जिस तरह शिवाजी की आगरा से रायगढ़ तक वापसी अत्यंत कठिनाईयों से भरी थी, उसी प्रकार संभाजी की वापसी भी आसान नहीं थी। सबसे बड़ी कठिनाई थी, उनकी पहचान छिपाना ! एक बार तो एक ब्राह्मण दम्पत्ति ने संभाजी को अपनी थाली में भोजन खिलाकर सिद्ध किया कि यह ब्राह्मण पुत्र है, शिवाजी का पुत्र नहीं है।
शिवाजी को आगरा शहर में जोर-शोर से ढूंढा जाने लगा किंतु तब तक 18 घण्टे बीत चुके थे और शिवाजी मथुरा पहुंचकर अदृश्य हो गए थे। शिवाजी ने अपने पुत्र सम्भाजी को मथुरा में एक मराठी ब्राह्मण के घर रख दिया तथा स्वयं एक साधु का वेश बनाकर बुंदेलखण्ड होते हुए गौंडवाना प्रदेश की तरफ रवाना हो गए। उनके अंगरक्षक उनके शिष्यों के रूप में उनके साथ हो लिए, उन्होंने भी भगवा कपड़े पहन लिए थे जिनके भीतर तलवारें छिपी हुई थीं।
शिवाजी के सैंकड़ों सिपाही वस्तुतः आगरा से निकल कर महाराष्ट्र नहीं गए थे अपितु पहले से ही निर्धारित योजना के अनुसार एक निश्चित स्थान पर रुककर अपने स्वामी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। शिवाजी के सैनिक भी किसानों एवं साधुओं के वेश में शिवाजी से कुछ दूरी पर चलते रहे। ताकि संकट की किसी घड़ी में शिवाजी को सहायता पहुंचाई जा सके।
जब शिवाजी और उनके साथी गौंडवाना से कर्नाटक जा रहे थे, तब मार्ग में एक किसान, कुछ साधुओं को भोजन करवा रहा था। शिवाजी को भी सन्यासी समझकर भोजन के लिए आमंत्रित किया गया। जब शिवाजी, साधुओं के साथ पंक्ति में बैठकर भोजन कर रहे थे तब अचानक उस किसान की औरत यह कहकर साधुओं से क्षमा मांगने लगी कि हमोर घर में कुछ भी नहीं है इसलिए साधुओं को इतना साधारण भोजन करवाया जा रहा है। यदि मराठे हमारे परिवार का धन लूट कर नहीं ले गए होते तो हम साधुओं को अच्छा भोजन करवाते।
शिवाजी को उस गृहिणी की बात सुनकर अपार कष्ट हुआ और उनका सामना एक कड़वी सच्चाई से हुआ कि उनके अपने मराठा सैनिक मुगलों के राज्य में रहने वाली हिन्दू प्रजा को भी लूट रहे थे।
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रामसिंह कच्छवाहा के पहरे से निकलने के पच्चीसवें दिन शिवाजी, सन्यासी के वेश में अपनी माता जीजाबाई के समक्ष राजगढ़ में प्रकट हुए। जीजा ने अपने शेर को छाती से लगा लिया। समर्थ गुरु रामदास का शिष्य अपने हौंसले के बल पर आगरे के लाल किले की नाक काट लाया था। जहाँ से चिड़िया का भी बच निकलना कठिन था, वहाँ से शिवाजी अपनी सेना सहित पूर्णतः सुरक्षित निकल आए थे, यह बात उस युग की किसी चमत्कारी घटना से कम नहीं थी!
अपनी राजधानी में पहुंचकर शिवाजी ने सबसे पहले उसी किसान परिवार को अपने महल में आमंत्रित किया जिसके यहाँ उन्होंने सन्यासी के वेश में भोजन किया था तथा किसान की पत्नी को मराठा सैनिकों को कोसते हुए सुना था। शिवाजी ने उस महिला से क्षमा-याचना की तथा उसे बहुत सारा धन देकर संतुष्ट किया।
उधर मथुरा में मुगल सिपाही उस मराठी-ब्राह्मण के घर पहुंच गए जहाँ एक नया बालक रहने के लिए आया था। जब मुगल अधिकारियों ने ब्राह्मण दम्पत्ति से पूछा कि यह कौन है तो उन्होंने कहा कि यह हमारा भतीजा है तथा कुछ दिन हमारे साथ रहने के लिए महाराष्ट्र से आया है। इस पर मुगलों को ब्राह्मण दम्पत्ति का विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि यदि यह भतीजा है तो ब्राह्मण दम्पत्ति उसके साथ एक ही थाली में भोजन करके दिखाए।
महाराष्ट्र में शिवाजी का कुल कुछ नीचा समझा जाता था इसलिए एक ब्राह्मण के लिए यह संभव नहीं था कि वह संभाजी के साथ एक ही थाली में भोजन करे किंतु ब्राह्मण को अपना धर्म बचाने के स्थान पर शरणागत संभाजी के प्राणों की रक्षा करना अधिक आवश्यक प्रतीत हुआ। इसलिए ब्राह्मण दम्पत्ति ने मुगलों के समक्ष संभाजी को अपने पास बैठाकर अपनी थाली में भोजन करवाया।
मुगल अधिकारी आश्वस्त होकर चले गए। जब यह बात शिवाजी तक पहुंची तो शिवाजी उस समय मार्ग में ही थे। इसलिए उन्होंने रायगढ़ पहुंचकर यह प्रचारित कर दिया कि मार्ग में सम्भाजी की मृत्यु हो गई है। शिवाजी ने रायगढ़ में सम्भाजी के समस्त संस्कार एवं क्रियाकर्म विधि-पूर्वक सम्पन्न कराए ताकि मुगलों को भ्रम में डाला जा सके और वे सम्भाजी को ढूंढने का प्रयास नहीं करें। एक तरफ तो यह झूठी खबर फैलाई गई और दूसरी तरफ संभाजी की वापसी की नए सिरे से पूरी व्यवस्था की गई।
कुछ दिनों बाद मथुरा का ब्राह्मण परिवार स्वयं ही 8 वर्ष के बालक सम्भाजी को लेकर रायगढ़ पहुंच गया। शिवाजी एवं सम्भाजी के सकुशल रायगढ़ पहुंचने का समाचार देश भर में फैल गया। पूरे महाराष्ट्र में दीपावली मनाई गई। जनता के बीच शिवाजी की रहस्यमयी शक्तियों के बारे में और अधिक विस्तार से प्रचार हो गया। उनकी सकुशल वापसी पर देश के अनेक हिस्सों में हर्ष मनाया गया और मिठाइयां वितरित की गईं। शिवाजी के पड़ौसी मुस्लिम राज्यों में शिवाजी का आतंक और भी अधिक गहरा गया। आखिर वे लाल किले का मानभंग करके अपनी राजधानी सकुशल लौट आए थे!
औरंगजेब को जब शिवाजी और उनके पुत्र संभाजी की वापसी के समाचार मिले तो वह अपमान और क्रोध से तिलमिलका कर रह गया। उसे रह-रह कर हरम की औरतों की चीख-पुकार याद आ रही थी। यदि औरंगजेब ने हरम की औरतों का कहना मान लिया होता और शिवाजी को उसी समय मरवा दिया होता तो आज औरंगजेब को अपमान का यह कड़वा घूंट नहीं पीना पड़ता! किंतु अब कुछ नहीं हो सकता था, अब तो चिड़िया खेत चुग कर फुर्र हो चुकी थी।
औरंगजेब ने शिवाजी के आगरा से निकल भागने के लिए मिर्जाराजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह को जिम्मेदार ठहराया। उसने राजकुमार रामसिंह को औरंगजेब के दरबार में आने से मनाही कर दी तथा उसका पद भी छीन लिया। उधर मिर्जाराजा जयसिंह भी दक्षिण में चुपचाप बैठकर औरंगजेब के अगले आदेश की प्रतीक्षा करता रहा। शिवाजी की रायगढ़ वापसी की तरह संभाजी की वापसी भी मराठा इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी।
आगरा से लौट आने के बाद शिवाजी कुछ दिन तक पूरी तरह शांत होकर बैठे रहे किंतु वे मुगलों का आक्रमण होने की स्थिति में प्रजा की सुरक्षा करने का प्रबंध भी करते रहे। अंततः औरंगजेब ने मिर्जाराजा जयसिंह को दक्षिण से हटा दिया तथा आगरा आकर दरबार में उपस्थिति देने के आदेश दिए।
औरंगजेब के शहजादे मुअज्जम को पुनः दक्षिण का सूबेदार बनाया गया तथा महाराजा जसवंतसिंह को मुअज्जम के साथ फिर से दक्षिण जाने के आदेश दिए गए। सेनापति दिलेर खाँ को दक्षिण में रहने के आदेश दोहराए गए।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता