पिछली कड़ी में हमने राजा सगर की बड़ी रानी केशिनी के गर्भ से असमंजस नामक दुष्ट पुत्र की तथा छोटी रानी सुमति के गर्भ से एक तूम्बे का जन्म होने की कथा की चर्चा की थी जिससे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने जन्म लिया। जिस तरह रानी केशिनी का पुत्र असमंज अत्यंत दुष्ट था उसी तरह रानी सुमति के साठ हजार पुत्र भी अत्यंत दुष्ट एवं क्रूर कर्मा थे।
एक बार राजा सगर ने विंध्याचल पर्वत और हिमालय पर्वत के मध्य किसी स्थान पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को यज्ञ के घोड़े की रक्षा का दायित्व सौंपा। अभी यज्ञ चल ही रहा था कि यज्ञ का घोड़ा सहसा अदृश्य हो गया। वस्तुतः देवराज इन्द्र राक्षस का रूप धारण करके यज्ञ का घोड़ा चुराकर ले गया और उसे पाताल लोक में ले जाकर बांध दिया।
राजा सगर ने अपने साठ हज़ार पुत्रों को आज्ञा दी कि वे पृथ्वी को खोदकर घोड़े को ढूंढ़ लायें। जब तक वे नहीं लौटेंगे, तब तक राजा सगर और राजकुमार अंशुमान यज्ञ पूर्ण करने के लिए यज्ञशाला में ही रहेंगे। सगर-पुत्रों ने समुद्र के निकट पूर्व दिशा की ओर धरती में एक स्थान पर दरार देखी।
सगर के पुत्रों ने वहीं से पृथ्वी को खोदना आरम्भ किया जिसके कारण समुद्र को बहुत कष्ट हुआ तथा समुद्र के भीतर निवास करने वाले हजारों नाग एवं असुर आदि प्राणियों का नाश होने लगा। वे सब अपने प्राण बचाने के लिए देवताओं से करुण पुकार लगाने लगे।
इस पर समस्त देवता गण एकत्रित होकर पितामह ब्रह्मा के पास पहुंचे और उन्हें बताया कि राजा सगर के पुत्रों के कारण पृथ्वी और समुद्र के जीव-जंतु किस तरह चिल्ला रहे हैं। ब्रह्मा ने कहा कि आप चिंता न करें, पृथ्वी विष्णु भगवान की स्त्री है। अतः भगवान विष्णु ही कपिल मुनि का रूप धारण करके पृथ्वी की रक्षा करेंगे।
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सगर के पुत्रों ने एक सहस्र योजन भूमि खोद डाली। वहाँ उन्हें पृथ्वी को धारण करने वाले विरूपाक्ष नामक दिग्गज को देखा। राजा सगर के पुत्रों ने विरूपाक्ष का बहुत सम्मान किया और फिर वहाँ से आगे बढ़े। सगर के पुत्रों ने दक्षिण दिशा में महापद्म दिग्गज, उत्तर दिशा में श्वेतवर्ण भद्र दिग्गज तथा पश्चिम दिशा में सोमनस दिग्गज को देखा। इस प्रकार चारों दिशाओं को देखते हुए सगर-पुत्रों ने पाताल लोक में प्रवेश किया जहाँ कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे। उनके निकट ही यज्ञ का अश्व बंधा हुआ था। इन्हीं कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन का प्रणयन किया था जो भारतीय षड़्दर्शन के छः दर्शनों में से एक है।
हरिवंश पुराण के अनुसार सगर के पुत्रों ने श्री हरि विष्णु को कपिल मुनि के रूप में समाधि लगाए हुए देखा। सगर के पुत्रों ने समझा कि कपिल मुनि ने ही यज्ञ का अश्व चुराया है। अतः सगर के पुत्रों ने कपिल मुनि का निरादर किया। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार कपिल मुनि के कोप के कारण सगर के साठ हजार पुत्रों के अपने शरीरों से आग निकलने लगी जिसमें जलकर वे भस्म हो गए। केवल चार राजकुमार बर्हकेतु, सुकेतु, धर्मरथ और पंचजन ही जीवित बचे। इधर जब राजा सगर ने देखा कि उसके पुत्रों को गए हुए बहुत दिन हो गए हैं तो राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को अपने चाचाओं तथा यज्ञ के अश्व को ढूंढ़ने के लिए भेजा और स्वयं यज्ञशाला में बैठा रहा।
अंशुमान यज्ञ के अश्व तथा अपने चाचाओं को ढूंढता हुआ पाताल लोक में स्थित कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचा। उसने वहाँ पर यज्ञ के अश्व तथा अपने चाचाओं की भस्म के ढेर को देखा। राजकुमार अंशुमान ने अपने चाचाओं की मुक्ति के लिए जल से तर्पण करना चाहा किंतु वहाँ कोई जलाशय नहीं मिला। उसी समय पक्षीराज गरुड़जी वहाँ आए। गरुड़जी ने अंशुमान को बताया कि यह सब कपिल मुनि के शाप से हुआ है, अतः साधारण जलदान से कुछ नहीं होगा। तुम्हारे चाचाओं की मुक्ति गंगाजी के जल से तर्पण करने पर होगी। इस समय तो तुम अश्व लेकर जाओ और अपने पितामह का यज्ञ पूर्ण करवाओ। राजकुमार अंशुमान ने गरुड़जी की बात मान ली।
राजकुमार अंशुमान ने कपिल मुनि को प्रणाम करके उन्हें प्रसन्न किया। मुनि ने प्रसन्न होकर उसके आने का कारण पूछा। अंशुमान ने उन्हें बताया कि उसका पितामह यज्ञशाला में बैठा हुआ अपने पुत्रों एवं यज्ञ के अश्वों की प्रतीक्षा कर रहा है। मुनि ने राजकुमार अंशुमान से कहा कि वह यज्ञ के अश्व को ले जाए। मेरे द्वारा भस्म किए गए तुम्हारे पितृव्यों की मुक्ति तुम्हारे पौत्र भगीरथ के हाथों होगी जब वह भगवान शिव को प्रसन्न करके भगवती गंगा को धरती पर लाएगा और उनके जल से इनका तर्पण करेगा। राजा सगर का कुल अक्षय कीर्ति प्राप्त करेगा तथा आज से समुद्र को सागर अर्थात् राजा सगर का पुत्र कहा जाएगा।
कपिल मुनि के आदेश से राजकुमार अंशुमान यज्ञ का अश्व पुनः धरती पर ले आया और राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ पूर्ण किया। यदि पौराणिक साहित्य में आए वर्णन एवं धरती की भौगोलिक बनावट को मिलाकर देखा जाए तो पुराणों में जिसे पाताल लोक कहा जाता है, वस्तुतः वह आज के दक्षिण-पूर्वी एशियाई द्वीप हैं जिनमें आज के इण्डोनेशियाई द्वीप एवं ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं। राजा सगर के पुत्रों ने समुद्र के पूर्व की ओर खुदाई आरम्भ की थी। अतः पर्याप्त संभव है कि कपिल मुनि इन्हीं द्वीपों में से किसी द्वीप पर तपस्या करते हों। भारतीय पुराणों में पाताल लोक में जिन दैत्यों एवं असुरों के छिपने का स्थान माना गया है, वे यही द्वीप हैं। पौराणिक काल में इन द्वीपों की कतार लंका से आरम्भ होकर ऑस्ट्रेलिया पर जाकर समाप्त होती थी। आज तो धरती का मानचित्र बदल गया है तथा द्वीपों की स्थिति में बहुत परिवर्तन आ गया है।
हम जानते हैं कि बहुत सी पौराणिक कथाओं में प्राकृतिक घटनाओं का मानवीकरण किया गया है। वस्तुतः राजा सगर की कथा भी किसी प्राकृतिक घटना की ओर संकेत करती हुई दिखाई देती है। इस घटना का सम्बन्ध समुद्र के भारत की मुख्य धरती से पूर्व अथवा दक्षिण-पूर्व की ओर विस्तृत होने से लगता है। प्रागैतिहासिक काल में विश्व दो भूखण्डों- अंगारालैण्ड तथा गौंडवाना लैण्ड में बंटा हुआ था। इन दोनों भूखण्डों के बीच में टेथिस महासागर स्थित था। जबकि आज धरती सात महाद्वीपों में विभक्त है तथा ये महाद्वीप समुद्रों के बीच में स्थित हैं। सगर के पुत्रों द्वारा धरती को खोदकर समुद्र को दुःख देने का रूपक समुद्र के विस्तार पाने अथवा दो भूखण्डों के टूटकर सात महाद्वीपों में बंटने जैसी किसी घटना की ओर संकेत करती है। ‘पउम चरित’ नामक जैन ग्रंथ में इस पौराणिक कथा के स्वरूप में बहुत परिवर्तन कर दिया गया है तथा अंत में राजा सगर को जैन धर्म में दीक्षित होते हुए दिखाया गया है।