1155 ईस्वी की एक सुबह। ओमन नदी का शांत जल प्रतिदिन की भांति अपनी मंथर गति से प्रवाहित हो रहा था। उसके निर्मल जल में सहस्रों रूपहली मछलियाँ और जलमुर्गियाँ अठखेलियां कर रही थीं। कोटि-कोटि सूर्य-रश्मियां जब ओमन नदी के जल को स्पर्श करतीं तो नदी का जल चमक उठता। नदी के तट पर उग आई घास के फूलों पर मण्डराने वाली रंग-बिरंगी तितलियाँ नदी के जल में अपनी बड़ी-बड़ी मूंछों को भिगोतीं और उन पर लगा मकरंद साफ करतीं। नदी तट पर खड़े विशाल वृक्षों पर बैठे पक्षियों के झुण्ड भी तितलियों का अनुकरण करते और आकाश में लम्बी सी उड़ान भरकर नदी के जल में चोंच डुबों कर फिर से अपने वृक्षों पर आ बैठते।
जब हरिणों के झुण्ड पानी पीने के लिये नदी तट तक आते तो चंचल तितलियाँ और नटखट पक्षी उनकी पीठों पर सवारी गांठते तथा दूर तक उनके साथ जाकर पुनः अपने स्थान पर लौट आते। शैतान लंगूर भी उनका साथ देने में पीछे नहीं रहते।
जब कभी कोई खूंखार पशु जंगल से निकल कर नदी के तट तक आता तो तितलियाँ सहम जातीं। पक्षियों की कतारें घनघोर शब्द करके उड़ जातीं तथा बंदर वृक्षों की सबसे ऊँची शाखाओं पर जा बैठते। घबराहट भरे उन क्षणों में शिशु पक्षी घबरा कर पंख फड़फड़ाते और अपनी माताओं के लौटने तक चीखते चिल्लाते रहते।
ओमन नदी के तट पर इस तरह की प्रातः न जाने कितने लाख वर्षों से इसी प्रकार होती आयी थी और प्रकृति का यह व्यापार भी न जाने कब से इसी प्रकार चला आता था। आज की सुबह भी अपने नियमित क्रम के अनुसार ही हुई थी किंतु जैसे ही सूर्यदेव प्राची से निकल कर आग्नेय दिशा में स्थित हुए, ठीक उसी समय ओमन के तट पर बसे दिलम बोल्डक शहर के दुर्ग की दीवारें एक गगनभेदी चीख से थर्रा गयीं।
जब यह चीख ओमन नदी के तटों पर पहुँची तो तितलियाँ घबराकर फूलों का आश्रय छोड़ भाग खड़ी हुईं। पेड़ों से पक्षियों की कतारें भयातुर होकर चीत्कार करती हुई आकाश में बहुत ऊँचाई तक उड़ गयीं। वानर समुदाय अपनी शैतानियाँ छोड़कर पेड़ों की सबसे ऊँची शाखाओं पर जा बैठा। ओमन के जल में अठखेलियां करने वाली मछलियाँ तक घबरा कर नदी के तल में जा छिपीं।
जाने यह किस दुर्दांत पशु की चीख थी! ऐसी चीख न तो ओमन के तटों पर और न दिलम बोल्डक दुर्ग के भीतर इससे पहले कभी सुनाई दी थी। भयानक चीख के थोड़ी ही देर बाद दिलम बोल्डक दुर्ग का द्वार खुला और कुछ दासियाँ चीखती हुई बाहर निकलीं। वे सब चिल्लाती जा रही थीं कि बेगम की कोख से शैतान का जन्म हुआ है। थोड़ी ही देर में दुर्ग के मुख्य द्वार पर शहरवासियों की भीड़ जमा हो गयी। भीड़ जानना चाहती थी कि आखिर माजरा क्या है?
अपने प्रश्न के जवाब में जो कुछ भी उन्होंने सुना, उससे उनकी रूह कांप गयी। क्या वाकई बेगम के पेट से किसी शैतान का जन्म हुआ था? जो कुछ उन्हें बताया गया था, उसके अनुसार तो ऐसा ही हुआ था। बेगम के पेट से जन्म लेने वाले बालक ने अपनी आंखें खोलने से पहले भयंकर चीत्कार किया था जिससे दुर्ग की मोटी दीवारें तक थर्रा उठी थीं। इतना ही नहीं जब दासियों ने उस बालक की बंद मुट्ठियों को खोला तो वे भय के मार कांप उठीं। बालक की चौड़ी हथेलियों में घने बाल थे और उनमें खून तथा मांस के लोथड़े भरे हुए थे।
दिलम बोल्डक के तुर्क बादशाह ने इस अजीब शैतानी बालक का नाम रखा- चंगेजखाँ। तुर्कों की यह शाखा तुर्क की छठी पीढ़ी में पैदा होने वाले मुगलखाँ नामके अमीर से चली थी जिसके नाम पर तुर्कों की यह शाखा ‘मुगल’ कहलाती थी। चूंकि ये लोग मंगोलिया से चलकर दिलम बोल्डक आये थे इस कारण उन्हें ‘मंगोल’ भी कहा जाता था।
उस समय तक तुर्कों की अधिकांश शाखाओं ने इस्लाम स्वीकार कर लिया था किंतु यह शाखा इस्लाम की कट्टर शत्रु बनी हुई थी। तुर्कों की सारी शाखाओं में कुल मिलाकर जितनी खूनी ताकत थी, उस ताकत का आधे से अधिक हिस्सा कुदरत ने इस अकेली मुगल शाखा के नाम लिख दिया था। इस कारण मंगोलों में एक से बढ़कर एक अत्याचारी पैदा हुआ। चंगेजखाँ उसी की चरम परिणति थी।
चंगेजखाँ कहने को तो इंसानी बालक ही था किंतु वास्तव में वह खूनी ताकत का एक अजीब करिश्मा था। वह अपनी भाग्य-रेखाओं पर खून और मांस रखकर पैदा हुआ था इसलिये वह जीवन भर एक खूनी दरिंदा बना रहा।
चंगेजखाँ पहला मुगल था जिसने मंगोलों को संगठित करके एक विशाल सेना खड़ी की और उसके बल पर लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा। उसने नदियों में इतना रक्त बहाया कि ओमन ही नहीं, उसके मार्ग में आने वाली समस्त नदियों में बहने वाले जल का रंग लाल हो गया था। पूरा मध्य एशिया उसके नाम से थर्राता था। उसके क्रूर कारनामे दूर-दूर तक फैल गये। वह जहाँ भी जाता था मौत का नंगा नाच दिखाता था। उसकी सेना जिस जंगल से गुजरती थी वह जंगल पशु-पक्षियों से खाली हो जाता था। उसने भारत, रूस और चीन के कई प्रदेशों में अपना आतंक जमाया। अपने बाप-दादों की भांति वह भी इस्लाम का कट्टर शत्रु था।
जब चंगेजखाँ अफगानिस्तान की बामियान घाटी में स्थित काफिरिस्तान पहुँचा तो वह यहाँ के नैसर्गिक सौंदर्य और मानव सौंदर्य को देखकर आश्चर्य चकित रह गया। अफगानिस्तान में इस्लाम के आगमन से पहले काफिरिस्तान को नूरिस्तान के नाम से पुकरा जाता था। कहा जाता है कि जब सिकन्दर भारत में घायल होकर यूनान को भाग रहा था तो उसने बामियान क्षेत्र पर अपना अधिकार बनाये रखने के लिये अपनी सेना का एक हिस्सा यहीं छोड़ दिया था। हजारों यूनानी सैनिक अपने परिवारों सहित यहीं बस गये। नीली आँखों और लाल बालों के कारण यूनानी लोग अफगानिस्तान के मूल लोगों से काफी अलग दिखाई देते थे। उनके देह सौंदर्य के कारण ही अफगानिस्तान के लोग उनके क्षेत्र को नूरिस्तान कहते थे।
जब अफगानिस्तान में इस्लाम का प्रसार हुआ तो नूरिस्तान के लोगों ने इस्लाम को मानने से मना कर दिया। इस्लाम के अनुयायी नूरिस्तान के बहादुर लोगों को परास्त नहीं कर सके, न ही अन्य किसी तरह से उन्हें इस्लाम कबूल करवा सके। हार-थक कर इस्लाम के अनुयायियों ने इस क्षेत्र का नाम बदलकर काफिरिस्तान कर दिया।
काफिरिस्तान के सुंदर इंसानों को मारने में चंगेजखाँ को बड़ा आनंद आया। नीली आँखों और लाल बालों वाले इंसानों की भयाक्रांत चीखें उसके तन-मन में आनंद भर देतीं। वह उन्हें तड़पा-तड़पा कर मारने लगा। बहादुर होने पर भी यूनानी लोग चंगेजखाँ के सैनिकों की क्रूरता का सामना नहीं कर सके। हजारों स्त्री-पुरुष और बच्चे प्राण बचाने के लिये पहाड़ों में भाग गये। चंगेजखाँ ने उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर मौत के घाट उतारा।
काफिरिस्तान से निबट कर चंगेजखाँ ने बामियान घाटी में ही बसे सुर्ख शहर को जा घेरा। सुर्ख शहर की प्राकृतिक बनावट तथा दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था ऐसी थी कि उस पर कोई भी सेना बाहर से आक्रमण करके अधिकार नहीं कर सकती थी चाहे शत्रु सेना सौ वर्षों तक ही शहर को घेर कर क्यों न बैठी रहे। सुर्ख के राजा को नित्य नये विवाह करने का शौक था इसलिये वह चंगेजखाँ जैसे दुर्दांत शत्रु की परवाह किये बिना अपना विवाह करने के लिये कहीं और चला गया तथा शहर को राजकुमारी के भरोसे छोड़ गया। सुर्ख शहर की राजकुमारी अद्वितीय सुंदरी थी तथा विवाह के योग्य भी। उसे अपने पिता का इस तरह चले जाना अच्छा नहीं लगा। उसने चंगेजखाँ को गुप्त संदेश भिजवाया कि यदि चंगेजखाँ उसे अपनी रानी बना ले तो वह शहर पर उसका अधिकार करवा देगी।
चंगेजखाँ ने राजकुमारी की शर्त स्वीकार कर ली। राजकुमारी ने चंगेजखाँ के आदमियों को वह पहाड़ी बता दी जहाँ से सुर्ख शहर को पानी मिलता था। चंगेजखाँ ने पानी का प्रवाह रोक दिया। पानी न मिलने के कारण सुर्ख शहर में हाहाकार मच गया और सुर्ख की सेना को आत्म-समर्पण करना पड़ा। सुर्ख पर अधिकार करते ही चंगेजखाँ ने राजकुमारी के महल को छोड़कर शेष शहर में कत्ले आम का आदेश दिया। चंगेजखाँ की वहशी सेना ने कई दिन तक शहर में कहर बरपाया किंतु राजकुमारी का महल लूट, हत्या और बलात्कार से बचा रहा।
एक दिन शाम के समय राजकुमारी को चंगेजखाँ का संदेश मिला- ‘कल सवेरे फौज कूच करेगी। आप बाहर आ जाइये।’ राजकुमारी सफर के लिये तैयार होकर बाहर आ गयी। फौज पंक्तिबद्ध होकर प्रस्थान के लिये तैयार खड़ी थी। चंगेजखाँ राजकुमारी के स्वागत में उठ कर खड़ा हुआ। राजकुमारी दोनों बाहें फैलाकर आगे बढ़ी किंतु उसके आश्चर्य का पार नहीं रहा जब उसने चंगेजखाँ के आदेश को सुना। वह अपने सैनिकों से कह रहा था- ‘प्रत्येक सिपाही इस दुष्टा के सिर पर एक पत्थर मारे। जो अपने बाप की नहीं हुई वह मेरी क्या होगी?’
चंगेजखाँ के आदेश का पालन हुआ। राजकुमारी चीख मार कर नीचे गिर पड़ी। थोड़ी देर बाद उसकी लोथ ही वहाँ रह गयी। राजकुमारी के महल की ईंट से ईंट बजा दी गयी। चंगेजखाँ की सेना लूट-खसोट और कत्ले-आम के नये अध्याय लिखने के लिये आगे चल पड़ी। पीछे छोड़ गयी सुर्ख शहर के खण्डहर जो आज भी चंगेजखाँ के क्रूर कारनामों और राजकुमारी के पितृद्रोह की कहानी सुनाने के लिये मौजूद हैं।
जब चंगेजखाँ अपनी सेना के साथ बामियान की घाटी में एक पहाड़ी क्षेत्र से होकर निकला तो उसने एक अद्भुत दृश्य देखा उसने देखा कि एक पहाड़ी से सट कर दो विशाल बुत खड़े हैं जो बहुत दूर से दिखाई पड़ते हैं। चंगेजखाँ ने अपना घोड़ा उसी और मोड़ लिया। निकट पहुँचने पर उसने पाया कि इन विशाल बुतों के पास छोटे-छोटे हजारों बुत बिखरे पड़े हैं। सारे के सारे बुत बुरी तरह से टूटे हुए हैं। यहाँ तक कि दोनों विशाल बुतों की आँखें और नाक भी टूटी हुई हैं। इतना ही नहीं उसने उन पहाड़ियों में बनी हुई हजारों गुफाओं को भी देखा जो पत्थरों को काटकर बनाई गयी थीं। इन गुफाओं की दीवारों पर भी हजारों बुत खड़े थे किंत सब के सब टूटे हुए थे। इस अद्भुत दृश्य को देखकर उसकी आँखें हैरानी से फैल गयीं। कहाँ से आये इतने सारे बुत! किसने बनायीं हजारों गुफायें!
दरअसल चंगेजखाँ उन पहाड़ियों में पहुँच गया था जहाँ उसके पहुँचने से लगभग सवा हजार साल पहले बौद्ध भिक्षुओं ने हजारों पहाड़ियों को काटकर विशाल बौद्ध मठों का निर्माण किया था तथा एक पहाड़ी के बाहरी हिस्से को काटकर भगवान बुद्ध की दो विशाल मूर्तियाँ बनाईं थीं। इन मूर्तियों के ऊपर विशाल मेहराबों का निर्माण किया गया था। मेहराबों में भगवान बुद्ध के जीवन चरित्र से सम्बन्धित कई रंगीन चित्र भी बनाये थे। भिक्षुओं ने आसपास की पहाड़ियों को काटकर हजारों गुफाओं का निर्माण भी किया था तथा उनमें सुंदर मूर्तियों का उत्कीर्णन किया था।
जब चंगेजखाँ ने इन मूर्तियों और गुफाओं को देखा तो उसके आश्चर्य का पार न रहा। वह बुतों की विशालता से भी अधिक हैरान इस बात पर था कि दोनों बुत ऊपर से लेकर नीचे तक पूरी तरह सलामत थे किंतु उनकी आँखों और नाक को किसी ने तोड़ दिया था। दोनों विशाल बुतों के आसपास हजारों की संख्या में अन्य बुतों को भी भग्न अवस्था में देखकर वह आश्चर्य चकित रह गया था। आखिर किसने बनाया होगा इन्हें? और फिर क्यों तोड़ डाला होगा? कौन लोग रहे होंगे वे!
चंगेजखाँ ने स्थानीय लोगों को पकड़ कर मंगवाया और उनसे इन बुतों को बनाने वालों और उनको तोड़ने वालों के बारे में पूछा। चंगेजखाँ को बताया गया कि इन्हें सवा हजार साल पहले भारत से आये बुत-परस्त बौद्ध-दरवेशों ने बनाया था किंतु जब अफगानिस्तान में इस्लाम का प्रसार हुआ तो बुत-शिकनों ने इन बुतों को तोड़-तोड़ कर आग में झौंक दिया। हजारों अलंकृत गुफाओं को भी उसी समय तहस-नहस किया गया तथा पहाड़ियों में उकेरा गया वह सारा शिल्प नष्ट कर दिया गया जो बौद्ध-दरवेशों की छैनियों से निकला था। इन दो बड़े बुतों को पूरी तरह नष्ट न करके केवल इनकी आँखें और नाक तोड़ दीं ताकि इस बात की यादगार बनी रहे कि कभी यहाँ इतने विशाल बुत थे।
स्थानीय लोगों की बात सुनकर क्रोध से चीख पड़ा वह! उसे उन लोगों पर तो क्रोध था ही जो संसार में सुंदर बुत बनाने का काम करते हैं किंतु उससे भी अधिक क्रोध उसे उन लोगों पर था जिन्होंने इन बुतों को चंगेजखाँ के वहाँ पहुँचने से पहले ही तोड़ डाला था। आखिर यह कार्य उसे अपने हाथों से करना चाहिये था। कितना आनंद आता इन बुतों को तोड़ने में! वह तो इन बुतों को भी इस क्रूरता के साथ तोड़ता कि ये बुत भी नीली आँखों और लाल बालों वाले इंसानों की तरह चीखने लगते! क्यों किया गया उसे इस आनंद से वंचित! उसने मन ही मन संकल्प किया कि वह इन बुतों को बनाने वालों और तोड़ने वालों, दोनों को दण्डित करेगा। वे न सही उनकी औलादें ही सही।