Monday, August 25, 2025
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आत्माराम पाण्डुरंग और प्रार्थना समाज

डॉ. आत्माराम पाण्डुरंग ने 31 मार्च 1867 को जस्टिस महादेव गोविन्द रानडे तथा इतिहासकार आर. जी. भंडारकर के साथ मिलकर बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना की।

प्रार्थना-समाज ब्रह्म-समाज से प्रेरित हिन्दूवादी आंदोलन था। यह प्राचीन वेदों पर आधारित था एवं पूर्णतः आस्तिक विचारधारा पर खड़ा था। आत्माराम पाण्डुरंग केशवचंद्र सेन से बहुत प्रभावित थे। इस कारण ब्रह्मसमाज तथा प्रार्थना समाज की बहुत सी बातें एक जैसी थीं।

ब्रह्मसमाज की तरह प्रार्थना समाज का उद्देश्य भी समाज सुधार करना था। आत्माराम पाण्डुरंग एकेश्वरवाद तथा ईश्वर के निराकार रूप के सिद्धांत को मानते थे।

प्रार्थना समाज के दार्शनिक सिद्धांत

आत्माराम पाण्डुरंग एवं उनके साथियों का मुख्य उद्देश्य ईश्वर को प्रार्थना एवं सेवा से प्रसन्न करना था, इसलिए प्रार्थना समाज के मुख्य सिद्धांत वैष्णव भक्ति के सिद्धांतों की ही तरह थे। प्रार्थना समाज के मुख्य सिद्धांत इस प्रकार थे-

1. ईश्वर ही ने इस ब्रह्मांड को रचा है।

2. ईश्वर की आराधना से इहलोक एवं परलोक में सुख प्राप्त हो सकता है।

3. ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम और अनन्य आस्था रखकर उसकी प्रार्थना, उपासना और कीर्तन करना चाहिए।

4. ईश्वर को अच्छे लगने वाले कार्य करना ही ईश्वर की सच्ची आराधना है।

5. यद्यपि प्रार्थना समाज में मूर्ति-पूजा के त्याग की शर्त नहीं थी तथापि आत्माराम पाण्डुरंग एवं उनके साथी मानते थे कि ईश्वर की मूर्तियों अथवा अन्य मानव सृजित वस्तुओं की पूजा करनाए ईश्वर की आराधना का सच्चा मार्ग नहीं है।

6. प्रार्थना समाज का मानना था कि ईश्वर अवतार नहीं लेता। कोई भी पुस्तक ऐसी नहीं है जिसे स्वयं ईश्वर ने रचा अथवा प्रकाशित किया हो या पूर्णतः दोष.रहित हो।

प्रार्थना समाज के सामाजिक लक्ष्य

सामाजिक क्षेत्र में इस संस्था के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे-

(1.) विधवा-विवाह को बढ़ावा देना।

(2.) जाति-प्रथा को अस्वीकार करना।

(3.) स्त्री-शिक्षा को प्रोत्साहन देना।

(4.) बाल-विवाह का बहिष्कार करना।

(5.) विवेकपूर्ण उपासना करना।

(6.) अन्य सामाजिक सुधार करना।

केशवचन्द्र सेन, नवीनचन्द्र राय, पी. सी. मजूमदार और बाबू महेन्द्रनाथ बोस जैसे प्रसिद्ध ब्रह्म समाजियों के बम्बई आगमन से प्रार्थना समाज को प्रोत्साहन मिला। प्रार्थना समाज के अनुयायियों ने अपना ध्यान अन्तर्जातीय विवाह, विधवा-विवाह और महिलाओं एवं हरिजनों की दशा सुधारने पर केन्द्रित किया।

उन्होंने अनाथाश्रम, रात्रि पाठशालाएं, विधवाश्रम, अछूतोद्धार जैसी अनेक उपयोगी संस्थाएं स्थापित कीं। प्रार्थना समाज ने हिन्दू-धर्म से अलग होकर कोई नवीन सम्प्रदाय स्थापित करने का प्रयास नहीं किया और न इसने ईसाई धर्म का समर्थन किया। इसने अपने सिद्धान्त भागवत् सम्प्रदाय से सम्बन्धित रखे।

हिन्दू कट्टरता पर करारी चोट

आत्माराम पाण्डुरंग तथा प्रार्थना समाज के कुछ सदस्यों ने हिन्दू-कट्टरता पर करारी चोट की। महाराष्ट्र के समाज सुधारक गोपाल हरिदेशमुख (लोकहितवादी) ने लिखा है- ‘धर्म यदि सुधार की अनुमति नहीं देता तो उसे बदल देना चाहिये। क्योंकि धर्म को मनुष्य ने बनाया है और यह आवश्यक नहीं है कि बहुत पहले लिखे गये धर्म ग्रंथ आज भी प्रासंगिक हों।’

गोपाल हरिदेशमुख ने पुरोहितों तथा ब्राह्मणों पर प्रहार करते हुए उन्होंने लिखा- ‘पुरोहित बहुत ही अपवित्र हैं क्योंकि कुछ बातों को बिना उनका अर्थ समझे दुहराते रहते हैं……. पण्डित तो पुरोहितों से भी बुरे हैं क्योंकि वे और भी अज्ञानी हैं तथा अहंकारी भी हैं

…….. ब्राह्मण कौन हैं और किन अर्थों में वे हमसे भिन्न हैं ? क्या उनके बीस हाथ हैं और क्या हममें कोई कमी है ? अब जब ऐसे सवाल पूछे जायें तो ब्राह्मणों को अपनी मूर्खतापूर्ण धारणाएं त्याग देनी चाहिये, उन्हें यह मान लेना चाहिये कि समस्त मनुष्य बराबर हैं तथा हर व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार है।’

जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे का योगदान

जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे ने प्रार्थना-समाज के माध्यम से बहुत कार्य किया। जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे (ई.1842-1901) ने इस संस्था के माध्यम से बहुत काम किया। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रार्थना समाज के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में लगाया। वे समाज सुधार के साथ राष्ट्रीय प्रगति के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने ई.1884 में दकन एजूकेशन सोसायटी तथा विधवा-विवाह संघ की स्थापना की।

उन्होंने भारतीय सुधारों को नवीन दिशा दी। प्रार्थना समाज धार्मिक गतिविधियों की अपेक्षा सामाजिक क्षेत्र में अधिक कार्यशील रहा और पश्चिमी भारत में समाज सुधार सम्बन्धी विभिन्न कार्यकलापों का केन्द्र रहा। प्रार्थना समाज ने महाराष्ट्र में समाज सुधार के लिए वही कार्य किया, जो ब्रह्मसमाज ने बंगाल में किया था।

प्रार्थना समाज का प्रभाव सीमित था और यह संस्था शीघ्र ही छिन्न-भिन्न हो गई।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मुख्य लेख : उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी के समाज-सुधार आंदोलन

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