Saturday, July 27, 2024
spot_img

मुगलों पर पुनः आक्रमण (15)

राज्याभिषेक के कार्यक्रमों तथा राजमाता एवं राजमहिषी की मृत्यु के लोकाचार के कार्यक्रमों से निवृत्त होने के पश्चात् शिवाजी का ध्यान मुगल सूबेदार बहादुर खाँ की ओर गया जो इन दिनों भीमा नदी के पास पेंदगांव में डेरा डाले हुए था। शिवाजी ने मुगलों पर पुनः आक्रमण करने का निश्चय किया।

ओरंगजेब ने दिलेर खाँ को पुनः दिल्ली बुलवा लिया था। इस कारण सूबेदार बहादुर खाँ ही दक्षिण में मुगल सत्ता का अकेला प्रतिनिधि था। शिवाजी के राज्याभिषेक के कार्यक्रम के तुरंत बाद, राज्य में भारी वर्षा हुई थी किंतु शिवाजी ने वर्षा की परवाह किए बिना ही अपने 2,000 घुड़सवार सैनिकों को मुगलों पर आक्रमण करने के लिए भेजा।

योजना यह थी कि मराठे, मुगलों को ललकारते हुए शिविर से काफी दूर ले जाएंगे तथा पीछे से शिवाजी 7,000 घुड़सवारों के साथ मुगल शिविर पर आक्रमण करके उसे बर्बाद करेगा। यह योजना सफल रही। शिवाजी ने मुगलों के शिविर में आग लगा दी तथा वहाँ से 2 करोड़ रुपए का कोष, 200 घोड़े और बहुमूल्य सामान लूट लिया।

यह कीमती सामग्री एवं घोड़े बादशाह को भेंट देने के लिए एकत्रित किए गए थे। अक्टूबर के मध्य में शिवाजी की एक सेना ने फिर से बहादुर खाँ के शिविर को घेर लिया। शिवाजी की एक सेना ने औरंगाबाद के पास के कई नगरों को लूटा तथा वहीं से बगलाना और खानदेश में प्रवेश करके लगभग एक माह तक मुगलों के प्रदेश को लूटती रही।

एक तरफ से शिवाजी बहादुर खाँ के विरुद्ध कार्यवाहियाँ करता रहा और दूसरी ओर उसने बहादुर खाँ के माध्यम से ही औरंगजेब के पास संधि का प्रस्ताव भिजवाया। इसमें शिवाजी ने अपनी ओर से लिखा कि उसके पुत्र सम्भाजी को औरंगजेब सात हजारी मनसब पर नियुक्त करे। इसके बदले में शिवाजी अपने 17 दुर्ग समर्पित करेगा।

बहादुर खाँ ने इस प्रस्ताव को अपनी संतुस्ति के साथ औरंगजेब को भेज दिया। औरंगजेब ने इस संधि को स्वीकार कर लिया किंतु जैसे ही बादशाह की स्वीकृति प्राप्त हुई शिवाजी ने इसकी तरफ से मुंह मोड़ लिया। औरंगजेब ने खीझकर बहादुर खाँ को बहुत बुरा-भला लिखकर भेजा।

इस पर बहादुर खाँ ने योजना बनाई कि मुगल बादशाह को बीजापुर तथा गोलकुण्डा के साथ संधि करके तीनों शक्तियों को एक साथ शिवाजी पर आक्रमण करना चाहिए। औरंगजेब ने इस प्रस्ताव को भी स्वीकृत कर दिया। औरंगजेब किसी भी प्रकार से शिवाजी से छुटकारा चाहता था क्योंकि शिवाजी के राज्याभिषेक के किस्से पूरे भारत में बढ़ा-चढ़ा कर कहे जा रहे थे और ऐसा लगता था मानो भारत में हिन्दू राज्य की स्थापना होने ही वाली है।

वेदनूर अभियान

उन्हीं दिनों शिवाजी ने कनारा की तरफ अभियान किया। वेदनूर की रानी तिमन्ना ने शिवाजी को संदेश भेजा कि वे वेदनूर की रानी की सहायता करें क्योंकि वेदनूर का सेनापति रानी तिमन्ना का अनादर कर रहा है। शिवाजी ने रानी की सहायता करने का वचन दिया तथा इसके बदले में वेदनूर पर चौथ आरोपित करने का प्रस्ताव रखा। रानी तिमन्ना ने शिवाजी का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। शिवाजी ने सेनापति पर अंकुश लगाकर, रानी तिमनना की सहायता की तथा वेदनूर राज्य से चौथ वसूल की।

शिवाजी की बीमारी

सम्भाजी लम्बे समय तक औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम के सम्पर्क में रहकर दूषित विचारों का हो गया था। इस कारण उसे युद्ध एवं प्रजापालन से बहुत कम सरोकार रह गया था। वह हर समय मदिरा पान करके स्त्रियों की संगत में रहता था। मराठों के भावी राजा का यह चरित्र देखकर शिवाजी बहुत चिंतित रहा करते थे।

इसी चिंता में घुलते रहने के कारण ई.1675 के अंत में शिवाजी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। उसकी बीमारी की सूचना हवा की तरह दूर-दूर तक फैलने लगी और शीघ्र ही अफवाह उड़ गई कि शिवाजी का निधन हो गया है किंतु वैद्यों के उपचार से शिवाजी धीरे-धीरे ठीक हो गया और फिर से हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के काम में जुट गया।

मुहम्मद कुली खाँ को दक्षिण की कमान

किसी समय शिवाजी का दायां हाथ कहे जाने वाले और द्वितीय शिवाजी के नाम से विख्यात नेताजी पाल्कर को औरंगजेब ने जयसिंह के माध्यम से मुगल सेवा में भरती करके मुसलमान बना लिया था और आठ सालों से अफगानिस्तान के मोर्चे पर नियुक्त कर रखा था। उसे अब मुहम्मद कुली खाँ के नाम से जाना जाता था।

औरंगजेब ने अब शिवाजी के विरुद्ध मुहम्मद कुली खाँ को झौंकने का निर्णय लिया। मुहम्मद कुली खाँ को शिवाजी के राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों की पूरी जानकारी थी। औंरगजेब ने दिलेर खाँ को भी मुहम्मद कुली खाँ के साथ दक्षिण भेजने का निर्णय लिया। दिलेर खाँ भी बरसों तक दक्षिण में सेवाएं दे चुका था तथा उसे शिवाजी से लड़ने का लम्बा अनुभव था।

इन दोनों मुगल सेनापतियों ने शिवाजी की राजधानी सतारा के निकट अपना डेरा जमाया। एक दिन मुहम्मद कुली खाँ अचानक मुगल डेरे से भाग निकला और सीधा शिवाजी की शरण में पहुँचा। उसने शिवाजी से अनुरोध किया कि मेरी शुद्धि करवाकर मुझे फिर से हिन्दू बनाया जाए। शिवाजी ने अपने पुराने साथी को फिर से हिन्दू धर्म में लेने की व्यवस्थाएं कीं।

19 जून 1676 को नेताजी पाल्कर फिर से हिन्दू धर्म में प्रविष्ट हो गया। इसके बाद वह आजीवन शिवाजी की सेवा करता रहा। जब शिवाजी का निधन हुआ तब भी नेताजी पाल्कर, सम्भाजी के प्रति निष्ठावान बना रहा। इस प्रकार औरंगजेब का यह वार भी खाली चला गया।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source