औरंगजेब की औलादें जेलों में सड़-सड़ कर मरीं, जो जीवित बचीं वे आपस में कट-कट कर मरीं। औरंगजेब ने अपनी जिंदगी तो नर्क बना ही रखी थी, औरंगजेब की औलादें भी नर्क जैसी पीड़ा भोग कर मरीं। शहजादा मुहम्मद सुल्तान सलीमगढ़ की जेल में मर गया!
औरंगजेब के पांच पुत्र थे मुहम्मद सुल्तान, मुअज्जमशाह, (बहादुरशाह प्रथम), आजम शाह, मुहम्मद अकबर तथा मुहम्मद कामबख्श। औरंगजेब के पांचों पुत्र परम दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुए। संभवतः उन्हें अपने पिता के पापों का फल भोगना पड़ा! औरंगजेब ने बादशाह बनते ही सबसे बड़े शहजादे मुहम्मद सुल्तान को जेल में डाल दिया। वह 16 साल तक जेल में सड़ता रहा और अंत में जेल में ही मरा।
औरंगजेब का दूसरा पुत्र मुहम्मद मुअज्जम शाह भी सात सालों तक औरंगजेब की जेल में रहा और औरंगजेब की मृत्यु के बाद 64 वर्ष की आयु में केवल पांच साल के लिए बादशाह बना।
औरंगजेब का तीसरा पुत्र आजम, औरंगजेब की मृत्यु के बाद अपने बड़े भाई मुअज्जम द्वारा मार डाला गया। औरंगजेब का चौथा पुत्र मुहम्मद अकबर, अपने बाप औरंगजेब का विद्रोही होकर ईरान भाग गया। उसके बच्चों को राजपूतों ने पाला। औरंगजेब का पांचवा पुत्र कामबख्श अपने बड़े भाई मुअज्जम से हुए युद्ध में रणभूमि में ही मारा गया। औरंगजेब की औलादें अपनी किस्मत खून और आंसुओं से लिखवाकर लाई थीं।
औरंगजेब की पांच पुत्रियां थीं- जेबउन्निसा, जीनतउन्निसा, बदरउन्निसा, जब्दतउन्निसा तथा मेहरउन्निसा। ये पांचों भी बड़ी दुर्भाग्यशाली निकलीं। सबसे बड़ी शहजादी जेबुन्निसा को औरंगजेब ने बादशाह बनने के कुछ साल बाद जेल में डाल दिया और वह भी 20 साल तक जेल में रही और जेल में ही मरी।
औरंगजेब की औलादें अपनी इच्छा से विवाह भी नहीं कर सकती थीं। उनमें से प्रत्येक को केवल उसी मुगल शहजादे या शहजादी से विवाह करने की छूट थी, जिसकी आज्ञा औरंगजेब देता था। औरंगजेब की दूसरी पुत्री जीनतउन्निसा ने शिवाजी के पुत्र संभाजी से विवाह करना चाहा किंतु औरंगजेब ने संभाजी के टुकड़े करवा दिए। इसलिए वह आजीवन अविवाहित रही।
औरंगजेब की तीसरी पुत्री बदरउन्निसा केवल 22 वर्ष की आयु में अविवाहित अवस्था में ही मर गई। चौथी पुत्री जुब्दतन्निसा अपने ताउ दारा शिकोह के तीसरे पुत्र सिपहर शिकोह से ब्याही गई थी। वह 55 साल की आयु में निःसंतान ही मृत्यु को प्राप्त हुई।
हालांकि उसके एक पुत्र हुआ था जो छः माह की आयु में ही मर गया था। औरंगजेब की पांचवी शहदाजी मेहरउन्निसा का विवाह अपने चाचा मुरादबक्श के पुत्र इज्जाद बक्श मिर्जा से हुआ था। वह केवल 44 वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हुई। उसका पति भी उसके साथ मरा।
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इस कड़ी में हम औरंगजेब के सबसे बड़े पुत्र मुहम्मद सुल्तान के दुर्भाग्यपूर्ण जीवन के बारे में बताने जा रहे हैं। औरंगजेब के सबसे बड़े पुत्र मुहम्मद सुल्तान का जन्म 30 दिसम्बर 1639 को औरंगजेब की दूसरे नम्बर की बेगम नवाब बाई के पेट से हुआ था। मुहम्मद शाह का पहला विवाह गोलकुण्डा तथा हैदराबाद के सुल्तान अब्दुल्ला कुतुबशाह की पुत्री से हुआ। इस विवाह के पीछे बड़ा रोचक घटनाक्रम जुड़ा हुआ है।
हुआ यह कि ई.1656 में जब औरंगजेब दक्खिन का सूबेदार था, उसने गोलकुण्डा के शासक अब्दुल्ला कुतुबशाह को बंदी बना लिया। इस पर अब्दुल्ला कुतुबशाह की माता हयात बक्शी बेगम औरंगजेब से मिलने के लिए उसके शिविर में आई। उसने औरंगजेब को एक करोड़ रुपए दिए तथा एक पौत्री का विवाह औरंगजेब के बड़े शहजादे से करने का वचन दिया।
अब्दुल्ला कुतुब शाह के कोई पुत्र नहीं था, इसलिए अब्दुल्ला कुतुब शाह ने घोषणा की कि यदि औरंगजेब अपने बेटे का विवाह शाह की बेटी से करवाता है तो औरंगजेब के बेटे को ही गोलकुण्डा राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया जाएगा।
औरंगजेब ने ये सारी शर्तें अपने पिता शाहजहाँ के पास मंजूरी के लिए भिजवा दीं। शाहजहाँ ने अब्दुल्ला कुतुब शाह तथा उसकी माता द्वारा किए गए प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार औरंगजेब के बड़े पुत्र मुहम्मद सुल्तान का पहला विवाह अब्दुल्ला कुतुब शाह की पुत्री के साथ हो गया।
मुहम्मद सुल्तान का दूसरा विवाह अपने ताऊ शाहशुजा की पुत्री गुलरुख बानो से हुआ था जो कि बंगाल का सूबेदार था। इस विवाह के पीछे भी एक बड़ा राजनीतिक कारण था। हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि शाहजहाँ के चारों पुत्र शाहजहाँ को तख्त से हटाकर स्वयं बादशाह बनना चाहते थे।
इस कारण चारों शहजादे एक दूसरे से घृणा करते थे किंतु जब यह लगने लगा कि बड़ा शहजादा दारा शिकोह आगरा के तख्त पर अधिकार कर लेगा तो शेष तीनों भाइयों ने मिलकर दारा के विरुद्ध एक संघ बना लिया।
इसी दौरान शाहशुजा तथा औरंगजेब ने एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान रहने का दिखावा करने के लिए अपने बच्चों को वैवाहिक बंधन में बांधने का निश्चय किया। इस क्रम में शाहशुजा की पुत्री गुलरुख बानो बेगम का विवाह औरंगजेब के सबसे बड़े पुत्र सुल्तान मुहम्मद से कर दिया गया। इस शहजादी को इतिहास में माह खानम के नाम से भी जाना जाता है।
ई.1657 में जब औरंगजेब तथा उसके भाईयों के बीच उत्तराधिकार का युद्ध हुआ तो शाहशुजा ने अपनी पुत्री गुलरुख बानो के हाथों अपने जवांई मुहम्मद सुल्तान को संदेश भेजा कि यदि वह शाहशुजा के पक्ष में आ जाए तो शाहजहाँ को हटाने के बाद मुहम्मद सुल्तान को ही बादशाह बना दिया जाएगा।
इस कारण 18 जून 1659 की रात को सुल्तान मुहम्मद बहुत बड़ी संख्या में सोने के सिक्के, आभूषण तथा अपने पांच नौकरों को लेकर अपने पिता औरंगजेब के कैम्प से निकल गया और चुपके से अपने श्वसुर शाहशुजा के कैम्प में पहुंच गया।
जब शाहशुजा पराजित होकर अराकान भाग गया तो 20 फरवरी 1660 को शहजादा सुल्तान मुहम्मद फिर से अपने पिता औरंगजेब के पास आ गया। जबकि उसकी बेगम गुलरुख बानो अपने पिता शाहशुजा के साथ अराकान के जंगलों में जंगली लोगों द्वारा मार दी गई। 8 मई 1660 को औरंगजेब ने अपने पुत्र मुहम्मद सुल्तान को दिल्ली के सलीमगढ़ दुर्ग में बंदी बना लिया।
छः माह बाद मुहम्मद सुल्तान को ग्वालियर दुर्ग में स्थानांतरित कर दिया गया। दिसम्बर 1672 तक मुहम्मद सुल्तान ग्वालियर के दुर्ग में बंद रहा तथा बाद में उसे पुनः सलीमगढ़ में लाकर बंद कर दिया गया। 14 दिसम्बर 1676 को सलीमगढ़ के बंदीगृह में ही मुहम्मद सुल्तान की मृत्यु हुई। इस प्रकार मुहम्मद सुल्तान को उसके दो श्वसुरों ने बादशाह बनाने का सपना दिखाया किंतु उसके अपने पिता ने उसे आजीवन कारावास देकर मृत्यु के मुख में धकेल दिया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता