Friday, October 10, 2025
spot_img

बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

बंगाल में सशस्त्र क्रांति का मंत्र समाचार पत्रों के माध्यम से प्रसारित हुआ। 1906 ई. में वारीन्द्र कुमार घोष  और भूपेन्द्र दत्त  ने मिलकर युगान्तर समाचार पत्र आरम्भ किया। इसका मुख्य उद्देश्य क्रांतिकारी भावना का प्रचार करना था। शीघ्र ही यह पत्र इतना लोकप्रिय हो गया कि इसकी 50,000 प्रतियां प्रतिदिन बिकने लगीं।

संध्या और नवशक्ति जैसे दूसरे पत्र भी क्रांतिकारी विचारों का प्रसार करते थे। इन पत्रों में देशभक्ति से ओत-प्रोत गीत और साहित्यिक रचनाएं छपती थीं। वारीन्द्र घोष के लेख पाठकों की धमनियों में उबाल लाने में का काम करते थे। एक लेख में उन्होंने लिखा- ‘मित्रो! सैकड़ों और हजारों व्यक्तियों की दासता अपने रुधिर की धार से बहाने को तैयार हो जाओ।’

अनुशीलन समिति की स्थापना

बंगाल में सबसे पहले स्थापित होने वाला क्रांतिकारियों का प्रमुख संगठन अनुशीलन समिति था। इसकी स्थापना 24 मार्च 1903 को सतीशचन्द्र बसु ने की। बाद में बैरिस्टर प्रमथनाथ मित्र ने इसका नेतृत्व संभाला। बंगाल में इसकी लगभग 500 शाखाएं स्थापित हो गईं।

अरविन्द घोष, जतींद्रनाथ वंद्योपाध्याय (जतीन उपाध्याय), चितरंजन दास, सिस्टर निवेदिता, वारीन्द्र घोष, अविनाश भट्टाचार्य आदि अनेक क्रांतिकारी, अनुशीलन समिति से जुड़ गये। अनुशीलन समिति की स्थापना एक व्यायामशाला के रूप में हुई।

प्रकट रूप से समिति स्थान-स्थान पर क्लब अथवा केन्द्र खेलकर नौजवानों को ड्रिल और तरह-तरह के व्यायाम, लाठी संचालन, तलवारबाजी, कटार चलाने, घुड़सवारी करने, तैरने तथा मुक्केबाजी का प्रशिक्षण देती थी। इन्हीं नौजवानों में से चुने हुए कुछ लोगों को गुप्त क्रांतिवादी कार्यों में लगाया जाता था।

1905 ई. में बंग-भंग विरोधी आंदोलन तथा स्वदेशी आन्दोलन से गुप्त क्रांतिकारी कार्यों को बल मिला। सैकड़ों नौजवान अनुशीलन समिति के सदस्य बन गये और बंगाल के विभिन्न हिस्सों में उसकी सैकड़ों शाखाएं खुल गईं परन्तु इन्हीं दिनों में विपिनचन्द्र पाल तथा चितरंजनदास आदि कुछ बड़े नेता अनुशीलन समिति से अलग हो गए।

क्रांतिकारी साहित्य का प्रकाशन

समिति ने कुछ पुस्तकों का प्रकाशन करवा कर उन्हें जन सामान्य में वितरित किया। 1905 ई. में भवानी मन्दिर नामक पुस्तक प्रकाशित की गई जिसमें शक्ति की देवी काली की पूजा का महत्त्व प्रतिपादित किया गया। दूसरी पुस्तक वर्तमान रणनीति थी जिसके माध्यम से यह संदेश दिया गया कि भारत की स्वतंत्रता के लिए सैनिक शिक्षा और युद्ध आवश्यक है।

मुक्ति कौन पथे? नामक पुस्तक में युगान्तर के कई चुने हुए लेखों का संग्रह प्रकाशित किया गया। बकिंमचन्द्र चट्टोपाध्याय के आनन्दमठ नामक उपन्यास को भी काफी प्रचारित किया गया। वन्देमातरम, न्यू इण्डिया आदि क्रांतिकारी समाचार पत्र भी निकाले गये।

बैमफील्ड फुलर पर बम फैंकने की कार्यवाही

क्रांतिकारियों ने गोपनीय रूप से बड़ी मात्रा में अस्त्र-शस्त्र एकत्र किया। वारीन्द्र घोष और उनके साथियों ने 11 रिवाल्वर, 4 राइफलें और 1 बन्दूक इकट्ठी कीं। इस गुट में सम्मिलित होने वाले उल्लासकर दत्त ने बम बनाने का छोटा कारखाना खोला। उनके साथ हेमचन्द्र दास (कानूनगो) भी इस काम में लग गये।

वे पेरिस से बम बनाने का प्रशिक्षण लेकर आये थे। जब सरकार ने क्रांतिकारियों को तंग करना आरम्भ किया तो क्रांतिकारियों ने कुछ अँग्रेज अधिकारियों को मार देने का निश्चय किया। पहला बम पूर्वी बंगाल के गवर्नर सर बैमफील्ड फुलर को मारने के लिए बनाया गया। बम फैंकने का दायित्व प्रफुल्ल चाकी को सौंपा गया। प्रफुल्ल चाकी अपने काम में असफल रहा।

गवर्नर की ट्रेन पर बम फैंकने की कार्यवाही

6 दिसम्बर 1907 को बंगाल के गवर्नर की ट्रेन को मेदिनीपुर के पास उड़ाने का प्रयास किया गया। ट्रेन सिर्फ पटरी से उतर कर रह गई। कोई हताहत नहीं हुआ।

ढाका के मजिस्ट्रेट की हत्या

23 दिसम्बर 1907 को ढाका के मजिस्ट्रेट को गोली मार दी गई।

विपिनचन्द्र पाल की गिरफ्तारी

1907 ई. में विपिनचन्द्र पाल ने मद्रास का दौरा किया तथा मद्रास प्रवास में उन्होंने विभिन्न स्थानों पर जो भाषण दिये जिनका सार यह था कि हम ब्रिटिश शासन को समाप्त करके पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना चाहते हैं। उनके भाषणों ने मद्रासी नवयुवकों में क्रांतिकारी भावना का संचार किया।

जब सरकार ने विपिनचन्द्र पाल को बंदी बना लिया तब उनकी रिहाई के लिए मद्रास में भी प्रदर्शन हुए। पाल की रिहाई के अवसर पर एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया। इस पर सरकार ने सभा के प्रमुख आयोजकों को बन्दी बना लिया। इसकी प्रतिक्रिया में टिनेवली में उपद्रव हुए।

सरकार ने मद्रास से प्रकाशित होने वाले अनेक समाचार पत्रों के सम्पादकों तथा आन्दोलनकारी नेताओं को बन्दी बनाकर उन पर मुकदमा चलाया। इस कारण जनता, सरकार के विरुद्ध एकजुट होने लगी।

अलीपुर षड़यन्त्र तथा मानिकतल्ला केस

30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने जिला जज डी. एच. किंग्सफोर्ड पर बम फेंका। किंग्सफोर्ड पहले कलकत्ता में चीफ प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट रह चुका था और उसने क्रांतिकारियों को अमानवीय दण्ड दिये थे। उसने युगान्तर, वंदेमातरम्, संध्या और नवशक्ति समाचार पत्रों के पत्रकारों को सजाएं दी थीं।

उसने क्रांतिकारी सुशील कुमार सेन को 15 बेंत मारने की सजा दी जबकि उसने कोई अपराध नहीं किया था। दुर्भाग्यवश जिस घोड़ागाड़ी पर बम फेंका गया था, वह किंग्सफोर्ड की गाड़ी से मिलती-जुलती मिस्टर कैनेडी की गाड़ी थी और गाड़ी में उसकी पत्नी और पुत्री बैठी थीं। वे दोनों मारी गईं।

खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी घटनास्थल से भाग निकले। 1 मई 1908 को खुदीराम बोस को वाइनी स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 11 मई 1908 को फांसी दे दी गई। प्रफुल्ल चाकी को समस्तीपुर स्टेशन पर पहचान लिया गया। जब उन्होंने देखा कि पुलिस से बचना सम्भव नहीं है तो उन्होंने स्वयं को गोली मार ली।

क्रांतिकारियों ने नन्दलाल नामक उस पुलिस दरोगा को गोली मार दी जिसने खुदीराम बोस को पकड़ा था। इस पर कलकत्ता पुलिस ने क्रांतिकारियों के अनेक अड्डों पर छापे मारे तथा मानिकतल्ला के कारखाने से हथियार जब्त कर लिये। ब्रिटिश साम्राजय के विरुद्ध षड़यन्त्र करने के अपराध में 30 लोगों पर अभियोग लगाये गये। बाद में 6-7 और लोगों को भी सम्मिलित कर लिया गया। यह मुकदमा अलीपुर षड़यन्त्र तथा मानिकतल्ला केस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इस अभियोग की सुनवाई के दौरान नरेन्द्रनाथ गोसाईं, पुलिस का मुखबिर बन गया। वह अपनी गवाही देता उससे पहले ही कन्हाईलाल दत्त और सत्येन्द्रनाथ बोस ने उसे जेल में ही मौत के घाट उतार दिया। उन दोनों को बाद में फांसी की सजा दी गई। मुकदमे की सुनवाई के समय अदालत से बाहर निकलते हुए पुलिस के डिप्टी सुपरिन्टेन्डेट को गोली मार दी गई।

मुकदमे की पैरवी करने वाले सरकारी वकील आशुतोष विश्वास को भी क्रांतिकारियों ने गोली से उड़ा दिया। मुकदमे के फैसले के अनुसार वारीन्द्र कुमार घोष, उल्लासकर दत्त, हेमचन्द्र दास और उपेन्द्रनाथ बनर्जी को आजीवन काला पानी, विभूति भूषण सरकार, ऋषिकेश, फौजीलाल और इन्द्रभूषण राय को दस-दस साल तथा अन्य लोगों को सात-सात साल की काला पानी की सजा दी गई।

अरविन्द घोष को साक्ष्यों के अभाव में छोड़ दिया गया। अलीपुर षड़यन्त्र केस ने कुछ दिनों के लिए क्रांतिकारियों के कलकत्ता केन्द्र की रीढ़ तोड़ दी। उनके प्रमुख नेता गिरफ्तार हो गये। सरकारी आतंक ने उनके संगठन को छिन्न-भिन्न कर दिया।

ढाका में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

अलीपुर षड़यन्त्र केस के बाद क्रांतिकारी कार्यों का केन्द्र ढाका बन गया। पुलिनदास और यतीन्द्रनाथ मुकर्जी क्रांतिकारियों के नेता थे। अगस्त 1910 में पुलिनदास को ढाका षड़यन्त्र केस में गिरफ्तार किया गया। इस केस में उन्हें सात साल की काले पानी की सजा दी गई। अब बारीसाल, क्रांतिकारियों का केन्द्र बन गया। मई 1913 में बारीसाल षड़यन्त्र केस चला और कई क्रांतिकारियों को सख्त सजाएं दी गईं। यद्यपि सरकार क्रांतिकारियों की शक्ति को तोड़ने की पूरी कोशिश करती रही, फिर भी वे अपना काम करते रहे।

पूर्वी बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ

पूर्वी बंगाल का चटगांव बन्दरगाह क्रांतिकारियों का केन्द्र बना हुआ था। इनके संगठन का नाम चटगांव रिपब्लिकन आर्मी था। इसके नेता सूर्यसेन थे। इस संगठन के सदस्य जन-साधारण के बीच क्रांति का प्रचार करते थे। इस संगठन ने बम बनाने का कारखाना और गैरकानूनी छापाखाना भी खोल रखा था।

18 अप्रैल 1930 की रात्रि में सूर्यसेन के नेतृत्व में लगभग 50 युवक-युवतियों ने फौजी वेशभूषा पहनी और रिवाल्वरों तथा बमों से लैस होकर चटगांव के पुलिस शस्त्रागार पर आक्रमण किया। एक अधिकारी को मौत के घाट उतार कर उन्होंने वहाँ रखी समस्त बन्दूकों को लूट लिया।

इन क्रांतिकारियों ने चटगांव के समस्त थानों पर कब्जा करके सड़कों पर नाकेबन्दी कर दी और कई दिनों तक शहर पर कब्जा बनाए रखा…… किन्तु क्रांतिकारियों की योजना में एक त्रुटि रह गई थी। उन्होंने चटागांव के बन्दरगाह पर कब्जा नहीं किया था। इससे अँग्रेजों को कलकत्ता से शीघ्र ही सैनिक सहायता पहुँच गई।

तब क्रांतिकारियों ने शस्त्रागार में आग लगा दी और क्रांतिकारी, सूर्यसेन के नेतृत्व में जलाालबाद की पहाड़ियों में चले गये। अँग्रेजी सेना ने पहाड़ियों को चारों तरफ से घेरना आरम्भ कर दिया। इस पर बहुत से क्रांतिकारी वहाँ से भाग निकले। सूर्यसेन भी भागने में सफल रहे। बाद में एक साथी के विश्वासघात के कारण पकड़े गये।

बाद में कई और क्रांतिकाकारी भी पकड़ लिये गये। प्रीतिलता बाडेदर ने गिरफ्तार होने से बचने के लिए आत्महत्या कर ली। कल्पना दत्त पकड़ी गई। एक अन्य क्रांतिकारी नेता टेगराबल लड़ते-लड़ते शहीद हो गये।

सरकार ने समस्त बंदियों पर मुकदमा चलाया, जो चटगांव आर्मरी रेड के नाम से मशहूर हुआ। सूर्यसेन को फांसी हो गई तथा अम्बिका चक्रवती, अनंतसिंह, गणेश घोष, लोकनाथ और अन्य क्रांतिकारियों को लम्बी काले पानी की सजाएं हुईं। सूर्यसेन की फांसी के बाद पूर्वी बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियाँ कम हो गईं।

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source