Saturday, July 27, 2024
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7. स्तब्ध परमात्मा!

चंगेजखाँ पहला मंगोल था जिसने भारत पर आक्रमण किया। उन दिनों दिल्ली पर मुहम्मद गौरी के गुलाम के गुलाम, अर्थात् कुतुबुद्दीन के गुलाम इल्तुतमिश का शासन था। जब 1221 ईस्वी में चंगेजखाँ पंजाब तक चढ़ आया तो इल्तुतमिश ने चंगेजखाँ से कहलवाया कि वह जो काम करने भारत आया है वह काम तो मैं पहले से ही कर रहा हूँ। इसलिये चंगेजखाँ किसी और देश में जाकर तबाही मचाये, हिन्दुस्थान के लिये तो मैं अकेला ही काफी हूँ। साथ ही उसने चंगेजखाँ को बहुत सारी घूस भिजवाई ताकि वह हिन्दुस्तान छोड़ कर चला जाये। कहना अनिवार्य न होगा कि इस घूस में सोना-चांदी भर ही नहीं था अपितु हजारों गुलाम और हाथी- घोड़ों के साथ हजारों निरीह लोगों के शव भी थे। यह विचित्र घूस देखकर चंगेजखाँ प्रसन्न हुआ और खुशी खुशी हिन्दुस्तान से बाहर हो गया।

मंगोल इस्लाम के शत्रु थे और भारत पर चूंकि उन दिनों इस्लामी शासकों का अधिकार था इसलिये उन्हें दण्ड देने के लिये चंगेजखाँ के बाद भी मंगोलों ने भारत पर बड़े-बड़े आक्रमण किये। हर आक्रमण में लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा, उन्हें गुलाम बनाया, स्त्रियों और बच्चों को पशुओं की तरह बांध कर अपने साथ मध्य एशिया ले गये। अपने आक्रमणों में उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं किया क्योंकि उनके लिये हिन्दू और मुसलमान दोनों ही बराबर के शत्रु थे।

चंगेजखाँ के बीस साल बाद मंगोल नेता तायर लाहौर तक चढ़ आया। लाहौर का शासक राजधानी छोड़कर भाग खड़ा हुआ। तायर ने हजारों नर-नारियों को मौत के घाट उतार कर लाहौर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। 1285 ईस्वी में मंगोलों ने तिमूर खाँ के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया। उसने दिल्ली के सुल्तान बलबन के पुत्र मुहम्मद को मार दिया। 1292 ईस्वी में मंगोलों ने हुलागू के पोते उलूग के नेतृत्व में भारत को रौंदा। दिल्ली के सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने अपनी बेटी का विवाह मंगोल नेता उलूग के साथ कर दिया और उन्हें भारत में ही बस जाने की अनुमति दे दी। मंगोल दिल्ली के निकट मंगोलपुरी बसाकर रहने लगे। आज भी दिल्ली में स्थित इस इलाके को मुगलपुरा कहा जाता है।

1299 ईस्वी में कुतलग ख्वाजा के नेतृत्व में फिर से मंगोल दिल्ली पर चढ़ आये। जब 1303 ईस्वी में तार्गी के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण किया तो भारतीय इतिहास का सबसे शक्तिशाली सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी राजधानी दिल्ली से भागकर सिरी के दुर्ग में जा छिपा। 1328 ईस्वी में जब मंगोल फिर से तमोशिरीन के नेतृत्व में बदायूँ तक आ पहुँचे तो सुल्तान मुदम्मद बिन तुगलक ने उन्हें बड़ी भारी घूस देकर अपना पीछा छुड़ाया।

अपने प्रत्येक आक्रमण में मंगोलों ने भारत को बुरी तरह से रौंदा। जो भी उनके सामने आया उसे लूटा-खसोटा और उसका सर्वस्व हरण करके मौत के घाट उतार दिया। गाँव के गाँव जला दिये। फसलें उजाड़ दीं, तालाब तोड़ दिये। कुओं में गायों का खून डाल दिया। पशु-पक्षियों को जीवित ही भून कर खा गये। स्त्रियों का सतीत्व हरण किया। हजारों स्त्री-पुरुष और बालकों को गुलाम बनाकर अपने साथ ले गये और उन्हें तरह-तरह की यातनायें दीं।

उन दिनों उत्तरी भारत में ऐसा कोई दिन नहीं होता था जब किसी न किसी गाँव में इन मंगोलों का खूनी नाच नहीं होता था। शांतिप्रिय, सहिष्णु और निर्धन भारतवासी दिन प्रतिदिन और अधिक निर्धन, असहाय और लाचार होते जाते थे। इंसान की खूनी ताकत अपने ही जैसे दूसरे इंसानों का खून बहता हुआ देखकर पैशाचिक अट्टहास करती थी और परमात्मा अपने ही बनाये हुए पुतले की क्रूरता को देखकर स्तब्ध था।

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