बाली द्वीप के पडंग्टेगल गांव में स्थित ‘उबुद-वानर-वन’ लगभग 12 हैक्टेयर क्षेत्र में स्थित है जिसमें लाल मुंह, अपेक्षाकृत छोटी काया एवं सफेद रंग की बड़ी मूंछो वाले लगभग 700 बंदर निवास करते हैं। यह संसार के प्राचीनतम वनों में से एक है तथा इस छोटे से वन में वृक्षों की 186 प्रजातियां चिह्ति की गई हैं। इस वन में तीन प्रमुख मंदिर स्थित हैं-
(1.) पुरा दालेम अगुंग पडंग्टेगल, यह मंदिर मृत्यु के महान देवता अर्थात् शिव को समर्पित है। (बाली के हिन्दू भगवान शिव को मृत्यु का महान देवता मानते हैं।)
(2.) पुरा बेजी, यह मंदिर पाप नाशिनी देवी गंगा को समर्पित है।
(3.) पुरा प्रजापति, यह मंदिर जन्म देने वाले देवता ब्रह्मा को समर्पित है।
ये मंदिर लगभग 1000 साल पुराने हैं। स्वाभाविक है कि इस क्षेत्र में देवी-देवताओं की बहुत सी मूर्तियां पाई जाएं किंतु इन मंदिरों के निर्माण से पहले भी इस क्षेत्र में सैंकड़ों मूर्तियां बनाई गईं जो आज भी देखी जा सकती हैं। उबुद वानर वन परिसर में विभिन्न प्रकार के मनुष्यों, पशु-पक्षियों तथा जलचरों की अति प्राचीन प्रस्तर-प्रतिमाएं उपलब्ध हैं। अनेक मनुष्याकार प्रतिमाओं के चेहरे, मनुष्यों की बजाय, बंदरों, चिम्पांजियों एवं औरंगुटानों जैसे दिखाई देते हैं। इन्हें देखकर ऐसा आभास होता है कि इस द्वीप पर कभी इस प्रकार के चेहरों वाले मनुष्य निवास करते थे। इनके शरीर पर नाम मात्र के वस्त्र तथा सिर पर वनवासियों जैसी पगड़ियां हैं। इनके चेहरे फूले हुए हैं जिन पर बनी गोल एवं मोटी नाक दूर से ध्यान आकर्षित करती है। होंठों के भीतर अथवा बाहर निकले हुए बड़े-बड़े दांत इन्हें आधुनिक मनुष्यों से अलग प्रदर्शित करते हैं। इनी भुजाएं मांसल, जंघाएं पुष्ट तथा चेहरों पर विचित्र भाव दिखाई देते हैं। बहुत सी नर-नारी प्रतिमाओं की आंखें गेंद की तरह बिल्कुल गोल हैं।
यहाँ यह समझा जाना आवश्यक है कि भारत में भी श्रीराम कथा के काल में दक्षिण भारत के वनों में बहुत सी ऐसी मानव बस्तियां थीं जिनके चेहरे वानरों, रीछों एवं भालुओं से मिलते थे। लम्बे दांतों वाले मानवों की बस्तियां भी तब अस्तित्व में रहे होने का अनुमान है जिन्हें राक्षस कहा जाता है। पर्याप्त संभव है कि उबुद वानर वन परिसर की विचित्र प्रतिमाएं इसी काल के मानवों से सम्बन्धित हों।
उबुद वानर वन परिसर में स्थित प्रतिमाओं की बनावट, उनका अंग वैशिष्ट्य तथा प्रतिमाओं की वर्तमान अवस्था को देखकर कहा जा सकता है कि इन प्रतिमाओं का निर्माण किसी एक सभ्यता द्वारा नहीं किया जाकर, कम से कम दो सभ्यताओं द्वारा किया गया है। इन प्रतिमाओं का कई प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है-
(अ.) सभ्यताओं के आधार पर वर्गीकरण
1. प्राचीन सभ्यता की प्रतिमाएं- इनका निर्माण आधुनिक ”होमो सेपियन-सेपियन” प्रजाति के ”क्रोमैग्नन मानव” के समय में ही हुआ है किंतु उस युग में इन द्वीपों पर निवास करने वाला मानव आज के मानव जैसा चेहरा विकसित नहीं कर पाया था क्योंकि इन प्रतिमाओं के चेहरे मानवों की बजाय बंदर, चिम्पैंजी तथा ओरंगुटान से अधिक मिलते हैं। पर्याप्त संभव है कि ये प्रतिमाएं उन आदि मानवों को देखकर किन्हीं परग्रही जीवों ने बनाई हों! गोल आंखों वाली तथा टेलिस्कोप जैसी आंखों वाली प्रतिमाएं इसी काल की हैं।
2. आधुनिक सभ्यता की प्रतिमाएं – इनका निर्माण वर्तमान मानव सभ्यता के क्रोमैग्नन मानव द्वारा बहुत बाद के युगों में अर्थात् आज से 1100-1200 वर्ष पहले किया गया है, जब हिन्दू राजकुमार इन द्वीपों पर अपने राज्य स्थापित कर चुके थे। इनमें मनुष्यों के चेहरों वाली एवं पशुओं के चेहरों वाली प्रतिमाएं मिलती हैं। इन मूर्तियों को लम्बी एवं पतली आंखों से पहचाना जा सकता है।
(ब.) आंखों के आधार पर वर्गीकरण
1. गोल आंखों वाली प्रतिमाएं जिन पर पलकें नहीं हैं- ये प्रतिमाएं किसी अति प्राचीन सभ्यता की प्रतीत होती हैं। इस वर्ग की प्रतिमाओं में ओरंगुटान जैसे मनुष्यों, राक्षसों एवं बंदरों की प्रतिमाएं हैं तथा इन सब के चेहरे एवं नथुने फूले हुए हैं।
2. टेलिस्कोप जैसी आंखों वाली प्रतिमाएं, जिन पर पलकें नहीं हैं – ऐसी केवल एक ही प्रतिमा देखने को मिली, यह किसी परग्रही देवता की जान पड़ती है। यह प्रतिमा क्रोमैग्नन मानव द्वारा बनाई गई नहीं है। इसे किसी परग्रही जीव द्वारा ही बनाया गया होगा।
3. आधुनिक मनुष्यों जैसी लम्बी आंखों वाली प्रतिमाएं जिन पर पलकें बनी हुई हैं – इस वर्ग में मनुष्यों के चेहरों वाली एवं पशुओं के चेहरों वाली, दोनों प्रकार की प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं।
(स.) मुखाकृति के आधार पर वर्गीकरण
1. राक्षसी चेहरों वाली प्रतिमाएं
2. मनुष्यों के मुख वाली प्रतिमाएं
3. पशुओं के मुख वाली प्रतिमाएं
प्राचीन सभ्यता एवं आधुनिक सभ्यता के लोगों द्वारा इन तीनों ही प्रकार की मुखाकृतियों वाली प्रतिमाओं का निर्माण किया गया, जिन्हें स्पष्ट रूप से अलग-अलग पहचाना जा सकता है।
(द.) जीभ के आधार पर वर्गीकरण
1. लम्बी जीभ वाली प्रतिमाएं – इस प्रकार की प्रतिमाओं में अधिकांश प्रतिमाएं गोल आंखों वाली तथा अत्यंत प्राचीन हैं। ये प्रतिमाएं प्राकृतिक शक्तियों पर नियंत्रण रखने वाले देवी-देवताओं यथा अग्नि देव, वायु देव आदि की प्रतीत होती हैं। लम्बी जीभ वाली कुछ प्रतिमाओं की आंखें लम्बी एवं पतली हैं जो आधुनिक सभ्यता के मानवों द्वारा बनाई गई हैं तथा प्राचीन प्रतिमाओं का आधुनिक संस्करण हैं।
2. सामान्य जीभ वाली प्रतिमाएं – इनमें से कुछ प्रतिमाएं प्राचीन सभ्यता के लोगों द्वारा बनाई गई प्रतीत होती हैं तथा कुछ, प्राचीन प्रतिमाओं का नवीन संस्करण जान पड़ती हैं जिनका निर्माण आधुनिक सभ्यता के मानवों द्वारा किया गया है।
प्रतिमाओं के इस संक्षिप्त वर्गीकरण के बाद उबुद वानर वन की कुछ प्रमुख प्रतिमाओं का परिचय दिया जाना उचित होगा।
टेलिस्कोपिक आंखों वाले देवता की प्रतिमा
एक देव-प्रतिमा का मुंह सामने से पूरी तरह चपटा है जिस पर आखें इस तरह बनाई गई हैं मानो वहाँ दूरबीन की नलियां रखी हुई हों। दोनों आंखों के बीच में एक मणि जैसी रचना है। इस मूर्ति में दिखाई दे रहा देवता अपने पैरों पर उकडूं बैठा है तथा घुटनों पर हाथ रखकर उठ खड़े होने अथवा उड़ने की तैयारी की मुद्रा में है। इस तरह की आखों वाली और कोई प्रतिमा इस परिसर में नहीं दिखी। ऐसा लगता है कि इस प्रतिमा के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि यहां कभी दूसरे ग्रह के लोग आए थे जो देखने के लिए टेलिस्कोप जैसे यंत्रों का प्रयोग करते थे। इसके वक्ष पर आधुनिक क्रॉस बेल्ट जैसा कवच धारण किया हुआ है। सिर पर गोल टोप है जिससे खोपड़ी पूरी तरह ढंक गई है। यह मूर्ति एक हजार साल अथवा उससे अधिक प्राचीन प्रतीत होती है। इसकी ठोड़ी और नाक काफी घिस गई है।
हंसती हुई नागकन्या
इसी परिसर में एक नागकन्या का अद्भुत अंकन किया गया है। यह नागकन्या आंखें बंद किये हुए बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में बैठी है जिसके लम्बे और वलयाकार केश आगे वक्ष तक लटके हुए हैं। इसके पेट पर बने हुए शल्कों से ज्ञात होता है कि यह मानवी नहीं है, अपितु नागकन्या है। इस नागकन्या की देहयष्टि, अन्य प्रतिमाओं के विपरीत अर्थात् कृशकाय है। इसके दोनों हाथों और दोनों पैरों में चार-चार अंगुलियों का अंकन किया गया है। किसी भी हाथ या पैर में अंगूठा नहीं बनाया गया है।
विचित्र आंखों वाली एक और प्रतिमा
उबुद परिसर की बावड़ी के पास ही एक मनुष्य की प्रतिमा लगी है जिसकी आंखें पूरी तरह गोल हैं किंतु ये आंखें अन्य गोल आंखों वाली प्रतिमाओं से बिल्कुल भिन्न हैं। दोनों आंखें पूरी तरह चेहरे से उभर कर बाहर आई हुई हैं। पलकें नहीं होने से पता नहीं लगता कि ये आंखें खुली हैं या बंद। प्रतिमा के कान बहुत विशाल हैं। इस प्रतिमा ने अपने दोनों हाथों की मुट्ठियां बंद करके अपने वक्ष के पास बगल में ही रखी हुई हैं। मोटे-मोटे दांत स्पष्ट दिखाई देते हैं जिनमें से ऊपर वाली पंक्ति में से दोनों तरफ का एक-एक दांत बाहर आया हुआ है। इस प्रतिमा के मुख्य पत्थर में ही सिर पर छोटी सी पगड़ी तथा टांगों पर छोटी सी लंगोटी उत्कीर्ण की गई है।
बावड़ी में गणेश एवं गंगा
उबुद वानर वन परिसर में एक चौकोर बावड़ी है, जो अधिक गहरी नहीं है। इसकी एक दीवार पर भगवान गणेश की सैंकड़ों साल पुरानी, पत्थर की प्रतिमा लगी हुई है। इसके पास ही एक देवी प्रतिमा भी है, जो स्पष्ट पहचानने में नहीं आती किंतु यह देवी गंगा की प्रतिमा है जिसके हाथ में लिए गए पत्थर के कलश से जल की अविरल धारा आज भी बह रही है। इस जल को गंगाजल के समान ही पवित्र माना जाता है। इस बावड़ी एवं प्रतिमाओं का निर्माण भारतीय हिन्दू राजकुमारों के बाली द्वीप पर पहुंच जाने के बाद हुआ है।
गीदड़ मुखी मनुष्य का आकाशीय प्राणियों से वार्तालाप
एक मनुष्याकार प्रतिमा में एक ऐसे मनुष्य का अंकन किया गया है जिसका मुख गीदड़ अथवा कुत्ते की तरह है तथा उसने अपना मुंह पूरी तरह खोलकर आकाश की तरफ उठा रखा है। ऐसा लगता है कि वह आकाश में स्थित प्राणियों को कोई संदेश दे रहा है। उसने एक हाथ में एक यंत्र उठा रखा है तथा दूसरा हाथ इस प्रकार की मुद्रा में है मानो वह अपनी अंगुलियों से इस यंत्र को संचालित करेगा। इस प्रतिमा की आंखें लम्बी और पतली हैं जिनसे स्पष्ट है कि यह पश्चवर्ती सभ्यता के लोगों द्वारा निर्मित है तथा संभव है कि किसी प्राचीन सभ्यता द्वारा बनाई गई प्रतिमा की अनुकृति है जिसमें गोल आंखों के स्थान पर लम्बी एवं पतली आंखों का अंकन किया गया है।
गीदड़ के मुख वाली स्त्री प्रतिमा
एक अन्य प्रतिमा में एक ऐसी बैठी हुई स्त्री का अंकन किया गया है जिसका मुख मादा-गीदड़ जैसा है। इसका मुख आकाश की तरफ होते हुए भी पहली वाली प्रतिमा की अपेक्षा नीचा है। इसके हाथों की अंगुलियां अपेक्षाकृत अधिक लम्बी एवं पतली हैं। इसके गले में सुंदर हार है जिस पर जटिल अलंकरण किया गया है। हाथों में कंगन, पैरों में पायजेब एवं कंधों पर अंगद भी देखे जा सकते हैं। अंगद का अंकन भुजाओं पर किया जाता है किंतु इस प्रतिमा में कंधों पर दिखाई दे रहा है। इसने अपना दायां हाथ दायें घुटने पर एवं बायां हाथ बायें घुटने पर रखा हुआ है। इसके अधो भाग पर किसी वस्त्र का अंकन किया गया है जबकि वक्ष पूरी तरह खुला हुआ है। स्तन सामान्य आकार के एवं आकर्षक बनाए गए हैं। इसकी आंखें भी लम्बी एवं पतली हैं, चेहरा एवं होठ पतले हैं। इस अंकन के आधार पर कहा जा सकता है कि इसे आधुनिक सभ्यता के लोगों द्वारा निर्मित किया गया है।
पथ्य तैयार करते हुए मनुष्य की प्रतिमा
एक वटवृक्ष के नीचे स्थित चबूतरे पर एक भरी हुई देहयष्टि वाले व्यक्ति की प्रतिमा है जो पालथी लगाए हुए प्रसन्न मुद्रा में बैठा है। उसके सामने एक शिला रखी हुई है जिस पर एक गोल पत्थर रखा हुआ है।
यह एक वैद्य की प्रतिमा प्रतीत होती है जो किसी जड़ी-बूटी से दवा बनाने की तैयारी में है। इस वैद्य की आकृति मनुष्य से कम, औरंगुटान से अधिक मिलती है। ऐसा लगता है कि यह किसी अन्य ग्रह से आया हुआ प्राणी है जिसने बाली-वासियों को चिकित्सा शास्त्र का ज्ञान दिया है। इस प्रतिमा में एक बात और ध्यान देने की है कि यह मनुष्य आंखें बंद किये हुए है और इसके दोनों हाथ प्रार्थना के भाव से जुड़े हुए हैं जिससे प्रतीत होता है कि यह दवा तैयार करने से पहले किसी देवता अथवा दिव्य शक्ति का आह्वान कर रहा है।
लम्बी जीभ वाला विचित्र मनुष्य
इसी परिसर में लगभग पांच फुट की एक ऐसी मनुष्य प्रतिमा रखी हुई है जिसकी जीभ कई फुट लम्बी है तथा पेट तक लटकी हुई है। इस जीभ पर एवं उसके आसपास पानी की लहरें बनी हुई हैं जिससे अनुमान होता है कि यह जल का देवता है। इसकी आंखें गोल हैं तथा लगभग चेहरे से बाहर आई हुई हैं। इस मनुष्य के पैर बहुत छोटे हैं। यह प्राचीन सभ्यता के लोगों द्वारा निर्मित जान पड़ती है।
पैरों में नक्षत्र वाला विचित्र मनुष्य
एक मनुष्य ने अपने दोनों हाथों में कोई गोला ले रखा है तथा एक पैर से वह उस गोले पर आघात करने की मुद्रा में है। मनुष्य के दांत बाहर दिख रहे हैं तथा चेहरे पर प्रसन्नता मिश्रित विचित्र भाव हैं जो किसी भी तरह सौम्य नहीं कहे जा सकते।
इस मनुष्य के हाथ और पैरों के अग्र भाग विशेष ध्यान देने योग्य हैं। इन पर अंगुलियों की जगह विशिष्ट प्रकार का अलंकरण है। मानो उसने किसी धातु ऐ बने ग्लव्ज (दस्ताने) पहन रखे हैं। गोले पर टिका हुआ पैर मछली जैसा दिखता है तथा हाथ किसी पक्षी के मजबूत पंजे की तरह दिखाई देता है। गोले पर छिद्रनुमा केन्द्र का अंकन किया गया है तथा इस छिद्र से किरणें निकल रही हैं जिससे आभास होता है कि यह गोला कोई नक्षत्र है। इस मनुष्य की आंखें पूरी तरह गोल हैं जिन पर मोटी-मोटी भौंहों का अंकन किया गया है। गालों और ठोढ़ी पर हल्की दाढ़ी है तथा सिर पर पतली सी पगड़ी है।
पशु चर्म लपेटने वाली स्थूल स्त्री
निकट ही एक स्थूलकाय स्त्री की प्रतिमा है जिसने कमर पर मृगछाला की तरह किसी पशु की चर्म लपेट रखी है तथा उसकी नाभि पर एक नाग बंधा हुआ है। यह स्त्री घुटनों के बल बैठी हुई है तथा इसकी जीभ नाभि तक लटकी हुई है। वक्ष पर दिखाये गए स्तन सामान्य आकार के किंतु बेडौल हैं। सिर के बाल खुले हुए हैं।
इसने बायां हाथ अपने सिर पर रखा हुआ है जिसके कारण बाईं बगल खुली हुई दिखाई देती है तथा कंधे पर पड़े हुए एक सांप का मुख इस बगल में झांक रहा है। स्त्री का दायां हाथ दिखाई नहीं देता किंतु दायें हाथ की अंगुलियां दायें स्तन पर रखी हुई हैं। इसकी आंखें काफी बड़ी और गोल हैं जो एक गोलक में रखी हुई हैं। होठ काफी मोटे हैं तथा चेहरे की भाव भंगिमा अपेक्षाकृत शांत है। यह मूर्ति भी कई शताब्दियों पुरानी प्रतीत होती है। इसकी लम्बी जीभ यह संकेत करती है कि यह किसी प्राकृतिक शक्ति पर नियंत्रण रखने वाली देवी की प्रतिमा है। अंकन के आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि यह तूफान की देवी है।
अग्निदेव एवं उनकी पत्नी
एक चबूतरे के कौने पर एक स्त्री-पुरुष की युगल प्रतिमा बनी हुई है जिसमें उनके सिर एवं मुख दिखाई दे रहे हैं। यह प्रतिमा किसी और स्थान से लाकर इस चबूतरे पर स्थापित की गई है। दोनों चेहरों पर बनी आंखें पतली एवं सुंदर हैं। यह प्रतिमा काफी बाद के काल की है तथा यहां रखी अन्य प्रतिमाओं की शैली से मेल नहीं खाती है। पुरुष की आंखें स्पष्ट रूप से खुली हुई हैं जबकि स्त्री की आंखें बंद हैं। दोनों की जिह्वाएं मुख से बाहर निकलकर लटकी हुई हैं और आपस में मिल रही हैं। पुरुष की जिह्वा अधिक चौड़ी, अधिक बड़ी है। इस जिह्वा पर अग्नि की लम्बी लपटों का अंकन किया गया है। स्त्री की जिह्वा पर अपेक्षाकृत छोटी ज्वालाओं का अंकन है। ये संभवतः अग्निदेव तथा उनकी पत्नी हैं। दोनों मुखों के होंठ, आंख, नाक, कान, दांत सभी कुछ आज के मनुष्य के समान बहुत सुंदर बनाए गए हैं। दोनों के ही चेहरों के भाव सौम्य हैं। दोनों चेहरे मुस्कुरा रहे हैं जिसके कारण इनकी दंतपक्तियां स्पष्ट और लुभावनी बन पड़ी हैं।
दोनों के कानों में आभूषणों का अलंकरण है। दोनों के गले में बारीक एवं मोटे मनकों की कई-कई मालाएं हैं जो वक्षों तक लटक रही हैं। स्त्री के केश वेणी के रूप में बांधे गए हैं जिन पर अच्छा अलंकरण किया गया है। स्त्री के बाएं कान का कर्णफूल बहुत सुंदर है तथा सूर्य की तरह गोल है। पुरुष की भौहें ऊपर उठकर सिर के बालों से मिल गई हैं तथा सिर के केश अग्नि की ज्वाला की तरह ऊर्ध्वगामी हैं। स्त्री के माथे पर सुंदर मुकुट बांधा गया है। मुकुट का अंकन एक मेखला के रूप में किया गया है जिसके बीच में एक कलात्मक पैण्डल बांधा हुआ है। स्त्री के बालों का जूड़ा कलात्मक रूप देकर बांधा गया है। यह प्रतिमा भी भारतीय राजकुमारों के बाली द्वीप पर पहुंचन के बाद की प्रतीत होती है क्योंकि भारतीय पुराणों में वर्णित अग्निदेव का इस प्रतिमा पर पूरा प्रभाव दृष्टिगत होता है।
बड़े स्तनों वाली स्त्री प्रतिमा
राक्षस प्रतिमा के निकट ही एक स्त्री प्रतिमा रखी हुई है जिसका केवल धड़ एवं ऊपरी भाग दिखाई देता है। इस स्त्री प्रतिमा में स्थूलकाय स्तन बने हुए हैं। स्तनों को आगे की ओर लम्बा बनाने के लिए उनमें वलय बनाए गए हैं। इन स्तनों की तुलना आधुनिक काल की बकरियों के स्तनों से की जा सकती है। इस स्त्री की मुखमुद्रा में प्रसन्न्ता के स्थान पर पीड़ा का भाव अधिक है। ऐसे स्तनों वाली और भी प्रतिमाएं बाली द्वीप पर देखने को मिलीं। बाली के कुछ प्राचीन चित्रों में भी ऐसे स्तनों वाली स्त्रियां दिखाई गई हैं।
लम्बी जीभ और सुंदर चेहरे वाली स्त्री
इस परिसर में रखी एक स्त्री प्रतिमा में, वर्तमान मानव सभ्यता में दिखाई देने वाली नारी का अंकन किया गया है जिसकी गर्दन के दोनों ओर से गुंथी हुई चोटियां सामने आ रही हैं। इन चोटियों को सजाने के लिए बड़े मनकों का प्रयोग किया गया है। सिर के पीछे के केश खुले हुए हैं और कंधों के दूसरी तरफ दिखाई दे रहे हैं। स्त्री का चेहरा प्रसन्नता से दमक रहा है, दांतों की सुंदर पंक्तियां दूर से दिखाई देती हैं, आंखें पतली, नुकली एवं आनुपतिक हैं और पूरी तरह खुली हुई हैं। स्त्री के वक्ष पर साड़ी जैसे किसी वस्त्र का अंकन किया गया है। चेहरे पर सौम्य भाव हैं तथा पूरा चेहरा प्रसन्नता से दमकता हुआ प्रतीत होता है। यह प्रतिमा, गोल आंखों वाली प्रतिमा से कई सौ साल बाद की प्रतीत होती है। इसके चेहरे के भाव आज की स्त्रियों से मिलते जुलते हैं किंतु बाली की स्त्रियों से नहीं, भारतीय देवियों के चेहरों से।
दो दांतों वाली राक्षस प्रतिमा
एक स्थूलाकाय पुरुष प्रतिमा के मुंह से दोनों तरफ एक-एक दांत बाहर निकला हुआ है। चेहरे पर दाढ़ी है तथा मुख के भाव अपेक्षाकृत क्रूर हैं। यह बैठी हुई मुद्रा में है जिसने अपने दोनों पैर आगे की ओर सिकोड़ कर हाथों की तरह मिला लिए हैं। इसकी बाईं भुजा कंधे के ऊपरी हिस्से से निकलती हुई है जबकि दाईं भुजा सामान्य से कुछ नीचे से निकल रही है। इस राक्षस ने अधो-वस्त्र धारण कर रखा है तथा ऊपरी हिस्सा नग्न है। आंखों का गोलक पूरी तरह गोल बनाया गया है जिसके ऊपरी आधे हिस्से को पलकों से ढंक दिया गया है तथा नीचे का आधा हिस्सा खुला हुआ है जिसमें से आखों का रैटीना एवं कोर्निया वाला भाग इस तरह बनाया गया है कि दोनों के रंग अलग दिखाई देते हैं मानो यह मूर्ति न होकर चित्र हो। इस तरह की आँखों वाली यह अकेली प्रतिमा यहां देखेने को मिली। इस राक्षस का बायां हाथ उसके बायें घुटने पर है तथा दायां हाथ दायीं बगल के पास इस प्रकार रखा हुआ है मानो अभय मुद्रा में रखना चाहता हो किंतु हाथों की अंगुलियां आगे की ओर मुड़ी हुई हैं।
गांधार शैली के वस्त्रों वाली प्रतिमाएं
अबुद वानर वन परिसर में कुछ प्रतिमाओं के वस्त्र गांधार शैली की तरह लहरदार बनाए गए हैं। इन प्रतिमाओं में मनुष्य शरीर भरे हुए तथा आधुनिक मनुष्यों की आकृतियों से मिलते हैं। सहज ही समझा जा सकता है कि इन प्रतिमाओं पर बौद्धों का प्रभाव है। ऐसी ही एक स्त्री प्रतिमा के सिर पर बंदर का सुंदर अंकन किया गया है। स्त्री के स्तन अपेक्षाकृत छोटे बनाए गए हैं जो कि वस्त्र से ढंके हुए हैं। स्त्री की लम्बी एवं पतली आंखें बंद हैं, चेहरे का भाव सौम्य नहीं है। यह बौद्ध भिक्षुणी जान पड़ती है।
कौन थे औरंगुटान जैसे मानवों की प्रतिमाओं को बनाने वाले
जावा द्वीप पर मानव की उपस्थिति लगभग 10 लाख वर्ष पुरानी है। यहाँ से ”होमो इरैक्टस” (अर्थात् सीधे खड़े होने में दक्ष) मानव प्रजाति के 10 लाख वर्ष पुराने जीवाश्म प्राप्त किये गये हैं। इसे ”पिथेकेंथ्रोपस इरैक्टस” (अर्थात् सीधा खड़ा होने वाला बंदर जैसा मानव) भी कहते हैं। बड़े मस्तिष्क वाला हमारा यह पूर्वज काफी घुमक्कड़ था। वह प्रथम प्राचीन मानव था जो अफ्रीकी महाद्वीप से बाहर निकलकर पूरे विश्व में अपनी जाति का प्रसार करने लगा। यह आज के मनुष्य और प्राचीन बंदर के मध्य की अंतिम कड़ी थी। इस मानव प्रजाति में से ही आज से लगभग डेढ़ लाख साल पहले ”होमो सैपियन सैपियन” प्रजाति विकसित हुई। आज से लगभग 40 हजार साल पहले ‘होमो सैपियन सैपियन” का आधुनिक संस्करण अर्थात् ”क्रोमैग्नन मैन” प्रकट हुआ।
अबुद वानर वन परिसर में स्थित प्राचीनतम प्रतिमाएं उस काल की हैं जब क्रौमैग्नन का चेहरा पूर्णतः आज के मानव जैसा नहीं बन पाया था। एक संभावना यह भी है कि इन प्रतिमाओं का निर्माण उस काल में धरती पर आने वाले परग्रही जीवों द्वारा किया गया हो क्योंकि पर्याप्त संभव है कि उस काल का मानव, मूर्ति निर्माण करने में असक्षम हो किंतु उन्हें देखकर परग्रही जीवों ने उनकी प्रतिमाएं इस वन प्रांतर में बनाई हों ताकि भविष्य का मानव इस सभ्यता के बारे में जान सके। इन्हीं मूर्तियों में एक मूर्ति उन्होंने अपनी भी बनाई जिसकी आंखों पर दूरबीन की नलियां लगी हुई हैं। इस मूर्ति का चेहरा न तो औरंगुटान जैसी शक्लों वाले मोटे आदमियों से मिलता है, न राक्षसों की शक्लों वाले आदमियों से मिलता है न वहाँ मौजूद परवर्ती काल की मूर्तियों के देवताओं से मिलता है। बाली एवं जावा द्वीप में खड़े विशाल मंदिर समूह भी इन द्वीपों पर परग्रही जीवों के आने का साक्ष्य देते हैं तथा इन द्वीपों की दंत कथाएं भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि इन द्वीपों पर कभी राक्षस राजा राज्य करते थे जो एक रात में 1000 प्रतिमाएं बनाने में सक्षम थे।
गाय-बछड़े की अद्भुत वात्सल्य प्रतिमा
जहाँ से हम उबुद वानर वन में प्रवेश करते हैं, वहीं लगभग 100 मीटर की दूरी पर चलते ही दीवार पर गाय-बछड़े की अद्भुत प्रतिमा रखी हुई दिखाई देती है। इस प्रतिमा में गाय अपने बछड़े को अपने वक्ष से चिपका कर मनुष्य की तरह बैठी हुई है। उसका एक खुर बछड़े की गर्दन पर इस तरह रखा हुआ है मानो वह बछड़े को इसी खुर के सहारे संभाले हुए हो। गाय तथा बछड़े, दोनों के कान लम्बे हैं, दोनों की आंखें बहुत सुंदर हैं तथा खुली हुई हैं। गाय के सिर पर छोटे-छोटे सींग हैं। सिर पर दोनों तरफ दो-दो सींग उकेरे गए हैं। गाय एवं बछड़े की लम्बी आंखों से स्पष्ट पहचाना जा सकता है कि इस प्रतिमा का निर्माण आधुनिक सभ्यता के लोगों द्वारा किया गया है न कि आदिम सभ्यता के लोगों द्वारा।
ड्रैगन प्रतिमाएं
कभी इस द्वीप पर विशालाकाय कोमोडो ड्रैगन रहे होंगे। कुछ प्राचीन कोमोडो ड्रैगन प्रतिमाएं बावड़ी के निकट दिखाई पड़ती हैं। कोमोडो ड्रैगन से हटकर भी कुछ ड्रैगन प्रतिमाएं हैं जो चीनी ड्रैगन जैसी दिखाई देती हैं। इनमें से कुछ प्रतिमाएं सर्प की तरह लेटी हुई मुद्रा में हैं तो कुछ मनुष्य की तरह खड़ी हुई मुद्रा में हैं। एक ड्रैगन प्रतिमा के मुख में एक बंदर बैठा हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है मानो वह ड्रैगन के मुंह को फाड़ने का प्रयास कर रहा हो। इस ड्रैगन के शरीर पर अन्य ड्रैगन उत्कीर्ण किया हुआ है जो किसी अन्य बंदर को निकट आने से रोकता हुआ प्रतीत होता है। यह आधुनिक काल के मानवों द्वारा निर्मित सैंकड़ों साल पुरानी प्रतिमा है।
तलवार एवं ढाल वाले योद्धा की प्रतिमा
एक स्तम्भ पर भरे हुए शरीर वाले योद्धा की मनुष्याकर प्रतिमा खड़ी है जिसने बाएं हाथ में ढाल एवं दायें हाथ में तलवार ले रखी है। इसकी आंखें लम्बी, मूछें बड़ी एवं भाव-भंगिमा कठोर है। यह पश्चवर्ती सभ्यता के लोगों द्वारा बनाई गई प्रतिमाओं में से है। इसके सिर पर छोटा मुकुट है तथा कान किसी धातु की चद्दर से ढके हुए प्रतीत होते हैं। यह प्रतिमा बहुत बाद की जान पड़ती है।