Saturday, July 27, 2024
spot_img

बादशाह अहमदशाह बहादुर

अहमदशाह बहादुर दिवंगत बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला का बेटा था। मुगलों का तख्त उसके हाथ कैसे आया, इसे इतिहास की एक गुत्थी ही समझना चाहिए किंतु निश्चित रूप से इसमें लाल किले की बेगमों की बहुत बड़ी भूमिका थी। बेगम ऊधम बाई का बेटा मुगलों के तख्त पर बैठ गया!

बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला की कई बेगमें, रखैलें और दासियां थीं जिनमें से चार ब्याहता बेगमों के नाम मिलते हैं। मरहूम बादशाह फर्रूखसियर की बेटी मलिका उज्मानी मुहम्मदशाह रंगीला की मुख्य बेगम थी जो मुगल सल्तनत में अच्छा-खासा प्रभाव रखती थी किंतु जब मुहम्मदशाह रंगीला की मृत्यु हुई तो उस की चहेती बेगम ऊधमबाई ने मुगल दरबार पर कब्जा करके अपने पुत्र अहमदशाह बहादुर को बादशाह बना दिया तथा स्वयं ही कुदसिया बेगम के नाम से शासन करने लगी।


ऊधम बाई को यह सफलता क्यों मिली, यह जानने के लिए हमें ऊधम बाई की निजी जिंदगी में झांकना होगा। ऊधम बाई एक हिन्दू नृत्यांगना थी। जब मुहम्मदशाह बादशाह नहीं बना था, तब से वह मुहम्मदशाह रंगीला के सम्पर्क में थी। जब मुहम्मदशाह रंगीला बादशाह हुआ तो उसने ऊधम बाई से विवाह करके उसे कुदसिया बेगम की उपाधि दी थी। यहाँ से ऊधम बाई की इच्छाओं ने नई अंगड़ाइयाँ लेनी आरम्भ कीं।

ऊधम बाई ने बादहशाह से विवाह होते ही मुगल दरबार में अपना प्रभाव बढ़ाना आरम्भ कर दिया तथा वह मुगलिया राजनीति में बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी। मुहम्मदशाह रंगीला ने ऊधम बाई को सल्तनत में ऊंचा मनसब प्रदान किया। ताकि ऊधम बाई एक मनसबदार की हैसियत से मुगल दरबार में बे-रोक-टोक आ-जा सके।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

मनसबदार के पद पर नियुक्त हो जाने से ऊधम बाई को मुगल अमीरों से सीधा सम्पर्क रखने तथा उनके बीच होने वाले षड़यंत्रों में भाग लेने का अवसर मिल गया। इस कारण बहुत से अमीरों पर ऊधम बाई का प्रभाव जम गया। तत्कालीन इतिहासकारों के अनुसार मुगलिया हरम के दरोगा नवाब जाविद खाँ से भी ऊधम बाई के प्रेम सम्बन्ध थे।

यूं तो जाविद खाँ एक ख्वाजासरा अर्थात् नपुंसक था किंतु ऊधम बाई से उसके प्रेम सम्बनध स्थापित हो गए। इस प्रेम सम्बन्धों का लाभ दोनों को हुआ। जाविद खाँ की सहायता से ऊधम बाई ने मुगलिया हरम पर अपना सिक्का जमा रखा था और ऊधम बाई की सहायता से जाविद खाँ मुगलिया दरबार में ऊंची सीढ़ियां चढ़ गया था।

जब ईस्वी 1748 में बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला की मृत्यु हुई तो ऊधम बाई ने कुछ मुगल अमीरों की सहायता से मुगल दरबार पर कब्जा जमा लिया और अपने बेटे अहमदशाह बहादुर को बादशाह बनाने में सफल हो गई जबकि मरहूम बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला के और भी बेटे जीवित थे। वे सब हाथ मलते ही रह गए।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

अहमदशाह को बादशाह की गद्दी पर बैठाने में मरहूम बादशाह की मुख्य बेगम मलिका उज्मानी का भी हाथ था क्योंकि इस समय तक उसके अपने पेट से जन्मे बेटे की मृत्यु हो गई थी। अहमदशाह बहादुर को मुगलों के इतिहास में मिर्जा अहमदशाह तथा मुजाहिद-उद्दीन अहमदशाह गाजी के नाम से भी जाना जाता है। जिस समय अहमदशाह बहादुर मुगलों के तख्त पर बैठा उस समय उसकी आयु केवल बीस साल थी किंतु उसकी कई बेगमें थीं जिनसे उसे ढेरों बच्चे प्राप्त हुए थे। जिस समय वह तख्त पर बैठा उसके 9 बच्चे जीवित थे। वह भारत का तेरहवां मुगल बादशाह हुआ।

अहमदशाह बहादुर अपनी माँ के षड़यंत्र के सफल हो जाने के कारण बादशाह तो बन गया किंतु उसे शासन करने का कोई अनुभव नहीं था। पिता मुहम्मदशाह रंगीला द्वारा पुत्र अहमदशाह के व्यक्तित्व को बचपन से ही दबाया गया था। इसका कारण यह था कि मुहम्मदशाह रंगीला कम उम्र से ही वेश्याओं और हिंजड़ों के चक्कर में पड़कर तथा शराब एवं अफीम का आदी होकर अपनी शारीरिक शक्तियां एवं स्वाथ्य गंवा चुका था।

मुहम्मदशाह नहीं चाहता था कि उसका पुत्र अहमदशाह भी इन सब बुराइयों के चक्कर में पड़े। इसलिए वह शहजादे पर कड़ी दृष्टि रखता था, उसे बहुत कम लोगों से मिलने दिया जाता था, यहाँ तक कि मुगल शहजादों को जो दैनिक व्यय शाही खजाने से मिलता था, वह भी उसे बहुत कम दिया जाता था ताकि शहजादा हिंजड़ों और वेश्याओं से दूर रह सके किंतु अहमदशाह बहादुर वेश्याओं के चक्कर में बहुत कम उम्र में पड़ गया था।

पिता द्वारा लगाए गए इस नियंत्रण का प्रभाव यह हुआ कि अहमदशाह का व्यक्तित्व कुण्ठित हो गया और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो गई। अहमदशाह बीस वर्ष की आयु हो जाने तक केवल एक बार ही युद्ध लड़ने गया था जिसमें चिनकुलीच खाँ तथा सफदरजंग जैसे अनुभवी सेनापति उसके साथ थे। शहजादे को किसी भी प्रांत में जाकर सूबेदारी करने का अवसर भी नहीं मिला था।

इस कारण यह अनुभवहीन युवक जब बादशाह बना तो उसे शासन के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। इसलिए वह अपनी माँ के संरक्षण में शासन करने लगा जिसे लम्बे समय तक मुगलिया राजनीति का अनुभव था। इस कारण शासन की वास्तविक शक्ति ऊधम बाई और उसके हिंजड़े प्रेमी जाविद खाँ के हाथों में रही।

बादशाह ने जाविद खाँ को पांच हजार सवारों का मनसबदार बनाया तथा उसे नवाब बहादुर की उपाधि दी। जबकि बादशाह ने अपनी माता ऊधम बाई अर्थात् कुदसिया बेगम को पचास हजार सवारों का मनसबदार बनाया। पुराने बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला ने अवध के मरहूम धोखेबाज सूबेदार सआदत खाँ के दामाद सफदरजंग को अपना वजीर बनाया था। नए बादशाह अहमदशाह ने भी सफदरजंग को उसके पद पर बने रहने दिया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source