विट्ठलभाई और वल्लभभाई को पढ़ाई के साथ-साथ खेत पर अपने पिता के काम में भी हाथ बंटवाना पड़ता था। वहीं से वल्लभभाई को मानसिक कार्य करने के साथ-साथ शारीरिक परिश्रम करने का अभ्यास पड़ गया। स्वाध्याय एवं शारीरिक श्रम के कारण वल्लभभाई का मन और शरीर दोनों ही सुदृढ़ और सुंदर हो गये थे।
उनमें आत्मिक बल भी बहुत था। वल्लभभाई महीने में दो दिन बिना भोजन और बिना जल लिये, व्रत करते थे ताकि उनमें शारीरिक एवं आत्मिक बल आ सके। एक बार वल्लभभाई के शरीर पर फोड़ा हो गया। उन दिनों में ऐसे फोड़े का उपचार, फोड़े को लोहे की गर्म सलाख से जलाकर किया जाता था।
जब नाई को सलाख लगाने के लिये कहा गया तो वह बच्चे की आयु देखकर सहम गया और उसने सलाख लगाने से मना कर दिया, उस समय वल्लभभाई ने नाई के हाथ से वह सलाख लेकर स्वयं ही फोड़े को दाग दिया। वल्लभभाई की ऐसी दृढ़ संकल्प शक्ति देखकर वहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति स्तम्भित रह गया। ऐसा कर पाने की हिम्मत कोई विरला ही दिखा पाता है।