Monday, October 7, 2024
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बिहारी किसानों की दुर्दशा देखकर सरदार पटेल का हृदय रो उठा

जब से देश में तुर्कों का आगमन हुआ था, तब से पूरे देश के किसानों की हालत खराब होने लगी थी। मुगलों के काल में भी किसानों का बहुत शोषण हुआ। अंग्रेजों ने जमींदारी व्यवस्था को मजबूत करके किसानों के शोषण के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित कर दिया। बिहारी किसानों की दुर्दशा देखकर सरदार पटेल का हृदय रो उठा!

कर्नाटक के दौरे के बाद सरदार पटेल ने बिहार में 15 दिन का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने सीतामढ़ी, मुंगेर, चम्पारण और गया में आयेजित जिला सम्मेलनों को सम्बोधित किया।

जब बिहार के लोगों को ज्ञात हुआ कि सरदार पटेल आये हैं तो दूर-दूर से लोग उन्हें सुनने के लिये आने लगे। बिहार के किसानों की दशा, गुजरात के किसानों से भी अधिक खराब थी। दोनों ही प्रांतों के किसानों को दिल्ली सल्तनत के काल में, मुगलों के काल में तथा परवर्ती शासकों के काल में बुरी तरह लूटा-खसोटा और बर्बाद किया गया था।

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बिहार के किसानों को बर्बाद करने में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी और अब ब्रिटिश ताज उनका शोषण कर रहा था। वल्लभभाई स्वयं एक किसान के पुत्र थे इसलिये किसानों की दुर्दशा को उनसे अधिक और कौन समझ सकता था। बिहारी किसानों की दुर्दशा देखकर सरदार पटेल का हृदय रो उठा। उन्होंने बिहार के किसानों का आह्वान किया कि अपनी दुर्दशा को पहचानो और अपने अधिकारों के लिये संगठित होकर संघर्ष करो।

जमींदारों से मत डरो। किसान तो सबका अन्नदाता है, अतः वह सबसे श्रेष्ठ है, उन सबसे भी श्रेष्ठ है जो स्वयं को ऊँचे तबके का समझते हैं। सरदार के भाषणों से गरीब किसानों में नया जोश जगता था, वे अपनी मुक्ति के लिये छटपटा रहे थे किंतु वे नहीं जानते थे कि संगठित किस प्रकार हुआ जाता है और संघर्ष किस प्रकार किया जाता है। सरदार उन्हें दोनों ही तरीके समझा रहे थे। सरदार पटेल ने बिहार में एक नई बात देखी। उन्होंने देखा कि पर्दा प्रथा ने जिस बुरी तरह बिहार को जकड़ रखा है, उतनी बुरी तरह से देश के अन्य प्रांतों को नहीं। उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों को संदेश दिया कि वे औरतों से पर्दा करवाना बंद करें। महिलाओं को चारदीवारी में कैद करके न रखें। ये हमारी माताएं, बहनें, बेटियां और पत्नी हैं। इनसे हर कार्य में सहयोग लें। सरदार ने बारदोली के आंदोलन में महिला स्वयं-सेवकों की टोलियों का गठन किया था जिन्होंने अद्भुत कार्य कर दिखाया था।

सरदार अब तक गुजराती बहिनों के उस योगदान को भूले नहीं थे। इसलिये वे बिहार के किसानों को बताते कि किस प्रकार बारदोली के आंदोलन में महिलाओं ने आगे बढ़कर सहयोग किया तथा किस प्रकार महिलाओं की दृढ़ता के कारण बारदोली के आंदोलनकारी अंत तक मोर्चे पर टिके रहे और सफलता लेकर ही माने।

बिहारी किसानों की दुर्दशा का कोई पार नहीं था किंतु उनके साथ बिहार के युवक भी बड़ी आशा भरी दृष्टि से सरदार पटेल की ओर देख रहे थे। सरदार ने नौजवानों को स्थान-स्थान पर सम्बोधित किया तथा उन्हें एक ही मंत्र दिया कि नारेबाजी बंद करके काम में जुट जाओ। जो काम करना चाहते हो, उसी को करने में अपनी पूरी ऊर्जा व्यय करो।

यदि राष्ट्र में क्रांति लानी है तो अपने जीवन में क्रांति लाओ। सरदार के पंद्रह दिन के दौरे ने बिहार जैसे पिछड़े राज्य में आशा की नई क्रांति उत्पन्न की और बिहार भी राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान देने के लिये तैयार हो गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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