Saturday, July 27, 2024
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57. भारत में मुस्लिम सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कौन था!

विभिन्न इतिहासकार मुहम्मद बिन कासिम से लेकर, महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, कुतुबुद्दीन ऐबक तथा इल्तुतमिश को भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना का श्रेय देते हैं। अधिकांश इतिहासकारों की धारणा है कि भारत में मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश था किंतु किसी भी निश्चय तक पहुंचने के लिए हमें इन तुर्की आक्रांताओं की उपलब्धियों पर विचार करना होगा।

मुहम्मद बिन कासिम भारत पर आक्रमण करने वाला पहला मुस्लिम आक्रांता था। उसने अरब से सिंध के रास्ते भारत में प्रवेश किया था और सिन्ध में अपनी राज-संस्था स्थापित कर ली थी परन्तु खलीफा को लूट में हिस्सा नहीं देने के कारण खिलीफा ने मुहम्मद बिन कासिम को बगदाद में बुलवाकर मरवाया। इस कारण कासिम की राजसत्ता का शीघ्र ही उल्मूलन हो गया। अतः मुहम्मद बिन कासिम को भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना का श्रेय नहीं दिया जा सकता। लेनपूल ने लिखा है- ‘सिंध में अरबों की विजय इस्लाम के इतिहास में एक घटना मात्र थी और इसका परिणाम शून्य था।’

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

मुहम्मद बिन कासिम के बाद महमूद गजनवी दूसरा प्रबल मुस्लिम आक्रांता था जिसने भारत पर किए गए आक्रमणों में बड़ी सफलताएं अर्जित कीं। यदि वह चाहता तो भारत में मुस्लिम साम्राज्य स्थापित कर सकता था परन्तु उसका ध्येय भारत की अपार सम्पत्ति को लूटना, गुलामों को प्राप्त करना, भारत से औरतें लूटकर गजनी ले जाना तथा हिन्दू काफिरों को मारकर खलीफा को प्रसन्न करना था। उसने भारत में अपना राज्य स्थापित नहीं किया। अतः महमूद गजनवी को भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना का श्रेय नहीं दिया जा सकता।

भारत में मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करने के लक्ष्य से प्रेरित होकर सर्वप्रथम मुहम्मद गौरी ने आक्रमण किए। वह उत्तरी भारत में विशाल भूभाग को जीतने में सफल भी हुआ परन्तु उसने भारत में कोई अलग राज्य स्थापित नहीं किया और न भारत में वह स्थायी रूप से रहा, वरन् उसने विजित भारतीय क्षेत्रों को गजनी के राज्य में मिला लिया तथा अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में अपना गवर्नर नियुक्त करके स्वयं गजनी चला गया। इसलिये उसे भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना का श्रेय नहीं दिया जा सकता।

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मुहम्मद गौरी की मृत्यु के उपरान्त कुतुबुद्दीन ऐबक, मुहमम गौरी के भारतीय क्षेत्रों का स्वामी बना। उसने उत्तरी भारत में अपनी सत्ता स्थापित कर ली और एक बड़े साम्राज्य का निर्माण किया। उसने प्रथम बार दिल्ली में मुस्लिम सल्तनत की स्थापना की। उसने इस सल्तनत का गजनी से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया और स्वतन्त्र रूप से शासन करने लगा परन्तु इतिहासकारों को उसे भारत में मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मानने में कई आपत्तियाँ है-

(1.) कुतुबुद्दीन ऐबक को खलीफा से स्वतन्त्र राज-सत्ता का कोई प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं हुआ इसलिये कुछ इतिहासकार उसे गजनी के मुस्लिम राज्य के भारतीय प्रांतों का प्रान्तपति ही मानते हैं।

(2.) अब तकएक भी ऐसी मुद्रा प्राप्त नहीं हुई है जिसमें ऐबक का नाम अंकित हो।

(3.) इतिहासकारों को इस बात पर भी सन्देह है कि उसके नाम का कोई खुतबा पढ़ा गया था या उसने सुल्तान की उपाधि धारण की थी।

(4.) मुहम्मद गौरी के उत्तराधिकारी एवं गजनी के शासक महमूद बिन गियासुद्दीन ने कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का सुल्तान स्वीकार किया था परन्तु गियासुद्दीन को किसी को भी सुल्तान की उपाधि देने का अधिकार नहीं था। यह उपाधि केवल खलीफा ही दे सकता था।

(5.) गजनी के दूसरे शासक ताजुद्दीन यल्दूज ने कुतुबुद्दीन ऐबक की सत्ता को स्वीकार नहीं किया था।

(6.) ऐबक द्वारा स्थापित राज्य, असम्बद्ध तथा अव्यवस्थित संघ जैसा था। ऐबक की मृत्यु के उपरान्त उसकी सल्तनत चार टुकड़ों में बिखर गई।

इन तथ्यों के आधार पर बहुत से विद्वान कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक नहीं मानते।

कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद आरामशाह लाहौर में शासक बना। आरामशाह ने अपने नाम से खुतबा पढ़वाया और अपने नाम की मुद्राएं चलवाईं। इतना होने पर भी उसे भारत में मुस्लिम सल्तनत का संस्थापक नहीं कहा जा सकता। उसे दिल्ली में प्रवेश करने से पहले ही इल्तुतमिश ने परास्त कर दिया था। ऐसी दशा में केवल अपने नाम का खुतबा पढ़वाने तथा मुद्रा चलाने से उसे दिल्ली का सुल्तान मान लेना ठीक नहीं है। उसे खलीफा ने सुल्तान स्वीकार नहीं किया था।

अधिकांश इतिहासकार इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक मानते हैं। इसके पक्ष में कई तर्क दिये जाते हैं-

(1.) दिल्ली के अमीरों ने जिस समय आरामशाह के स्थान पर इल्तुतमिश को दिल्ली का सुल्तान निर्वाचित किया, उस समय तक दिल्ली की सल्तनत लगभग समाप्त हो चुकी थी।

(2.) इल्तुतमिश ने विभिन्न तुर्की अमीरों का दमन करके, नये हिन्दू राज्यों को जीतकर तथा यल्दूज, कुबाचा और अली मर्दान जैसे प्रतिद्वन्द्वियों को समाप्त करके नये सिरे से दिल्ली सल्तनत का निर्माण किया तथा उसे स्थायित्व प्रदान किया।

(3.) इल्तुतमिश ने मंगोलों के आक्रमण से दिल्ली सल्तनत की रक्षा की।

(4.) इल्तुतमिश ने बंगाल तथा बिहार फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन कर लिये और दो-आब के विद्रोहियों का दमन करके राजधानी दिल्ली को सुरक्षित बनाया।

(5.) इल्तुतमिश ने न केवल उन राजपूतों को दिल्ली की अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जो ऐबक की मृत्यु के उपरान्त स्वतन्त्र हो गये थे, वरन् अन्य राजपूतों को भी परास्त करके सल्तनत की सीमा में वृद्धि की।

(6.) इल्तुतमिश ने खलीफा से सुल्तान की उपाधि प्राप्त करके दिल्ली सल्तनत को इस्मालिक जगत में नैतिक आधार दिलवाया।

(8.) इल्तुतमिश को 26 साल के दीर्घ शासनकाल में सल्तनत को संगठित करने का पर्याप्त समय मिला। इस कारण उसने जिस दिल्ली सल्तनत का निर्माण किया, वह इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद लगभग 300 सालों तक अस्तित्व में रही।

इस प्रकार इल्तुतमिश को ही भारत में मुस्लिम सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। फिर भी इतिहासकार इस तथ्य से मना नहीं कर सकते कि दिल्ली का पहला मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ही था जिसे मुहम्मद गौरी ने दिल्ली में सत्तारूढ़ किया था। ऐसी स्थिति में भारत में मुस्लिम सल्तनत की स्थापना करने का श्रेय अकेले इल्तुतमिश को कैसे दिया जा सकता है?

निष्कर्ष रूप में केवल इतना कहा जा सकता है कि दिल्ली सल्तनत की स्थापना का जो कार्य मुहम्मद गौरी ने आरम्भ किया, उसे कुतुबुद्दीन ऐबक एवं इल्तुतमिश द्वारा पूरा किया गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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