Saturday, July 27, 2024
spot_img

देहदान है महादान !

देहदान है महादान, इसलिए उनका मरने के बाद भी हो रहा है सम्मान। वे मर कर भी कर रहे हैं मानवों की सेवा।

यह धरती विचित्रताओं और महानताओं से भरी पड़ी है। इस धरती पर एक से बढ़कर एक अनूठी वस्तुएं हैं, भावनाएं हैं, विचार हैं और अद्भुत कार्य हैं। आज ऐसे ही एक अनूठे विचार से आपका परिचय होगा। ऐसा अनूठा विचार जहाँ मानव बुद्धि शायद ही कभी पहुंचती है।

यह अनूठा विचार इस मंत्र में समाया है- देहदान है महादान। यह ऐसा मंत्र है जिसे विज्ञान और धर्म का मिलन स्थल कहा जा सकता है।

अखिल भारतीय आयुविर्ज्ञान संस्थान जोधपुर में 6 मई 2018 को देहदान है महादान सम्मान समारोह आयोजित किया गया। यह एक विचित्र समारोह था जिसमें वे लोग उपस्थित ही नहीं थे, जिनकी सेवाओं के सम्मान के लिए यह समारोह आयोजित किया गया था।

इस अनूठे आयोजन की संकल्पना तैयार की थी- प्रसिद्ध समाजसेवी मनोज मेहता ने। समारोह के मुख्य अतिथि थे- राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाशचन्द टाटिया और अध्यक्षता की- राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति पी. के. लोहरा ने।

इस समारोह में उन व्यक्तियों के परिवारों को सम्मानित किया गया जिन व्यक्तियों ने मरने से पहले देहदान है महादान संकल्प व्यक्त किया था और अपने परिजनों से अनुरोध किया था कि उनकी देह, मृत्यु के बाद भी मानव जाति की सेवा करती रहे।

भारत में मृत मानव की देह की अंत्येष्टि करना अत्यंत आवश्यक एवं पुण्य का कार्य समझा जाता है। युगों-युगों से यह विश्वास भारत की धर्मप्राण जनता में प्रचलित है कि यदि देह का विधिवत् अग्नि संस्कार न हो तो मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती है, उसकी आत्मा प्रेत बनकर भटकती रहती है।

भारतीय संस्कृति में मृतक की देह का अंतिम संस्कार करने का अधिकार उसके पुत्रों और पौत्रों को दिया गया है। यदि पुत्र और पौत्र न हों तो मृतक के रक्त सम्बन्धियों में कोई भी पुरुष इस कार्य को करता है।

जबकि रुग्ण मानव देह के उपचार एवं शल्य चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि डॉक्टर और वैज्ञानिक मानव देह को खोलकर उसका अध्ययन करें।

इस कार्य के लिए मृत व्यक्तियों की देह का उपयोग किया जाता है और काम करते हैं देहदान है महादान मंत्र में विश्वास रखने वाले।

जब मनुष्य ने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की तरफ कदम बढ़ाए तो मृत व्यक्ति की देह को प्राप्त करना अत्यंत दुष्कर कार्य था। इसलिए पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में पश्चिम के वैज्ञानिकों, दार्शनिकों तथा चित्रकारों ने रात के अंधेरों में कब्रिस्तानों में से शव निकाले और चोरी-छिपे उनका अध्ययन किया।

बहुत से वैज्ञानिकों और दार्शनिकों को समाज ने तांत्रिक अथवा मैली क्रियाएं करने वाला घोषित किया और उन्हें जान से मार डाला।

देहदान है महादान मंत्र में विश्वास रखने वाले लोग मानते हैं कि मनुष्य की देह उसकी अपनी है किंतु वह निजी होने पर भी उसकी सम्पत्ति नहीं है।

मनुष्य की मृत देह जीवित न होते हुए भी निजता का अधिकार रखती है। मनुष्य की मृत देह अपवित्र मानी जाती है किंतु देहदान है महादान मंत्र का बल पाकर वह सम्मान पाने की अधिकारी हो जाती है।

वैधानिक रूप से मनुष्य की मृत देह अपने अंतिम संस्कार का अधिकार रखती है। संसार भर में यदि कोई व्यक्ति मनुष्य की देह के ये अधिकार छीनता है अथवा उनका हनन करता है, तो उसे बहुत बुरे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है।

यही कारण है कि आज भी भारत जैसे परम्परागत समाज वाले देशों में ही नहीं अपितु आधुनिक समझे जाने वाले अमरीका और यूरोपीय देशों में मृत देह को प्राप्त करना अत्यंत कठिन कार्य है।

वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं एवं चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के लिए मनुष्य की मृत देह की आज भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में थी। ऐसा लगता है मानो धर्म, कानून और विज्ञान इस बिंदु पर आकर उलझ गए हों। इस उलझन को दूर करता है देहदान है महादान का महामंत्र।

जोधपुर स्थित डॉ. सम्पूर्णानंद आयुर्विज्ञान महाविद्यालय को मृत मानव देह की कमी सदा से रही है। इसलिए जो अध्ययन वास्तविक मानव देह पर किया जाना चाहिए उसके लिए अधिकतर प्लास्टिक डमी का उपयोग किया जाता रहा है किंतु इससे शल्य चिकित्सा की मांग पूरी नहीं होती।

जब वर्ष 2012 में जोधपुर में एम्स खुला तो मृत मानव देह की मांग और अधिक बढ़ गई। इस पर श्री मनोज मेहता ने जन सामान्य को देहदान है महादान का मंत्र दिया तथा उनसे देहदान के संकल्प पत्र भरवाए।

धार्मिक संस्कारों की बाधा को पार करके जब कुछ लोग पीड़ित मानवता की सेवा के उद्देश्य से अपनी मृत्यु के बाद अपनी देह का दान करने के लिए तैयार हुए तो उनके परिवार में विरोध हुआ।

धैर्य पूर्वक प्रयास करने से लोगों ने देहदान के प्रति रुचि दर्शाई। इस जनजागृति का ही परिणाम है कि जोधपुर स्थित एम्स में हर वर्ष मृत मानवों की देह प्राप्त की जा रही हैं।

इस अनूठे समारोह को सम्बोधित करते हुए राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाशचन्द टाटिया ने लोगों को विज्ञान और धर्म का बारीक अंतर समझाया। उन्होंने कहा कि विज्ञान उसे कहते हैं जिसमें सतत रूप से शोधकार्य तथा विकास होता है, इसलिए विज्ञान सदैव अपूर्ण रहता है जबकि धर्म उस विचार को कहते हैं जब वह पूर्णता को प्राप्त कर लेता है।

जिस दिन विज्ञान पूर्णता को प्राप्त कर लेगा, वह भी धर्म बन जाएगा। उन्होंने कहा कि जब हम यह समझ लेते हैं कि देहदान है महादान, तब देहदान धर्म बन जाता है तथा यह विज्ञान के काम को आगे बढ़ाता है।

यदि किसी व्यक्ति को देहदान एवं अंगदान जैसे अत्यंत संवेदनशील मुद्दों पर भ्रम या संदेह है तो हमारा कर्तव्य है कि हम उसके भ्रम एवं संदेह को दूर करें। इन विषयों पर समाज में खुली बहस होनी चाहिए तथा इन विषयों पर भावनाओं में बहकर निर्णय लेने की बजाय सोच-समझ कर निर्णय लिया जाना चाहिए।

हमारे पुराणों में कुछ उदाहरण मिलते हैं जब अंगदान करके देवत्व प्राप्त किया गया। ऋषि दधीचि ने असुरों के नाश के लिए अपनी देह का दान किया, उनके द्वारा दिये गये देहदान है महादान के मंत्र के कारण वे आज भी समाज में पूजे जाते हैं।

राजा हरिश्चंद्र ने भी जीते-जी सर्वस्व दान करके सम्पूर्ण मानव समाज को दान करने की प्रेरणा दी। मृत्यु के बाद भी दान का महत्व समाप्त नहीं हो जाता। समाज में हो रहे गलत काम को रोकना पूरे समाज का धर्म है, किसी भी गलत बात के प्रति मूक दर्शक बने रहना मानव का कर्त्तव्य नहीं है।

उन्होंने सुश्रुत संहिता का उदाहरण देते हुए कहा कि यह विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत द्वारा हजारों साल पहले लिखा गया चिकित्सा शास्त्र है जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों के आज होने वाले बहुत से जटिल ऑपरेशन करने की विधि लिखी हुई है तथा उस समय शल्यचिकित्सा में काम आने वाले उपकरणों के चित्र भी दिए गए हैं।

यदि उस काल का मानव शरीर रचना विज्ञान के बारे में नहीं जानता तो इतने जटिल ऑपरेशनों के बारे में कैसे लिख सकता था।

इसलिए निश्चित है कि देहदान है महादान जैसे मंत्र और अंगदान जैसी परम्पराएं हमारी पुरातन संस्कृति का हिस्सा रहे हैं किंतु दुःख की बात है कि समाज के उच्च एवं शिक्षित वर्ग में भी आज ऐसी धारणाएं हैं कि देहदान करने वाले को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

जस्टिस टाटिया ने जोधपुर में मृतदेह के संस्कार के लिए विद्युत चालित शवदाह गृह आरम्भ करने तथा नेत्रदान एवं देहदान जैसे पुण्य कामों को आगे बढ़ाने के लिए समाज सेवी मनोज मेहता के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज अन्न, वस्त्र, धन, रक्त, शिक्षा दान करने वाले लोगों की कमी नहीं है किंतु मनोज मेहता की तरह समय का दान करने वाले लोग विरले ही हैं।

समय का दान किए बिना देहदान है महादान का संकल्प पूरा नहीं हो सकता। न ही समाज की सेवा हो सकती है। आज प्रत्येक समाज का व्यक्ति देहदान के लिए आगे आया है, यह इस मंत्र की सबसे बड़ी सफलता है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधिपति पी. के. लोहरा ने कहा कि देहदान की परम्परा को आगे बढ़ाए बिना समाज को अच्छे चिकित्सक नहीं मिल सकते।

शरीर को मृत्यु के बाद नष्ट होना ही होता है किंतु देहदान के माध्यम से मनुष्य अपनी मृत्यु के बाद भी समाज की सेवा कर सकता है। उन्होंने मानव सेवा सम्मान समारोह का भव्य आयोजन करने के लिए समाजसेवी मनोज मेहता एवं एम्स के निदेशक डॉ. संजीव मिश्रा की प्रशंसा करते हुए आशा व्यक्त की कि उनके द्वारा देहदान है महादान मंत्र को आगे बढ़ाया जा रहा है।

निदेशक डॉ. संजीव मिश्रा ने समरोह में आए अतिथियों एवं देहदान करने वाले व्यक्तियों के परिवारों का स्वागत करते हुए कहा कि चिकित्सा शिक्षा के अध्ययन के उद्देश्य से मिली हुई देह का उपयोग केवल चिकित्सा शिक्षा में किया जाता है।

देह का किसी भी तरह अपमान नहीं होने दिया जाता और न उसके अंगों का दुरुपयोग होने दिया जाता है। अतः कोई भी परिवार या व्यक्ति निःसंकोच होकर देहदान के लिए आगे आ सकता है।

शरीर रचना विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुरजीत घटक ने कहा कि आज का दिन उन लोगों को स्मरण करने का दिन है जिन्होंने अपनी मृत्यु के बाद भी अपनी देह मानवता के कल्याण के लिए समर्पित की। उन्होंने देहदान की प्रक्रिया भी समझाई।

सम्मान समरोह के संयोजक एवं काउंसलर मनोज मेहता ने समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि पारिवारिक भावनाओं के कारण मनुष्य देहदान है महादान जैसे महामंत्र को भूल जाता है इस कारण अपनी देह को दान करने का निर्णय लेना अत्यंत कठिन होता है किंतु जो लोग मर कर भी पीड़ित मानवता की सेवा करना चाहते हैं, वे देहदान करने के कठिन निर्णय को बड़ी आसानी से ले लेते हैं।

यदि हम चाहते हैं कि हमारा अच्छा इलाज हो तो उसके लिए अच्छे डॉक्टरों की आवश्यकता होगी। हमें अच्छे डॉक्टर तभी मिलेंगे जब हम अस्पतालों एवं मेडिकल कॉलेजों में मृतक व्यक्तियों की देह उपलब्ध कराएंगे। उन्होंने जोधपुर के लोगों द्वारा बड़ी संख्या में देहदान हेतु भरे गए संकल्प पत्रों के लिए उनके परिवार वालों की प्रशंसा की।

 संसार में मनोज मेहता जैसे और भी बहुत से लोग हैं जो देहदान है महादान के पुण्य यज्ञ में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source