Wednesday, September 10, 2025
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औरंगजेब (आलमगीर)

औरंगजेब का पूरा नाम मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब था। उसे आलमगीर भी कहा जाता था। उसने ईस्वी 1658 से 1707 तक भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया। वह एक क्रूर एवं धर्मान्ध कट्टर सुन्नी मुसलमान शासक था। उसकी कट्टर नीतियों ने मुगल सल्तनत को पतन के मार्ग पर धकेल दिया।

औरंगजेब का प्रारम्भिक जीवन

मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर 1618 को उज्जैन के निकट दोहद में हुआ था। उस समय उसका बाबा जहाँगीर दक्षिण से आगरा लौट रहा था। कुछ इतिहासकारों ने उसका जन्म 1619 ई. में अहमदाबाद तथा मालवा की सीमा पर स्थित दोसीमा नामक स्थान पर होना बताया है, जब शाहजहाँ दक्षिण का सूबेदार था।

दोहद और दोसीमा का एक ही अर्थ होता है। आज यह स्थान दोहद के नाम से ही प्रसिद्ध है। सर जदुनाथ सरकार ने औरंगजेब का जन्म 24 अक्टूबर 1618 को होना माना है। शाहजहाँ तथा मुमताज महल की चौदह संतानें थीं। इनमें औरंगजेब छठा था।

जब शाहजहाँ ने जहाँगीर के विरुद्ध विद्रोह किया तब औरंगजेब आठ साल का था। उस समय औरंगजेब तथा उसके भाई दारा को बड़े कष्ट झेलने पड़े। इन दोनों भाइयों को नूरजहाँ के पास बंधक के रूप में रखा गया। जब शाहजहाँ ने जहाँगीर के समक्ष समर्पण किया, तब दोनों भाईयों को मुक्त किया गया।

इस कारण जब औरंगजेब 10 साल का हुआ, तब उसकी शिक्षा आरम्भ हो सकी। मीर मुहम्मद हाशिम को उसका शिक्षक बनाया गया। औरंगजेब कुशाग्र बुद्धि तथा विलक्षण प्रतिभा का धनी था। उसने फारसी तथा अरबी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया और हिन्दी का भी थोड़ा-बहुत ज्ञान ले लिया।

औरंगजेब ने कुरान तथा हदीस का पूरा ज्ञान प्राप्त कर लिया। वह चित्रकला तथा संगीत आदि ललित कलाओं से दूर रहता था। औरंगजेब जबर्दस्त लड़ाका एवं दुःसाहसी शहजादा था। उसके स्वभाव में उत्साह, धैर्य तथा दृढ़ता कूट-कूट कर भरी हुई थी।

जब औरंगजेब की अवस्था केवल पन्द्रह वर्ष थी तब एक उन्मत्त हाथी उस पर टूट पड़ा। औरंगजेब ने बड़ी निर्भीकता से अपने भाले से उस हाथी पर प्रहार करके उसे अपने नियंत्रण में कर लिया। उसकी इस बहादुरी से प्रसन्न होकर शाहजहाँ ने उसे ‘बहादुर’ की उपाधि दी।

औरंगजेब को सूबेदार के पद पर नियुक्ति

1634 ई. में शाहजहाँ ने औरंगजेब को दस हजार जात और चार हजार सवार का मनसबदार नियुक्त किया गया। 1635 ई. में उसे बुन्देला विद्रोह के दमन का कार्य सौंपा। इस प्रकार व्यावहारिक जीवन में औरंगजेब का प्रवेश हुआ। वह बुन्देला विद्रोह का दमन करने में सफल रहा।

औरंगजेब ने सैन्य-संचालन तथा संगठन क्षमता का अच्छा परिचय दिया। उसकी सैनिक प्रतिभा से प्रसन्न होकर शाहजहाँ ने उसे 14 जुलाई 1636 को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। 18 मई 1637 को फारस के राजपरिवार के शाहनवाज की पुत्री दिलरास बानो बेगम से औरंगजेब का विवाह हुआ।

औरंगजेब की प्रतिष्ठा तथा प्रभाव को बढ़ता हुआ देखकर उसके बड़े भाई दारा के मन में द्वेष की भावना जागृत होने लगी और वह उसे अपना प्रतिद्वन्द्वी मानने लगा। 1644 ई. में दारा के कहने पर औरंगजेब को दक्षिण से वापस बुला लिया गया और 1645 ई. में गुजरात का सूबेदार बनाकर भेज दिया गया।

यहाँ पर भी औरंगजेब ने अपनी सैनिक तथा प्रशासकीय प्रतिभा का अच्छा परिचय दिया। दो वर्ष बाद 1647 ई. में उसे बल्ख तथा बदख्शाँ का गवर्नर तथा प्रधान सेनापति बनाकर भेजा गया किंतु ट्रांस ऑक्सियाना क्षेत्र में औरंगजेब को सफलता नहीं मिल सकी।

1648 ई. से 1652 ई. तक औरंगजेब मुल्तान तथा सिन्ध का सूबेदार रहा। उसने बड़ी योग्यता के साथ शासन किया। वह इस क्षेत्र में शान्ति तथा व्यवस्था स्थापित करने तथा प्रान्त की व्यापारिक उन्नति करने में सफल रहा। इस बीच 1649 ई. एवं 1652 ई. में उसे दो बार कन्दहार पर आक्रमण करने भेजा गया। दोनों ही बार औरंगजेब कन्दहार को जीतने में सफल नहीं हुआ परन्तु इन युद्धों में उसे बहुत बड़ा सैनिक अनुभव प्राप्त हो गया।

कन्दहार में मिली असफलता के कारण उसे 1652 ई. में दूसरी बार दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया गया। इस पद पर वह 1658 ई. तक रहा। इन 6 वर्षों में उसने कई प्रशंसनीय कार्य किये। उसने अपनी मन्त्री मुर्शिदकुली खाँ की सहायता से भूमि का प्रबन्घ किया जिससे इस प्रान्त में समृद्धि आई।

औरंगजेब ने अपनी सेना में कई सुधार किये और उसे रण-कौशल बना दिया। इस सेना की सहायता से उसने बीजापुर तथा गोलकुण्डा के राज्यों पर विजय प्राप्त की। औरंगजेब इन राज्यों को मुगल सल्तनत में सम्मिलित करके उनका अस्तित्त्व समाप्त करना चाहता था किन्तु शाहजहाँ के हस्तक्षेप के कारण वह ऐसा नहीं कर सका।

औरंगजेब को तख्त की प्राप्ति

1657 ई. में शाहजहाँ बीमार पड़ा। 1658 ई. में उसकी मृत्यु की अफवाह फैल गई। औरंगजेब अपने भाइयों में सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी था। उसने स्थिति का आकलन करके आगरा के लिए प्रस्थान कर दिया। उसने अपने समस्त प्रतिद्वन्द्वियों को परास्त करके अपने बूढ़े पिता शाहजहाँ को बन्दी बना लिया और उसके तख्त पर बैठ गया।

16 जुलाई 1658 को औरंगजेब ने स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया। उसने अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी की उपाधि धारण की। औरंगजेब का औपचारिक राज्याभिषेक 5 जून 1659 को दिल्ली में बड़े समारोह के साथ हुआ। उसने वृद्ध शाहजहाँ को कारागार में डाल दिया।

लोगों का विश्वास जीतने के लिये औरंगजेब ने अपने राज्याभिषेक के अवसर पर लोगों को खूब धन बाँटा और पुरस्कार दिये। सिंहासन पर बैठने के बाद उसने ‘अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन’ और ‘औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी’ की उपाधि धारण की। उसने लगभग पचास वर्ष तक शासन किया।

आलमगीर के शासन के प्रथम पच्चीस वर्ष, उत्तरी भारत में सीमा की सुरक्षा करने तथा विद्रोहों का दमन करने में व्यतीत हुए जबकि शासन के अन्तिम पच्चीस वर्ष दक्षिण के राज्यों को विध्वंस करने में व्यतीत हुए। उसने अपने शासन काल में जिस नीति का अनुसरण किया वह मुगल सल्तनत के लिए बड़ी घातक सिद्ध हुई और अन्त में उसके विनाश का कारण बन गई।

औरंगजेब द्वारा किये गये सुधार कार्य

बादशाह बनते ही औरंगजेब ने अपनी नीति को कार्यान्वित करना आरम्भ कर दिया। उसके द्वारा किये गये मुख्य सुधार इस प्रकार से थे-

(1.) मुहतासिबों की नियुक्ति

प्रत्येक बड़े नगर में मुहतासिब अर्थात् आचरण के निरीक्षक निुयक्त किये गए। इन अधिकारियों का कर्त्तव्य था कि वे यह देखें कि प्रजा, इस्लाम के सिद्धान्तों के अनुसार जीवन व्यतीत करती है या नहीं! अर्थात् प्रजा मद्यपान तो नहीं करती! कोई जुआ तो नहीं खेलता! लोग चरित्र-भ्रष्ट तो नहीं हो रहे! लोग नियमित रूप से दिन में पाँच बार नमाज पढ़ते हैं और मोहर्रम में रोजा रखते हैं या नहीं!

(2.) कलमा लिखने पर रोक

आलमगीर ने मुद्राओं पर कलमा लिखवाना बन्द कर दिया क्योंकि वह गैर-मुसलमानों के हाथों में जाने से अपवित्र हो जाता था।

(3.) नौरोजे की समाप्ति

आलमगीर ने नौरोज के त्यौहार को बन्द कर दिया, जिसे उसके पूर्वज मनाया करते थे।

(4.) संगीतकारों का दरबार से निष्कासन

आलमगीर की धारणा थी कि संगीत इस्लाम के विरुद्ध है। अतः उसके पूर्वजों के काल के जितने प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे और जिन्हें मुगल सल्तनत का आश्रय प्राप्त था, उन सबको उसने मार भगाया।

(5.) झरोखा दर्शन पर रोक

अकबर, जहाँगीर तथा शाहजहाँ, प्रतिदिन प्रातःकाल में अपनी प्रजा को झरोखा दर्शन, दिया करते थे। इस प्रथा को आलमगीर ने बन्द करवा दिया क्योंकि यह हिन्दुओं की प्रथा के अनुरूप थी।

(6.) इस्लाम का विरोध करने वालों को दण्ड

आलमगीर ने इस्लाम के विद्धान्तों का विरोध करने वालों तथा सूफी मत को मानने वाले को दण्डित किया। सरमद को, जो सूफी मत का अनुयाई और दारा का पक्षपाती था, मरवा दिया गया।

(7.) सती प्रथा का निषेध

आलमगीर ने 1664 ई. में सती प्रथा पर रोक लगा दी।

(8.) बादशाह को उपहारों पर रोक

बादशाह की वर्षगाँठ तथा अन्य अवसरों पर राज्याधिकारी तथा प्रजा द्वारा उपहार तथा भेंट दिये जाते थे। आलमगीर ने इस प्रथा पर रोक लगा दी। इससे राजकोष को बहुत नुकसान हुआ।

(9.) अनुचित चुंगियों तथा करों की समाप्ति

आलमगीर ने मुगल सल्तनत में प्रचलित बहुत-सी अनुचित चुंगियों तथा करों को हटा दिया। आंतरिक चुंगी को समाप्त कर दिया क्योंकि इससे व्यापार में बाधा पड़ती थी। जो माल नगरीय बाजारों में बिकने आता था उस पर विक्रय-कर लगता था। इसे भी औरंगजेब ने हटा दिया।

(10.) मालगुजारी वसूलने वालों पर निगरानी

आलमगीर ने मालगुजारी वसूल करने वालों पर निगरानी की व्यवस्था की। जो लोग इस कार्य में अत्याचार करते थे, उन्हें कठोर दण्ड दिये गये। अधिकारी घूस या नजराना नहीं ले सकते थे। बादशाह स्वयं भी समस्त कागजों को ध्यान से देखता था।

(11.) मुस्लिम प्रजा के हितों की चिंता

आलमगीर स्वयं को अपनी प्रजा का सेवक कहता था और उसके जीवन को सुखी बनाने के लिये प्रयत्नशील रहता था। प्रजा का तात्पर्य मुस्लिम-प्रजा से था, हिन्दू-प्रजा से नहीं। हिन्दुओं को वह काफिर समझता था और उनके प्रति बड़ा अनुदार था।

औरंगजेब की नीतियाँ तथा उनके परिणाम

आलमगीर कट्टर सुन्नी बादशाह था। वह भारत से काफिरों को समाप्त करके दारूल-इस्लाम अर्थात् मुस्लिम राज्य की स्थापना करना चाहता था। उसकी नीतियों को तीन भागों- (1.) धार्मिक नीति, (2.) राजपूत नीति तथा (3.) साम्राज्यवादी नीति में विभक्त किया जा सकता है।

आलमगीर की इन तीनों नीतियों के मूल में उसकी धार्मिक कट्टरता काम कर रही थी। वह जीवन भर हिन्दू प्रजा को बलपूर्वक मुसलमान बनाकर, जाटों, राजपूतों, सिक्खों तथा अन्यान्य हिन्दू शासकों का नाश कर, मंदिरों तथा तीर्थों को नष्ट कर तथा मुगल साम्राज्य से बाहर के राज्यों को अपनी सल्तनत में मिलाकर, दारूल-इस्लाम की स्थापना में लगा रहा।

आलमगीर की इन नीतियों के बारे में हम अगले अध्यायों में विस्तार से पढ़ेंगे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मुख्य आलेख – औरंगजेब (आलमगीर )

औरंगजेब (आलमगीर)

औरंगजेब की धार्मिक नीति

औरंगजेब की राजपूत नीति

औरंगजेब की साम्राज्यवादी नीति

औरंगजेब के अंतिम दिन

औरंगजेब के उत्तराधिकारी

मुगल सल्तनत का विघटन

मुगल सल्तनत का अंत

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