Saturday, December 7, 2024
spot_img

अध्याय – 7 भारत में वैदिक सभ्यता का प्रसार

(वैदिक राजन्य तथा उनकी अर्थव्यवस्था के विशेष संदर्भ में)

आर्य

‘आर्य’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- श्रेष्ठ अथवा अच्छे कुल में उत्पन्न। व्यापक अर्थ में आर्य एक जाति का नाम है जिसके रूप, रंग, आकृति तथा शरीर का गठन विशेष प्रकार का होता है। आर्य लम्बे डील-डौल के, हष्ट-पुष्ट, गोरे-रंग के, लम्बी नाक वाले वीर तथा साहसी होते थे। भारत, ईरान तथा यूरोप के विभिन्न देशों के निवासी आर्यों के वंशज माने जाते हैं। आर्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वेदों में हुआ है। आर्यों ने स्वयं को आर्य और अपने विरोधियों को दस्यु अथवा दास कहना आरम्भ किया क्योंकि आर्य स्वयं को, अनार्यों से अधिक श्रेष्ठ तथा कुलीन समझते थे। आर्य लोग शीतोष्ण कटिबन्ध के निवासी थे और दूध, मांस तथा गेहूँ इनके मुख्य खाद्य-पदार्थ थे। ठंडी जलवायु में रहने तथा पौष्टिक पदार्थ खाने के कारण ये बलिष्ठ, वीर तथा साहसी होते थे। ये लोग सभ्यता के आरम्भिक काल में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमा करते थे। ये पशुओं को पालते थे और कृषि करना भी जानते थे। आर्य बड़ेे युद्ध-प्रिय होते थे और अपने हथियारों को बड़ी चतुरता से चला सकते थे। आर्यों को प्रकृति से बड़ा प्रेम था। ये लोग नवीन विचारों तथा भावों को ग्रहण करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे।

आर्यों का आदि देश

आर्यों का मूल निवास स्थान कहाँ था, यह एक अत्यन्त विवाद-ग्रस्त प्रश्न है। वी. ए. स्मिथ ने लिखा है- ‘आर्यों के मूल स्थान या निवास स्थान की विवेचना जान-बूझकर नहीं की गई है, क्योंकि इस विषय पर कोई भी धारणा स्थापित नहीं हो सकी है।’ इनके आदि देश के अन्वेषण करने में विद्वानों ने भाषा-विज्ञान, पुरातत्त्व तथा जातीय विशेषताओं का सहारा लिया है। चूंकि इन विद्वानों ने विभिन्न साधनों का सहारा लिया है और विभिन्न दृष्टिकोणों से इस समस्या पर विचार किया है इसलिये ये विद्धान विभिन्न निष्कर्षों पर पहुंचे हैं। विद्वानों ने आर्यों के आदि देश के सम्बन्ध में चार सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है- (1) यूरोपीय सिद्धान्त, (2) मध्य एशिया सिद्धान्त, (3) आर्कटिक प्रदेश का सिद्धान्त तथा (4) भारतीय सिद्धान्त।

(1) यूरोपीय सिद्धान्त: भाषा तथा संस्कृति की समानता के आधार पर कुछ विद्वानों ने यूरोप को आर्यों का आदि-देश बतलाया है। आर्य लोग सर्वाधिक संख्या में भारतवर्ष, ईरान तथा यूरोप के विभिन्न देशों में पाये जाते हैं। इनकी भाषा में बड़ी समानता पायी जाती है। पितृ, पिदर, पेटर तथा फादर और मातृ, मादर, मेटर तथा मदर शब्द एक ही अर्थ में संस्कृत, फारसी, लैटिन तथा अंग्रेजी भाषाओं में प्रयोग किये जाते हैं। इन भाषाओं को हिन्द-यूरोपीय परिवार की भाषाएं कहते हैं। अपने परिवर्तित रूपों में ये भाषाएं आज भी समस्त यूरोप, ईरान और भारतीय उप-महाखंड के अधिकतर हिस्सों में बोली जाती हैं। अज, श्वान तथा अश्व जैसे पशुवाचक शब्द और भूर्ज, पीतदारू तथा द्विफल जैसे वृक्षों के नाम समस्त हिंद-यूरोपीय भाषाओं में एक समान पाए जाते हैं। ये समान शब्द यूरेशिया की वनस्पति और पशुओं के सूचक हैं। इनसे ज्ञात होता है कि आर्य लोग नदियों और जंगलों से परिचित थे। एक रोचक बात यह है कि आर्यों ने अनेक पर्वतों को पार किया फिर भी पहाड़ों के लिए समान शब्द कुछ ही आर्य-भाषाओं में मिलते हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इन भाषाओं के बोलने वाले मानवों के पूर्वज कभी एक स्थान पर रहते रहे होंगे।

डॉ. पी. गाइल्स के विचार में आस्ट्रिया-हंगेरी का मैदान आर्यों का आदि-देश था क्योंकि यह मैदान समशीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है और वे समस्त पशु अर्थात् गाय, बैल, घोड़ा, कुत्ता तथा वनस्पति अर्थात् गेहूँ, जौ आदि इस मैदान में पाये जाते हैं, जिनसे प्राचीन आर्य परिचित थे। पेन्का ने जर्मनी प्रदेश को और नेहरिंग ने दक्षिणी रूस के घास के मैदान को आर्यों का आदि-प्रदेश बताया है। कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यों का मूल निवास आलप्स पर्वत के पूर्वी क्षेत्र मंे, यूरेशिया में, कहीं पर था। जिन विद्वानों ने यूरोप को आर्यों का आदि देश बताया है उनका तर्क है कि यह मैदान उन स्थानों के निकट है जहाँ यूरोप के आर्यों की भिन्न-भिन्न शाखाएँ निवास कर रही हैं। चूंकि यूरोप में आर्यों की संख्या एशिया के आर्यों से अधिक है, इसलिये यह सम्भव है कि आर्य लोग पश्चिम से पूर्व की ओर गये हों। इस क्षेत्र में ऐसे सघन वन, मरूभूमि अथवा पर्वतमालाएँ नही हैं जिन्हें पार नहीं किया जा सकता। अतः पश्चिम की ओर से पूर्व को जाना अत्यन्त सरल है। यूरोपीय सिद्धान्त के समर्थकों का कहना है कि प्रव्रजन प्रायः पश्चिम से पूर्व को हुआ है, पूर्व से पश्चिम को नहीं।

(2) मध्य एशिया का सिद्धान्त: जर्मन विद्वान् मैक्समूलर ने मध्य-एशिया को आर्योंं का आदि-देश बताया है। उनके अनुसार आर्य जाति तथा उसकी सभ्यता एवं संस्कृति का ज्ञान हमें वेदों तथा अवेस्ता से प्राप्त होता है जो क्रमशः भारतीय तथा ईरानी आर्यों के धर्म ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों के अध्ययन से अनुमान होता है कि भारतीय तथा ईरानी आर्य बहुत दिनों तक साथ निवास करते होंगे। इनका आदि-देश भारत तथा ईरान के सन्निकट कहीं रहा होगा। वहीं से एक शाखा ईरान को, दूसरी भारतवर्ष को और तीसरी यूरोप को गई होगी। वेदों तथा अवेस्ता से ज्ञात होता है कि प्राचीन आर्य पशु पालते थे तथा कृषि करते थे। इसलिये ये एक लम्बे मैदान में रहते रहे होंगे। ये लोग अपने वर्ष की गणना हिम से करते थे, जिससे यह स्पष्ट है कि वह प्रदेश शीत-प्रधान रहा होगा। कालान्तर में ये लोग अपने वर्ष की गणना शरद से करने लगे जिसका यह तात्पर्य है कि ये लोग बाद में दक्षिण की ओर चले गये जहाँ कम सर्दी पड़ती थी और सुन्दर वसन्त ऋतु रहती थी। ये लोग घोड़े रखते थे जिन्हें वे सवारी के काम में लाते थे और रथों में जोतते थे। आर्य-ग्रन्थों में गेहूँ तथा जौ का भी उल्लेख मिलता है। इन तथ्यों के आधार पर मैक्समूलर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मध्य एशिया ही आर्यों का आदि-देश था क्योंकि ये समस्त वस्तुएँ वहाँ पर पाई जाती हैं। मध्य एशिया से ईरान, यूरोप तथा भारतवर्ष, तीनों जगह जाना सम्भव तथा सरल भी है। यह सम्भव है कि जन-संख्या की वृद्धि, भोजन तथा चारे के अभाव अथवा प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण ये लोग अपनी जन्म-भूमि त्यागने के लिए विवश हो गये हों। मध्य एशिया में जल का न होना, भूमि का अनुपजाऊ होना तथा आर्यों का वहाँ से चले जाना आदि इस मत के स्वीकार करने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं क्योंकि आर्यों के आदि देश में जल की कमी न थी। वह बड़ा ही उपजाऊ तथा सम्पन्न प्रदेश था।

(3) आर्कटिक प्रदेश का सिद्धान्त: लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचार में उत्तर ध्रुव-प्रदेश आर्यों का आदि देश था। अपने मत के समर्थन में तिलक ने वेदों तथा अवेस्ता का सहारा लिया है। ऋग्वेद में छः महीने की रात तथा छः महीने के दिन का वर्णन है। वेदों में उषा की स्तुति की गई है जो बड़ी लम्बी होती थी। ये सब बातें केवल उत्तरी ध्रुव प्रदेश में पायी जाती हैं। अवेस्ता में लिखा है कि उनके देवता अहुरमज्द ने जिस देश का निर्माण किया था उसमें दस महीने सर्दी और केवल दो महीने गर्मी पड़ती थी। इससे अनुमान होता है कि आर्यों का मूल प्रदेश उत्तरी ध्रुव-प्रदेश के निकट रहा होगा। अवेस्ता में यह भी लिखा है कि उस प्रदेश में एक बहुत बड़ा तुषारापात हुआ जिससे उन लोगों को अपनी जन्म-भूमि त्याग देनी पड़ी। तिलक का कहना है कि जिस समय आर्य लोग उत्तरी-धु्रव प्रदेश में रहते थे, उन दिनों वहाँ पर बर्फ न थी और वहाँ पर सुहावना बसन्त रहता था। कालान्तर में वहाँ पर बड़े जोरों की बर्फ गिरी और सम्भवतः इसी का उल्लेख अवेस्ता में किया गया है। इस तुषारापात के कारण आर्यों ने अपनी जन्म-भूमि को त्याग दिया और उनकी एक शाखा ईरान को और दूसरी भारतवर्ष को चली गई। यहाँ से चले जाने पर भी वे लोग अपनी मातृ-भूमि का विस्मरण न कर सके और इसी से इन्होंने इसका गुणगान अपने धर्म-ग्रन्थों में किया है। बहुत कम इतिहासकार तिलक के मत का समर्थन करते हैं।

(4) भारतीय सिद्धान्त: कुछ विद्वानों के विचार में भारत आर्यों का आदि देश था और वे कहीं बाहर से नही आये थे। डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी ने लिखा है- ‘अब आर्यों के आक्रमण और भारत के मूल निवासियों के साथ उनके संघर्ष की प्राक्कल्पना को धीरे-धीरे त्याग दिया जा रहा है।’ अविनाश चन्द्र दास के विचार में सप्त-सिन्धु ही आर्यों का आदि देश था। कुछ अन्य विद्वानों के विचार में काश्मीर तथा गंगा का मैदान आर्र्यों का आदि-देश था। भारतीय सिद्धान्त के समर्थकों का कहना है कि आर्य-ग्रन्थों में आर्यों के कहीं बाहर से आने की चर्चा नहीं है और न अनुश्रुतियों में कहीं बाहर से आने के संकेत मिलते हैं। इन विद्वानों का यह भी कहना है कि वैदिक-साहित्य आर्यों का आदि साहित्य है। यदि आर्य सप्त-सिन्धु में कहीं बाहर से आये तो इनका साहित्य अन्यत्र क्यों नही मिलता। ऋग्वेद की भौगोलिक स्थिति से भी यही प्रकट होता है कि ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना करने वालों का मूल स्थान पंजाब तथा उसके समीप का देश ही था। आर्य-साहित्य से हमें ज्ञात होता है गेहूँ तथा जौ प्राचीन आर्यों के प्रमुख खाद्यान्न थे। यह ध्यान देने की बात है पंजाब में इन दोनों अन्नों का ही बाहुल्य है। अतः यही आर्यों का आदि-देश रहा होगा। इस मत को स्वीकार करने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि ऐतिहासिक युग में बाहर से भारत में विभिन्न जातियों के आने के प्रमाण मिलते हैं परन्तु एक भी जाति के भारत से बाहर जाने का प्रमाण नही मिलता। दूसरी कठिनाई यह है कि हड़प्पा तथा मोहेनजोदड़ो की सभ्यता, आर्य-सभ्यता से भिन्न तथा अधिक प्राचीन है। जब सिन्धु-प्रदेश की प्राचीनतम सभ्यता अनार्य थी तब सप्त-सिन्धु कैसे आर्यों का आदि-देश हो सकता है!

निष्कर्ष: उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि आर्यों के आदि-देश के सम्बन्ध में जितने सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं वे समस्त संदिग्ध हैं, क्योंकि किसी भी सिद्धान्त के समर्थन में अकाट्य तर्क उपस्थित नहीं किये जा सके हैं फिर भी वर्तमान में जो इतिहास स्थिर किया गया है, उसमें पश्चिमी इतिहासकारों ने माना है कि आर्य भारत में बाहर से आये। कुछ भारतीय इतिहासकार इसी मत का समर्थन करते हैं जबकि बहुत कम इतिहासकार भारत को आर्यों का मूल देश मानते हैं।

आर्यों का मूल स्थान से पलायन

जब आर्यों ने अपने मूल स्थानों को त्यागा, तब वे तीन प्रमुख शाखाओं में विभक्त हो गये। उनकी एक शाखा पश्चिम की ओर बढ़ी और धीरे-धीरे यूनान में पहुंच गई। ईराक से प्राप्त 1600 ई.पू. के कस्सी अभिलेखों में और ईसा पूर्व चौदहवीं सदी के मितन्नी अभिलेखों में जिन आर्य नामों का उल्लेख मिलता है उनसे सूचित होता है कि आर्यों की एक ईरानी शाखा पश्चिम की ओर चली गई थी। कालान्तर में ये लोग यूनानी आर्य कहलाने लगे और यहीं से वे यूरोप के अन्य देशों में फैल गये।

आर्यों की दूसरी शाखा एशिया की ओर बढ़ी। घोड़े की तेज गति के कारण आर्यों को आगे बढ़ने में कोई कठिनाई नहीं हुई। लगभग 2000 ई.पू. के बाद आर्यों ने पश्चिमी एशिया में प्रवेश किया। एशिया में आर्य लोग सबसे पहले ईरान पहुंचे जिसे फारस भी कहते हैं। ये लोग ईरानी आर्य कहलाये। यहाँ हिन्दू-ईरानी आर्य लंबे समय तक रहे।

आर्यों की तीसरी शाखा, दूसरी अर्थात् ईरानी शाखा में से अलग होकर भारत की ओर बढ़ी। भारत में आने वाले आर्य मुख्यतः पशुपालक थे। कृषि उनका गौण पेशा था। उनका जीवन स्थायी नहीं था, इसलिए उन्होंने अपने पीछे कोई ठोस भौतिक अवशेष नहीं छोडे़। आर्यों ने यद्यपि अनेक पशुओं को पालतू बनाया तथापि उनके जीवन में घोड़े का महत्त्व सर्वाधिक था।

भारत में आगमन

पश्चिमी विद्वानों के अनुसार भारत में आर्यों का आगमन 1500 ई.पू. के कुछ पहले हुआ किंतु हमें उनके आगमन के बारे में स्पष्ट एवं ठोस पुरातात्त्विक प्रमाण नहीं मिलते। पश्चिमोत्तर भारत से मिले हथियारों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में आने वाले आर्य कोटरवाली कुल्हाड़ियाँ, कांसे की कटारें और खड्ग का उपयोग करते थे। आरंभिक आर्यों का निवास पूर्वी अफगानिस्तान, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती भूभाग में था। ऋग्वेद में अफगानिस्तान की कुभा तथा अन्य नदियों के उल्लेख मिलते हैं। भारत में आर्यों की अनेक लहरें आईं। प्राचीनतम लहर उन ऋग्वैदिक लोगों की थी जो 1500 ई.पू. के आसपास इस उपमहाखंड में पहुंचे थे।

ईरानी तथा भारतीय आर्यों में समानता

ईरानी तथा भारतीय आर्यों में बड़ी समानता है जिससे अनुमान लगाया गया है कि आर्यों की ये दोनों शाखाएँ कभी एक ही स्थान पर निवास करती रही होंगी। हिन्दू-यूरोपीय  भाषा की सबसे प्राचीन कृति ऋग्वेद से हमें भारतीय आर्यों के बारे में जानकारी मिलती है। ऋग्वेद में ऋषियों के विभिन्न परिवारों द्वारा अग्नि, इंद्र, मित्र, वरुण आदि देवताओं की स्तुति में रची गई प्रार्थनाओं का संकलन है। ऋग्वेद में दस मंडल हैं जिनमें से दो से सात तक के मंडल प्राचीन हैं। पहला और दसवां मंडल सम्भवतः बाद में जोड़ा गया। ईरानी भाषा के सबसे प्राचीन ग्रंथ अवेस्ता और आर्यों के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में अनेक समानताएं हैं। दोनों में न केवल अनेक देवताओं के अपितु सामाजिक वर्गों के नाम भी समान हैं। इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि आदि जो भारतीय आर्यों के देवता हैं, ईरानी आर्यों के भी देवता थे। ईरानी आर्यों के धर्म-ग्रन्थ ‘अवेस्ता’ के प्रधान देवता अहुरमज्द हैं। विद्वानों की धारणा है कि अहुर शब्द का रूपान्तर असुर है जिसका उल्लेख ऋग्वेद में बार-बार किया गया है। सम्भवतः देवासुर-संग्राम, जिसका वर्णन भारतीय आर्यों के साहित्य में मिलता है, ईरानी तथा भारतीय आर्यों का ही संघर्ष था। इस प्रकार भारतीय आर्य ‘देव’ और ईरानी आर्य ‘असुर’ कहलाये।

आर्यों का विस्तार

यद्यपि आर्यों के मूल निवास-स्थान का ठीक-ठीक पता नहीं लग सका है परन्तु इतना निश्चित है कि जनसंख्या में वृद्धि हो जाने तथा आवश्यकताओं की पूर्ति न होने के कारण उन्हें अपना आदि-देश त्याग देना पड़ा। वे अपनी जन्मभूमि को छोड़कर उपजाऊ भूमि की ओर बढ़े। आर्यों को उस उपजाऊ प्रदेश के मूल निवासियों से संघर्ष करना पड़ा। आर्यों ने उस प्रदेश के मूल निवासियों को अनार्य दास तथा दस्यु कहा क्योंकि वे डील-डौल, रूप-रंग, रहन-सहन आदि में आर्यों से भिन्न थे।

दस्युओं अथवा आर्यपूर्वों से संघर्ष

इंद्र ने आर्यों के शत्रुओं को अनेक बार हराया। ऋग्वेद में इंद्र को पुरंदर कहा गया है जिसका अर्थ होता है दुर्गों को तोड़ने वाला परंतु आर्यपूर्वों के इन दुर्गों को पहचान पाना सम्भव नहीं है। आर्यों के शत्रुओं के हथियारों के बारे में भी बहुत थोड़ी जानकारी मिलती है। इनमें से कुछ हड़प्पा संस्कृति के लोगों की बस्तियां हो सकती हैं परन्तु आर्यों की सफलता के बारे में संदेह नहीं है। इस सफलता का मुख्य कारण वे रथ थे जिनमें घोड़े जोते जाते थे। आर्यों के साथ ही पश्चिमी एशिया और भारत में घोड़ों का आगमन हुआ। आर्य सैनिक सम्भवतः कवच (वर्म) पहनते थे और उनके हथियार श्रेष्ठ थे। ऋग्वेद से जानकारी मिलती है कि दिवोदास ने, जो भरत कुल का था, शंबर को हराया था। यहाँ दिवोदास के नाम के साथ दास शब्द जुड़ा हुआ है। ऋग्वेद के दस्यु सम्भवतः इस देश के मूल निवासी थे, और इन्हें हराने वाला सदस्य एक आर्य-मुखिया था। यह आर्य-मुखिया दासों से तो सहानुभुति रखता था, किन्तु दस्युओं का कट्टर शत्रु था। ऋग्वेद में दस्युहंता शब्द का बार-बार उल्लेख आया है दस्यु सम्भवतः लिंग-पूजक थे और दूध-दही, घी आदि के लिए गाय, भैंस नहीं पालते थे।

(1) सप्त सिन्धु में निवास: भारतीय आर्य चाहे भारत के मूल-निवासी रहे हों और चाहे विदेशों से भारत में आये हों परन्तु इतना निश्चित है कि प्रारम्भ में वे सप्त-सिन्धु नामक प्रदेश में निवास करते थे और यहीं से वे शेष भारत में फैले। सप्त-सिन्धु वही प्रदेश था जिसे वर्तमान में पंजाब कहा जाता है। पंजाब, पन्चाम्बु शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है- पंच $ अम्बु अर्थात् पाँच जलों अथवा नदियों का देश। सप्त-सिन्धु का भी अर्थ है, सात नदियों का देश। उन दिनों इस प्रदेश में सात नदियाँ पाई जाती थीं। उनमें से पाँच-शतुद्रि (सतलज), विपासा (व्यास), परुष्णी (रावी), चिनाब (असिक्नी) तथा झेलम (वितस्ता) तो अब भी विद्यमान हैं और दो नदियाँ- सरस्वती तथा दृशद्वती, विलुप्त हो गई हैं। प्राचीन आर्यों ने अपने ग्रन्थों में इसी सप्त-सिन्धु का गुणगान किया है। इसी जगह उन्होंने वेदों की रचना की और यहीं पर उनकी सभ्यता तथा संस्कृति का सृजन हुआ। यहीं से भारतीय आर्य शेष भारत में फैले।

(2) ब्रह्मावर्त में प्रवेश: सप्त सिन्धु से आर्य पूर्व की ओर बढ़े। सप्त-सिन्धु से प्रस्थान करने के इनके दो प्रधान कारण हो सकते हैं। प्रथम कारण यह हो सकता है कि इनकी जन-संख्या में वृद्धि हो गई, जिससे इन्हें नये स्थान को खोजने की आवश्यकता पड़ी और दूसरा कारण यह हो सकता है कि अपनी सभ्यता तथा संस्कृति का प्रसार करने के लिए ये लोग आगे बढ़े। सप्त-सिन्धु से प्रस्थान करने का जो भी कारण रहा हो, इतना तो निश्चित है कि वे बड़ी मन्द-गति से आगे बढ़े क्योंकि अनार्यों के साथ उन्हें भीषण संघर्ष करना पड़ा। अनार्यों से अधिक बलिष्ठ, वीर, साहसी तथा रण-कुशल होने के कारण आर्यों ने उन पर विजय प्राप्त कर ली और उन्होंने कुरुक्षेत्र के निकट के प्रदेश पर अधिकार स्थापित कर लिया। इस प्रदेश को उन्होंने ब्रह्मावर्त के नाम से पुकारा।

(3) ब्रह्मर्षि-देश में प्रवेश: शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद आर्यों ने अपनी युद्ध-यात्रा जारी रखी। अब उन्होंने आगे बढ़कर पूर्वी राजस्थान, गंगा तथा यमुना के दो-आब और उसके निकटवर्ती प्रदेश पर अधिकार स्थापित कर लिया। इस सम्पूर्ण प्रदेश को उन्होंने ब्रह्मर्षि-देश कहा।

(4) मध्य-देश में प्रवेश: ब्रह्मर्षि-देश पर प्रभुत्व स्थापित कर लेने के बाद आर्य और आगे बढ़े तथा हिमालय एवं विन्ध्य-पर्वत के मध्य की भूमि पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया। आर्यों ने इस प्रदेश का नाम मध्य-देश रखा।

(5) सुदूर-पूर्व में प्रवेश: बिहार तथा बंगाल के दक्षिण-पूर्व का भाग आर्यों के प्रभाव से बहुत दिनों तक मुक्त रहा, परन्तु अन्त में उन्होंने इस भू-भाग पर भी प्रभुत्व स्थापित कर लिया। आर्यों ने सम्पूर्ण उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा।

(6) दक्षिणा-पथ में प्रवेश: विन्ध्य पर्वत तथा घने वनों के कारण दक्षिण भारत में बहुत दिनों तक आर्यों का प्रवेश न हो सका। इन गहन वनों तथा पर्वतमालाओं को पार करने का साहस सर्वप्रथम ऋषि-मुनियों ने किया। सबसे पहले अगस्त्य ऋषि दक्षिण-भारत में गये। इस प्रकार आर्यों की दक्षिण विजय केवल सांस्कृतिक विजय थी। वह राजनीतिक विजय नहीं थी। धीरे-धीरे आर्य सम्पूर्ण दक्षिण भारत में पहुँच गये और उसके कोने-कोने में आर्य-सभ्यता तथा संस्कृति का प्रचार हो गया। आर्यों ने दक्षिण-भारत को ‘दक्षिणा-पथ’ नाम दिया।

पंचजनों का युद्ध

प्राचीन आर्यों का कोई संगठित राज्य नहीं था। आर्य छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त थे जिनमें परस्पर वैमनस्य था। फलतः आर्यों को न केवल अनार्यों से युद्ध करना पड़ा वरन् उनमें आपस में भी युद्ध होता था। इस प्रकार आर्य दोहरे संघर्ष में फंसे हुए थे। आर्यों के भीतर के संघर्ष के कारण उनके जीवन में लंबे समय तक उथल-पुथल मची रही। पांच प्रमुख कबीलों अथवा पंचजनों की आपस में लड़ाइयां हुईं और इसके लिए उन्होंने आर्येतरों की भी सहायता ली। ‘भरत’ और ‘तत्सु’ आर्य-कुल के शासक थे। वसिष्ठ उनके समर्थक थे। भरत नाम का उल्लेख पहली बार ऋग्वेद में आया है। इसी के आधार पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।

दाशराज्ञ अथवा दस राजाओं का युद्ध

ऋग्वैदिक उल्लेख के अनुसार सरस्वती नदी के किनारे भारत नाम का एक राज्य था, जिस पर सुदास नामक राजा शासन करता था। विश्वामित्र, राजा सुदास के पुरोहित थे। राजा तथा पुरोहित में अनबन हो जाने के कारण राजा सुदास ने विश्वामित्र के स्थान पर वसिष्ठ को अपना पुरोहित बना लिया। इससे विश्वामित्र बड़े अप्रसन्न हुए। उन्होंने दस राजाओं को संगठित करके, राजा सुदास के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। दस राजाओं के इस समूह में पांच आर्य-राजा थे और पांच अनार्य-राजा थे। भरतों और दस राजाओं का जो युद्ध हुआ उसे दाशराज्ञ युद्ध कहते हैं। यह युद्ध परुष्णी (रावी) नदी के तट पर हुआ। इसमें भरत कुल के राजा सुदास की विजय हुई और भरतों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। जिन कबीलों की हार हुई उनमें पुरुओं का कबीला सबसे महत्त्वपूर्ण था।

कुरुओं का उदय

कालांतर में भरतों और पुरुओं का मेल हुआ और परिणामतः कुरुओं का एक नया शासक कबीला अस्तित्त्व में आया। कुरु बाद में पांचालों के साथ मिल गए और उन्होंने उत्तरी गंगा की द्रोणी में अपना शासन स्थापित किया। उत्तर वैदिक काल में उन्होंने इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आर्यों में परस्पर अन्य युद्ध भी हुए।

आर्यों का सांस्कृतिक जीवन

वैदिक ग्रन्थ: भारतीय आर्यों द्वारा वैदिक ग्रन्थों की रचना 2,500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक के काल में होना अनुमानित है। इनमें से ऋग्वेद की रचना 2500 से 1000 ई.पू. के काल में तथा उत्तर वैदिक ग्रंथों की रचना 1000 से 600 ई.पू. में होना अनुमानित है।

वैदिक ग्रन्थों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) संहिता अथवा वेद, (2) ब्राह्मण तथा (3) सूत्र। प्रथम दो अर्थात् संहिता तथा ब्राह्मण-ग्रन्थों को श्रुति भी कहा गया है। श्रुति का अर्थ है जो सुना गया हो। प्राचीन आर्यों का विश्वास था कि संहिता और ब्राह्मण किसी मनुष्य की कृति न थे। उनमें दिये गये उपदेशों को ऋषियों तथा मुनियों ने ब्रह्मा के मुख से सुना था। इसी से इन ग्रन्थों को श्रुति कहा जाता है। इन ग्रन्थों में दिये गये उपदेश ब्रह्म-वाक्य हैं इसलिये वे सर्वथा सत्य हैं। उन पर संदेह नहीं किया जा सकता। इनका विरोध करने का दुस्साहस किसी को नहीं होता था। संहिता तथा ब्राह्मण-ग्रन्थों में जो उपदेश दिये गये हैं वे बहुत लम्बे हैं। अतः आर्य-विद्वानों ने जन-साधारण के लिए उपदेशों को संक्षेप में छोटे-छोेटे वाक्यों में लिख दिया। इन्हीं रचनाओं को सूत्र कहते हैं। सूत्र का अर्थ होता है संक्षेप में कहना। चूंकि इन ग्रन्थों में बड़ी-बड़ी बातें संक्षेप में लिखी गई हैं इसलिये इन्हें सूत्र कहा गया।

(1) संहिता अथवा वेद: संहिता का अर्थ होता है संग्रह। चूंकि इन ग्रन्थों में मन्त्रों का संग्रह है, इसलिये इन्हें संहिता कहा गया। संहिता को वेद भी कहते हैं। वेद संस्कृत की विद् धातु से निकला है जिसका अर्थ है- जानना अथवा ज्ञान प्राप्त करना। वेद उन ग्रन्थों को कहते हैं जो ज्ञान की प्राप्ति के एकमात्र साधन समझे जाते थे। वेद-वाक्य ब्रह्म-वाक्य होने के कारण चिरन्तन सत्य थे और उनके अनुसार जीवन व्यतीत करने से इहलोक तथा परलोक दोनों ही सुधरता था। अर्थात् इस संसार में सुख की प्राप्ति होती थी और मृत्यु हो जाने पर मोक्ष मिलता था। संहिता अर्थात् वेदों का भारतीयों के जीवन में बहुत बड़ा महत्त्व है। वेदों को संस्कृत-साहित्य की जननी कहा जाता है। यद्यपि सिन्धु-घाटी की सभ्यता भारत की प्राचीनतम सभ्यता थी परन्तु उस सभ्यता के वसुन्धरा में अन्तर्भूत हो जाने के उपरान्त भारतीय सभ्यता का पुनः शिलान्यास संहिता द्वारा ही किया गया था। संहिता को हम भारतीय समाज का प्राण कह सकते हैं जिसके बिना वह जीवित नहीं रह सकता था। वेदों के उपरान्त जितने साहित्य लिखे गये उन सब का आधार संहिता ही है। वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। पहले इनमें से केवल प्रथम तीन वेदों की रचना की गई। इसलिये ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद को सम्मिलित रूप से त्रयी कहा गया। सबसे अन्त में अथर्ववेद की रचना हुई।

ऋग्वेद: यह दो शब्दों से मिलकर बना है- ऋक् तथा वेद। ऋक् का अर्थ होता है स्तुति-मन्त्र। स्तुति-मन्त्र को ऋचा भी कहते हैं। जिस वेद में स्तुति मन्त्रों अर्थात् ऋचाओं का संग्रह किया गया है उसे ऋग्वेद कहते हैं। सूर्य, वायु, अग्नि आदि ऋग्वेद के प्रधान देवता हैं। इसलिये ये ऋचाएँ इन्हीं देवताओं की स्तुति में लिखी गयीं। ऋचाओं का संग्रह किसी एक ऋषि ने नहीं किया। वरन् वे विभिन्न ऋषियों द्वारा विभिन्न समय में संकलित की गईं। ऋग्वेद दस मण्डलों अथवा भागों में विभक्त है। प्रत्येक मण्डल कई अनुवाकों में विभक्त है। अनुवाक् का अर्थ होता है जो बाद में कहा गया है। चूंकि इनका स्थान मण्डल के बाद है, इसलिये इन्हें अनुवाक् कहा गया है। प्रत्येक अनुवाक् कई सूक्तों में विभक्त है। सूक्त का अर्थ होता है अच्छी उक्ति अर्थात् जो अच्छी प्रकार कहा गया हो। ऋग्वेद में कुल 1008 सूक्त हैं। प्रत्येक सूक्त कई ऋचाओं अर्थात् स्तुति-मन्त्रों में विभक्त है, ऋचाओं की कुल संख्या 10,580 है। ऋग्वेद आर्यों का प्राचीनतम ग्रन्थ है। इसकी रचना सम्भवतः 2,500 ई.पू. से 1,000 ई.पू. तक के काल में हुई थी। यद्यपि ऋग्वेद स्तुति-मन्त्रों का संग्रह है जिनका प्रधानतः धार्मिक तथा आध्यात्मिक महत्त्व है परन्तु ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी इसका बहुत बड़ा महत्त्व है क्योंकि इस काल का इतिहास जानने के लिए यही ग्रन्थ एकमात्र साधन है। कुछ मन्त्रों से आर्यों के पारस्परिक तथा अनार्यों से किये गये युद्धों का पता लगता है। यह भारत ही नही, वरन् विश्व का सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ है। इसकी प्राचीनता के कारण ही भारत का मस्तक ऊँचा है। इसकी रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई। मैक्समूलर ने लिखा है- ‘विश्व के इतिहास में वेद उस रिक्त स्थान की पूर्ति करता है जिसे किसी भी भाषा का कोई भी साहित्यिक ग्रन्थ नहीं भर सकता। यह हमें अतीत के उस काल में पहुँचा देता है जिसका कहीं अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता और उस पीढ़ी के लोगों के वास्तविक शब्दों से परिचित करा देता है जिसका हम इसके अभाव में केवल धुधंला ही मूल्यांकन कर सकते थे।’

यजुर्वेद: यह दो शब्दों से मिलकर बना है- यजुः तथा वेद। यज् शब्द का अर्थ होता है यजन करना। यजुः उन मन्त्रों को कहते थे जिसके द्वारा यजन अथवा पूजन किया जाता था अर्थात् यज्ञ किये जाते थे। इसलिये यजुर्वेद उस वेद को कहते हैं जिसमें यज्ञों का विधान है। मूलतः यह कर्म-काण्ड प्रधान ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में बलि की प्रथा, उसकी महत्ता तथा विधियों का वर्णन है। यजुर्वेद में सूक्तों के साथ-साथ अनुष्ठान भी हैं जिन्हें सस्वर पाठ करते जाने का विधान है। ये अनुष्ठान अपने समय की उन सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों के परिचायक हैं जिनमें इनका उद्गम हुआ था। यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है। पहला भाग शुक्ल यजुर्वेद कहलाता है जो स्वतन्त्र रूप से लिखा गया है और दूसरा भाग कृष्ण यजुर्वेद कहलाता है जिसमें पूर्व साहित्य का संकलन है। यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र में हुए थी। इस वेद की ऐतिहासिक उपयोगिता भी है। इसमें आर्यों के सामाजिक तथा धार्मिक जीवन की झांकी मिलती है। इस वेद से ज्ञात होता है कि अब आर्य, सप्त-सिन्धु से कुरुक्षेत्र में चले आये थे। इस ग्रन्थ से यह भी ज्ञात होता है कि अब प्रकृति पूजा की उपेक्षा होने लगी थी और जाति-प्रथा का प्रादुर्भाव हो गया था।

सामवेद: साम के दो अर्थ होते हैं- शान्ति तथा गीत। यहाँ पर साम का अर्थ है गीत। इसलिये सामवेद का अर्थ हुआ वह वेद जिसके पद गेय हैं और जो संगीतमय हैं। सामवेद में केवल 66 मन्त्र नये हैं। शेष मंत्र ऋग्वेद से लिये गये हैं। सामवेद के मन्त्र गेय होने के कारण मन को बड़ी शान्ति देते हैं। यज्ञादि अवसरों पर इन मन्त्रों का पाठ किया जाता है।

अथर्ववेद: अथ का अर्थ होता है मंगल अथवा कल्याण, अथर्व का अर्थ होता है अग्नि और अथर्वन् का अर्थ होता है पुजारी। इसलिये अथर्ववेद उस वेद को कहते है जिसमें पुजारी मन्त्रों तथा अग्नि की सहायता से भूत-पिशाचों से रक्षा कर मनुष्य का मंगल अथवा कल्याण करते हैं। इस ग्रन्थ में बहुत से प्रेतों तथा पिशाचों का उल्लेख है जिनसे बचने के लिए मन्त्र दिये गये हैं। विपत्तियों और व्याधियों के निवारण के लिए अथर्ववेद में मंत्र-तंत्र दिए गए हैं। ये मन्त्र जादू-टोने की सहायता से मनुष्य की रक्षा करतेे हैं। इस ग्रन्थ में कुछ मन्त्र ऋग्वेद के हैं और कुछ सामवेद के। इस वेद में आर्येतरों के विश्वासों तथा उनकी प्रथाआंे के बारे में जानकारी मिलती है। यह ग्रन्थ आर्यों के पारिवारिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन पर भी प्रकाश डालता है। इसकी रचना प्रथम तीन वेदों की रचना के बहुत बाद में हुई थी।

(2) ब्राह्मण: ब्रह्मण, ब्रह्म शब्द से निकला है, जिसका अर्थ होता है वेद। इसलिये ब्राह्मण उन ग्रन्थों को कहते है जिनमें वैदिक मन्त्रों की व्याख्या की गई है। इनमें यज्ञों के स्वरूप तथा उनकी विधियों का वर्णन किया गया है। चूंकि यज्ञ करने तथा कराने का कार्य पुरोहित करते थे जो ब्राह्मण होते थे, इसलिये केवल ब्राह्मणों से संबंधित होने के कारण इन ग्रन्थों का नाम ब्राह्मण रखा गया। ब्राह्मण-ग्रन्थों की रचना ब्रह्मर्षि देश में हुई थी। यद्यपि ब्राह्मण-ग्रन्थों की रचना याज्ञिकों के पथ-प्रदर्शन के लिए की गई परन्तु इनसे आर्यों के सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक जीवन पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। ब्राह्मण-ग्रन्थों की रचना प्रधानतः गद्य में की गई है परन्तु कहीं-कहीं पद्य भी विरल रूप से मिलते हैं। ऐतरेय, कौषीतकी, तैतिरीय, शतपथ आदि मुख्य ब्राह्मण-ग्रन्थ हैं। आरण्यक तथा उपनिषद् भी ब्राह्मण-ग्रन्थों के अन्तर्गत आते हैं।

आरण्यक: अरण्य शब्द का अर्थ होता है- जंगल। आरण्यक उन ग्रन्थों को कहते हैं जिनकी-रचना जंगलों के अत्यन्त शान्तिमय वातावरण में हुई और जिनका अध्ययन तथा चिन्तन भी जंगलों में एकान्तवास द्वारा शान्तिमय वातावरण में किया जाना चाहिये। ये ग्रन्थ वानप्रस्थाश्रमियों के लिए होते थे। वानप्रस्थाश्रम में प्रवेश करने पर लोग जंगलों में चले जाते थे और वहीं पर चिन्तन तथा मनन किया करते थे। अध्यात्म-चिन्तन आरण्यक ग्रन्थों की सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें आत्मा तथा ब्रह्म के सम्बन्ध में उच्च कोटि का चिंतन किया गया है।

उपनिषद्: यह तीन शब्दों से मिलकर बना है- उप$नि$षद्। उप का अर्थ होता है समीप, नि का अर्थ होता है नीचे और षद् का अर्थ होता है बैठना। इसलिये उपनिषद् उन ग्रन्थों को कहते हैं जिनका अध्ययन गुरु के समीप नीचे बैठकर श्रद्धापूर्वक किया जाना चाहिये। उपनिषद ब्राह्मण ग्रन्थ के अन्तिम भाग में आते हैं। ये ज्ञान प्रधान ग्रन्थ हैं। इनमें उच्च कोटि का दार्शनिक विवेचन मिलता है। उपनिषदों की तुलना में संसार में कोई अन्य श्रेष्ठ दार्शनिक ग्रन्थ नहीं है। उपनिषदों से हमें ज्ञात होता है कि इस युग में वर्ण तथा वर्णाश्रम व्यवस्था दृढ़ रूप से स्थापित हो गये थे तथा मानव की सभ्यता एवं संस्कृति में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया था। उपलब्ध उपनिषद ग्रन्थों की संख्या लगभग दो सौ है किन्तु उनमें से केवल बारह का स्थान महत्त्वपूर्ण है। उनके नाम हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैतिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, कौषितकी और श्वेताश्वतर।

(3) सूत्र: सूत्र का शाब्दिक अर्थ होता है धागा। इसलिये सूत्र उन ग्रन्थों को कहते हैं जो इस प्रकार लिखे जाते थे मानो कोई चीज धागे में पिरो दी गई हो। और उनमें एक क्रम स्थापित हो गया हो। जब वैदिक साहित्य का रूप अत्यन्त विशाल हो गया तो उसे कंठस्थ करना बहुत कठिन हो गया। इसलिये एक ऐसी रचना-शैली का विकास किया गया जिसमें वाक्य तो छोटे-छोटे हों परन्तु उनमें बड़े-बड़े भावों तथा विचारों का समावेश हो। इन्हीं रचनाओं को सूत्र कहा गया। महर्षि पाणिनि ने सूत्रों की तीन विशेषताएँ बताई हैं- वे कम अक्षरों में लिखे जाते हैं, वे असंदिग्ध होते हैं और वे सारगर्भित होते हैं। इन सूत्रों में कल्प-सूत्र सर्वाधिक महत्त्व का है। सूत्रों की रचना करने वालों में पाण्निि प्रमुख हैं। इन ग्रन्थों की रचना 700 ई.पू. से 200 ई.पू. तक के काल में हुई थी। सूत्रों में आर्यों के धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन का पर्याप्त परिचय मिलता है।

अन्य ग्रन्थ: आर्यों ने अन्य ग्रन्थों की भी रचना की, जिनका उनके जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। दर्शन शास्त्र: कई मुनियों ने दर्शन-शास्त्रों का निर्माण किया, जिनकी संख्या 6 है- (1) कपिल मुनि का सांख्य-दर्शन, (2) पतन्जलि का योग-दर्शन, (3)  कण्व का वैशेषिक दर्शन, (4) गौतम का न्याय-दर्शन, (5) जैमिनि का पूर्व मीमांसा तथा (6) बादरायण का उत्तर-मीमांसा दर्शन। हिन्दू धर्म के अध्यात्मवाद का भवन इन्हीं दर्शन शास्त्रों के स्तम्भों पर खड़ा है। महाकाव्य: दो महाकाव्य हैं- (1) रामायण- इस ग्रंथ की रचना महर्षि वाल्मिीकि ने की। (2) महाभारत- इस ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास ने की। महाभारत का एक अंश गीता कहलाता है जिसमें निष्काम कर्म करने का उपदेश दिया गया है। इस ग्रन्थ का और इससे भी अधिक रामायण का हिन्दू-समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। धर्मशास्त्रों तथा पुराणों का भी भारतीय समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। पुराणों की संख्या 18 है जिनमें विष्णु पुराण, शिव पुराण, स्कन्द पुराण तथा भागवत पुराण अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। महाकाव्यों तथा पुराणों में वैदिक आदर्शों का प्रतिपादन किया गया है। अन्तर यह है कि महाकाव्यों में इसे मनुष्य के मुख से और पुराणों मे देवताओं के मुख से प्रतिपादित बताया गया है। आर्यों ने स्मृतियों की भी रचना की। स्मृतियों में नारद स्मृति, मनु स्मृति तथा याज्ञवलक्य स्मृति प्रमुख हैं।

वैदिक साहित्य का महत्त्व

(1) विश्व इतिहास में सर्वोच्च स्थान: वैदिक ग्रन्थों का, विशेषतः ऋग्वेद का विश्व इतिहास में सर्वोच्च स्थान है। वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। इनकी रचना भारत की पवित्र भूमि में हुई, इसलिये इन ग्रन्थों के कारण भारत का मस्तक ऊँचा है। ये ग्रन्थ सिद्ध करते हैं कि भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति, विश्व में सर्वाधिक प्राचीन है। पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति से आलोक प्राप्त हुआ।

(2) उत्कृष्ट जाति के इतिहास की झांकी: वैदिक साहित्य से हमें उत्कृष्ट आर्य जाति की झांकी प्राप्त होती है। आर्यों का विश्व की विभिन्न जातियों में बड़ा ऊँचा स्थान है। यह जाति शारीरिक बल, मानसिक प्रतिभा तथा आध्यात्मिक चिन्तन में अन्य जातियों से कहीं अधिक श्रेष्ठ रही है इसलिये जिन ग्रन्थों में इन आर्यों के जीवन की झांकी मिलती है वे निश्चय ही बड़े महत्त्वपूर्ण हैं।

(3) प्रारम्भिक आर्यों का इतिहास जानने का एकमात्र साधन: आर्यों के मूल-स्थान तथा उनके प्रारम्भिक जीवन का परिचय प्राप्त करने का एकमात्र साधन वैदिक ग्रन्थ हैं। यदि ये ग्रन्थ उपलब्ध न होते तो भारतीय आर्यों का सम्पूर्ण प्रारम्भिक इतिहास अन्धकारमय होता और उसका कुछ भी ज्ञान हमें प्राप्त नहीं हो सकता था।

(4) हमारे पूर्वजों के जीवन का प्रतिबिम्ब: यदि हम वैदिक ग्रन्थों को अपने पूर्वजों के जीवन का प्रतिबिम्ब कहें तो कुछ अनुचित न होगा। वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन कर लेने पर हमें पूर्वजों के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन का परिचय मिलता है। यदि वैदिक ग्रन्थ न होते तो हमें भी किसी बर्बर तथा असभ्य जाति की सन्तान कहा जा सकता था परन्तु इन ग्रन्थों ने हमें अत्यन्त सभ्य तथा सुसंस्कृत जाति की सन्तान होने का गौरव प्रदान किया है।

(5) हमारी सभ्यता का मूलाधार: वैदिक ग्रन्थ ही हमारी सभ्यता तथा संस्कृति के मूलाधार तथा प्रबल स्तम्भ हैं। जिन आदर्शों तथा सिद्धान्तों का इन ग्रन्थों में निरूपण किया गया है वे आदर्श तथा सिद्धांत भारतीयों के जीवन के पथ-प्रदर्शक बन गये। इन ग्रन्थों ने हमारे जीवन को सुंदर सांचे में ढाल दिया। यद्यपि भारत पर अनेक बर्बर जातियों के आक्रमण हुए जिन्होंने इसको बदलने का प्रयत्न किया परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। अनेक शताब्दियों के बीत जाने पर भी हमारे जीवन के आदर्श तथा सिद्धान्त वही हैं जिन्हें वैदिक ऋषियों तथा मुनियों ने निर्धारित किया था।

(6) हिन्दू धर्म का प्राण: यदि हम वैदिक ग्रन्थों को हिन्दू-धर्म का प्राण कहंे तो अनुचित न होगा। हिन्धू धर्म के मूल सिद्धान्तों का दर्शन हमें वैदिक ग्रन्थों में ही होता है। सम्पूर्ण वैदिक साहित्य वास्तव में धर्ममय है। इसका कारण यह है कि ऋषियों ने भौतिक जीवन की अपेक्षा आध्यात्मिक जीवन को अधिक महत्त्व दिया था। वे इस जगत को नाशवान तथा निस्सार समझते थे। इसी से उन्होंने जीवन के प्रत्येक अंग पर धर्म की छाप डाल दी। हमारे ऋषियों ने समाज को धर्म की एक ऐसे लकुटी प्रदान की जिसके सहारे यह समाज आज तक सुरक्षित चला आ रहा है।

(7) आध्यात्मिक विवेचन के कोष: हमारे वैदिक ग्रन्थ आध्यात्मिक विवेचन के विशाल कोष हैं। विश्व की किसी भी जाति के इतिहास में इतने विस्तृत तथा गहन रूप से आघ्यात्मिक विवेचन नहीं हुआ जितना वैदिक ग्रन्थों में हुआ है।

(8) हिन्दू समाज के स्तम्भ: वैदिक ग्रन्थों को हम हिन्दू समाज का स्तम्भ कह सकते हैं। वैदिक ऋषियों ने हमारे समाज को सुचारू रीति से संचालित करने के लिए दो व्यवस्थाएँ की थीं। इनमें से एक थी वर्ण-व्यवस्था और दूसरी थी वर्णाश्रम धर्म। इन्हीं दोनों स्तम्भों पर भारतीय समाज को खड़ा किया गया था और इन्हीं का अनुसरण कर समाज का चूड़ान्त विकास किया जाना था।

(9) भारतीय भाषाओं की जननी: वैदिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। संस्कृत से ही भारत की अधिकांश भाषाएँ निकली हैं। भारत की समस्त भाषाओं पर संस्कृत का थोड़ा-बहुत प्रभाव अवश्य पड़ा है। वास्तव में आर्य-परिवार की समस्त भाषाएँ इसकी पुत्रियां हैं तथा संस्कृत उनकी जननी है।

Related Articles

183 COMMENTS

  1. hello there and thank you for your information – I’ve certainly picked up anything new from
    right here. I did however expertise several technical points using
    this website, as I experienced to reload the website a lot of times previous to I could get it to load correctly.
    I had been wondering if your web host is OK? Not that I’m
    complaining, but sluggish loading instances times will sometimes affect your placement in google and could
    damage your quality score if advertising and marketing with Adwords.

    Anyway I am adding this RSS to my email and could look
    out for much more of your respective intriguing content.
    Ensure that you update this again very soon.. Escape rooms

  2. Good day! I could have sworn I’ve been to your blog before but after looking at some of the posts I realized it’s new to me. Regardless, I’m certainly delighted I found it and I’ll be bookmarking it and checking back frequently.

  3. The very next time I read a blog, I hope that it doesn’t disappoint me as much as this one. After all, I know it was my choice to read through, nonetheless I genuinely thought you would probably have something interesting to say. All I hear is a bunch of crying about something that you could fix if you weren’t too busy seeking attention.

  4. Hello there! This post couldn’t be written much better! Going through this article reminds me of my previous roommate! He constantly kept preaching about this. I am going to send this article to him. Fairly certain he’ll have a good read. Thanks for sharing!

  5. Oh my goodness! Awesome article dude! Thank you so much, However I am encountering difficulties with your RSS. I don’t understand why I can’t subscribe to it. Is there anybody else getting similar RSS issues? Anybody who knows the solution will you kindly respond? Thanx.

  6. Right here is the perfect web site for everyone who wishes to understand this topic. You know a whole lot its almost tough to argue with you (not that I personally will need to…HaHa). You definitely put a new spin on a subject that’s been written about for ages. Wonderful stuff, just great.

  7. Good day! I could have sworn I’ve been to this blog before but after going through a few of the articles I realized it’s new to me. Regardless, I’m definitely delighted I found it and I’ll be book-marking it and checking back regularly!

  8. Howdy! This blog post couldn’t be written much better! Reading through this article reminds me of my previous roommate! He continually kept talking about this. I’ll forward this article to him. Pretty sure he’s going to have a great read. Thank you for sharing!

  9. I’m amazed, I have to admit. Rarely do I come across a blog that’s both equally educative and engaging, and without a doubt, you have hit the nail on the head. The issue is something that too few people are speaking intelligently about. I’m very happy I came across this during my search for something concerning this.

  10. An impressive share! I have just forwarded this onto a coworker who had been conducting a little homework on this. And he actually ordered me lunch due to the fact that I stumbled upon it for him… lol. So let me reword this…. Thank YOU for the meal!! But yeah, thanks for spending time to discuss this issue here on your web page.

  11. Hi, I do believe this is an excellent web site. I stumbledupon it 😉 I will come back once again since I book-marked it. Money and freedom is the best way to change, may you be rich and continue to guide others.

  12. Next time I read a blog, Hopefully it won’t disappoint me just as much as this one. After all, Yes, it was my choice to read, nonetheless I actually believed you would have something interesting to say. All I hear is a bunch of whining about something that you could fix if you were not too busy looking for attention.

  13. Nice post. I learn something new and challenging on websites I stumbleupon every day. It will always be exciting to read content from other authors and use something from other web sites.

  14. Hi there, There’s no doubt that your web site could be having internet browser compatibility issues. When I look at your site in Safari, it looks fine however when opening in IE, it has some overlapping issues. I merely wanted to provide you with a quick heads up! Besides that, wonderful site.

  15. I absolutely love your blog.. Excellent colors & theme. Did you build this website yourself? Please reply back as I’m looking to create my own personal site and want to find out where you got this from or what the theme is called. Many thanks.

  16. Greetings! Very helpful advice in this particular post! It is the little changes that will make the largest changes. Many thanks for sharing!

  17. I was more than happy to find this website. I need to to thank you for ones time for this particularly fantastic read!! I definitely savored every little bit of it and I have you saved to fav to look at new things on your website.

  18. I blog quite often and I really thank you for your content. This article has really peaked my interest. I am going to take a note of your website and keep checking for new details about once a week. I subscribed to your RSS feed as well.

  19. Having read this I thought it was rather enlightening. I appreciate you finding the time and energy to put this informative article together. I once again find myself spending a lot of time both reading and posting comments. But so what, it was still worth it!

  20. An outstanding share! I have just forwarded this onto a coworker who had been doing a little homework on this. And he actually ordered me dinner because I discovered it for him… lol. So let me reword this…. Thank YOU for the meal!! But yeah, thanx for spending time to discuss this issue here on your web site.

  21. Right here is the right site for anyone who wishes to understand this topic. You know so much its almost tough to argue with you (not that I really will need to…HaHa). You certainly put a brand new spin on a topic that’s been written about for ages. Wonderful stuff, just excellent.

  22. An impressive share! I’ve just forwarded this onto a friend who has been doing a little research on this. And he actually bought me breakfast due to the fact that I discovered it for him… lol. So allow me to reword this…. Thank YOU for the meal!! But yeah, thanks for spending time to talk about this matter here on your site.

  23. I’m impressed, I have to admit. Rarely do I encounter a blog that’s both equally educative and engaging, and without a doubt, you have hit the nail on the head. The issue is an issue that not enough people are speaking intelligently about. I’m very happy that I came across this in my hunt for something concerning this.

  24. I’m excited to find this great site. I wanted to thank you for ones time for this particularly fantastic read!! I definitely loved every little bit of it and I have you saved as a favorite to check out new information on your website.

  25. Oh my goodness! Amazing article dude! Thank you so much, However I am encountering problems with your RSS. I don’t know the reason why I can’t join it. Is there anybody else having similar RSS issues? Anyone who knows the solution can you kindly respond? Thanks!

  26. Hey! Do you know if they make any plugins to assist with Search Engine
    Optimization? I’m trying to get my site to rank for some
    targeted keywords but I’m not seeing very good results.
    If you know of any please share. Thank you! I saw similar text here: Eco product

  27. Hi! I could have sworn I’ve been to this website before but after looking at some of the posts I realized it’s new to me. Nonetheless, I’m definitely delighted I came across it and I’ll be bookmarking it and checking back often!

  28. Hello, There’s no doubt that your blog could possibly be having browser compatibility issues. When I take a look at your blog in Safari, it looks fine however when opening in IE, it has some overlapping issues. I merely wanted to provide you with a quick heads up! Besides that, great website.

  29. Oh my goodness! Impressive article dude! Many thanks, However I am having problems with your RSS. I don’t know why I can’t subscribe to it. Is there anyone else getting identical RSS issues? Anyone who knows the answer will you kindly respond? Thanx!

  30. I blog often and I really appreciate your content. Your article has really peaked my interest. I will take a note of your site and keep checking for new information about once a week. I opted in for your Feed as well.

  31. Good post. I learn something new and challenging on sites I stumbleupon everyday. It will always be helpful to read articles from other authors and practice a little something from other sites.

  32. A motivating discussion is worth comment. I do believe that you should publish more on this subject matter, it might not be a taboo matter but usually people don’t speak about such subjects. To the next! Cheers.

  33. I was more than happy to discover this website. I wanted to thank you for your time just for this wonderful read!! I definitely appreciated every little bit of it and I have you book marked to look at new stuff in your website.

  34. I seriously love your blog.. Excellent colors & theme. Did you build this web site yourself? Please reply back as I’m attempting to create my own blog and would love to find out where you got this from or what the theme is called. Thank you.

  35. sugar defender Adding Sugar Defender to
    my everyday routine was among the best decisions I’ve created my wellness.
    I take care about what I eat, yet this supplement adds an added layer of support.
    I feel a lot more steady throughout the day, and my desires have actually lowered dramatically.
    It’s nice to have something so basic that makes such a huge difference!

  36. You have made some really good points there. I checked on the internet for additional information about the issue and found most individuals will go along with your views on this web site.

  37. Hi, I do think this is a great website. I stumbledupon it 😉 I’m going to come back once again since I book marked it. Money and freedom is the greatest way to change, may you be rich and continue to help others.

  38. An intriguing discussion is worth comment. I think that you ought to publish more on this subject matter, it might not be a taboo subject but generally folks don’t discuss these subjects. To the next! Cheers!

  39. I truly love your website.. Pleasant colors & theme. Did you build this site yourself? Please reply back as I’m trying to create my own personal blog and want to find out where you got this from or what the theme is named. Thanks!

  40. An intriguing discussion is worth comment. There’s no doubt that that you ought to write more on this issue, it might not be a taboo matter but generally people don’t talk about these subjects. To the next! Many thanks.

  41. Everything is very open with a really clear description of the issues. It was really informative. Your website is useful. Thank you for sharing!

  42. An impressive share! I’ve just forwarded this onto a co-worker who was doing a little research on this. And he actually ordered me dinner because I stumbled upon it for him… lol. So let me reword this…. Thanks for the meal!! But yeah, thanx for spending the time to talk about this issue here on your web page.

  43. After exploring a few of the articles on your web site, I truly like your way of writing a blog. I book marked it to my bookmark webpage list and will be checking back soon. Please check out my website as well and tell me what you think.

  44. Spot on with this write-up, I actually feel this amazing site needs much more attention. I’ll probably be returning to read more, thanks for the advice.

  45. Can I simply say what a comfort to find someone that truly understands what they are talking about on the internet. You definitely know how to bring an issue to light and make it important. A lot more people ought to read this and understand this side of the story. It’s surprising you aren’t more popular since you certainly possess the gift.

  46. You’re so interesting! I don’t believe I have read something like this before. So wonderful to discover somebody with a few original thoughts on this topic. Really.. many thanks for starting this up. This website is one thing that’s needed on the web, someone with a bit of originality.

  47. The next time I read a blog, Hopefully it won’t fail me as much as this particular one. I mean, I know it was my choice to read through, but I truly believed you’d have something useful to say. All I hear is a bunch of moaning about something that you can fix if you were not too busy searching for attention.

  48. I blog often and I truly thank you for your content. The article has truly peaked my interest. I will take a note of your website and keep checking for new information about once a week. I subscribed to your Feed as well.

  49. I’m impressed, I have to admit. Rarely do I come across a blog that’s both educative and engaging, and let me tell you, you have hit the nail on the head. The problem is something which too few men and women are speaking intelligently about. I’m very happy I came across this in my search for something relating to this.

  50. This is a very good tip especially to those fresh to the blogosphere. Brief but very precise info… Many thanks for sharing this one. A must read post!

  51. You’re so cool! I do not think I’ve read something like that before. So great to discover another person with unique thoughts on this topic. Really.. thanks for starting this up. This web site is one thing that is required on the internet, someone with a little originality.

  52. Sugar defender Discovering Sugar Defender has been a game-changer for
    me, as I have actually always been vigilant about managing my
    blood glucose degrees. With this supplement,
    I feel empowered to take charge of my wellness, and my newest
    medical examinations have actually shown a considerable turnaround.
    Having a trustworthy ally in my edge supplies me with a complacency
    and confidence, and I’m deeply thankful for the profound
    difference Sugar Protector has actually made in my health.

  53. I have to thank you for the efforts you’ve put in writing this website. I am hoping to view the same high-grade blog posts from you in the future as well. In truth, your creative writing abilities has motivated me to get my own blog now 😉

  54. When I initially commented I appear to have clicked the -Notify me when new comments are added- checkbox and now every time a comment is added I get 4 emails with the same comment. There has to be a means you can remove me from that service? Kudos.

  55. May I simply say what a comfort to find an individual who truly knows what they’re talking about over the internet. You certainly realize how to bring a problem to light and make it important. A lot more people should look at this and understand this side of your story. I was surprised you are not more popular because you certainly possess the gift.

  56. I would like to thank you for the efforts you have put in penning this blog. I really hope to see the same high-grade content by you in the future as well. In truth, your creative writing abilities has motivated me to get my own website now 😉

  57. An impressive share! I have just forwarded this onto a co-worker who was doing a little homework on this. And he in fact bought me dinner because I found it for him… lol. So let me reword this…. Thanks for the meal!! But yeah, thanks for spending time to discuss this subject here on your blog.

  58. I must thank you for the efforts you’ve put in penning this website. I am hoping to check out the same high-grade blog posts from you later on as well. In fact, your creative writing abilities has encouraged me to get my own, personal website now 😉

  59. I seriously love your website.. Pleasant colors & theme. Did you make this website yourself? Please reply back as I’m wanting to create my very own blog and would love to know where you got this from or what the theme is called. Thanks.

  60. I’m extremely pleased to find this web site. I want to to thank you for your time just for this wonderful read!! I definitely loved every little bit of it and I have you saved as a favorite to see new things on your website.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source