Thursday, May 16, 2024
spot_img

96. सरदार पटेल ने राजाओं के साथ अत्यंत व्यावहारिक रुख अपनाया!

सरदार पटेल जितने दृढ़ संकल्प के धनी थे, उतने ही व्यावहारिक भी थे। वे थोथे आदर्शों को व्यर्थ मानते थे और हर समय अपनी दृष्टि लक्ष्य पर गढ़ाये रहते थे। इसलिये उन्होंने राजाओं के साथ जोर-जबरदस्ती के स्थान पर, व्यावहारिक बुद्धि से काम लिया। उन्होंने राजाओं को अनेक राजसी सुविधायें, प्रिवीपर्स की लम्बी रकमें तथा राजप्रमुख और उपराजप्रमुख के पदों का लालच देकर अपनी राजनीति को सफल बनाया।

कपूरथला रियासत के दीवान जरमनी दास ने राजाओं को दी गई सुविधाओं के बारे में लिखा है- पटेल ने राजाओं को जी खोलकर सुविधायें दीं। राजाओं के महल उनके अधिकार में रहेंगे। उन्हें समस्त प्रकार के करों से मुक्ति मिलेगी। उनके महलों में बिजली, पानी मुफ्त मिलेगा।

उन्हें अपनी मोटरों पर खास लाल रंग की प्लेट लगाने की छूट होगी। वे अपनी मोटरों और महलों पर रियासती झण्डा लगा सकेंगे। वे जब विदेशों से लौटेंगे तो उनके सामान की जांच नहीं होगी। उन्हें अदालतों में हाजिरी से छूट रहेगी।

भारत सरकार की अनुमति के बिना, किसी महाराजा पर दीवानी या फौजदारी मुकदमा नहीं चलेगा। उन्हें फौजी सलामियां, तोपों की सलामियां, और लाल कालीन के दस्तूर वैसे ही मिलेंगे जैसे कि अंग्रेजों के समय मिलते थे। वे अपने महलों पर सैनिक गार्ड रख सकेंगे। महाराजाओं को अपने करोड़ों रुपयों के हीरे जवाहरात, सिवाय राजमुकुट के जवाहरातों के जो रियासत की सम्पत्ति समझे जाते थे और असली निकाल कर नकली लगा दिये गये, रखने का अधिकार रहा।

राजाओं द्वारा लाखों रुपयों के मूल्य के असली मोतियों के हार नकली मोतियों के हारों से बदल दिये गये। बड़ौदा के राजा ने दो करोड़ रुपये मूल्य का सात लड़ियों का मोतियों का हार, तीन बेशकीमती हीरों वाला हार, स्टार ऑफ साउथ, यूजीन, शाहे अकबर नामक विख्यात रत्न तथा मोती टँके दो कालीन, बड़ौदा के खजाने से गायब कर दिये।

सरदार पटेल ने जानबूझकर राजाओं की इस लुटेरी प्रवृत्ति की ओर से आंखें मूंद लीं। पटेल को ज्ञात था कि प्रजा को राजाओं के सामंती शासन के चंगुल से बाहर निकालने के लिये चुकाई गई यह कीमत बहुत कम है। इस प्रकार राजाओं ने सरदार के जाल में फंसकर अपनी शासन-सत्ता और अधिकार भारत सरकार को दे दिये तथा भेड़ों की तरह पंक्तिबद्ध होकर एकीकरण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिये।

राजाओं के प्रिवीपर्स तथा सुविधाओं के मामले तय करने में एक साल से अधिक समय लगा। भारत सरकार की ओर से विश्वास दिलाया गया कि राजाओं के अधिकार, सुविधायें और खिताब, जो उन्होंने भारत की ब्रिटिश सरकार से संधियों एवं सेवाओं के बदले प्राप्त किये थे, उन्हें भारत सरकार द्वारा मान्यता देकर सुरक्षित रखा जायेगा। राजाओं को सरदार पर भरोसा हो गया, भरोसा करने के अतिरिक्त कोई चारा भी नहीं था।

इसलिये उन्होंने जो मिल रहा था, उसे लेकर अपने राज्य छोड़ दिये। उनके स्वर्ण मुकुट उतर चुके थे, अब तो केवल चमकीला रंग ही शेष था जिसे साफ करने का काम आगे चलकर भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को करना था।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source