Sunday, December 8, 2024
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औरंगजेब से नफरत

औरंगजेब से नफरत के चलते पूरा देश लाल किले के विरोध में उठ खड़ा हुआ ! इस नफरत का कारण औरंगजेब स्वयं था। औरंगजेब दुनिया की हर उस चीज से नफरत करता था जो हंसती थी, खेलती थी, चलती थी और आनंदमग्न रहती थी।

कौन जाने औरंगजेब में इतनी कट्टरता कहाँ से आई थी! अपनी कट्टरता को वह इस्लाम के नाम पर जायज ठहराता था और इस्लाम के नाम पर ही दूसरों पर थोपता था।

औरंगजेब जानता था कि मंदिर तोड़ देने और जजिया लगा देने से हिन्दू धर्म को पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता। इसके लिए उसे कुछ और उपाय भी करने होंगे। इसलिए औरंगजेब ने हिन्दुओं के धर्म के साथ-साथ उनकी संस्कृति को भी उन्मूलित करने का प्रयत्न किया।

औरंगजेब के आदेश से थट्टा, मुल्तान तथा बनारस में स्थित समस्त हिन्दू शिक्षण संस्थाओं को नष्ट कर दिया गया। मुसलमान विद्यार्थियों को हिन्दू पाठशालाओं में पढ़ने की अनुमति नहीं थी। हिन्दू पाठशालाओं में न तो हिन्दू धर्म की कोई शिक्षा दी जा सकती थी और न इस्लाम विरोधी बात कही जा सकती थी।

जब से मुसलमानों ने हिन्दुस्तान में अपनी राजसत्ता स्थापित की थी तभी से माल-विभाग के अधिकांश कर्मचारी हिन्दू हुआ करते थे। अकबर ने तो समस्त सरकारी नौकरियों के द्वार हिन्दुओं के लिये खोल दिये थे।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

ई.1670 में औरंगजेब ने आदेश जारी किया कि माल-विभाग से समस्त हिन्दुओं को निकाल दिया जाये। हिन्दू इस कार्य में बड़े कुशल थे। उनके रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए शिक्षित मुस्लिम कर्मचारी नहीं मिल सके। इसलिये औरंगजेब ने दूसरा आदेश निकाला कि एक हिन्दू के साथ एक मुसलमान कर्मचारी भी रखा जाये।

ई.1671 में औरंगजेब ने आदेश जारी किए कि पेशकार (अर्थात् लिपिक), दीवान (अर्थात् लेखाकार) एवं राजस्व संग्राहक के पद से हिन्दुओं को हटाकर उनके स्थान पर मुसलमान नियुक्त किए जाएं। जब इतनी अधिक संख्या में शिक्षित मुस्लिम कर्मचारी नहीं मिले तो 50 प्रतिशत पदों पर हिन्दुओं को रखने की छूट दी गई।

औरंगजेब ने विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर हिन्दुओं को मुसलमान बनने के लिए प्रोत्साहित किया। जो हिन्दू मुसलमान बन जाते थे वे जजिया से मुक्त कर दिये जाते थे तथा उन्हें राज्य में उच्च पद दिये जाते थे।

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मुसलमान बनने वाले हिन्दुओं को सरकार की तरफ से सम्मान सूचक वस्त्रों से पुरस्कृत किया जाता था। हिन्दू बंदियों द्वारा इस्लाम स्वीकार कर लेने पर उन्हें कारावास से मुक्त कर दिया जाता था। समाज के जो ख्यातिनाम हिन्दू इन प्रलोभनों में नहीं पड़ते थे उन्हें बलपूर्वक मुसलमान बनाने का प्रयत्न किया जाता था। उनमें से बहुतों को मार दिया जाता था। इस कारण उनके परिवार वाले औरंगजेब से नफरत करते थे।

मथुरा के वीर गोकुला जाट को इसी प्रकार मारा गया था। जो हिन्दू, इस्लाम की निन्दा तथा हिन्दू धर्म की प्रशंसा करते हुए पकड़े जाते थे उन्हें कठोर दण्ड दिये जाते थे। उद्धव बैरागी नामक साधु को मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर किए जा रहे अत्याचारों से इतना क्रोध आया कि ईस्वी 1669 में उसने अपने चेलों के साथ मिलकर काजी मुकर्रम की हत्या कर दी। इस कारण औरंगजेब ने उद्धव बैरागी तथा उसके शिष्यों को घेर कर मरवाया।

मुगल काजियों एवं सिपाहियों के दबाव में जो हिन्दू अपना धर्म त्याग देते थे, उन्हें सरकारी कारिंदों द्वारा हाथी पर बैठाकर जुलूस निकाला जाता था। उनके आगे ढोल-ताशे बजाए जाते थे तथा शाही झण्डा लगाया जाता था। उन्हें दैनिक भत्ता भी दिया जाता था तथा सरकारी नौकरियों पर रखा जाता था।

यदि अदालत में किसी हिन्दू का दूसरे हिन्दू से सम्पत्ति विवाद होता था और उनमें से एक पक्ष मुसलमान बन जाता था तो सम्पत्ति विवाद का निर्णय मुसलमान बनने वाले के पक्ष में किया जाता था।

औरंगजेब द्वारा की जा रही इन कार्यवाहियों के कारण देश का प्रत्येक हिन्दू औरंगजेब से नफरत करने लगा। देश के विभिन्न भागों में औरंगजेब के विरुद्ध कड़ी प्रतिक्रिया हुई और देश में विद्रोह की चिन्गारी भड़क उठी। औरंगजेब को अपने जीवन का बहुत बड़ा समय इन विद्रोहों से निबटने में लगाना पड़ा।

सबसे पहले राजा चम्पतराय के नेतृत्व में बुन्देलों ने विद्रोह का झण्डा खड़ा किया। इनका इतिहास हम पूर्व में बता चुके हैं। अंत में वीर छत्रसाल ने पूर्वी मालवा को जीतकर अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिया और पन्ना को अपनी राजधानी बनाकर स्वतन्त्रतापूर्वक शासन करने लगा। वह मुगल सल्तनत को आतंकित करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देता था।

उस काल में मथुरा से लेकर आगरा और जयपुर के बीच में जाट बड़ी संख्या में रहते थे। जब औरंगजेब ने केशवराय का मंदिर तुड़वाया तो जाटों ने विद्रोह का झण्डा उठा लिया और उन्होंने मुगल सूबेदार अब्दुल नबी की हत्या कर दी। इसके बाद मुगलों और जाटों के बीच एक लम्बा संघर्ष छिड़ गया और यह तभी समाप्त हुआ जब मुगलिया सल्तनत की ईंट से ईंट बज गई।

दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम में स्थित नारनौल में सतनामी निवास करते थे। जब औरंगजेब की सेना द्वारा सतनामियों पर अत्याचार किए गए तो सतनामियों ने भी लाल किले की सल्तनत के विरुद्ध खुला युद्ध छेड़ दिया। इस युद्ध में कई हजार सतनामी और कई हजार मुगल सैनिक मारे गए।  

सिक्खों तथा मुगलों के बीच जहांगीर के समय से संघर्ष चल रहा था। औरंगजेब के समय में वह चरम पर पहुंच गया। जहांगीर द्वारा गुरु अर्जुनदेव की तथा औरंगजेब द्वारा गुरु तेग बहादुर की हत्या करवाने का इतिहास हम पूर्व में बता चुके हैं।

औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति के कारण राजपूत जाति भी उससे नाराज हो गई। औरंगजेब ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह करने के लिए डोला भिजवाया किंतु चारुमती ने मेवाड़ महाराणा राजसिंह को किशनगढ़ आमंत्रित करके महाराणा से विवाह कर लिया।

औरंगजेब ने बीकानेर के राजा कर्णसिंह से उसका राज्य छीनकर औरंगाबाद भेज दिया था। इसका इतिहास भी हम पूर्व में बता चुके हैं। औरंगजेब ने ई.1667 में आम्बेर नरेश जयसिंह को जहर देकर मरवा दिया।

औरंगजेब द्वारा मारवाड़ के राजा जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब द्वारा मारवाड़ राज्य खालसा कर लिया गया। इसका इतिहास भी पूर्व में बता चुके हैं। मराठों के विरुद्ध औरंगजेब को अपनी ताकत का बहुत बड़ा हिस्सा झौंकना पड़ रहा था किंतु वीर मराठा जाति अपने नेता छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में औरंगजेब का राज्य छीनती जा रही थी तथा बीजापुर के राज्य को लगभग निगल चुकी थी।

पूर्वोत्तर में अहोम राजाओं से मुगलों का लम्बे काल तक युद्ध चलता रहा जिसमें हजारों मुगल सिपाहियों को अपने प्राण गंवाने पड़ रहे थे। इसका इतिहास भी हम पूर्व में बता चुके हैं। औरंगजेब की नीतियों के कारण भारत की पश्चिमोत्तर सीमा इतनी असुरक्षित हो गई थी कि यूसुफजई लड़ाके भारतीय लोगों को पकड़कर मध्य एशिया के बाजारों में बेच रहे थे।

औरंगजेब ने देश भर से हिन्दू देवी-देवताओं के हजारों मंदिर तुड़वाकर, हिन्दू तीर्थों पर जजिया लगाकर तथा हिन्दू कर्मचारियों को शाही नौकरी से निकालकर पूरे देश की जनता को अपना दुश्मन बना लिया था।

औरंगजेब का सबसे बड़ा शहजादा मुहम्मद सुल्तान 16 साल तक सलीमगढ़ की जेल में बंद रहकर मर चुका था। अब औरंगजेब के दो शहजादे मुअज्जम और अकबर भी अपने पिता औरंगजेब से विद्रोह की तैयारियां कर रहे थे। यहाँ तक कि औरंगजेब की सबसे प्रिय शहजादी जेबुन्निसा भी अपने पिता की नीतियों की धुर विरोधी हो गई थी और वह भी अपने बाप को लाल किले की गद्दी से हटाकर अपने भाइयों में से किसी एक को बादशाह बनाने के लिए षड़यंत्र करने लगी थी। 

इस प्रकार औरंगजेब से नफरत के कारण पूरा देश औरंगजेब के विरोध में उठ खड़ा हुआ। अकबर, जहांगीर तथा शाहजहाँ ने ‘मधु मण्डित सुलहकुल नीति’ के माध्यम से राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में रखा था तथा उन्हें शासन में कनिष्ठ भागीदार बनाकर उनसे मुगलिया सल्तनत के विस्तार का काम करवाया था।

इस कारण राजपूत, मुगल साम्राज्य की दाहिनी भुजा बन गए थे। जब तक यह भुजा सुरक्षित थी, मुगलों का राज्य जाने वाला नहीं था किंतु औरंगजेब ने मधु-मण्डित सुलहकुल नीति को त्यागकर तथा हिन्दुओं के मंदिरों एवं देव-मूर्तियों को नष्ट करके राजपूतों को नाराज कर लिया था। अब औरंगजेब को मराठों और मेवाड़ियों के हाथों से बचाने वाला कोई नहीं था।

राजपूत राजा अपनी निरीह प्रजा की रक्षा के लिए इतना त्याग करने को तो तैयार थे कि वे अपनी एक बेटी का विवाह मुगल बादशाह से करके अपने राज्य में शांति बनाए रखें किंतु वे इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि हिन्दुओं से उनका धर्म छीन लिया जाए। उनके मंदिर तोड़ दिए जाएं, उनके तीर्थों को नष्ट कर दिया जाए, उनके तीज-त्यौहारों पर रोक लगा दी जाए।

जब औरंगजेब ने हिन्दू राजाओं की सुन्नत करने का प्रयास किया तो हिन्दू राजा औरंगजेब से विमुख हो गए। अंग्रेज इतिहासकार लेनपूल ने लिखा है- ‘जब तक वह कट्टरपंथी औरंगजेब, अकबर के सिंहासन पर बैठा रहा, एक भी राजपूत उसे बचाने के लिए अपनी अंगुली भी हिलाने को तैयार नहीं था। औरंगजेब को अपनी दाहिनी भुजा खोकर दक्षिण के शत्रुओं के साथ युद्ध करना पड़ा।’

इस कारण मुगल सल्तनत पतनोन्मुख हो गई। फिर भी इतनी बड़ी सल्तनत एकदम से नहीं गिर सकती थी। उसे नष्ट होने में कई वर्ष लगने वाले थे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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