सिंध में अरबों के आक्रमण के लगभग 350 वर्ष बाद उत्तर-पश्चिमी दिशा से भारत भूमि पर तुर्क आक्रमण आरंभ हुए। उस समय भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर हिन्दूशाही वंश का राजा जयपाल शासन कर रहा था। उसका राज्य पंजाब से हिन्दूकुश पर्वत तक विस्तृत था।
तुर्कों का उत्कर्ष
माना जाता है कि तुर्कों के पूर्वज हूण थे। उनमें शकों तथा ईरानियों के रक्त का भी मिश्रण हो गया था तथा उन्होंने इस्लाम को अंगीकार कर लिया था। डॉ. अवध बिहारी पाण्डेय के अनुसार तुर्क चीन की पश्मिोत्तर सीमा पर रहते थे। उनका सांस्कृतिक स्तर निम्न श्रेणी का था। वे खूंखार और लड़ाकू थे। युद्ध से उन्हें स्वाभाविक प्रेम था। जब अरब में इस्लाम का प्रचार आरंभ हुआ तब बहुत से तुर्कों को पकड़ कर गुलाम बना लिया गया तथा उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिये बाध्य किया गया। लड़ाकू होने के कारण गुलाम तुर्कों को अरब के खलीफाओं का अंगरक्षक नियुक्त किया जाने लगा। बाद में वे खलीफा की सेना में उच्च पदों पर नियुक्त होने लगे। जब खलीफा निर्बल पड़ गये तो तुर्कों ने खलीफाओं से वास्तविक सत्ता छीन ली। खलीफा नाम मात्र के शासक रह गये। जब खलीफाओं की विलासिता के कारण इस्लाम के प्रसार का काम मंदा पड़ गया तब तुर्क ही इस्लाम को दुनिया भर में फैलाने के लिये आगे आये। उन्होंने 10 वीं शताब्दी में बगदाद एवं बुखारा में अपने स्वामियों अर्थात् खलीफाओं के तख्ते पलट दिये और 943 ई. में उन्होंने मध्य ऐशिया के अफगानिस्तान में अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
गजनी का राज्य
अफगानिस्तान में गजनी नामक एक छोटा सा दुर्ग था जिसका निर्माण यदुवंशी भाटियों ने किया था। इस दुर्ग में 943 ई. में तुर्की गुलाम अलप्तगीन ने अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। 977 ई. में अलप्तगीन का गुलाम एवं दामाद सुबुक्तगीन गजनी का शासक बना। सुबुक्तगीन का वंश गजनी वंश कहलाने लगा। सुबुक्तगीन तथा उसके उत्तराधिकारी महमूद गजनवी ने गजनी के छोटे से राज्य को विशाल साम्राज्य में बदल दिया जिसकी सीमाएं लाहौर से बगदाद तथा सिंध से समरकंद पहुंच गईं। गजनी से तुर्क, भारत की ओर आकर्षित हुए। भारत में इस्लाम का प्रसार इन्हीं तुर्कों ने किया। माना जाता है कि अरबवासी इस्लाम को कार्डोवा तक ले आये। ईरानियों ने उसे बगदाद तक पहुंचाया और तुर्क उसे दिल्ली ले आये।
सुबुक्तगीन का भारत आक्रमण
गजनी के सुल्तान सुबुक्तगीन ने एक विशाल सेना लेकर पंजाब के राजा जयपाल के राज्य पर आक्रमण किया। जयपाल ने उससे संधि कर ली तथा उसे 50 हाथी देने का वचन दिया किंतु बाद में जयपाल ने संधि की शर्तों का पालन नहीं किया। इस पर सुबुक्तगीन ने भारत पर आक्रमण कर लमगान को लूट लिया। सुबुक्तगीन का वंश गजनी वंश कहलाता था। 997 ई. में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गई।
महमूद गजनवी
महमूद गजनवी का जन्म 1 नवम्बर 971 ई. को हुआ। 997 ई. में सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के लिये युद्ध हुआ। इस युद्ध में विजयी होने पर महमूद गजनवी ने 998 ई. में गजनी पर अधिकार कर लिया। उस समय महमूद गजनवी की आयु 27 वर्ष थी। उसने खुरासान को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। इसी समय बगदाद के खलीफा अल-कादिर-बिल्लाह ने उसे मान्यता एवं यामीन-उद-दौला अर्थात् साम्राज्य का दाहिना हाथ और अमीन-उल-मिल्लत अर्थात् मुसलमानों का संरक्षक की उपाधियां दीं। इस कारण महमूद गजनी के वंश को यामीनी वंश भी कहते हैं। उसने अपने 32 वर्ष के शासन काल में गजनी के छोटे से राज्य को विशाल साम्राज्य में बदल दिया। उसने सुल्तान की पदवी धारण की। ऐसा करने वाला वह पहला मुस्लिम शासक था। उत्बी के अनुसार उसने ऑटोमन शासकों की भांति ‘पृथ्वी पर ईश्वर की प्रतिच्छाया’ की उपाधि धारण की। जब खलीफा अल-कादिर-बिल्लाह ने महमूद को सुल्तान के रूप में मान्यता दी तो महमूद ने खलीफा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए प्रतिज्ञा की कि वह प्रतिवर्ष भारत के काफिरों पर आक्रमण करेगा। उसने भारत पर 1000 से 1027 ई. तक 17 बार आक्रमण किये।
भारत पर आक्रमण करने के उद्देश्य
1. गजनवी के दरबारी उतबी के अनुसार भारत पर आक्रमण वस्तुतः जिहाद (धर्मयुद्ध) था जो मूर्ति पूजा के विनाश एवं इस्लाम के प्रसार के लिये किये गये थे।
2. इतिहासकार डॉ. निजामी एवं डॉ. हबीब का मत है कि उसके भारत आक्रमण का उद्देश्य धार्मिक उन्माद नहीं था अपितु भारत के मंदिरों की अपार सम्पदा को लूटना था क्योंकि गजनवी ने मध्य एशिया के मुस्लिम शासकों पर भी आक्रमण किया था।
3. गजनवी, हिन्दू शासक जयपाल तथा आनंदपाल को दबाना चाहता था क्योंकि वे गजनी राज्य की सीमाओं को खतरा उत्पन्न करते रहते थे।
4. डॉ. ए. बी. पाण्डे के अनुसार गजनवी का लक्ष्य भारत से हाथी प्राप्त करना था जिनका उपयोग वह मध्य एशिया के शत्रु राज्यों के विरुद्ध करना चाहता था।
5. एक अन्य मतानुसार महमूद का आक्रमण धार्मिक एवं आर्थिक उद्देश्य से तो प्रेरित था ही साथ ही उसके आक्रमण में राजनीतिक उद्देश्य भी निहित थे। वह अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था।
निष्कर्ष: विभिन्न इतिहासकार भले ही भिन्न-भिन्न तर्क दें किंतु महमूद के भारत आक्रमणों तथा उसके परिणामांे से यह स्पष्ट हो जाता है कि उसके दो स्पष्ट उद्देश्य थे, पहला यह कि वह भारत की अपार सम्पदा लूटना चाहता था और दूसरा यह कि वह भारत से मूर्ति पूजा समाप्त करके इस्लाम का प्रसार करना चाहता था क्योंकि अपने समस्त 17 आक्रमणों में उसने ये ही दो कार्य किये, अपने राज्य का विस्तार नहीं किया।
गजनवी के आक्रमण के समय भारत की स्थिति
गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति अच्छी नहीं थी। भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। इन राज्यों के शासक परस्पर लड़कर अपनी शक्ति का हा्रस करते थे। उनमें बाह्य आक्रमणों का सामना करने की शक्ति नहीं थी। उनमें राष्ट्रीय एकता का विचार तक नहीं था। वे बाह्य शत्रुओं के प्रति पूरी तरह उदासीन थे तथा अपने घमण्ड के कारण किसी एक राजा का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। वे निरंतर एक दूसरे के राज्य पर आक्रमण करते रहते थे इस कारण भारत में अच्छे सैनिक भी उपलब्ध नहीं थे।
गजनवी के आक्रमण के समय उत्तरी भारत में मुलतान तथा सिंध में दो स्वतंत्र मुस्लिम राज्य थे, पंजाब पर हिन्दूशाही वंश के जयपाल का शासन था। उसका राज्य चिनाब नदी से हिन्दूकुश पर्वतमाला तक फैला हुआ था। उसके पड़ौस में काश्मीर का स्वतंत्र राज्य था। कन्नौज पर परिहार शासक राज्यपाल का शासन था। बंगाल में पाल वंश के शासक महीपाल का शासन था। राजपूताना पर चौहानों का शासन था, गुजरात, मालवा व बुंदेलखण्ड एवं मध्य भारत में भी स्वतंत्र राज्य थे। दक्षिण में चालुक्य एवं चोल वंश का शासन था। पाल, गुर्जर प्रतिहार तथा राष्ट्रकूट राजाओं में विगत ढाई सौ वर्षों से त्रिकोणीय संघर्ष चल रहा था।
इस राजनीतिक कमजोरी के उपरांत भी भारत की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी क्योंकि युद्ध क्षेत्र में लड़ने का काम केवल राजपूत योद्धा करते थे। किसानों तथा कर्मकारों को इन युद्धों से कोई लेना देना नहीं था। वे अपने काम में लगे रहते थे। देश में धार्मिक वातावरण था। हिन्दू राजाओं द्वारा प्रजा पर कर बहुत कम लगाये जाने के कारण प्रजा की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। मंदिरों में इतना चढ़ावा आता था कि वे अपार धन सम्पदा से भर गये थे। इस सम्पत्ति की ओर ललचा कर महमूद गजनवी जैसा कोई भी विदेशी आक्रांता भारत की ओर सरलता से मुंह कर सकता था।
महमूद गजनवी के आक्रमण
1. सीमान्त प्रदेश पर आक्रमण (1000 ई.): 1000 ई. में महमूद गजनवी ने भारत के सीमावर्ती प्रदेश पर आक्रमण कर जनजातियों को परास्त किया। उसने वहां के कुछ दुर्ग तथा नगर जीतकर उन पर अपने अधिकारी नियुक्त किये।
2. पंजाब पर आक्रमण (1001 ई.): महमूद गजनवी का प्रथम प्रसिद्ध आक्रमण पंजाब के हिन्दूशाही शासक जयपाल पर हुआ। इस युद्ध में जयपाल परास्त हुआ। उसे बंदी बना लिया गया। जयपाल ने गजनवी को विपुल धन अर्पित कर स्वयं को मुक्त करवाया किंतु आत्मग्लानि के कारण ई.1002 में उसने आत्मदाह कर लिया।
3. भेरा पर अधिकार (1003 ई.): 1003 ई. में महमूद ने झेलम के तट पर स्थित भेरा राज्य पर आक्रमण किया। वहां के शासक बाजीराव ने पराजित होकर आत्महत्या कर ली। महमूद का भेरा पर अधिकार हो गया।
4. मुल्तान पर आक्रमण (1005 ई.): 1005 ई. में महमूद ने मुल्तान के शासक दाऊद पर आक्रमण किया। दाऊद ने महमूद का सामना किया किंतु पराजित हो गया। उसने महमूद को अपार धन देकर अपनी जान बचाई। उसने महमूद को वार्षिक कर देना भी स्वीकार कर लिया। महमूद ने राजा आनंदपाल के पुत्र सेवकपाल को मुल्तान का शासक नियुक्त किया।
5. सेवकपाल पर आक्रमण (1007 ई.): महमूद ने आनंदपाल के पुत्र सेवकपाल को मुल्तान का शासक नियुक्त किया परंतु सेवकपाल ने महमूद के लौटते ही स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। महमूद ने सेवकपाल को दण्डित करने के लिये पुनः मुल्तान पर आक्रमण किया। सेवकपाल परास्त होकर बंदी हुआ। उसने महमूद को 4 लाख दिरहम भेंट किये। महमूद ने उसे मुल्तान से खदेड़कर दाऊद को पुनः मुल्तान का शासक नियुक्त किया।
6. नगर कोट की लूट: 1008 ई. में महमूद ने पंजाब के शासक जयपाल के उत्तराधिकारी आनंदपाल पर आक्रमण किया। आनंदपाल ने तुर्कों से लोहा लेने के लिये राजपूत राजाओं का एक संघ बनाया। उसने उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर, दिल्ली तथा अजमेर के राजाओं की सहायता से एक विशाल सेना तैयार की। मुल्तान के खोखरों ने भी आनंदपाल की सहायता की। झेलम नदी के किनारे उन्द नामक स्थान पर दोनों पक्षों में भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में आनंदपाल का पलड़ा भारी पड़ा किंतु उसका हाथी बिगड़ गया जिससे राजपूत सेना में खलबली मच गई। तभी महमूद ने तीव्र गति से आक्रमण किया जिससे युद्ध की दिशा बदल गई। इस विजय के बाद महमूद ने तीन दिन तक नगर कोट के प्रसिद्ध मंदिर को लूटा और उजाड़ा। लेनपूल ने लिखा है कि नगरकोट की लूट में महमूद को इतना धन मिला कि सारी दुनिया भारत की अपार धनराशि को देखने के लिये चल पड़ी।
7. नारायणपुर पर आक्रमण (1009 ई.): महमूद ने 1009 ई. में नारायणपुर (अलवर) पर आक्रमण किया तथा मंदिरों को लूटकर तोड़ डाला।
8. मुल्तान पर पुनः आक्रमण (1011 ई.): मुल्तान के शासक दाऊद ने स्वतंत्र होने का प्रयास किया। इस पर 1011 ई. में महमूद ने मुल्तान पर आक्रमण किया तथा मुल्तान की सारी सम्पत्ति लूटकर वापस चला गया।
9. त्रिलोचनपाल पर आक्रमण (1013 ई.): महमूद ने 1013 ई. में आनंदपाल के पुत्र त्रिलोचनपाल के विरुद्ध अभियान किया। इस अभियान में उसे विशेष सफलता नहीं मिली। इस पर उसने कुछ समय बाद फिर से आक्रमण किया। इस बार त्रिलोचनपाल परास्त होकर काश्मीर भाग गया। महमूद ने उसका पीछा किया। इस पर काश्मीर के शासक और त्रिलोचन पाल ने संयुक्त रूप से तुर्की सेना का सामना किया किंतु महमूद पुनः सफल हुआ। महमूद ने त्रिलोचनपाल की राजधानी नंदन पर अधिकार जमा लिया तथा वहां पर तुर्क शासन की स्थापना की।
10. थानेश्वर पर आक्रमण (1014 ई.): महमूद ने 1014 ई. में थानेश्वर पर आक्रमण किया। सरस्वती नदी के तट पर भीषण संघर्ष के बाद थानेश्वर का पतन हुआ। इसके बाद महमूद की सेनाओं ने थानेश्वर को लूटा और नष्ट किया। थानेश्वर की प्रसिद्ध चक्रस्वामी की प्रतिमा गजनी ले जाई गई जहां उसे सार्वजनिक चौक में डाल दिया गया।
11. काश्मीर पर आक्रमण: (1015 ई.): 1015 ई. में महमूद ने काश्मीर पर आक्रमण किया। मौसम की खराबी के कारण महमूद को इस आक्रमण में विशेष सफलता नहीं मिली।
12. बुलंदशहर, मथुरा तथा कन्नौज पर आक्रमण (1018 ई.): 1018 ई. में महमूद गजनवी ने बुलंदशहर, मथुरा तथा कन्नौज पर आक्रमण किया। इन स्थानों पर भी उसने मंदिरों तथा नगरों को लूटा और भयंकर लूट मचायी। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार इस अभियान में उसे 30 लाख दिरहम मूल्य की सम्पत्ति, 55 हजार दास तथा 350 हाथी प्राप्त हुए।
13. कालिंजर पर आक्रमण (1019 ई.): 1019 ई. में महमूद ने कालिंजर के चंदेल राजा पर आक्रमण किया। चंदेल राजा अपने समय का विख्यात एवं वीर राजा था किंतु महमूद के भय से कालिंजर का दुर्ग खाली करके भाग गया। इस प्रकार कालिंजर पर महमूद का अधिकार हो गया। महमूद ने नगर को जमकर लूटा तथा अपार धन प्राप्त किया।
14. पंजाब पर आक्रमण (1020 ई.): 1020 ई. में महमूद ने पंजाब पर आक्रमण किया तथा पंजाब में नये सिरे से मुस्लिम शासन की स्थापना की।
15. ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण (1022 ई.): महमूद गजनवी ने 1022 ई. में एक बार फिर से ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण किया तथा जमकर लूटपाट की।
16. सोमनाथ पर आक्रमण (1025 ई.): 1025 ई. में महमूद ने सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। सोमनाथ भारत के प्रमुख तीर्थों में से एक था। इस मंदिर के रखरखाव के लिये हजारों गांवों का राजस्व प्राप्त होता था। एक कड़े संघर्ष में लगभग 50 हजार लोगों ने अपने प्राण गंवाये। सौराष्ट्र का राजा भीमदेव भाग खड़ा हुआ। महमूद ने उसकी राजधानी को लूटा और उस पर अधिकार कर लिया। अलबरुनी के अनुसार महमूद ने मूर्ति नष्ट कर दी। वह मूर्ति के बचे हुए भाग को सोने, आभूषण और कढ़े हुए वस्त्रों सहित अपने निवास गजनी ले गया। इसका कुछ हिस्सा चक्रस्वामिन् की कांस्य प्रतिमा जिसे वह थाणेश्वर से लाया गया था, के साथ गजनी के चौक में फैंक दिया गया। सोमनाथ की मूर्ति का दूसरा हिस्सा गजनी की मस्जिद के दरवाजे पर पड़ा है। इस मंदिर से महमूद 65 टन सोना ले गया।
17. सिंध के जाटों पर आक्रमण (1027 ई.): जब महमूद सोमनाथ से गजनी लौट रहा था तब सिंध के जाटों ने उसे लूटने का प्रयास किया। इससे नाराज होकर महमूद ने 1027 ई. में सिंध के जाटों को दण्डित करने के लिये उन पर आक्रमण किया। यह उसका अंतिम भारत आक्रमण था। उसने खलीफा को संतुष्ट करने के लिये जो प्रण लिया था, उसकी पालना के लिये वह भारत पर 17 बार भयानक आक्रमण कर चुका था। इन आक्रमणों में उसने भारत के हिन्दू काफिरों को जमकर मौत के घाट उतारा और इस्लाम का झण्डा बुलंद किया। उसने हजारों मंदिरों की मूर्तियों को नष्ट किया। मंदिरों को भग्न किया। लाखों स्त्री-पुरुषों को गुलाम बनाकर तथा रस्सियों से बांधकर अपने देश ले गया। भारत की अपार धन-सम्पत्ति को लूटा और हाथियों, ऊँटों तथा घोड़ों पर बांधकर गजनी ले गया।
गजनी के आक्रमणों का प्रभाव
महमूद गजनी द्वारा लगातार किये गये 17 आक्रमणांे का भारत पर स्थाई और गहरा प्रभाव पड़ा।
1. महमूद के हमलों के कारण भारत को जन-धन की अपार हानि उठानी पड़ी। हजारों हिन्दू उसकी बर्बरता के शिकार हुए
2. भारत की सैन्य शक्ति को गहरा आघात पहुंचा।
3. भारतीयों की लगातार 17 पराजयों से विदेशियों को भारत की सामरिक कमजोरी का ज्ञान हो गया। इससे अन्य आक्रांताओं को भी भारत पर आक्रमण करने का साहस हुआ।
4. भारत के मंदिरों, भवनों, देव प्रतिमाओं के टूट जाने से भारत की वास्तुकला, चित्रकला और शिल्पकला को गहरा आघात पहुंचा।
4. भारत को विपुल आर्थिक हानि उठानी पड़ी। लोग निर्धन हो गये जिनके कारण उनमें जीवन के उद्दात्त भाव नष्ट हो गये। नागरिकों में परस्पर ईर्ष्या-द्वेष तथा कलह उत्पन्न हो गई।
5. देश की राजनीतिक तथा धार्मिक संस्थाओं के बिखर जाने तथा विदेशियों के समक्ष सामूहिक रूप से लज्जित होने से भारतीयों में पराजित जाति होने का मनोविज्ञान उदय हुआ जिसके कारण वे अब संसार के समक्ष तनकर खड़े नहीं हो सकते थे और वे जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ते चले गये।
6. लोगों में पराजय के भाव उत्पन्न होने से भारतीय सभ्यता और संस्कृति की क्षति हुई।
7. भारत का द्वार इस्लाम के प्रसार के लिये पूरी तरह खुल गया। देश में लाखों लोग मुसलमान बना लिये गये।
महमूद गजनवी के आक्रमणों से भारतीयों को सबक
जिस देश के शासक निजी स्वार्थों और घमण्ड के कारण हजारों साल से परस्पर संघर्ष करके एक दूसरे को नष्ट करते रहे हों, उस देश के शासकों तथा उस देश के नागरिकों को महमूद गजनवी ने जी भर कर दण्डित किया। उसके क्रूर कारनामों, हिंसा और रक्तपात के किस्सों को सुनकर मानवता कांप उठती है किंतु भारत के लोगों ने शायद ही कभी इतिहास से कोई सबक लिया हो। यही कारण है कि भारत के पराभव, उत्पीड़न और शोषण का जो सिलसिला महमूद गजननवी ने आरंभ किया वह मुहम्मद गौरी, चंगेज खां, बाबर, अहमदशाह अब्दाली तथा ब्रिटिश शासकों से होता हुआ आज भी बदस्तूर जारी है। इस देश के लोग कभी एक नहीं हुए। आजादी के बाद भी नहीं। आज की प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में परस्पर लड़ने वाले शासक मौजूद नहीं हैं किंतु राजनीतिक दल जिस गंदे तरीके से एक दूसरे के शत्रु बने हुए हैं, वे राजपूत काल के उन शासकों की ही याद दिलाते हैं जिन्होंने विदेशियों के हाथों नष्ट हो जाना तो पसंद किया किंतु कभी निजी स्वार्थ तथा अपने घमण्ड को छोड़कर एक दूसरे का साथ नहीं दिया।
महमूद गजनवी के उत्तराधिकारी
1030 ई. में महमूद की मृत्यु हो गई। उसके बाद मासूद, मादूर, इब्राहीम, अलाउद्दीन आदि शासक गजनी के सिंहासन पर बैठे। वे सभी कमजोर शासक थे। उनकी कमजोरी का लाभ उठाकर अफगानिस्तान के गौर नगर पर शासन करने वाले गयासुद्दीन गौरी ने गजनी पर अधिकार कर लिया। गजनी का शासक खुसरो मलिक गजनी से भागकर पंजाब आ गया। 1186 ई. में गयासुद्दीन के छोटे भाई मुहम्मद गौरी ने मलिक खुसरो को जान से मरवा दिया। इस प्रकार भारत से महमूद वंश का राज्य पूर्णतः समाप्त हो गया।