अलाउद्दीन खिलजी 1296 ई. में दिल्ली के तख्त पर बैठा था। उसके तख्त पर बैठने से पहले भी मंगोल कई बार भारत पर आक्रमण कर चुके थे। यहाँ तक कि जलालुद्दीन खिलजी मंगोलों को दिल्ली के बाहर मंगोलपुरी बसाकर रहने की अनुमति दे चुका था। अलाउद्दीन खिलजी के दिल्ली तख्त पर बैठने के कुछ माह बाद मंगोलों का पहला आक्रमण हुआ तथा 1307 ई. तक वे अलाउद्दीन खिलजी के राज्य पर आक्रमण करते रहे। अलाउद्दीन खिलजी ने 1316 ई. तक शासन किया था। इस प्रकार उसके शासन के अंतिम नौ वर्ष का समय मंगोलों के आक्रमण से मुक्त रहा।
(1.) कादर का आक्रमण: मंगोलों का पहला आक्रमण 1296 ई. में कादर के नेतृत्व में हुआ। उस समय अलाउद्दीन को गद्दी पर बैठे कुछ महीने ही हुए थे। अलाउद्दीन ने अपने मित्र जफर खाँ को उनके विरुद्ध भेजा। जफरखाँ ने मंगेालों को जालंधर के निकट परास्त किया। तथा उनका भीषण संहार किया।
(2.) देवा तथा साल्दी का आक्रमण: मंगोलों ने 1297 ई. में देवा तथा साल्दी के नेतृत्व में अलाउद्दीन खिलजी के राज्य पर दूसरा आक्रमण किया। उनका ध्येय पंजाब, मुल्तान तथा सिन्ध को जीत कर अपने राज्य में मिलाना था। उन्होंने सीरी के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। अलाउद्दीन ने अपने दो सेनापतियों उलूग खाँ तथा जफर खाँ को मंगोलों का सामना करने के लिए भेजा। उन्होंने सीरी का दुर्ग मंगालों से पुनः छीन लिया तथा साल्दी को 2000 मंगोलों सहित बंदी बनाकर दिल्ली भेज दिया। इस विजय के बाद अलाउद्दीन तथा उसके भाई उलूग खाँ को जफर खाँ से ईर्ष्या उत्पन्न हो गई क्योंकि मंगोलों पर लगातार दो विजयों से सेना में जफर खाँ की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई थी।
(3.) कुतलुग ख्वाजा का आक्रमण: मंगोलों का सबसे अधिक भयानक आक्रमण 1299 ई. में दाऊद के पुत्र कुतुलुग ख्वाजा के नेतृत्व में हुआ। उसने दो लाख मंगोलों के साथ बड़े वेग से आक्रमण किया। उसकी सेना तेजी से बढ़ती हुई दिल्ली के निकट पहुँच गई। उनका निश्चय दिल्ली पर अधिकार करने का था। इस बीच मंगोलों के भय से हजारों लोग दिल्ली में आकर शरण ले चुके थे। इससे दिल्ली में अव्यवस्था फैल गई। मंगोलों द्वारा दिल्ली की घेराबंदी कर लिये जाने के बाद तो स्थिति और भी खराब हो गई। इस पर भी अलाउद्दीन ने साहस नहीं छोड़ा। जफर खाँ को मंगोलों से लड़ने का अनुभव था इसलिये उसे अग्रिम पंक्ति में रखकर शाही सेना ने मंगोलों का सामना किया। जफर खाँ तथा उसकी सेना ने हजारों मंगोलों का वध किया तथा वे लोग मंगोलों को काटते हुए काफी आगे निकल गये। मंगोलों ने घात लगाकर जफर खाँ को मार डाला। उस समय अलाउद्दीन तथा उसका भाई उलूग खाँ पास में ही युद्ध कर रहे थे किंतु उन्होंने जफर खाँ को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया। रात होने पर मंगोल अंधेरे का लाभ उठाकर भाग गये। इतिहासकार के. एस. लाल के अनुसार इस युद्ध से अलाउद्दीन को दोहरा लाभ हुआ। पहला लाभ मंगोलों पर विजय के उपलक्ष्य में और दूसरा लाभ जफर खाँ की मृत्यु के रूप में। बरनी लिखता है कि मंगोल सैनिकों पर जफर खाँ की वीरता का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि जब उनके घोड़े पानी नहीं पीते थे तो वे घोड़ों से कहते थे कि क्या तुमने जफर खाँ को देख लिया है जो तुम पानी नहीं पीते ?
(4.) तुर्गी का आक्रमण: 1302 ई. में मंगोल सरदार तुर्गी ने एक लाख बीस हजार सैनिकों के साथ भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली के पास यमुना के तट पर आ डटा। इन दिनों अलाउद्दीन चितौड़ अभियान पूरा करके दिल्ली लौटा ही था। वह दिल्ली छोड़कर सीरी के दुर्ग में चला गया। इस कारण राजधानी असुरक्षित हो गई। मंगोलों ने दिल्ली की गलियों तक धावे मारे किंतु तीन महीने बाद वे वापस चले गये।
(5.) अलीबेग का आक्रमण: 1305 ई. में 50 हजार मंगोलों ने अलीबेग की अध्यक्षता में दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण किया। मंगोलों की सेना अमरोहा तक पहुँच गई। गाजी तुगलक उन दिनों दिपालपुर में था। उसने मंगोलों से भीषण युद्ध किया और उन्हें बड़ी क्षति पहुँचाई। असंख्य मंगोलों का संहार हुआ और वे भारत की सीमा के बाहर खदेड़ दिये गये। अलबेग तथा तार्तक को कैद करके दिल्ली लाया गया जहां उनका कत्ल कर दिया गया और उनके सिरों को सीरी के दुर्ग की दीवार में चिनवा दिया गया।
(6.) इकबाल मन्दा का आक्रमण: 1307 ई. में मंगोल सरदार इकबाल मन्दा ने विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया। अलाउद्दीन खिलजी ने इस विपत्ति का सामना करने के लिए मलिक काफूर तथा गाजी मलिक तुगलक के नेतृत्व में विशाल सेना भेजी। मलिक काफूर ने रावी नदी के तट पर कबक को परास्त करके उसे बीस हजार मंगोलों सहित कैद कर लिया। इन्हें दिल्ली लाकर हाथियों के पैरों तले कुचलवाया गया। बदायूं दरवाजे पर उनके सिरों की एक मीनार बनाकर इससे वे इतने आतंकित हो गये कि अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में उन्हें फिर कभी भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ।
मंगोलों की असफलता के कारण
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में मंगोलों को समस्त आक्रमणों में असफल होना पड़ा। उनकी पराजय के कई कारण थे-
(1.) इस समय मंगोल कई शाखाओं में विभक्त होकर पारस्परिक संघर्षों में व्यस्त थे। इस कारण वे संगठित होकर पूरी शक्ति के साथ भारत पर आक्रमण नहीं कर सके।
(2.) मंगोल अपने साथ स्त्रियों, बच्चों तथा वृद्धों को भी लाते थे जो युद्ध क्षेत्र में सेना के लिए भार बन जाते थे।
(3.) दाऊद की मृत्यु के बाद मंगोल अस्त-व्यस्त हो गये थे। दिल्ली सल्तनत पर लगातार आक्रमणों के कारण उनकी सैन्य शक्ति काफी छीज गई थी।
(4.) अलाउद्दीन के सैनिक गुण तथा उसकी संगठन प्रतिभा ने मंगोलों को जीतने नहीं दिया।
मंगोलों के आक्रमण का प्रभाव
मंगोलों के आक्रमण का भारत पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा-
(1.) मंगोलों के आक्रमणों में सहस्रों व्यक्तियों के प्राण गये और उनकी सम्पत्ति लूटी गई।
(2.) मंगोलों से भयभीत रहने के कारण जनता राज्य के संरक्षक तथा अवलम्ब की ओर झुक गई और उसमें राज-भक्ति की भावना प्रबल हो गई। इससे सुल्तान की शक्ति में बड़ी वृद्धि हो गई।
(3.) मंगोलों के आक्रमण की निरन्तर सम्भावना बनी रहने के कारण सुल्तान को अत्यन्त विशाल सेना की व्यवस्था करनी पड़ी। इसका प्रभाव शासन व्यवस्था पर भी पड़ा। शासन का स्वरूप सैनिक हो गया और सेना की स्वेच्छाचरिता तथा निरंकुशता में वृद्धि हो गई।
(4.) मंगोलों का सफलता पूर्वक सामना करने के लिए सुल्तान को बड़े सैनिक तथा प्रशासकीय सुधार करने पड़े।
अलाउद्दीन की सीमा नीति
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने राज्य को मंगोलों के आक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए बलबन की सीमा नीति का अनुसरण किया। उसने इसके निम्नलिखित उपाय किये-
(1.) अलाउद्दीन खिलजी ने पुराने दुर्गों की मरम्मत करवाई तथा पंजाब, मुल्तान एवं सिंध में नये दुर्गों का निर्माण करवाया
(2.) सीमा प्रदेश के दुर्गों में योग्य तथा अनुभवी सेनापतियों के नेतृत्व में विशाल सेनायें रक्खी गईं।
(3.) समाना तथा दिपालपुर की किलेबन्दी की गई।
(4.) सेना की संख्या में वृद्धि की गई और हथियार बनाने के कारखाने खोले गये।
(5.) राजधानी की सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था की गई और दिल्ली के दुर्ग का जीर्णोद्धार कराया गया।
(6.) सीरी में एक नये दुर्ग का निर्माण करवाया गया ।
(7.) सेना की रणनीति में परिवर्तन किया गया। सेना की सुरक्षा के लिए खाइयाँ खुदवाई गईं, लकड़ी की दीवारें बनवाई गईं तथा हाथियों के दस्तों की व्यवस्था की गई।
(8.) आक्रमणकारियों की वास्तविक शक्ति से अवगत होने के लिए गुप्तचर विभाग की व्यवस्था की गई।
यह भी देखें-
सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी – खिलजी वंश का संस्थापक
अलाउद्दीन खिलजी – खिलजी वंश का चरमोत्कर्ष
अलाउद्दीन खिलजी : साम्राज्य विस्तार
अल्लाउद्दीन खिलजी : मंगोल नीति