शाहजादी रौशनआरा (Roshanara Begum) का रुतबा एक समय के लिए समूची मुगलिया सल्तनत में सबके सिर चढ़कर बोलने लगा। इसी रुतबे के बल पर रौशनआरा ने वली-ए-अहद दारा शिकोह (Dara Shikoh) का सिर कटवाया तथा शाह बेगम जहानआरा (Jahanara Begum) को परास्त कर दिया!
कहने को तो शाहजहाँ के बेटों में हुआ उत्तराधिकार का युद्ध मुगल शहजादों का संघर्ष था किंतु वास्तविकता यह थी कि यह युद्ध मुगलिया हरम में सत्ता एवं शक्ति की प्राप्ति के लिए चल रहे भीषण मनोमालिन्य का परिणाम था।
जब से शाहजहाँ ने जहानआरा को शाह-बेगम बनाया था, तब से शहजादी रौशनआरा (Roshanara Begum), मन ही मन जला करती थी। वह जहानआरा (Jahanara Begum) को परास्त करके स्वयं शाह-बेगम बनने का सपना देखा करती थी। इसलिए वह जहानआरा द्वारा शाहजहाँ के उत्तराधिकारी के रूप में पसंद किए गए भाई दारा शिकोह (Dara Shikoh) को नापसंद करने लगी और उद्दण्ड औरंगजेब (Aurangzeb) का पक्ष लेने लगी।
शाहजादी रौशनआरा (Roshanara Begum) अपनी बड़ी बहिन जहानआरा से तीन साल छोटी थी तथा औरंगजेब से लगभग एक साल बड़ी थी। जिन दिनों शाहजहाँ ने जहानआरा के कहने से औरंगजेब को माफ करके दक्खिन का सूबेदार बनाया था, उन दिनों से ही शाहजादी रौशनआरा चिट्ठियां लिखकर औरंगजेब को शाहजहाँ, दारा शिकोह तथा जहानआरा (Jahanara Begum) के विरुद्ध भड़काने लगी थी। इस पर औरंगजेब (Aurangzeb) ने अपने पिता शाहजहाँ को दारा शिकोह (Dara Shikoh) के विरुद्ध कठोर पत्र लिखे तथा शाहजहाँ के आदेश स्वीकार करने बंद कर दिए।
इस पर शाहजहाँ ने औरंगजेब को शाही फरमान भेजकर दिल्ली बुलाया ताकि शहजादों के बीच चल रहे पारिवारिक झगड़े को सुलझाया जा सके। जब यह बात शाहजादी रौशनआरा (Roshanara Begum) को पता लगी तो उसने औरंगजेब (Aurangzeb) को पत्र लिखकर सावधान किया कि वह भूल कर भी दिल्ली में पांव न रखे। शाहजहाँ की योजना उसे गिरफ्तार करने की है। संभव है कि दारा शिकोह परिस्थिति का लाभ उठाकर औरंगजेब को जान से मार डाले।
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बहिन का पत्र मिलने के बाद औरंगजेब ने आगरा आने की हिम्मत नहीं की। यही वह वत्र था जिसके कारण औरंगजेब की आंखों में रौशनआरा का रुतबा बढ़ गया।
इस पत्र के बाद औरंगजेब कभी भी अपने बाप से मिलने के लिए राजधानी नहीं आया था और सदैव रौशनआरा के प्रति कृतज्ञ रहा था जिसने उसे समय पर सावधान करके उसके प्राणों की रक्षा की थी। जब औरंगजेब बादशाह बन गया तो रौशनआरा (Roshanara Begum) ने मांग की कि दारा शिकोह का सिर काटकर मुझे सौंप दिया जाए तथा जहानआरा को शाह-बेगम के पद से हटाकर जेल में डाल दिया जाए।
औरंगजेब (Aurangzeb) को रौशनआरा की तरफ से दारा शिकोह के सम्बन्ध में की गई मांग तो स्वीकार्य थी किंतु जहानआरा के भविष्य के सम्बन्ध में वह थोड़ा परिवर्तन चाहता था। वह जहानआरा को शाह-बेगम के पद से तो हटाना चाहता था किंतु उसे जेल में नहीं डालना चाहता था।
जब स्वयं जहानआरा (Jahanara Begum) ने पिता शाहजहाँ के साथ बंदी की तरह रहने की जिद की तो रौशनआरा की यह मांग स्वतः पूरी हो गई। इसके बाद औरंगजेब ने रौशनआरा को शाह-बेगम घोषित कर दिया। इसके बाद तो रौशनआरा का रुतबा देखने-दिखाने लायक वस्तु बन गई।
इस प्रकार जहानआरा का पद छीनकर रौशनआरा ने उसे परास्त कर दिया तथा उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी मुराद पूरी की। रौशनआरा ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली में एक विशाल बाग बनवाया जिसे ‘रौशनआरा बाग’ कहा जाता था। अंग्रेजों ने अपने शासन काल में उसी बाग में ‘रौशनआरा क्लब’ का निर्माण करवाया जो अब भी उत्तरी-दिल्ली में देखा जा सकता है। रौशनआरा अपने भाई दारा शिकोह का सिर क्यों कटवाना चाहती थी, इस पर विचार किया जाना चाहिए। रौशनआरा ने जहानआरा को शिकस्त देने के लिए लाल किले (Red Fort of Agra) के भीतर बैठकर दारा के विरुद्ध इतने षड़यंत्र रचे थे कि रौशनआरा को लगता था कि यदि दारा शिकोह (Dara Shikoh) को जीवित छोड़ दिया गया और भाग्य के जोर से वह कभी बादशाह बन गया तो रौशनआरा का सिर कटवाए बिना नहीं रहेगा। इसलिए शाहजादी रौशनआरा (Roshanara Begum) की मांग पर औरंगजेब (Aurangzeb) ने दारा का सिर कटवाकर रौशनआरा को सौंप दिया। रौशनआरा ने वह कटा हुआ सिर सोने की किनारी लगी पगड़ी में लपेटा और उसे एक खूबसूरत डिब्बे में बंद करके अपने पिता शाहजहाँ को अपनी तथा औरंगजेब की ओर से उपहार के रूप में भिजवाया।
जिस समय यह उपहार शाहजहाँ के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, उस समय शाहजहाँ भोजन करने बैठ ही रहा था। उसने उत्सुकता वश उसी समय उपहार को खोला और दारा का कटा हुआ सिर देखते ही बेहोश होकर धरती पर गिर गया। होश में आने पर शाहजहाँ इतना अवसादग्रस्त हो गया कि कई दिनों तक उसने अन्न का दाना मुंह में नहीं डाला।
शाहजहाँ ने सपनों में भी नहीं सोचा था कि उसके बच्चों की लड़ाई इतना घृणित रूप धारण कर लेगी। वह कई बार जहानआरा (Jahanara Begum) पर बरस पड़ता जिसने कई बार औरंगजेब की गलतियों पर पर्दा डाला था और उसे बादशाह से क्षमादान दिलवाया था किंतु अब किसी के किए कुछ नहीं हो सकता था!
दारा शिकोह (Dara Shikoh) तथा जहानआरा से निबटकर रौशनआरा (Roshanara Begum) ने शाह-बेगम के रूप में शाही कामकाज में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया तथा मुगलिया हरम पर कठोर अनुशासन लाद दिया। औरंगजेब की बेगमों को रौशनआरा का यह व्यवहार पसंद नहीं आया और उन्होंने औरंगजेब से रौशनआरा द्वारा किए जा रहे दुर्व्यवहार की शिकायतें करनी शुरु कर दीं।
रौशनआरा ने शासन में भ्रष्टाचार करके अमीरों से बड़ी-बड़ी रिश्वतें खानी शुरु कर दीं तथा उन्हें बड़ी-बड़ी जागीरें दिलवा दीं। इन हथकण्डों से रौशनआरा कुछ ही समय में बहुत अमीर बन गई। उसने बहुत सा सोना और बड़ी-बड़ी जागीरें हथिया लीं। ये शिकायतें भी औरंगजेब तक पहुंचने लगीं।
औरंगजेब (Aurangzeb) अपनी बहिन के सम्बन्ध में आ रही शिकायतों को अनसुनी करता रहा किंतु जब औरंगजेब ने यह अफवाह सुनी कि रौशनआरा किसी पुरुष से प्रेम करती है तो वह रौशनआरा (Roshanara Begum) से नाराज हो गया। क्योंकि औरंगजेब के परबाबा अकबर ने मुगल शहजादियों के विवाह करने पर रोक लगा रखी थी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता




