Wednesday, September 17, 2025
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अकबर के शासन सम्बन्धी उद्देश्य

भारतीय इतिहासकारों ने अकबर के शासन सम्बन्धी उद्देश्य विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला है। इन इतिहासकारों के अनुसार अकबर ने अपने शासन के कुछ निश्चित उद्देश्य निर्धारित किए तथा इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उसने जीवन भर प्रयास किए।

अकबर के शासन सम्बन्धी उद्देश्य

शासन की बागडोर हाथ में लेने के उपरान्त अकबर ने अपने शासन के उद्देश्यों को निर्धारित किया और तदनुकूल नीति का अनुसरण कर उन उद्देश्यों को प्राप्त करने का सतत प्रयास आरम्भ किया। अकबर के प्रधान उद्देश्य इस प्रकार से थे-

(1.) राज्य में शान्ति तथा व्यवस्था की स्थापना

अकबर का सर्वप्रथम उद्देश्य राज्य में शांति तथा व्यवस्था की स्थापना करना था। इस उद्देश्य को प्राप्त किये बिना अन्य उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो सकती थी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अकबर ने विद्रोहों का दमन करने की नीति अपनाई। उसने क्रूरता के स्थान पर क्षमादान का सहारा लिया। यदि कोई विद्रोही नत-मस्तक होकर क्षमादान के लिये  प्रार्थना करता तो अकबर उसे क्षमा कर देता था।

(2.) प्रजा में एकता की स्थापना

अकबर का दूसरा लक्ष्य राज्य में निवास करने वाली विभिन्न जातियों, धर्म और सम्प्रदायों को मानने वाली प्रजा में एकता की स्थापना करना था। अकबर जानता था कि इससे साम्राज्य की नींव मजबूत होगी और स्थायित्व प्राप्त होगा। वह यह भी जानता था कि मुगल भारत में बड़े आलोकप्रिय हैं।

भारतीय जनता उन्हें बर्बर तथा विदेशी समझती है। मुगलों ने दो बार अफगानों से भारत का राज्य छीना था और राजपूतों को खनवा तथा अन्य युद्धों में परास्त किया था। इसलिये अफगान तथा राजपूत, दोनों ही मुगलों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। इस घृणा को दूर करके समस्त प्रजा में एकता स्थापित करना आवश्यक था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अकबर ने उदारता, धार्मिक सहिष्णुता तथा ‘सुलहकुल’ (सबके साथ मेल) की नीति को अपनाया।

(3.) जनता की सर्वतोमुखी उन्नति

अकबर ने जनता की सर्वतोमुखी उन्नति को अपना प्रधान लक्ष्य बना लिया। उसने प्रजा की भौतिक उन्नति के लिए अनेक प्रकार के प्रशासनिक तथा सामाजिक सुधार किए। उसने भूमि सम्बन्धी भी अनेेक सुधार किये और वाणिज्य तथा व्यापार को प्रोत्साहित किया।

प्रजा की बौद्धिक उन्नति के लिए अकबर ने हिन्दी तथा संस्कृत को प्रश्रय दिया और फारसी के अध्ययन को प्रोत्साहित किया। प्रजा की सांस्कृतिक उन्नति के लिए उसने साहित्यकारों तथा कलाकारों को प्रश्रय तथा प्रोत्साहन दिया। प्रजा की आध्यात्मिक उन्नति के लिए अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण कर पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता दे दी ताकि समस्त प्रजा अपने-अपने ढंग से धार्मिक चिन्तन तथा सत्य की खोज करे।

(4.) धार्मिक तत्त्वों का अन्वेषण

अकबर का विश्वास था कि समस्त धर्मों के अन्तःस्तल में कुछ मौलिक सिद्धान्त छिपे हैं, क्योंकि समस्त धर्म अपनी दैवी उत्पत्ति को मानते हैं और पैगम्बरों द्वारा प्रचारित किये जाते हैं। इसलिये अकबर ने इन मौलिक सिद्धान्तों का अन्वेषण करना अपना लक्ष्य बनाया।

इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए अकबर ने इबादतखाना अथवा ‘पूजा गृहों’ की स्थापना की, जहाँ पर समस्त धर्मों के आचार्य एकत्रित होकर अपने धार्मिक विचारों को व्यक्त करते थे। आत्म-चिन्तन तथा विभिन्न धर्मों के आचार्यों से विचार-विनिमय करने के उपरान्त अकबर ने समस्त धर्मों के मूल तत्त्वों को एकत्रित करके ‘दीन इलाही’ नामक नये धर्म का प्रचार करने का प्रयत्न किया, जिसमें समस्त धर्मों की अच्छी-अच्छी बातें विद्यमान थीं।

(5.) विश्व साम्राज्य की स्थापना

अकबर सम्पूर्ण विश्व को एक राजसूत्र में बांध देना चाहता था। विश्व साम्राज्य की स्थापना की प्रेरणा उसे चंगेज खाँ से प्राप्त हुई थी और यह इस्लाम धर्म के अनुकूल थी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अकबर ने साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण किया और एक विशाल सेना का संगठन किया।

उसने सम्पूर्ण भारत में अपनी सार्वभौम सत्ता स्थापित करने के उद्देश्य से उत्तर तथा दक्षिण भारत में विजय यात्राएँ कीं। भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बाँधने के उपरान्त अकबर मध्य-पूर्व तथा पश्चिम एशिया को भी अपने साम्राज्य में सम्मिलित करना चाहता था।

(6.) सीमा की सुरक्षा की व्यवस्था

भारत को सबसे बड़ा खतरा उत्तर-पश्चिम की ओर से लगा रहता था। इसलिये अकबर ने पश्चिमोत्तर प्रदेश की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया। उसने पश्चिमोत्तर प्रदेश के राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण तथा कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित किये और योग्य सेनापतियों की अध्यक्षता में प्रबल सेनाएँ रखकर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाया।

(7.) यूरोपीय व्यापारियों का उन्मूलन

अकबर यूरोपीय व्यापारियों की शक्ति का संवर्द्धन, भविष्य के लिये संकट कारक मानता था। इसलिये अकबर ने उन्हें भारत भूमि से निष्कासित करना अपना लक्ष्य बना लिया। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उसने निश्चय किया कि एक प्रबल जहाजी बेड़ा बनाकर भारत के समुद्र तट पर अधिकार स्थापित किया जाये।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मूल आलेख – मुगल सल्तनत की पुनर्स्थापनाजलालुद्दीन मुहम्मद अकबर

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