Saturday, July 27, 2024
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51. विद्रोह

वापस आगरा न जाकर बैरामखाँ वहीं से अलवर के लिये रवाना हो गया ताकि वहाँ से अपने परिवार को लेकर मक्का के लिये प्रस्थान कर सके। जब उसके बचे-खुचे सेवकों को पता लगा कि बैरामखाँ अलवर चला गया है तो वे भी आगरा खाली करके उसके पीछे-पीछे अलवर चले आये। बैरामखाँ अलवर से अपना परिवार लेने के बाद सरहिंद की ओर गया जहाँ उसका गुप्त खजाना गढ़ा हुआ था।

जब पंजाब में नियुक्त जागीरदारों और सूबेदारों को बैरामखाँ के आगरा खाली कर देने के समाचार मिले तो उन्होंने बादशाह की हुकूमत से विद्रोह कर दिया और वे खानखाना के पक्ष में एकत्र होने लगे। ये वे लोग थे जिनपर खानखाना की बहुत मेहरबानियाँ थीं और जो यह समझते थे कि हुकूमत का वास्तविक मालिक तो बैरामखाँ ही है, अकबर ने बादशाह बनते ही उसके साथ गद्दारी की है।

जब बैरामखाँ के पंजाब की ओर जाने और पंजाब के अमीरों द्वारा विद्रोह करने के समाचार हरम सरकार को मिले तो हरम की सारी औरतों ने मिलकर अकबर को खूब भड़काया। हम तो पहले से ही कहते थे कि बैरामखाँ पूरा बदमाश और दगाबाज है। अकबर को भी हरम सरकार की बातें ठीक लगने लगीं। उसने बैरामखाँ को चिठ्ठी भिजवाई-

”बैरामखाँ को मालूम हो कि तू हमारे नेक घराने की मेहरबानियों का पाला हुआ है। चालीस साल की स्वामिभक्ति को भुलाकर विद्रोह करना ठीक नहीं है। तूने हमें बहुत कष्ट दिये हैं। फिर भी हम तुझे दण्ड नहीं देते। इससे तो अच्छा है कि तू लाहौर और सरहिंद में रखे अपने खजाने को हमारे पास भेज दे और खुद हज करने के लिये चला जा। जब तू हज से लौटकर आयेगा, तब तू जैसा कहेगा वैसा ही किया जायेगा क्योंकि अभी तो तेरे दुश्मनों ने मुझसे तेरी बुराइयां करके हमारा दिल तेरी ओर से फेर दिया है। बुरे लोगों के फेर में पड़कर तू अपनी प्रतिष्ठा तो खत्म कर ही चुका है, हम नहीं चाहते कि तू और अधिक कलंक अपने मुँह पर लगाये।”

अकबर की ओर से ऐसी रूखी चिट्ठी पाकर बैरामखाँ का दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया। यह वही अकबर था जिसे बैरामखाँ तोपों के गोलों के बीच से जीवित निकाल लाया था! क्या यह वही तेरह साल का अनाथ बालक था जिसे बैरामखाँ ने दुश्मनों के हाथों से कत्ल होने से बचाया था! यह वही अकबर था जिसे बैरामखाँ ने मिट्टी के कच्चे चबूतरे से उठाकर दिल्ली के तख्त पर बैठा दिया था! क्या यह वही अकबर था जिसके लिये बैरामखाँ ने सिकंदर सूर और हेमू जैसे प्रबल शत्रुओं को नेस्तनाबूद कर दिया था! क्या यह वही अकबर था जिसके लिये बैरामखाँ ने कामरान, हिंदाल और असकरी जैसे शहजादों को अंधा करके मक्का भेज दिया था! क्या आज वही अकबर बैरामखाँ को मक्का जाने के लिये कह रहा था! सत्ता का खेल किस खिलाड़ी को धूल नहीं चटा देता! बैरामखाँ तकदीर के इस तरह पलटने पर हैरान था!

अकबर की ओर से पूरी तरह निराश होकर बैरामखाँ नागौर के रास्ते पंजाब को रवाना हुआ। अकबर को सूचना मिली तो उसने फिर पत्र लिखकर कहा कि मैं अब भी कहता हूँ कि हज को चला जा। हिन्दुस्तान में तेरे लिये जागीर मुकर्रर कर दी जायेगी जिसका हासिल तुझे पहुँचा दिया जाया करेगा।

सियासत के नापाक दामन से अपना नाता तोड़ लेने कि लिये बैरामखाँ हज के लिये रवाना हो गया। अपनी योजनाओं को इस तरह सफल होते देखकर दुष्टा माहम अनगा ने अपने खूनी जाल का दायरा और फैलाया। उसने नासिरुलमुल्क को बैरामखाँ के पीछे भेजा। एक जमाने में नासिरुलमुल्क गरीब विद्यार्थी के रूप में बैरामखाँ के पास मदद मांगने के लिये आया था। बैरामखाँ की कृपा से ही वह मुल्ला से अमीर बना था। माहम अनगा ने नासिरुलमुल्क को यह जिम्मा सौंपा कि वह बैरामखाँ से समस्त राजकीय चिह्न छीनकर उसे हिन्दुस्तान से निकाल कर बाहर कर दे।

जब बैरामखाँ की सेना ने सुना कि नासिरुलमुल्क के नेतृत्व में मुगल सेना आक्रमण के लिये आयी है तो बैरामखाँ के सैनिक दगा करके मुगलसेना में जा मिले। बैरामखाँ ने अपने हाथी, तुमन, तौग, निशान और नक्कारा आदि समस्त राजकीय चिह्न नासिरुलमुल्क को भिजवा दिये और स्वयं अपने निश्चय के अनुसार मक्का की ओर बढ़ता रहा।

जब नासिरुलमुल्क ये सारे राजकीय चिह्न लेकर दिल्ली लौट आया तो भी माहम अनगा का दिल नहीं भरा। उसने पीर मुहम्मद को बैरामखाँ के पीछे भेजा। पीर मुहम्मद भी एक जमाने में बैरामखाँ के नमक पर पला था किंतु आज वह भी बैरामखाँ के खून का प्यासा होकर उसके पीछे लग गया। बैरामखाँ उस समय बीकानेर रियासत के राव कल्याणमल और कुंवर रायसिंह का मेहमान था। नासिरुलमुल्क के बाद पीर मोहम्मद को आया देखकर बैरामखाँ भड़क गया। उसके मन से सात्विक भाव जाते रहे और उसने मक्का जाने से पहले अकबर का दिमाग दुरुस्त करने का निश्चय किया।

बैरामखाँ ने उत्तर दिशा में तैनात सूबेदारों को चिठ्ठियाँ लिखीं कि मैं तो दुनिया से उदास होकर मक्के को जा रहा था किंतु दुष्टा माहम अनगा बादशाह का मन मेरी ओर से फेर कर मुझे हर कदम पर अपमानित कर रही है। इसलिये अब मेरा विचार है कि मैं माहम अनगा और पीर मुहम्मद से निबट कर ही मक्का को जाऊंगा। इस प्रकार हरम सरकार की ज्यादतियों के चलते चालीस वर्षों का सबसे विश्वस्त और सबसे नमकख्वार नौकर बागी हो गया।

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