Friday, March 29, 2024
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17. बाली एवं जावा द्वीपों पर ग्यारह दिन

इण्डोनेशिया के प्रति उत्सुकता क्यों !

यद्यपि इण्डोनेशिया संसार का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है तथापि इण्डोनेशियाई रुपयों एव डाक टिकटों पर हिन्दू देवी देवताओं के चित्र देखने को मिलते हैं जिनमें धर्नुधारी श्रीराम, सर्पधारी भगवान शिव, शुंडधारी भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी, विष्णु के वाहन गरुड़ आदि प्रमुख हैं। इण्डोनेशिया के साढ़े सत्रह हजार द्वीपों में बाली नामक एक ऐसा द्वीप भी है जहाँ 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या हिन्दू धर्मावलम्बी है तथा अनेक प्राचीन हिन्दू मंदिर स्थित हैं। संसार का सबसे बड़ा कहा जाने वाला बोरोबुदुर मंदिर भी इण्डोनेशिया के जावा द्वीप में स्थित है जो कि एक बौद्ध मंदिर है। हमारे मन में सात समंदर पार के इन हिन्दुओं की संस्कृति एवं उनके मंदिरों को देखने की लालसा थी। इसी कारण हमने अपनी ग्यारह दिवसीय पारिवारिक यात्रा के लिए इण्डोनेशिया का चयन किया।

सामान की ऊहापोह

हमारे इस पारिवारिक दल में छः सदस्य थे जिनमें मेरे पिता श्री गिरिराज प्रसाद गुप्ता, मेरी पत्नी मधुबाला, पुत्र विजय, पुत्र-वधू भानुप्रिया एवं डेढ़ वर्षीय पौत्री दीपा सम्मिलित थी। हमारा परिवार विशुद्ध शाकाहारी है जो मांस, मछली, अण्डा किसी भी चीज का प्रयोग नहीं करता। कुल 11 दिन की यात्रा में छः व्यक्तियों के लिए शाकाहारी भोजन एवं अल्पाहार की व्यवस्था करना किसी चुनौती से कम नहीं था। हमें अनुमान था कि इण्डोनेशिया के बाली द्वीप में शाकाहारी भोजन मिलने में कोई कठिनाई नहीं होगी क्योंकि वहाँ 90 प्रतिशत हिन्दू रहते हैं किंतु हम इस बात को लेकर आशंकित थे कि जावा द्वीप में शाकाहारी भोजन मिलना कठिन है क्योंकि वहाँ 90 प्रतिशत जनसंख्या इस्लाम को मानने वालों की है जिनमें शायद शाकाहार के प्रति आग्रह न हो। हम इस बात को लेकर भी आशंकित थे कि बहुत से स्थानों पर मछली और अण्डा को मांसाहार नहीं माना जाता जबकि हमारे लिए तो ये वस्तुएं मांसाहार ही हैं। इसलिए हमने भोजन बनाने के लिए प्रेशर कुकर, तवा, बेलन, चाकू तथा अन्य आवश्यक बर्तन और कच्ची सामग्री यथा गेहूं का आटा, घी, मसाले एवं दालें आदि अपने साथ ले लीं। चूंकि बहुत से देशों में साबुत बीज तथा लिक्विड नहीं ले जाया जा सकता, इसलिए हमने तेल तथा चावल अपने साथ नहीं लिए। इसका खामियाजा हमें पूरी यात्रा में भुगतना पड़ा। इस कच्ची भोजन सामग्री के कारण सामान का वजन बढ़ जाने की समस्या उत्पन्न हो गई, इसका समाधान हमने कपड़ों में कमी करके किया। ओढ़ने-बिछाने के लिए कुछ नहीं लिया तथा पहनने के कपड़े भी कम से कम लिए।

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समय की घालमेल और शरीर की जैविक घड़ी

यह 13 अप्रेल की शाम थी जब हम मलिण्डो एयर फ्लाइट से दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से कुआलालम्पुर के लिए रवाना हुए। 13 अप्रेल की रात 10.05 बजे दिल्ली से रवाना होकर यह फ्लाईट 14 अप्रेल को प्रातः 6 बजे कुआलालम्पुर पहुंची। वस्तुतः हम विमान में कुल साढ़े पांच घण्टे ही बैठे थे। इस हिसाब से भारत में सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे किंतु मलेशिया, भारत के दक्षिण-पूर्व में स्थित होने के कारण वहाँ का समय भारत से ढाई घण्टे आगे चल रहा था, इसलिए वहाँ सुबह के छः बज चुके थे।

डेढ़ घण्टे बाद अर्थात् प्रातः 7.30 बजे हमें कुआलालम्पुर एयरपोर्ट से बाली देनपासार के लिए फ्लाइट मिली जो इण्डोनिशयाई समय के अनुसार प्रातः 10.30 बजे बाली की प्रांतीय राजधानी देनपासार पहुंची। समय की घालमेल इण्डोनेशिया से भारत वापसी के समय भी हुई। हम 23 अप्रेल को प्रातः 11.30 बजे इण्डोनेशिया एयर एशिया फ्लाइट द्वारा जकार्ता से चलकर दोपहर ढाई बजे कुआलालम्पुर पहुंचे। कुआलालम्पुर का समय जकार्ता से एक घण्टा आगे होने के कारण हमें इस यात्रा में वास्तव में तीन घण्टे नहीं अपितु दो घण्टे ही लगे। 23 अप्रेल को मलेशियाई समय के अनुसार सायं 7.00 बजे हम एयर एशिया की फ्लाइट द्वारा कुआलालम्पुर से चलकर रात्रि 10.00 बजे नई दिल्ली पहुंचे। भारत का समय कुआलालम्पुर से ढाई घण्टे पीछे होने के कारण हमें इस यात्रा में वास्तव में साढ़े तीन घण्टे नहीं अपितु 5.30 घण्टे लगे।

यह आश्चर्य-जनक बात थी कि केवल एयरपोर्ट की घड़ियों में ही समय का हेरफेर नहीं हो रहा था। हमारे शरीर की जैविक घड़ी भी अपने भीतर का समय उसी प्रकार बदल रही थी और हमें दिन या रात्रि की अनुभूति स्थानीय समय के अनुसार हो रही थी। यह संभवतः उन चुम्बकीय तरंगों के कारण था जो हर स्थान पर अपना अलग प्रभाव रखती हैं।

मलिण्डो और एयर एशिया की एयर होस्टेस

मलिण्डो एयर फ्लाइट सर्विस मलेशिया की है। मलिण्डो फ्लाइट की एयर होस्टेस विशेष प्रकार की ड्रेस पहनती हैं। गले से लेकर कमर तक कसा हुआ कोट तथा कमर से नीचे छींटदार खुली हुई तहमद होती है जो कमर पर केवल एक बार लपेटी हुई होती है। इस तहमद में लगभग पूरी टांगें दिखाई देती हैं। इण्डोनेशिया एयर एशिया एयर फ्लाइट सर्विस इण्डोनेशिया देश की है। इस फ्लाइट की एयर होस्टेस गले से कमर तक खुले कॉलर वाला एक कोट पहनती हैं तथा कमर से नीचे एक अत्यंत कसी हुई मिनी स्कर्ट धारण करती हैं। मुझे यह देखकर हैरानी थी कि जहाँ भारत, पाकिस्तान और बांगलादेश की अधिकांश मुस्लिम महिलाएं बुर्के में रहने को अनिवार्य मजहबी रस्म मानती हैं, वहीं मलेशिया एवं इण्डोनेशिया जो कि दोनों ही मुस्लिम देश हैं, की एयर होस्टेस बुर्का डालना तो दूर, अपनी टांगों को खुला रखने में भी बहुत सहजता का अनुभव करती हैं।

दोनों ही देशों की एयर होस्टेस को देखकर तब तो और भी अधिक हैरानी होती है जब वे यात्रियों का स्वागत भारतीयों की तरह दोनों हाथ जोड़कर तथा मुस्कुराकर करती हैं। उनका व्यवहार विशेष रूप से विनम्र तथा सहयोग एवं सेवा की भावना वाला है। वे यात्रियों की सीट बैल्ट बांधने-खोलने, उन्हें गर्म-ठण्डा पेयजल देने, उनका सामान रैक में लगाने जैसी छोटी-छोटी सेवाएं मुस्कुरा कर करती हैं। अपनी बात विनम्रता से कहती हैं तथा यात्रियों को विदा देते समय पुनः हाथ जोड़कर अभिवादन करती हुई उन्हें आगे की यात्रा के लिए शुभकामनाएं देती हैं।

मलिण्डो की आवभगत

मलेशिया की एयर फ्लाइट सर्विस ‘मलिण्डो’ की आवभगत हमारे लिए अविस्मरणीय घटना बन गई है। 13 अप्रेल की रात्रि का भोजन हमने बुक करवा रखा था तथा विशेष हिदायत दे रखी थी कि हमें ‘जैन-भोजन’ उपलब्ध कराया जाए। यह हमारी अपेक्षा के अनुरूप था लेकिन हैरानी तब हुई जब 14 अप्रेल को प्रातः नौ बजे एयर होस्टेस गर्म नाश्ता लेकर उपस्थित हुई। हमने यह सोचकर मना कर दिया कि यह अवश्य ही नॉनवेज होगा किंतु एयर होस्टेस ने आग्रह पूर्वक कहा कि यह पूरी तरह वैजीटेरियन है तथा इसमें केवल गेहूं के आटे के परांठे एवं अरहर की दाल है।

यह नाश्ता हमने बुक नहीं करवा रखा था किंतु एयर सर्विस द्वारा अपनी ओर से उपलब्ध कराया गया था। उन गर्म परांठों और भारतीय तरीके से छौंक लगी हुई अरहर की दाल इतनी स्वादिष्ट थी कि भारतीयों को भी हैरानी में डाल दे। हिन्द महासागर के ऊपर से उड़ते हुए यह अनपेक्षित दाल-परांठों का नाश्ता जीवन भर याद रखने योग्य था। मलिण्डो जैसी सदाशयता और आवभगत हमें अपनी यात्रा के दौरान इण्डिोनेशिया एयर एशिया की तीनों फ्लाईट्स में देखने को नहीं मिली।

सर्विस अपार्टमेंट्स की बुकिंग

चूंकि होटलों में खाना नहीं बनाया जा सकता इसलिए हमारे सामने समस्या यह थी कि हमारे रहने की व्यवस्था किसी शाकाहारी हिन्दू परिवार में हो जाए। यह कार्य सरल नहीं था, ऐसे परिवार को भारत में बैठे हुए ढूंढ निकालना, समुद्र में से किसी सुईं को ढूंढ निकालने जैसा था। इस समस्या का समाधान किया आधुनिक समय में प्रचलन में आई सर्विस अपार्टमेंट्स की सुविधा ने। विश्व के बहुत से देशों में विशेषकर उन देशों में जहाँ पर्यटन, अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है, बहुत से परिवार अपने घर का खाली हिस्सा पर्यटकों को उपलब्ध करा रहे हैं। इन्हें सर्विस अपार्टमेंट्स कहा जाता है। कुछ वैबसाइट्स ने इन सर्विस अपार्टमेंट्स को अपने तंत्र पर जोड़ रखा है, विश्व भर में बैठे पर्यटक इनका लाभ उठा सकते हैं। हमने उन सर्विस अपार्टमेंट्स का चयन किया जिनमें भोजन बनाने के लिए अलग से रसोई-घर हो।

सौभाग्य से बाली में एक ऐसा परिवार हमें मिल गया जिसमें पति का नाम पुतु तथा पत्नी का नाम पुतु एका था। यह एक हिन्दू परिवार है और इसने पर्यटकों के लिए अलग से एक पांच सितारा होटल जैसी सुविधाओं वाला और कांच की दीवारों से घिरा हुआ एक अत्यंत रमणीय और आरामदायक फ्लैट चावल के खेतों के बीच बना रखा है। यह ऐसा ही था जैसे भारत में आकर कोई किसी छोटी से ढाणी में रहे तथा सुविधाजनक आवास का आनंद उठाए। हमारे मन में एक आशंका अपनी सुरक्षा को लेकर थी। खेतों के बीच अनजान देश में इस प्रकार अकेले परिवार का निवास करना, कहीं किसी संकट को आमंत्रण देना तो नहीं था! फिर भी जब हमें ज्ञात हुआ कि श्रीमती पुतु एका बहुत पढ़ी-लिखी हैं और प्रायः अंतर्राष्ट्रीय सेमीनारों में भाग लेने के लिए मलेशिया, सिंगापुर तथा अन्य देशों को जाती रहती हैं तो हमने पांच दिन के लिए इस सर्विस फ्लैट को बुक करवा लिया।

योग्यकार्ता में निवास करने वाले मासप्रियो नामक एक मुस्लिम शिक्षक ने हमें अपनी वैबसाइट के माध्यम से भरोसा दिलाया कि हम उनके द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे दो कमरों और एक रसोई के सर्विस अपार्टमेंट में अपना प्रवास आनंददायक रूप से व्यतीत कर सकेंगे। यहाँ तक कि मासप्रियो की पत्नी ने भरोसा दिलाया कि वे हमारे लिए शाकाहारी भोजन बना देंगी। इस परिवार से हमारी यह सारी बातचीत ऑनलाइन हुई थी। हमने यह सर्विस अपार्टमेंट बुक कर लिया।

बाली और योग्यकार्ता में तो यह व्यवस्था हो गई किंतु जकार्ता में ऐसा किया जाना संभव नहीं था क्योंकि जकार्ता विश्व के सर्वाधिक भीड़भाड़ वाले शहरों में से है जहाँ लगभग हर समय जाम लगा रहता है। चूंकि सर्विस अपार्टमेंट्स प्रायः शहर के कुछ दूर ही मिलते हैं इसलिए उनका चयन करना इस खतरे को आमंत्रण देता था कि हम अपनी यात्रा के अंतिम दिन प्रातः साढ़े ग्यारह बजे की फ्लाइट ट्रैफिक जाम में फंसने के कारण चूक जाएं। अतः हमने अपने प्रवास की अंतिम बुकिंग जकार्ता एयर पोर्ट के निकट ही किसी होटल में करने का निर्णय लिया।

होटल में किसी तरह का भोजन बनाया जाना संभव नहीं था इसलिए हमने योजना बनाई कि जब हम 21 अप्रेल की सुबह को योग्यकार्ता से चलेंगे तो 22 और 23 के भोजन भी व्यवस्था कर लेंगे। आपात्कालीन व्यवस्था के तहत हमने जोधपुर से लड्डू, मठरी, शकरपारे और खाखरे आदि अपने साथ ले लिए।

समुद्र के किनारे दौड़

14 अप्रेल की प्रातः लगभग सवा दस बजे हमें विमान की खिड़की से बाली द्वीप का किनारा दिखाई देने लगा और 15 मिनट पश्चात् अर्थात् प्रातः साढ़े दस बजे हम बाली द्वीप की प्रांतीय राजधानी देनपासार में उतर गए। यह एयरपोर्ट किसी बंदरगाह की तरह समुद्र तट पर बना हुआ है। हवाई जहाज कुछ समय तक समुद्र के किनारे बने विशाल रनवे पर दौड़ता रहा। यह एक बहुत ही अद्भुत दृश्य था। राजस्थान में रेलगाड़ी और बसें रेगिस्तान के किनारों पर दौड़ती हैं और हम यहाँ समुद्र के किनारे सरपट भागे जा रहे थे। बाली का समुद्र बहुत शांत, साफ और निर्मल है जिसके किनारे नारियल के झुरमुट इसे बहुत आकर्षक बनाए हुए हैं। इस समुद्र के जल का रंग भी सहज ही आकर्षित करने वाला है।

खाली हाथ

इण्डोनेशिया में पर्यटकों के लिए वीजा निःशुल्क है तथा पर्यटकों के वहाँ पहुंचने पर ही हाथों-हाथ दिया जाता है। वीजा लेने, आव्रजन (इमीग्रेशन) की औपचारिकताएं पूरी करने तथा एयरपोर्ट अथॉरिटी से अपना सामान प्राप्त करने में हमें लगभग एक घण्टे का समय लग गया। इतना सब कर लेने के बाद भी हमारी हिम्मत एयरपोर्ट से बाहर निकलने की नहीं हो रही थी। इण्डोनेशियाई मुद्रा की दृष्टि से हम खाली हाथ जो थे। हमारी जेब में भारतीय मुद्रा तथा अमरीकी डॉलर थे जिनकी व्यवस्था हमने दिल्ली में ही कर ली थी। चूंकि भारत में कानूनन इण्डोनेशिया की मुद्रा उपलब्ध नहीं होती, इसलिए हमें एयरपोर्ट से बाहर निकलने से पहले इण्डोनेशियाई मुद्रा की व्यस्था करनी थी। सौभाग्य से एयर पोर्ट के निकास पर ही कुछ मनीचेंजर एजेंट बैठते हैं, उन्होंने हमारी चिंता दूर की।

देखते ही देखते मालामाल

भारतीय मुद्रा से इण्डोनेशियाई रुपया खरीदना घाटे का सौदा था। इसलिए हमने भारत में 64.54 रुपए की दर से अमरीकी डॉलर खरीद लिए थे। यहाँ हमें अमरीकी डॉलर से इण्डोनेशियाई रुपया खरीदना था। डॉलर में इण्डोनेशियाई रुपया खरीदना लाभ का सौदा था। इस अल्टा-पल्टी में हमें भारत के 1 रुपए के बदले 205 इण्डोनेशियाई रुपए मिल गए। हमने 700 डॉलर एक्सचेंज करवाये जिनके लिए हमने भारत में 45,178 रुपए चुकाये थे। यहाँ हमें 700 डॉलर के बदले 92 लाख 61 हजार 490 इण्डोनेशियाई रुपए प्राप्त हुए। भारत में 92 लाख रुपए की रकम बहुत बड़ी होती है। इतने रुपए में भारत में कोई आदमी पूरी जिंदगी निकाल सकता है जबकि हमें इण्डोनेशिया में केवल 10 दिन निकालने थे। इसलिए हमें बहुत ही अटपटा लग रहा था कि हमारी जेब में 92 लाख रुपए हैं। जो भी हो, हम देखते ही देखते मालामाल तो हो ही गए थे।

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