भारत की आजादी के समय बीकानेर रियासत भारत के उन राज्यों में सम्मिलित थी जिन्होंने भारत में सम्मिलित होने के लिए सबसे पहले अपनी सहमति दी थी। जब पाकिस्तान बन गया तो मुहम्मद अली जिन्ना ने बीकानेर महाराजा सादूलसिंह पर नए सिरे से पाकिस्तानी मकड़जाल फैंका! दुर्भाग्य से बीकानेर महाराजा सादूलसिंह इस मकड़जाल में फंस गया।
बीकानेर के अधिकारियों तथा बहावलपुर राज्य के प्रधानमंत्री नवाब मुश्ताक अहमद गुरमानी के मध्य भारत सरकार के सैन्य अधिकारी मेजर शॉर्ट की अध्यक्षता में बीकानेर में एक बैठक रखी गयी। 7 नवम्बर 1947 को मेजर शार्ट की मध्यस्थता में दोनों रियासतों के मध्य शरणार्थियों एवं सीमा सम्बन्धी विवादों पर चर्चा हुई तथा एक समझौता भी हुआ। इसके बाद उसी दिन शाम की ट्रेन से मेजर शॉर्ट दिल्ली चला गया और गुरमानी को भी सरकारी रिकॉर्ड में बहावलपुर जाना अंकित कर दिया गया जबकि महाराजा ने गुरमानी को गुप्त मंत्रणा के लिए लालगढ़ में ही रोक लिया।
तीन दिन तक गुरमानी लालगढ़ में रहा। इस दौरान राजमहल का सारा स्टाफ मुसलमानों का रहा। अपवाद स्वरूप कुछ ही हिन्दू कर्मचारियों को महल में प्रवेश दिया गया। इनमें से राज्य के जनसम्पर्क अधिकारी बृजराज कुमार भटनागर भी थे। उन्हें इसलिए प्रवेश दिया गया कि वे महाराजा के अत्यंत विश्वस्त थे तथा उर्दू के जानकार थे। 10 नवम्बर तक गुरमानी और सादूलसिंह के बीच गुप्त मंत्रणा चलती रही।
इस दौरान सादूलसिंह का झुकाव पाकिस्तान की ओर हो गया। यह निर्णय लिया गया कि प्रायोगिक तौर पर छः माह के लिए बीकानेर और बहावलपुर राज्यों के मध्य एक व्यापारिक समझौता हो। समझौता लिखित में हुआ तथा दोनों ओर से हस्ताक्षर करके एक दूसरे को सौंप दिया गया।
बृजराज कुमार भटनागर ने यह बात बीकानेर में हिन्दुस्तान टाइम्स के संवाददाता दाऊलाल आचार्य को बता दी। यह समाचार 17 नवम्बर 1947 को हिन्दुस्तान टाइम्स के दिल्ली संस्करण में तथा 18 नवम्बर को डाक संस्करण में प्रकाशित हुआ जिससे दिल्ली और बीकानेर में हड़कम्प मच गया। बीकानेर प्रजा परिषद के नेताओं ने इस संधि का विरोध करने का निर्णय लिया और दिल्ली जाकर भारत सरकार को ज्ञापन देने की घोषणा की।
यह रक्षा से सम्बद्ध मामला था तथा संघ सरकार के अधीन आता था इसलिए पटेल ने तुरंत एक सैन्य सम्पर्क अधिकारी को बीकानेर तथा बहावलपुर की सीमा पर नियुक्त किया और बीकानेर महाराजा को लिखा कि वे इस अधिकारी के साथ पूरा सहयोग करें। बीकानेर के गृह मंत्रालय द्वारा समाचार पत्र के संवाददाता को समाचार का स्रोत बताने के लिए कहा गया। उन्हीं दिनों बीकानेर सचिवालय की ओर से रायसिंहनगर के नाजिम को एक तार भेजा गया। इस तार में रायसिंहनगर के नाजिम को सूचित किया गया था कि बहावलपुर रियासत से हमारा व्यापार यथावत चल रहा है। रायसिंहनगर में रेवेन्यू विभाग के भूतपूर्व पेशकार मेघराज पारीक ने वह तार नाजिम के कार्यालय से चुरा लिया और दाऊलाल आचार्य को सौंप दिया। इस तार के प्रकाश में आने के बाद बीकानेर राज्य का गृह विभाग शांत होकर बैठ गया।
बीकानेर महाराजा ने हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित समाचारों का विरोध करते हुए भारत सरकार को लिखा कि- ‘बीकानेर प्रजा परिषद और बीकानेर राज्य के सम्बन्ध ठीक नहीं हैं, इसलिए प्रजा परिषद के एक कार्यकर्ता ने जो कि हिन्दुस्तान टाइम्स का संवाददाता भी है, इस खबर को प्रकाशित करवाया है ताकि बीकानेर राज्य पर दबाव बनाकर उसे उपनिवेश सरकार द्वारा अधिग्रहीत कर लिया जाये। क्या प्रजा परिषद बीकानेर राज्य को जूनागढ़ तथा हैदराबाद के समकक्ष रखना चाहती है?’
बीकानेर महाराजा सादूलसिंह ने सरदार पटेल से अनुरोध किया कि वह इस सम्बन्ध में दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही में सहायता करें तथा एक आधिकारिक बयान जारी करके इस आरोप को निरस्त करें। इस पर रियासती विभाग ने एक वक्तव्य जारी किया कि कुछ समाचार पत्रों में इस आशय के समाचार प्रकाशित किए गये हैं कि बीकानेर, पाकिस्तान एवं बहावलपुर के मध्य एक व्यापारिक संधि हुई है।
यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि यह समचार पूर्णतः आधारहीन है। ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ है। बहावलपुर के मुख्यमंत्री सीमा के दोनों तरफ रह रहे शरणार्थियों में भय फैलने से रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए मैत्री यात्रा पर आये थे।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहना अनुचित नहीं होगा कि बीकानेर महाराजा सादूलसिंह ने अंतरिम सरकार बनाकर आंशिक मात्रा में सत्ता जनता को सौंपी अवश्य पर रियासत को अलग इकाई रखने हेतु जो पापड़ बेले गये और दुराभिसंधियां की, उनकी सूचना दाऊलाल आचार्य एवं मूलचंद पारीक ने यथासमय उच्चस्थ विभागों को पहुंचायीं, वह तो देशभक्ति की अनोखी मिसाल है। उसी के कारण बीकानेर रियासत भारत में रह पायी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता