Saturday, December 7, 2024
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मुस्लिमलीग को गृह-मंत्रालय न देने पर अड़ गये सरदार पटेल

मुहम्मद अली जिन्ना ने जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार को विफल करने के लिए गृहमंत्रालय की मांग की किंतु सरदार पटेल और माउण्ट बेटन दोनों ही जिन्ना की कुत्सित चाल को समझ गए। इस कारण मुस्लिमलीग को गृह-मंत्रालय न देने पर अड़ गये सरदार पटेल!

12 अगस्त 1946 को वायसराय ने कांग्रेस के अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू को अन्तरिम सरकार बनाने का निमन्त्रण भेजा और नेहरू ने अंतरिम सरकार का गठन कर लिया। सरदार पटेल को गृह मंत्री बनाया गया। नेहरू ने कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ दिया तथा आचार्य कृपलानी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। नेहरू ने एक बार पुनः जिन्ना को मनाने के लिये उससे भेंट की तथा उसे सरकार में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया।

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जिन्ना को विश्वास नहीं था कि कांग्रेस अकेले सरकार बना लेगी किंतु अब सरकार बन चुकी थी जिससे अलग रहना मूर्खता थी। इसलिये अब जिन्ना ने सरदार पटेल से गृह मंत्रालय छीनने की चाल चली। उसने नेहरू से कहा कि यदि गृहमंत्री मुस्लिम लीग का बने तो मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में सम्मिलित हो जायेगी। मुस्लिमलीग को गृह-मंत्रालय देने का अर्थ पूरे देश को फांसी देने के निर्णय से कम नहीं होता। इसलिए जब पटेल को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने जिन्ना के प्रस्ताव का तीव्र विरोध किया। वे नहीं चाहते थे कि जिस मुस्लिम लीग ने सड़कों पर खून की होली खेलकर हजारों निर्दोष लोगों को मार दिया है, उस मुस्लिम लीग को गृह मंत्रालय देकर देश की कानून व्यवस्था उसके हाथों गिरवी रख दी जाये।

पटेल का विरोध देखते हुए नेहरू ने जिन्ना का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। इस पर जिन्ना ने वायसराय से सम्पर्क करके सरकार में सम्मिलित होने की इच्छा जताई और गृह मंत्रालय न मिलने पर वित्त मंत्रालय सहित पांच महत्त्वपूर्ण विभाग ले लिये। वित्त मंत्रालय हाथ आते ही जिन्ना ने भारत सरकार को पंगु बनाने का काम आरम्भ कर दिया। मंत्रिमण्डल के मुस्लिम लीगी सदस्य प्रत्येक कदम पर सरकार के कार्यों में बाधा डालते थे।

वे सरकार में थे और फिर भी सरकार के विरुद्ध थे। वास्तव में वे इस स्थिति में थे कि सरकार के प्रत्येक कदम को ध्वस्त कर सकें। लियाकतअली खां ने जो प्रथम बजट प्रस्तुत किया, वह कांग्रेस के लिये नया झटका था। कांग्रेस की घोषित नीति थी कि आर्थिक असमानताओं को समाप्त किया जाये और पूंजीवादी समाज के स्थान पर समाजवादी पद्धति अपनायी जाये।

जवाहरलाल नेहरू भी युद्धकाल में व्यापारियों और उद्योगपतियों द्वारा कमाये जा रहे मुनाफे पर कई बार बोल चुके थे। यह भी सबको पता था कि इस आय का बहुत सा हिस्सा आयकर से छुपा लिया जाता था।

आयकर वसूली के लिये भारत सरकार द्वारा सख्त कदम उठाये जाने की आवश्यकता थी। लियाकत अली ने जो बजट प्रस्तुत किया उसमें उद्योग और व्यापार पर इतने भारी कर लगाये कि उद्योगपति और व्यापारी त्राहि-त्राहि करने लगे। इससे न केवल कांग्रेस को अपितु देश के व्यापार और उद्योग को स्थाई रूप से भारी क्षति पहुंचती।

अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि पटेल ने इतने खतरनाक इरादों वाली मुस्लिमलीग को गृह-मंत्रालय सौंप दिया होता तो भारत की कैसी दुर्दशा होती!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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