Sunday, December 8, 2024
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भोपाल नवाब के सपने

सरदार पटेल ने धराशाई किए भोपाल नवाब के सपने

हमीदुल्ला खाँ अर्थात् भोपाल नवाब के सपने मुहम्मद अली जिन्ना से किसी भी तरह कम नहीं थे। जिन्ना पाकिस्तान बनाना चाहता था तो हमीदुल्ला खाँ अपनी रियासत भोपाल को पाकिस्तन में मिलाना चाहता था। सरदार पटेल ने धराशाई किए भोपाल नवाब के सपने!

भोपाल रियासत की स्थापना औरंगजेब की सेना के एक अफगान अधिकारी दोस्त मोहम्मद खान ने ई.1723 में की थी। भारत की स्वतंत्रता के समय भोपाल का नवाब हमीदुल्लाह खाँ था जो कि ई.1926 में भोपाल रियासत का नवाब बना था। वह ई.1931 तथा ई.1944 में दो बार नरेन्द्र मण्डल का चांसलर चुना गया था। भारत की आजादी के समय भी वह नरेन्द्र मण्डल का चांसलर था। वह किसी भी हालत में भारत में नहीं मिलना चाहता था।

भोपाल नवाब ने जिन्ना के साथ मिलकर देश की अधिकांश रियासतों को पाकिस्तान में सम्मिलित होने अथवा स्वतंत्र रहने की घोषणा करने के लिये उकसाया। इससे नाराज होकर अधिकांश राजाओं ने नरेन्द्र मण्डल का बहिष्कार कर दिया। इससे भोपाल नवाब को नरेन्द्र मण्डल से त्यागपत्र देना पड़ा और नरेन्द्र मण्डल भंग हो गया। मुहम्मद अली जिन्ना ने हमीदुल्लाह खाँ को पाकिस्तान में आने तथा जनरल सेक्रेटरी का पद स्वीकार करने का निमंत्रण दिया।

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भोपाल नवाब के सपने पूरे करने के लिए 13 अगस्त 1947 को हमीदुल्लाह खाँ ने अपनी पुत्री आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बनने के लिये कहा ताकि स्वयं पाकिस्तान जा सके। आबिदा ने अपने पिता की इच्छा मानने से मना कर दिया। मार्च 1948 में हमीदुल्लाह खाँ ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा की। मई 1948 में नवाब ने भोपाल सरकार का मंत्रिमण्डल नियुक्त किया जिसके प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय थे। सरदार पटेल तथा वी. पी. मेनन, हमीदुल्लाह खाँ पर लगातार दबाव बना रहे थे कि वह भारत में सम्मिलित होने की घोषणा करे।

प्रधानमंत्री चतुर नारायण मालवीय भी भोपाल रियासत को भारत में मिला देने के पक्ष में था। भोपाल की जनता प्रजामण्डल आंदोलन चला रही थी। वह भी रियासत को भारत में मिलाना चाहती थी। अक्टूबर 1948 में नवाब हज पर चला गया ताकि भारत में विलय के प्रश्न को कुछ दिनों के लिए टाला जा सके और इस समस्या का नया समाधान ढूंढा जा सके। दिसम्बर 1948 में भोपाल में विलीनीकरण को लेकर जबर्दस्त प्रदर्शन हुआ।

भोपाल की सरकार द्वारा ठाकुर लालसिंह, शंकर दयाल शर्मा, भैंरो प्रसाद तथा उद्धवदास आदि नेता बंदी बना लिये गये। 23 जनवरी 1949 को वी. पी. मेनन भोपाल आये तथा उन्होंने रियासती अधिकारियों से कहा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता। 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमण्डल को बर्खास्त करते हुए सत्ता के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिये। पं. चतुर नारायण मालवीय 21 दिन के उपवास पर बैठ गये।

पटेल के निर्देश पर वी. पी. मेनन भोपाल में लाल कोठी में ठहरे हुए थे तथा रियासत की स्थिति पर दृष्टि रख रहे थे। अंत में 30 अप्रेल 1949 को नवाब ने भोपाल रियासत के विलीनीकरण पर हस्ताक्षर कर दिये। सरदार पटेल ने नवाब को पत्र लिखकर उसे धिक्कारा कि मेरे लिये यह एक बड़ी निराशाजनक और दुःख की बात थी कि आपके विवादित हुनर तथा क्षमताओं को आपने देश के उपयोग में उस समय नहीं आने दिया जब देश को उसकी जरूरत थी।

1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बन गई। केन्द्र द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर एन. बी. बैनर्जी ने कार्यभार संभाल लिया। भारत सरकार द्वारा नवाब को 11 लाख वार्षिक का प्रिवीपर्स दिया गया। इस प्रकार भोपाल नवाब के सपने हमेशा-हमेशा के लिए अधूरे रह गए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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