जब पाकिस्तान भारतीय रियासतों को अपनी ओर नहीं मिला सका तो उसने भारत के मुस्लिम बहुल हिस्सों को हथियाने के दुष्प्रयास किए जिनमें से किसी भी कार्यवाही में उसे सफलता नहीं मिली।
जैसलमेर पर आक्रमण
भारत में सम्मिलित राजपूताना रियासतों में से जोधपुर, बीकानेर तथा जैसलमेर रियासतों की सीमायें पाकिस्तान के साथ लगती थीं। इस सीमा से भविष्य में किसी भी समय आक्रमण होने का खतरा बना हुआ था। भारत की आजादी के कुछ दिन बाद ही जैसलमेर रियासत में पाकिस्तानी फौजें घुस आईं। जैसलमेर महाराजा ने अपने मित्र राजाओं को तार के माध्यम से इसकी सूचना दी।
पाकिस्तान के इस आक्रमण का सामना करने में जैसलमेर रियासत की सरकार सक्षम नहीं थी। देश आजाद हुआ ही था अतः आपात् स्थिति में भारतीय सेनाओं का सीमा पर तत्काल पहुंच पाना संभव नहीं था। ऐसी विपन्न स्थिति में जोधपुर रियासत की ऊंट सेना ने पाकिस्तानी सेना का सामना किया तथा उसे भारत भूमि से बाहर निकाल दिया।
लक्षद्वीप हथियाने का असफल प्रयास
लक्षद्वीप समूह भारत की मुख्य भूमि से दूर तथा अरब सागर में स्थित है। भारत की आजादी के समय ये द्वीप ब्रिटिश क्राउन की सत्ता का हिस्सा थे तथा मद्रास प्रेसीडेंसी के अधीन थे। 15 अगस्त 1947 अधिनियम के अनुसार प्रांतीय विभाजन के आधार पर इन्हें भारत में मिलना था किंतु इन द्वीपों पर बड़ी संख्या में मुस्लिम जनसंख्या निवास करती थी।
इस कारण यह भय उत्पन्न हो गया कि इन द्वीपों पर पाकिस्तान अपना अधिकार जतायेगा अथवा अधिकार जमाने की चेष्टा करेगा। सरदार पटेल की दृष्टि से भारत का सुदूरस्थ भाग भी बचा हुआ नहीं था। इसलिये उन्होंने समय रहते ही रॉयल इण्डियन नेवी की एक टुकड़ी लक्षद्वीप भेजने का निर्णय लिया। इस टुकड़ी ने द्वीप पर अपनी स्थिति सुदृढ़ करके वहाँ भारतीय झण्डा फहरा दिया।
यह सुनिश्चित किया गया कि पाकिस्तान इन द्वीपों पर अधिकार करने की कुचेष्टा न कर सके। सरदार पटेल का अनुमान सही था। रॉयल इण्डियन नेवी की टुकड़ियों द्वारा लक्षद्वीप पर अधिकार कर लिये जाने के कुछ घण्टों बाद ही रॉयल पाकिस्तान नेवी के जहाज लक्षद्वीप के चारों ओर दिखाई देने लगे किंतु जब उन्होंने देखा कि द्वीप पर पहले से ही तिरंगा फहरा रहा है तो वे बिना कोई कार्यवाही किये, कराची लौट गये। यदि पटेल में इतनी दूरदृष्टि नहीं होती तो भारत का नक्शा निःसंदेह आज के नक्शे जैसा नहीं होता। (अगले लेख में पढ़ें- काश्मीर में कबाइलियों का आक्रमण)