पाकिस्तान का जनक मुहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान को अपनी रचना समझता था तथा निरंकुश शासक की तरह व्यवहार करता था इसलिए पाकिस्तान बनने के कुछ ही समय बाद जिन्ना के साथियों ने जिन्ना की उपेक्षा करनी आरम्भ कर दी। इस कारण जिन्ना का पाकिस्तान से मोहभंग हो गया था। इस सम्बन्ध में कुछ चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं।
पाकिस्तानी पत्रकार जमर नियाजी ने अपनी पुस्तक ‘प्रेस इन चेन्स’ में लिखा है-
‘अपने द्वारा निर्मित किए गए पाकिस्तान से जिन्ना का पूरी तरह से मोह भंग हो चुका था। लियाकत अली खाँ ने जिन्ना के निर्देशों की उपेक्षा करनी शुरू कर दी थी। इस सब ने जिन्ना को बिना बात के लियाकत अली खाँ को झिड़कने के लिए उकसाया और उसने (जिन्ना ने) निराशा में यह भी कह दिया कि वह (जिन्ना) वापस जाकर नेहरू से कहना पसंद करेगा कि अतीत को भूलकर फिर से साथ हो जाएँ। जिन्ना का फिजीशियन जो इस घटना का साक्षी था, ने इस कथन को प्रमाणित किया है। यह बीमार जिन्ना के दुःखद अंत के कुछ दिन पहले की बात है।’
30 अक्टूबर 1947 को जिन्ना ने लाहौर में कहा- ‘कुछ लोग जरूर यह सोच सकते हैं कि 3 जून की योजना का अंगीकरण मुस्लिम लीग की एक भूल थी।’ जिन्ना ने भारत विभाजन के समय लाखों लोगों की मौत एवं विशाल सम्पत्ति की बर्बादी के लिए उकसाने वाली अव्यवस्था के लिए सेनाओं को दोषी ठहराया। अंत में मौतों का स्प्ष्टीकरण देते हुए जिन्ना ने कहा- ‘हमारा मजहब हमें सिखाता है कि हमें मौत के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। एक धार्मिक कारण के लिए शहीद की मौत से अधिक बेहतर उद्धार मुसलमानों के लिए कोई नहीं है।’
पाकिस्तान को नकार दिया जिन्ना की बेटी ने
मुहम्मद अली जिन्ना की पुत्री दीना वाडिया भारत-पाक विभाजन के बाद अपने पिता के साथ पाकिस्तान नहीं गई जो कि पाकिस्तान का गवर्नर जनरल था। उसने ई.1938 में एक भारतीय पारसी युवक नेविले वाडिया से विवाह कर लिया था। इसलिए वह अपने पति के साथ भारत में ही रही तथा अपनी मृत्यु होने तक साधारण नागरिक की हैसियत से भारत के बम्बई शहर में ही रहती रही। उसे अपने पिता के पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं था।
जिन्ना की बीमारी
जिन्ना को ई.1941 से फेंफड़ों का संक्रमण तथा खांसी रहती थी। वह सिगरेट बहुत पीता था। इस कारण उसे क्षय रोग हो गया था और उसका जीवन अधिक नहीं बचा था किंतु उसने अपनी बीमारी को इस तरह छिपाए रखा कि इस बात को उसके निजी चिकित्सक के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था। पाकिस्तान बनने के कुछ दिन बाद ही उसकी बीमारी बढ़ गई।
जिन्ना की मृत्यु
जब जिन्ना की तबियत अधिक खराब होने लगी तो 14 जुलाई 1948 को उसे स्वास्थ्य लाभ के लिए बलूचिस्तान में स्थित जियारत नामक स्थान पर ले जाया गया। वहाँ भी जब स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ तो उसे 13 अगस्त 1948 को क्वेटा ले जाया गया। 5 सितम्बर से उसकी हालत और अधिक बिगड़ने लगी तथा 11 सितम्बर को उसे गवर्नर जनरल के विशेष विमान से क्वेटा से कराची लाया गया। जहाँ से उसे एक एम्बुलेंस में लिटाकर उसके पैतृक निवास ले जाया गया। 11 सितम्बर 1948 को ही रात में जिन्ना का निधन हो गया। इस प्रकार पाकिस्तान बने अभी ठीक से तेरह महीने भी नहीं हुए थे कि 11 सितम्बर 1948 को जिन्ना का निधन हो गया। ऐसा लगता था कि इस धरती पर वह जैसे पाकिस्तान बनाने के लिए ही आया हो। काम खत्म, जिंदगी खत्म।
लियाकत अली द्वारा मुहम्मद अली की उपेक्षा
जिन्ना की बहिन फातिमा जिन्ना ने अपनी पुस्तक ‘माई ब्रदर’ में लिखा है- ‘जब बीमार जिन्ना कराची हवाई अड्डे पर पहुंचा तो उसका स्वागत करने के लिए कोई वहाँ कोई उपस्थित नहीं था। …… ऐसा लियाकत अली के निर्देश पर हुआ। जिन्ना सड़क पर दो घण्टे से अधिक असहाय अवस्था में पड़ा रहा क्योंकि रास्ते में एम्बुलेंस खराब हो गई थी।’
यह सब जिन्ना और लियाकत अली के बीच गहरी दरार के संकेत थे। पाकिस्तान में नियुक्त भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त श्रीप्रकाश ने लिखा है- ‘दरअसल जिन्ना की मौत तो क्वेटा में ही हो गई थी। जिन्ना के शव को कराची स्थित उसके पैतृक निवास पर पहुंचने के बाद भी आधी रात तक प्रधानमंत्री लियाकत अली सहित किसी को भी जिन्ना की मृत्यु के बारे में नहीं बताया गया।’
यदि जिन्ना दो वर्ष पहले मर जाता
बहुत से लेखकों ने यह मुद्दा उठाया है कियदि भारतीय नेताओं को यह बात पता चल गई होती तो वे भारत की आजादी की जल्दी मचाने की बजाय कुछ दिन शांति से बैठकर जिन्ना की मृत्यु की प्रतीक्षा करते और उसी के साथ भारत विभाजन का खतरा सदैव के लिए टल जाता। लैरी कांलिन्स एवं दॉमिनिक लैपियर के साथ एक साक्षात्कार में स्वयं लॉर्ड माउण्टबेटन ने यह बात स्वीकार की।
माउण्टबेटन ने कहा- ‘अगर जिन्ना दो वर्ष पहले अपनी बीमारी से मर जाते तो हम भारत को एक रख सकते थे। वही थे जिन्होंने इसे (भारत की अखण्डता को) असम्भव बना दिया था। जब तक मैं जिन्ना से मिला नहीं, मैं सोच भी नहीं सकता था कि कितनी असम्भव स्थिति है।’
ऐसा नहीं था कि केवल जिन्ना का ही पाकिस्तान से मोहभंग हुआ था, पाकिस्तान से मोहभंग की स्थिति अन्य कई नेताओं की थी। उन सबके अलग-अलग कारण थे। कुछ मुसलमान नेताओं की सम्पत्तियां भारत में रह गई थीं, अब वे उन सम्पत्तियों को याद करके पछताते थे। कुछ मुसलमानों के रिश्तेदार एवं परिवार के सदस्य भारत में ही रह गए थे। इस कारण उनका भी पाकिस्तान से मोहभंग हो गया था।
मण्डल जैसे कुछ दलित नेता जो हिन्दुओं से दूर भागकर पाकिस्तान में आए थे, पाकिस्तान के मुसलमान उनके हाथ का पानी पीने को तैयार नहीं थे, इसलिए उनका भी पाकिस्तान से मोहभंग हो गया था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता