इण्डोनेशिया कभी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा था। पांचवीं शताब्दी ईस्वी में फाह्यान ने इण्डोनेशिया के द्वीपों के हिन्दुओं को यज्ञ-हवन करते हुए देखा था। चौदहवीं शताब्दी ईस्वी में इण्डोनेशिया में इस्लाम का प्रसार हुआ तथा इण्डोनेशियाई द्वीपों से हिन्दू संस्कृति लगभग नष्ट होकर केवल बाली द्वीप में सिमट कर रह गई। आज इण्डोनेशिया में लगभग 2 प्रतिशत हिन्दू रह गए हैं।
इण्डोनेशिया को भारत से पहले आजादी मिली तथा ईस्वी 1945 में सुकार्णो इण्डोनेशियाई स्वतंत्रता सेनानी इण्डोनेशिया का राष्ट्रपति बना। वह 1967 तक इस पद पर रहा। उसके समय में इण्डोनेशिया में दस प्रधानमंत्री बदल गए। इण्डोनेशियाई लोगों ने इस्लाम को भले ही अपना लिया था किंतु अपने पूर्वजों की संस्कृति को नहीं छोड़ा था। इसलिए आज भी इण्डोनेशिया में सार्वजनिक स्थलों पर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां एवं रामायण तथा महाभारत के प्रसंगों वाली पुस्तकें, नाटक, गीत आदि प्रचलन में हैं। वहां की मुद्रा पर भी हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र छपते हैं।
इतना होने पर भी जब ई.1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया था तब इण्डोनेशिया के राष्ट्रपति सुकार्णो ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वक्तव्य देकर समूचे संसार को हैरान कर दिया था कि पाकिस्तान हमारा भाई है, हम उसकी सहायता करेंगे।
आज उस बात को 56 साल ही बीते हैं। इस बीच इतिहास का पहिया तेजी से घूम गया है तथा सुकार्णो की बेटी सुकार्णोपुत्री ने फिर से हिन्दू धर्म में लौटने की घोषणा की है जिसका सुकार्णो के परिवार ने स्वागत किया है।
सुकार्णो की बेटी का नाम सुकुमावती सुकार्णोपुत्री है क्योंकि आज भी इण्डोनेशिया में संस्कृत एवं हिन्दी के बहुत से शब्द प्रचलित हैं।
इण्डोनेशिया में आज भी हिन्दू धर्म ग्रंथ पढ़े जाते हैं। बहुत से मुसलमान वहां पर गीता एवं रामायण का अध्ययन करते हैं। सुकुमावती सुकार्णोपुत्री ने विगत वर्षों में हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन किया तथा वे इस निष्कर्ष पर पहुंचीं कि उन्हें हिन्दू धर्म में लौट जाना चाहिए। उनके पुरखे भी हजारों सालों तक हिन्दू रहे थे। वे फिर से अपने पुरखों का धर्म अपना रही हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथ हमें बताते हैं कि हिन्दू धर्म नहीं, जीवन शैली है। इस जीवन शैली में, सभी अपने हैं, कोई पराया नहीं है, न किसी को नीचा दिखाया जाने की भावना रखी जाती है। यह दया और सहिष्णुता का धर्म है तथा ब्रह्माण्ड में मौजूद, दिखने वाले एवं न दिखने वाले, जड़ एवं चेतन अस्तित्वों के प्रति सहानुभूति अनुभव करने का चिंतन है। वस्तुतः यह कोई मजहब या पंथ नहीं है, यह तो मनुष्य को जैसा वह प्रकृति द्वारा बनाया गया है, उसी प्रकार निर्बंध रखने, सभी बंधनों से मुक्त रखने का दर्शन है।
इसीलिए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने लिखा था-
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!
हे सुकार्णोपुत्री सुकुमावती अपने पुरखों की जीवनशैली में तुम्हारा स्वागत है। हिन्दू चिंतन, हिन्दू दर्शन हिन्दू जीवन में आपका बार-बार स्वागत है!