यापक, 15 हिन्दी के अध्यापक, 10 महिला अध्यापक, 4 कम्पाउण्डर, 5 पुलिस हैडकांस्टेबल तथा 5 राजस्व विभाग के लिपिक हैं।

जोधपुर से हज यात्रा पर गये हुए कुछ मुस्लिम परिवारों ने 2 अक्टूबर 1947 को मक्का से महाराजा हनवंतसिंह को लिखा कि हम अपने परिवारों को खुदा के भरोसे पर जोधपुर में छोड़कर आये थे किंतु यहाँ हमें अपने बच्चों तथा परिवारों से लगातार सूचना मिल रही है कि जोधपुर राज्य में उनकी जान को खतरा है। यद्यपि हमें विश्वास है कि जोधपुर राज्य के हिन्दू, मुसलमानों से झगड़ा नहीं करेंगे किंतु जोधपुर राज्य में बाहर से आने वाले सिक्खों के दबाव में वे ऐसा कर सकते हैं। अतः आपसे प्रार्थना है कि आप उनके जीवन की रक्षा करें।

इस पत्र की प्रति राजमाता को भी भेजी गयी। पाकिस्तानी नेता एच. एस. सुहरावर्दी ने 18 अक्टूबर 1947 को जोधपुर महाराजा को पत्र लिखकर जोधपुर राज्य में सांप्रदायिक स्थितियों पर कड़ी आपत्ति जताई। उसने लिखा कि मुझे शिकायत प्राप्त हुई है कि अहमदाबाद-कराची के बीच यात्रा करने वाले मुस्लिम यात्रियों को लूनी एवं हैदराबाद-सिंध के बीच स्थित बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर लूटा जा रहा है जो कि आपके क्षेत्राधिकार में है। राजस्थान की रियासतों में शरणार्थियों की समस्याओं पर विचार करने के लिए 6 नवम्बर 1947 को भारत सरकार के गृह-मंत्रालय ने अलवर, भरतपुर, बीकानेर, जयपुर तथा जोधपुर राज्य के राजाओं की एक बैठक बुलाई।

टाण्डो मुहम्मद खान से महाराज किशनचंद्र शर्मा ने 29 अक्टूबर 1947 को पत्र लिखकर जोधपुर महाराजा से मांग की कि सिंध-हैदराबाद जिले के टाण्डो डिवीजन में 5-6 गौशालायें हैं जिनमें 1000-1500 गायें हैं। चूंकि इस क्षेत्र के सम्पन्न परिवार मारवाड़ को पलायन कर गये हैं इसलिए इन गौशालाओं की देखभाल करने वाला अब कोई नहीं है तथा गायों की स्थिति करुणा जनक है। उनके लिए 20-25 गरीब ब्राह्मण परिवार ही शेष बचे हैं। अतः आप इम्पीरियल बैंक के माध्यम से गौशालाओं के लिए धन भिजवायें।

सिंध से आये कई पुष्करणा ब्राह्मणों ने जो कि ज्योतिष का काम करते थे, हनवंतसिंह को अलग-अलग पत्र लिखकर अनुरोध किया कि हमें राजज्योतिषी नियुक्त किया जाये। इन पत्रों में इच्छा व्यक्त की गयी कि महाराजा हमसे आशीर्वाद लेने के लिए हमें बुलाये। जोधपुर महाराजा की फाइल में एक गुमनाम पत्र लगा हुआ है। यह पत्र महाराजा के निजी सचिव के कार्यालय में 18 नवम्बर 1947 को प्राप्त हुआ था।

इस पत्र में किसी व्यक्ति ने महाराजा से शिकायत की है कि जो हिन्दू शरणार्थी पाकिस्तान से आ रहे हैं उन्हें रेलवे कर्मचारियों एवं कस्टम वालों द्वारा तंग किया जा रहा है और रिश्वत मांगी जा रही है। शरणार्थियों द्वारा लाये गये सामान की मात्रा अधिक बताकर उसका किराया मांगा जा रहा है तथा पैसा न होने पर सामान छीन लिया जाता है। उधर तो हिन्दुओं को पाकिस्तान ने लूट लिया और इधर हिन्दूओं को हिन्दू ही लूट रहे हैं।

महाराजा अपने गुप्तचरों के माध्यम से पता लगवायें तथा शरणार्थियों की रक्षा करें। शरणार्थियों के साथ समानता का व्यवहार नहीं हो रहा। कल की ही बात है कि जो मुसलमान हज करके लौटे हैं उनके पास बहुत सामान था किंतु न तो कस्टम वालों ने चैक किया और न रेलवे वालों ने सामान तोल कर देखा। ऐसे ही एक टंकित गुमनाम पत्र में महाराजा को शिकायत की गयी है कि सिंध से आये शरणार्थियों को राशन एवं आवास के स्थान पर लातें और मुक्के मिल रहे हैं जबकि पाकिस्तान पहुंचने वाले शरणार्थियों को पाकिस्तान में पूरा राशन, रोजगार और सुविधायें मिल रही हैं।

जो हिन्दू अपने घरों को छोड़कर भारत भाग आये हैं, पाकिस्तानी अधिकारी उन हिन्दुओं के घरों के ताले तोड़कर उन्हें उन मकानों में घुसा रहे हैं। इसके विपरीत जोधपुर राज्य के मकान मालिक हिन्दू शरणार्थियों से 10-15-20 गुना किराया मांग रहे हैं। 6 से 12 माह तक का किराया एक साथ लिया जा रहा है। शरणार्थियों को अपने आभूषण बेचने पड़ रहे हैं। शरणार्थियों के लिए अलग से कॉलोनी बनायी जाये।

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