सोमनाथ का जगत् प्रसिद्ध मंदिर गुजरात के काठियावाड़ प्रदेश में स्थित था। मान्यता है कि यह ईसा के जन्म से भी पहले का मंदिर है। इस मंदिर को सिंध और अरब से आये मुस्लिम आक्रांताओं ने कई बार तोड़ा। आठवीं शती में नागभट्ट ने इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण करवाया। महमूद गजनवी ने इस मंदिर की सम्पदा लूटने के लिये भारत पर 17 बार भयानक आक्रमण किये। उसने इस मंदिर में पूजा कर रहे पचास हजार लोगों को मारकर मंदिर के शिवलिंग को तोड़ डाला।
महमूद गजनवी, शिवलिंग के टुकड़ों को हाथी के पैरों से बांधकर गजनी ले गया और वहाँ जाकर उन रास्तों में चिनवा दिया जो गजनी के महलों से मस्जिदों तक जाते थे। इस मंदिर से महमूद गजनवी को विशाल सम्पदा हाथ लगी थी जिसे वह हाथियों, ऊँटों एवं बैलगाड़ियों पर लादकर गजनी ले गया। उसने इस मंदिर के भवन को भी बहुत क्षति पहुंचाई। गुजरात तथा मालवा के राजाओं ने इसका पुनिर्निर्माण करवाया। ई.1706 में पुनः औंरगजेब ने इसे गिरवा दिया। तब से यह भग्नावस्था में खड़ा था।
भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होते ही 13 नवम्बर 1947 को पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। पण्डित नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का तीव्र विरोध किया किंतु पटेल और मुंशी ठान चुके थे। अक्टूबर 1950 में पुराने भग्नावशेष हटा दिये गये। इससे पहले कि मंदिर का शिलान्यास होता, 15 दिसम्बर 1950 को पटेल का निधन हो गया। मई 1951 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने केन्द्रीय मंत्री के. एम. मुंशी के निमंत्रण पर इस मंदिर का शिलान्यास किया।