औरंगजेब की तरह औरंगजेब की औलादें भी सत्ता की लालची थीं। इस कारण औरंगजेब अपने औलादों को एक-एक करके जेल में डाल रहा था। शहजादे मुअज्जम का भाग्य भी अन्य शहजादों अथवा शहजादियों से अलग नहीं था। एक दिन उसे भी जेल में सड़ने के लिए डाला ही जाना था।
औरंगजेब के तीसरे नम्बर के शहजादे मुअज्जम का जन्म 14 अक्तूबर 1643 को औरंगजेब की दूसरी बेगम नवाब बाई के पेट से हुआ था। उस समय औरंगजेब दक्खिन का सूबेदार था तथा बुरहानपुर मोर्चे पर नियुक्त था। जब मुअज्जम 9 साल का हुआ तो उसके बाबा शाहजहाँ ने उसे लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। शहजादा 6 साल तक इस पद पर कार्य करता रहा तथा ई.1659 में मात्र 16 साल की आयु में दक्खिन का सूबेदार बनाकर भेज दिया गया। उन दिनों औरंगाबाद मुगलों के दक्खिनी सूबे की राजधानी था।
इस समय तक मुअज्जम यौवन की दहलीज पर पैर रख चुका था इसलिए उसके मन में औरतों के प्रति आकर्षण उत्पन्न होना स्वाभाविक था। माता-पिता से दूर रहने के कारण उसे बुरी प्रवृत्ति के लोगों ने घेर लिया। उनके प्रभाव से वह विलासी बन गया और अपना अधिकांश समय शराब पीने, नृत्य देखने तथा शिकार खेलने में व्यय करने लगा।
शहजादे की अकर्मण्यता का लाभ उठाकर छत्रपति शिवाजी ने मुगलों के क्षेत्र पर धावे मारने आरम्भ कर दिए। छत्रपति ने न केवल सूरत बंदरगाह को दो बार लूटा अपितु औरंगाबाद में स्थित मुगल छावनी पर भी कई बार धावे मारे। इस दौर में शिवाजी के राज्य का तेजी से विस्तार हुआ।
मुअज्जम की असफलताओं से चिंतित होकर औरंगजेब ने अपने सर्वाधिक विश्वसनीय सेनापति मिर्जाराजा जयसिंह को दक्खिन में अभियान करने के लिए नियुक्त किया। मिर्जाराजा जयसिंह ने ई.1665 में शिवाजी को अनेक मोर्चों पर परास्त किया तथा उन्हें पुरंदर की संधि करने के लिए विवश कर दिया।
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ई.1666 में छत्रपति शिवाजी के आगरा से निकल भागने के बाद मई 1667 में औरंगजेब ने मिर्जाराजा जयसिंह को अपमानजनक तरीके से दक्खिन की सूबेदारी से हटा दिया तथा शहजादे को पुनः दक्खिन का सूबेदार बना दिया। इस बार महाराजा जसवंतसिंह को मुअज्जम की सहायता के लिए नियुक्त किया गया।
एक तरफ तो महाराजा जसवंतसिंह के गरिमामय व्यवहार एवं शिवाजी के पुत्र शंभाजी से हुई दोस्ती से प्रभावित होने के कारण तथा दूसरी ओर औरंगजेब द्वारा युद्धों के लिए लगातार बनाए जा रहे दबाव से तंग आकर ई.1670 में मुज्जम ने औरंगजेब को हटाने का षड़यंत्र किया तथा स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया।
जब औरंगजेब को यह सूचना मिली तो उसने महाराजा जसवंतसिंह को अफगानिस्तान के मोर्चे पर भेज दिया तथा मुअज्जम की माँ बेगम नवाब बाई को दक्खिन में भेजा ताकि वह अपने पुत्र को समझा-बुझा कर बागी होने से रोक सके। बेगम नवाब बाई मुअज्जम को समझा-बुझा कर औरंगजेब के दरबार में लेकर उपस्थित हुई। औरंगजेब ने शहजादे को अपने पास ही रख लिया ताकि उस पर कड़ी दृष्टि रखी जा सके।
ई.1680 में जब औरंगजेब ने मारवाड़ राज्य पर अत्याचार आरम्भ किए तथा राजपूतों से बड़ा झगड़ा मोल ले लिया तो मुअज्जम अपने पिता की नीतियों से पुनः नाराज हो गया और उसने पुनः विद्रोह कर दिया। शहजादे को स्पष्ट दिखने लगा था कि उसका पिता अपनी मजहबी नीतियों के कारण राजपूत राजाओं से बुरी तरह से पेश आ रहा था जिसके कारण राजपूत जाति औरंगजेब तथा मुगल सल्तनत की शत्रु होती जा रही थी। मुअज्जम द्वारा दूसरी बार किए गए विद्रोह के कारण औरंगजेब बुरी तरह से हिल गया। क्योंकि तब तक शहजादा अकबर भी राजपूतों के साथ मिलकर बगावत की घोषणा कर चुका था और राजपूतों की सहायता से मराठा शासक शंभाजी की शरण में जा चुका था।
औरंगजेब का बड़ा पुत्र सुल्तान मुहम्मद भी 16 साल तक जेल में सड़ने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो चुका था। यहाँ तक कि औरंगजेब की बड़ी बेटी जेबुन्निसा और एक पोता नेकूसियर भी जेल में पड़े हुए थे। इसलिए औरंगजेब ने शांति से काम लिया तथा मुअज्जम को किसी तरह समझा-बुझा कर फिर से अपने पक्ष में किया। इसके बाद मुअज्जम ई.1687 तक शांत बना रहा।
ई.1681 में मुअज्जम को अपने सौतेले भाई अकबर का विद्रोह कुचलने के लिए दक्खिन के मोर्चे पर भेजा गया। मुइन फारूकी नामक एक तत्कालीन इतिहासकार ने लिखा है कि मुअज्जम ने दो साल तक अपने भाई अकबर के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की। इस कारण ई.1683 में औरंगजेब ने मुअज्जम को आदेश दिए कि वह अकबर को पकड़ने के लिए कोंकण क्षेत्र में अभियान करे ताकि अकबर ईरान नहीं जा सके। मुअज्जम ने कोंकण में अभियान तो किया किंतु इस बार पुनः वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल हो गया।
इस पर औरंगजेब ने मुअज्जम को गोलकुण्डा पर आक्रमण करने के आदेश दिए। इस बार शहजादा मुअज्जम गोलकुण्डा के शासक अबुल हसन से मिल गया। औरंगजेब के गुप्तचरों ने मुअज्जम तथा अबुल हसन के बीच चल रहे गुप्त-पत्राचार को पकड़ लिया। औरंगजेब समझ गया कि मुअज्जम बगावत करने पर उतारू है। इसलिए 21 फरवरी 1687 को औरंगजेब ने शहजादे मुअज्जम को बंदी बना लिया तथा उसे दिल्ली के लिए रवाना कर दिया।
मुअज्जम के हरम की औरतों पर भी इस बगावत में शामिल होने के आरोप लगाए गए तथा उन्हें भी बंदी बना लिया गया। मुअज्जम के समस्त नौकरों एवं दासियों को मुअज्जम की सेवा से हटाकर शाही सेवा में रख लिया गया। कुछ नौकरों को बंदी बना लिया गया।
औरंगजेब ने शहजादे मुअज्जम को सजा दी कि वह छः माह तक अपने बाल और नाखून नहीं काटेगा। उसे पीने के लिए गर्म खाना और ठण्डा पानी नहीं दिया जाएगा। कोई भी व्यक्ति बादशाह की अनुमति प्राप्त किए बिना मुअज्जम से नहीं मिलेगा। सात साल तक मुअज्जम सलीमगढ़ जेल में पड़ा सड़ता रहा।
इसके बाद ई.1694 में औरंगजेब ने मुअज्जम को फिर से अपने परिवार के साथ रहने की अनुमति प्रदान कर दी। उसे अपने पुराने नौकरों को फिर से नौकरी पर रखने की अनुमति भी दे दी गई। फिर भी शहजादे की गतिविधियों पर कड़ी दृष्टि रखी गई।
ई.1695 में शहजादे मुअज्जम को जेल से निकालकर लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया गया तााकि उसे मराठों से दूर रखा जा सके। इसके बाद जब तक औरंगजेब जीवित रहा, तब तक उसे किसी भी सैन्य अभियान पर नहीं भेजा गया।
पंजाब की सूबेदारी के दौरान मुअज्जम को गुरु गोबिंदसिंह से युद्ध करना था किंतु उसने कभी भी आनंदपुर साहब पर आक्रमण नहीं किया। जब औरंगजेब ने उसे आदेश भिजवाए कि वह आनंदपुर पर हमला करके सिक्खों के गुरु गोबिंदसिंह को दण्डित करे तो मुअज्जम ने ऐसा करने से मना कर दिया।
ई.1699 में जब काबुल का सूबेदार मर गया तब औरंगजेब ने मुअज्जम को काबुल का सूबेदार बना दिया। ई.1707 तक वह इसी पद पर रहा।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता