Saturday, July 27, 2024
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शहजादी जेबुन्निसा

औरंगजेब की सबसे बड़ी शहजादी जेबुन्निसा थी जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- ‘स्त्रियों का गहना।’ उसका जन्म 15 फरवरी 1638 को औरंगजेब की पहली बेगम दिलरास बानू के पेट से हुआ था जो कि ईरान के शाह वंश की शहजादी थी। इस राजवंश को ईरान के इतिहास में सफावी वंश के नाम से भी जाना जाता है।

जेबुन्निसा के जन्म के समय औरंगजेब दक्खिन का सूबेदार था तथा दौलताबाद के मोर्चे पर नियुक्त था। जब जेबुन्निसा चार वर्ष की थी तब औरंगजेब ने अपनी प्यारी बेटी की शिक्षा के लिए अपने दरबार में रहने वाली हाफिजा मरियम नामक एक विदुषी स्त्री को नियुक्त किया तथा उस्तानी बी नामक एक औरत को शहजादी को कुरान पढ़ाने के लिए नियुक्त किया। उस्तानी बी के प्रयत्नों से जेबुन्निसा ने केवल तीन साल की अवधि में सम्पूर्ण कुरान कण्ठस्थ कर ली।

इस प्रकार सात वर्ष की आयु में शहजादी जेबुन्निसा ने हाफिजा की उपाधि प्राप्त की। जेबुन्निसा की इस प्रतिभा से औरंगजेब बहुत प्रसन्न हुआ। इस अवसर पर औरंगजेब ने बड़ा उत्सव मनाया तथा औरंगाबाद की जनता को एक बड़ी दावत थी। सरकारी कर्मचारियों को एक दिन की छुट्टी दी गई तथा शहजादी को सोने की 30 हजार अशर्फियां पुरस्कार के रूप में दी गईं। शहजादी को कुरान पढ़ाने वाली उस्तानी बी को भी सोने की तीस हजार अशर्फियां दी गईं।

इसके बाद शहजादी जेबुन्निसा को विभिन्न विषयों की शिक्षा देने के लिए मोहम्मद सईद अशरफ मजनडारानी नामक शिक्षक को नियुक्त किया गया। वह भी अपने समय का प्रसिद्ध फारसी कवि था। औरंगजेब ने शहजादी जेबुन्निसा के लिए इस्लामिक दर्शन, गणित, खगोलशास्त्र तथा साहित्य के साथ-साथ फारसी, अरबी तथा उर्दू पढ़ाने का भी प्रबंध किया। इस काल में इबरात लिखने की कला अर्थात् कैलिग्राफी को बहुत अच्छा माना जाता था। शहजादी जेबुन्निसा को कैलिग्राफी आर्ट भी सिखाई गई।

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विविध विषयों की शिक्षा प्राप्त करने के कारण जेबुन्निसा विदुषी बन गई तथा उसने दिल्ली में संसार के अनेक देशों से श्रेष्ठ पुस्तकें मंगवाकर एक विशाल पुस्तकालय बनाया। इस पुस्तकालय में पुस्तकों के संग्रहण, रख-रखाव, पाण्डुलिपियों के प्रतिलिपिकरण, जिल्दसाजी आदि कामों के लिए बहुत से शिक्षित लोगों को वेतन देकर नौकरी पर रखा गया। इस पुस्तकालय में साहित्य के साथ-साथ धर्म, दर्शन, विधि, इतिहास एवं तकनीकी आदि विषयों की पुस्तकों को रखा गया।

सुशिक्षित होने के कारण जेबुन्निसा दयालु हृदय की स्वामिनी थी तथा हर समय किसी न किसी की सहायता करने के लिए तत्पर रहती थी। विधवाओं तथा अनाथों को संरक्षण देना उसे विशेष रूप से प्रसिद्ध था। अपनी बुआ जहानआरा की तरह जेबुन्निसा भी हज के लिए मक्का एवं मदीना जाने वाले यात्रियों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाती थी।

हालांकि औरंगजेब को चित्रकला, मूर्तिकला एवं संगीतकला से घृणा थी किंतु जेबुन्निसा को संगीत तथा साहित्य में बहुत रुचि थी और वह अपने समय की अच्छी गायिका थी।

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शहजादी जेबुन्निसा अपने ताऊ दारा शिकोह से अत्यंत प्रभावित थी तथा ‘मकफी’ के नाम से कविताएं लिखा करती थी। मकफी ईरानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है- ‘अदृश्य।’ संभवतः अपने पिता औरंगजेब के भय से वह किसी के समक्ष अपनी कविताओं का उल्लेख नहीं करती थी इसलिए उसने अपना छद्म नाम ‘मकफी’  अर्थात् ‘अदृश्य’ रखा था। जेबुन्निसा अपने पिता औरंगजेब की लाड़ली बेटी थी तथा औरंगजेब उसका बहुत सम्मान करता था। इस कारण जब औरंगजेब किसी से नाराज होता था तो जेबुन्निसा औरंगजेब से प्रार्थना करके उस व्यक्ति को क्षमा दिलवा देती थी।

जब 9 जून 1658 को औरंगजेब ने आगरा के लाल किले में घुसकर अपने पिता शाहजहाँ को बंदी बनाया था उस समय जेबुन्निसा इक्कीस साल की युवती थी। औरंगजेब उसकी विद्वता से इतना अधिक प्रभावित था कि वह राजनीतिक मसलों पर इस बेटी की राय लेने लगा तथा उन पर अमल भी करने लगा। कुछ मुगल तवारीखों में लिखा है कि जब जेबुन्निसा औरंगजेब के दरबार में आया करती थी तो औरंगजेब अपने समस्त शहजादों को जेबुन्निसा की अगवानी करने के लिए भेजता था। जब भी शहजादी औरंगजेब के दरबार में आती थी, तब हर बार ऐसा ही किया जाता था।

जेबुन्निसा की चार छोटी बहिनें भी थीं- जीनत-उन्निसा, जुब्दत-उन्निसा, बद्र-उन्निसा तथा मेहर-उन्निसा किंतु उन चारों में से किसी को भी औरंगजेब के दरबार में आने का सम्मान प्राप्त नहीं था। मुगलिया तवारीखों में लिखा है कि अपनी माँ दिलरास बानो की तरह शहजादी जेबुन्निसा का कद लम्बा, शरीर पतला, रंग गोरा, चेहरा गोल तथा आकर्षक था। उसके बांए गाल पर एक तिल था जो शहजादी के दैहिक सौंदर्य में वृद्धि करता था। शहजादी की आंखें गहरी काली तथा बाल घुंघराले एवं काले थे। उसके दांत छोटे तथा होठ पतले थे।

शहजादी जेबुन्निसा बहुत साधारण कपड़े पहनती थी। उसके चोगे का रंग सफेद होता था तथा वह गले में सफेद मोतियों की एक माला धारण करती थी।

लाहौर संग्रहालय में शहजादी जेबुन्निसा का एक पोट्रेट रखा हुआ है जो मुगलिया तवारीखों में किए गए शहजादी के रूप-रंग के वर्णन से मेल खाता है। जेबुन्निसा ने अंगिया-कुर्ती नामक महिलाओं के एक वस्त्र का डिजाइन तैयार किया था जो कि तुर्किस्तान में पहनी जाने वाली पोषाक में परिवर्तन करके, भारतीय परिस्थितियों के अनुसार बनाया गया था। उसने कई गीतों की धुनें तैयार कीं तथा अनेक बाग लगवाए।

जेबुन्निसा ने जेल में जो कविताएं लिखीं, वह उसकी मृत्यु के बाद दीवान-ए-मकफी के नाम से संकलित एवं प्रकाशित की गईं जिसमें पांच हजार पद हैं। मखजन-उल-गालिब के लेखक ने लिखा है कि जेबुन्निसा ने लगभग 15 हजार पदों की रचना की थी किंतु अब ये पद उपलब्ध नहीं हैं। शहजादी जेबुन्निसा ने कुछ फारसी ग्रंथों के उर्दू में अनुवाद भी किए। जेबुन्निसा ने मोनिस-उल रोह, जेब-उल मोन्शायत तथा जेब-उल तफारिस नामक पुस्तकें लिखीं।

जेबुन्निसा के काल में मौलाना अब्दुल कादर बेदिल, कलीम काशानी, साएब तबरिज़ी तथा घनी कश्मीरी नामक बड़े-बड़े फारसी कवि मौजूद थे। उन्हीं दिनों हाफिज शेराजी नामक एक बड़ा कवि हुआ जिसका जेबुन्निसा की कविता पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। जेबुन्निसा ने फारसी कविता की जो शैली तैयार की उसे फारसी काव्य की भारतीय शैली कहा जाता है। आगे चलकर जेबुन्निसा इस्लामिक दर्शन की गंभीर तत्ववेत्ता सिद्ध हुई।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार ई.1662 में औरंगजेब ने शहजादी जेबुन्निसा को दिल्ली के सलीमगढ़ दुर्ग में बंदी बना लिया जो कि शाहजहानाबाद के एक छोर पर स्थित था तथा वर्तमान में पुरानी दिल्ली में स्थित है। जेबुन्निसा को बंदी बनाए जाने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं।

ई.1662 में जब औरंगजेब गंभीर रूप से बीमार पड़ा था तो चिकित्सकों की सलाह पर उसे हवा-पानी बदलने के लिए लाहौर ले जाया गया। औरंगजेब का हरम भी उसके साथ लाहौर गया। उस समय अकील खान नामक एक युवक लाहौर का गवर्नर था। उसका पिता औरंगजेब का मंत्री था।

जब जेबुन्निसा इस युवक के सम्पर्क में आई तो उन दोनों के बीच प्रेम-प्रसंग आरम्भ हो गया। जब औरंगजेब ने जेबुन्निसा से इसके बारे में पूछा तो जेबुन्निसा ने अपने पिता के भय से इस प्रसंग से साफ इन्कार कर दिया क्योंकि औरंगजेब के मरहूम परबाबा अकबर के समय से शहजादियों के विवाह पर रोक लगाई हुई थी।

कुछ दिनों में औरंगजेब को विश्वास हो गया कि शहजादी ने अपने पिता से झूठ बोला था। इसलिए औरंगजेब जेबुन्निसा से नाराज हो गया और उसे कैद करके दिल्ली भेज दिया किंतु यह बात सही प्रतीत नहीं होती है क्योंकि औरंगजेब ई.1662 में बीमार पड़ा था जबकि जेबुन्निसा ई.1681 के बाद बंदी बनाई गई थी। औरंगजेब तो स्वयं ही अपनी शहजादियों के विवाह करने के पक्ष में था, इसलिए इसी अपराध के लिए वह अपनी बड़ी पुत्री को दण्डित कैसे कर सकता था!

एक अन्य कथा के अनुसार जब औरंगजेब को ज्ञात हआ कि जेबुन्निसा एक कवयित्री है तथा संगीत से भी प्रेम करती है तो औरंगजेब ने उसे कुफ्र समझकर कैद कर लिया। यह बात भी विश्वास करने योग्य प्रतीत नहीं होती क्योंकि औरंगजेब के राज में बहुत से कवि एवं संगीतकार रहते थे। जब वे स्वतंत्र थे तो इसी अपराध के लिए शहजादी को बंदी नहीं बनाया जा सकता था।

औरंगजेब कालीन कुछ अन्य संदर्भ कहते हैं कि जब ई.1681 में औरंगजेब के शहजादे मुहम्मद अकबर ने औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह किया था तब शहजादी जेबुन्निसा के कुछ पत्र औरंगजेब द्वारा पकड़ लिए गए जो कि शहजादी ने अपने विद्रोही भाई अकबर को लिखे थे।

औरंगजेब द्वारा अपने पुत्र-पुत्रियों एवं बहिनों को लिखे गए पत्रों से ज्ञात होता है कि वह अपने परिवार से बहुत प्रेम करता था किंतु वह अपने विरुद्ध किए गए विद्रोह को सहन नहीं कर सकता था। इसीलिए उसने अपनी प्यारी बहिन रौशनआरा तक को जहर दे दिया था जिसने औरंगजेब के राज्य को उखाड़ने का षड़यंत्र किया था। इसी बहिन ने औरंगजेब को राज्य दिलवाया था।

औरंगजेब ने अपने बड़े बेटे सुल्तान मुहम्मद को भी इसीलिए जेल में डाल रखा था क्योंकि वह औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह करके स्वयं बादशाह बनना चाहता था तथा अपने श्वसुर शाहशुजा से जा मिला था।

औरंगजेब ने अपनी बड़ी बहिन जहानआरा को भी तब तक जेल में डाले रखा था जब तक कि शाहजहाँ मर नहीं गया। इसी बहिन ने औरंगजेब को पालपोस कर बड़ा किया था।

अतः शहजादी जेबुन्निसा को जेल में डाले जाने का एकमात्र कारण वे पत्र ही माने जा सकते हैं जिनमें औरंगजेब को हटाकर उसके स्थान पर अकबर को बादशाह बनाए जाने का समर्थन किया गया था।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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