Friday, March 29, 2024
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अध्याय – 36 : भारत में समाज सुधार एवं धर्म सुधार आन्दोलन-8

विभिन्न समाजों में सुधार आन्दोलन

भारत में ऐसे कई धार्मिक-सामाजिक सुधार आन्दोलन हुए जिनके कार्य तथा उद्देश्य बहुत छोटे क्षेत्र तक सीमित थे। पारसियों ने अपने धर्म और समाज सुधार के लिए धार्मिक सुधार समुदाय की स्थापना की। दादा भाई नौरोजी पारसी पुरोहित परिवार से थे। उन्होंने पारसी धर्म के सुधार हेतु महत्त्वपूर्ण कार्य किया। महादेव गोविन्द रानाडे ने सामाजिक सुधारों के साथ डंकन एजूकेशन सोसायटी स्थापित कर शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। हिन्दुओं के वैष्णव सम्प्रदाय में भी कुछ धार्मिक आन्दोलन हुए। माधव सम्प्रदाय ने अपनी धर्म सुधार सभा बनायी। शंकराचार्य के समर्थकों ने अपने मत का अलग प्रचार किया।

ज्योति बा फुले और सत्य शोधक समाज

ज्योति बा फुले का जन्म 1828 ई. में एक माली परिवार में हुआ। उन्होंने शक्तिशाली गैर ब्राह्मण आंदोलन को जन्म दिया तथा हिन्दू धर्म में प्रचलित प्रथाओं का विरोध किया। 1854 ई. में उन्होंने अछूतों के लिये विद्यालय खोले तथा विधवाओं के लिये अनाथालयों की स्थापना की। ज्योति बा फुले को ब्राह्मणों की पुरोहिताई से गहरी घृणा थी। दलित वर्गों के उत्थान के लिये उन्होंने 1873 ई. में सत्य शोधक समाज की स्थापना की। ब्राह्मण विरोधी गतिविधियों को संगठित रूप में प्रसारित करने हेतु उन्होंने दो पुस्तकों- सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक तथा गुलामगिरि की रचना की।

राधास्वामी सत्संग

1861 ई. में शिवदयाल (1818-1878 ई.) ने आगरा में राधास्वामी सत्संग की स्थापना की। राधास्वामी सत्संग के गुरु, ईश्वर के अवतार माने जाते थे। इसलिए इस संस्था में गुरु-भक्ति की प्रधानता थी। इस संस्था के अनुयायी जाति-पाँति के भेदभाव के बिना, ईश्वर की अराधना करते थे। वे ईश्वर, जीवात्मा और जगत को सत्य मानते थे। कबीर, दादू, नानक आदि सन्तों की वाणियाँ इनके धार्मिक ग्रन्थ थे। ये समस्त धर्मों को समान मानते थे तथा प्रेम और भ्रातृत्व का प्रचार करते थे। राधास्वामी सत्संग भक्ति-मार्ग और योग-मार्ग का एक मिश्रण था। इस संस्था ने धार्मिक जागृति का काम किया। साथ ही जाति-प्रतिबन्धों का बहिष्कार किया, शिक्षा का प्रसार कर सांस्कृतिक जागरण और राष्ट्र निर्माण के कार्य में बहुमूल्य योगदान दिया।

पारसी समाज में सुधार आंदोलन

दादा भाई नौरोजी तथा एस. एस. बंगाली ने पारसी धर्म और समाज में सुधार लाने के लिए बहुत कार्य किया। उन्होंने पारसियों की सामाजिक दशा सुधारने तथा पारसी धर्मिक पुनरुत्थान के उद्देश्य से 1851 ई. में रहनुमाई मज्दयासना सभा की स्थापना की। 1910 ई. में पारसी धर्मगुरु ढोला के प्रोत्साहन से एक पारसी अधिवेशन का उद्घाटन हुआ जिसने पारसी वर्ग की बहुत सेवा की। पारसियों ने अपने सुधार के साथ-साथ देश के सामाजिक तथा राजनैतिक उत्थान में भी योगदान दिया। देश की अनेक पारसी संस्थाएँ पारसी वर्ग की दानशीलता तथा धर्मपरायणता की द्योतक हैं। दादाभाई नौरोजी, सर फिरोजशाह मेहता, सर दीन शार्दूलजी आदि पारसी नेताओं ने भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक प्रगति में बहुमूल्य योगदान दिया।

सिक्ख समाज में सुधार आंदोलन

उन्नीसवीं सदी में पंजाब में सिंह सभा तथा प्रधान खालसा दीवान नामक संस्थाओं की स्थापना हुई। इन संस्थाओं ने पंजाब में कई गुरुद्वारे तथा कॉलेज खोले। प्रगतिशील सिक्खों ने अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना की। सिक्खों ने अपने धार्मिक व सामाजिक जीवन को शुद्ध बनाने का प्रयास किया। 1921 ई. में सिक्खों ने अकालियों के नेतृत्व में सत्याग्रह आंदोलन आरम्भ किया। इनका मुख्य उद्देश्य गुरुद्वारों को भ्रष्ट महंतों से मुक्त कराना था। सरकार महंतों का समर्थन कर रही थी किंतु अंत में सरकार को झुकना पड़ा। इसके परिणाम स्वरूप 1922 ई. में सिक्ख गुरुद्वारा कानून बनाया गया तथा 1925 ई. में इसमें संशोधन किया गया।

ईसाई समाज में सुधार आंदोलन

इस काल में भारतीय ईसाइयों में भी नवजागरण का काम हुआ। उनमें अन्य धर्मों की अपेक्षा अन्धविश्वास तथा रूढ़िवादिता कम थी। अतः उनमें सुधार और परिवर्तन भी अपेक्षाकृत कम हुए। विवेकशील ईसाई पादरियों और दूरदर्शी धर्माधिकारियों ने भारतीय ईसाइयों में प्रचलित अनेक धार्मिक प्रथाओं, जो पश्चिमी प्रथाओं से भिन्न थीं, के अन्तर को दूर करके एक विशाल संगठन स्थापित करने की चेष्टा की। ईसाई धर्म प्रचारकों ने शिक्षा प्रसार के लिए विद्यालय स्थापित किये तथा अदिवासियों व दलित वर्गों को ईसाई धर्म में सम्मिलित किया। इन नवीन ईसाइयों को शिक्षा की सुविधा देकर उनकी दशा सुधारने का प्रयत्न किया गया। अनाथलायों, औषधालयों, विद्यालयों आदि परोपकारी संस्थाओं के माध्यम से ईसाई धर्म प्रचारकों ने जन-साधारण का विश्वास अर्जित किया तथा मानव समाज की विपुल सेवा की।

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