सरदार पटेल की हास्यप्रियता ने उनके व्यक्तित्व को निखार कर एक अलग ही ऊँचाई पर पहुंचा दिया था। कठिन परिस्थितियों से घिरे हुए एवं सफलता के शिखर पर विराजमान, दोनों ही प्रकार के व्यक्तियों के लिए हास्यप्रियता को बचाए रखना कठिन होता है।
व्यक्तित्व की गंभीरता में भी हास्यप्रियता के अंकुर जीवित रख पाना अत्यंत कठिन होता है किंतु सरदार पटेल के व्यक्तित्व में हास्यप्रियता सहज स्वाभाविक रूप से उपलब्ध थी। उनके निकटवर्ती लोगों को पता ही नहीं लग पाता था कि कठिन परिस्थितियों के बीच में भी वे कब हास्य की फुहार छोड़कर पूरे वातावरण को हल्का कर देंगे!
हँसने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे वल्लभभाई! उन्हें बचपन से ही हंसने और विनोद करने की आदत पड़ गई। यह एक आश्चर्य ही था कि उन्हें अपने समय का सबसे सख्त व्यक्ति माना जाता था किंतु यह सख्त मिजाज का व्यक्ति मनोविनोद का कोई भी अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देता था। उनके इस विरोधाभासी स्वभाव को उनके ही दो वक्तव्यों में देखा जा सकता है। एक स्थान पर उन्होंने कहा- ‘आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिये अपनी आंखों को क्रोध से लाल होने दीजिये और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिये।
‘ एक अन्य स्थान पर वल्लभभाई कहते हैं- ‘यदि हम हजारों की दौलत भी गंवा दें और हमारा जीवन बलिदान हो जाए, तो भी हमें मुस्कुराते रहना चाहिये और ईश्वर तथा सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिये।’ सरदार अक्सर कहते थे कि बेशक कर्म पूजा है किंतु हास्य जीवन है जो कोई भी अपना जीवन बहुत गंभीरता से लेता है, उसे एक तुच्छ जीवन के लिये तैयार रहना चाहिये। जो कोई सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है, वास्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीता है।
अपने व्यक्तित्व में गंभीरता एवं हास्यप्रियता के समुचित मिश्रण के बल पर ही सरदार पटेल ने न केवल कोनार्ड कोरफील्ड जैसे षड़यंत्रकारी अंग्रेज अधिकारियों को हवाई जहाज में बैठाकर इंग्लैण्ड भेजा दिया अपितु भारत के 565 राजाओं के राज्य भारत में सम्मिलित करवा लिए।
अपने व्यक्तित्व की विराटता के बल पर ही उन्होंने इंग्लैण्ड की संसद में विपक्ष के नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल तक को फटकार लगाकर उसकी बोलती बंद कर दी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता