राष्ट्रकूट मन्दिर स्थापत्य कला दक्षिण भारत की प्रमुख मंदिर स्थापत्य शैलियों में से है। राष्ट्रकूट राजा उत्तर भारत में आने से पहले दक्षिण भारत में शासन करते थे।
एलौरा का कैलाश नाथ मन्दिर
राष्ट्रकूट मन्दिर स्थापत्य कला का सर्वाधिक प्रसिद्ध उदाहरण एलौरा का कैलाश नाथ मन्दिर है। यह स्थान आन्ध्रप्रदेश के औरंगाबाद नगर से 15 मील की दूरी पर है।
कैलाश नाथ मन्दिर को राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण प्रथम (ई.758-773) ने बनवाया था। इसमें गुहा-मन्दिर कला की एक अन्य शैली दिखाई देती है। गुहामंदिर के निर्माण में परम्परागत रूप से पर्वत के निचले भाग से खुदाई की जाती थी और उसे खोखला करते हुए ऊपर तक जाते थे परन्तु कैलाशनाथ मन्दिर को बनाने के लिए शिल्पकारों ने एक लम्बी पहाड़ी को शीर्ष से तराशना प्रारम्भ करके समूची पहाड़ी को ऊपर से नीचे तक तराश कर मन्दिर के समस्त अंग- छत, द्वार, झरोखे, खिड़कियां, स्तम्भ, तोरण, मण्डप, शिखर, गर्भगृह, चारों ओर के बरामदे आदि बनाए।
कैलाश नाथ मन्दिर का विमान समानान्तर चतुर्भज आकार में है। यह 150 फुट लम्बा और 100 फुट चैड़ा है। यह विमान 25 फुट ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। मन्दिर के ऊपर के शिखर की ऊंचाई 95 फुट है। मन्दिर में एक गर्भगृह है जिसके आगे स्तम्भ युक्त मण्डप है, जो 70 फुट लम्बा और 60 फुट चौड़ा है।
इस प्रमुख इमारत के बाद एक नन्दी-मण्डप है जिसके दोनों ओर 51-51 फुट ऊंचे दो ध्वज स्तम्भ हैं। इन पर त्रिशूल स्थापित हैं। मुख्य मन्दिर के चारों ओर बरामदे हैं जिनके चारों ओर स्तम्भ पंक्तियां एवं कक्ष बनाए गए हैं। यह मन्दिर दो-मंजिला है तथा बिना किसी जोड़ के केवल एक चट्टान को तराश कर बनाया गया है।
मन्दिर के स्तम्भों पर प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं, द्वारों पर मनोहर लताएं एवं पुष्प मन्जरियां बनाई गई हैं और शिखर पर शिव-पार्वती विवाह, इन्द्र-इंद्राणी की मूर्तियाँ और रावण द्वारा कैलाश-उत्तोलन आदि पौराणिक कथाओं के दृश्यों का अंकन किया गया है। तोरण के दोनों ओर एक-एक हाथी है।
राष्ट्रकूट मन्दिर स्थापत्य कला – ऐलिफेण्टा की गुफाएं
बम्बई से लगभग 6 मील दूर धारापुरी नामक टापू में दो पहाड़ियों के ऊपरी भाग को काटकर मन्दिर एवं मूर्तियों का निर्माण किया गया है। इन्हें ऐलिफेण्टा की गुफाएं कहते हैं। ये भी राष्ट्रकूट काल में निर्मित मानी जाती हैं।
मूल रूप से इस स्थान को श्रीपुरी नाम दिया गया था जिसका अर्थ होता है लक्ष्मी की नगरी। जब पुर्तगालियों ने इस क्षेत्र पर अधिकार किया, तब यहां पर हाथी की विशाल मूर्ति का निर्माण किया गया। इस कारण इसे एलीफेण्टा कहने लगे।
एलोरा का कैलाश मंदिर और एलीफेंटा की गुफाओं के मंदिरों का स्थापत्य एक जैसा है। एलीफेंटा गुफाओं के प्रवेश द्वार पर द्वारपालों की विशाल प्रतिमाएं हैं।
गर्भगृह की दीवारों पर जटिल मूर्तिकला उकेरी गई है जिनमें नटराज, गंगाधर, अर्धनारीश्वर, सोमस्कंद और प्रसिद्ध त्रिमूर्ति की मूर्तियाँ शामिल हैं। छह मीटर ऊँची मूर्ति भगवान शिव के तीन रूपों- सर्जक, पालक और संहारक का प्रतिनिधित्व करती है।
दक्षिण का मन्दिर स्थापत्य
दक्षिण का मन्दिर स्थापत्य एवं द्रविड़ शैली
राष्ट्रकूट मन्दिर स्थापत्य कला