Saturday, July 27, 2024
spot_img

अध्याय – 66 : भारतीय राजनीति में गांधीजी का योगदान – 1

बीसवीं सदी में भारत की राजनीति में गांधी का पदार्पण, बीसवीं शताब्दी की प्रमुख घटनाओं में से एक है। उन्होंने कांग्रेस के चरित्र एवं आंदोलन की दिशा को नया स्वरूप प्रदान किया तथा देश में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन को अपने विचारों के अनुसार नवीन दिशा दी। भारत की राजनीति में गांधी के पदार्पण के समय दो महत्त्वपूर्ण घटनायें घटीं। इनमें से पहली घटना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर थी जो अँग्रेजों द्वारा 11 नवम्बर 1918 को प्रथम विश्वयुद्ध में विजय प्राप्त करने के रूप में हुई। दूसरी घटना राष्ट्रीय स्तर पर थी जो 1 अगस्त 1920 को बालगंगाधर तिलक की मृत्यु के रूप में घटित हुई।  इन दोनों ही घटनाओं ने अँग्रेजों को नया आत्म-विश्वास प्रदान किया। अब वे नई संभावनाओं के साथ भारत पर शासन कर सकते थे।

जन्म और शिक्षा

मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर कस्बे में एक वैश्य परिवार में हुआ। उनके पिता करमचन्द गांधी पोरबन्दर, राजकोट और बांकानेर रियासतों के दीवान रहे। इनकी माता पुतली बाई अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। गांधी के जीवन पर पुतली बाई का काफी प्रभाव पड़ा। 1876 ई. में मोहनदास, अपने माता-पिता के साथ राजकोट चले गये। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा वहीं हुई। 1881 ई. में उन्होंने हाई स्कूल में प्रवेश किया। 1883 ई. में कस्तूर बाई से उनका विवाह हुआ। 1887 ई. में गांधीजी ने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। 1888 ई. में वे बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैण्ड गये। 1891 ई. में वे बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। भारत लौटकर गांधी ने राजकोट तथा बम्बई में वकालत आरम्भ की किन्तु उन्हें इस कार्य में सफलता नहीं मिली। कुछ समय के लिये उन्होंने पोरबन्दर रियासत का न्यायिक कार्य भी किया परन्तु वहाँ उनका मन नहीं लगा। 1893 ई. में उन्हें दादा अब्दुल्ला एण्ड कम्पनी नामक मुस्लिम व्यापारिक संस्था के दक्षिण अफ्रीका के कानूनी कार्यों की देखरेख का काम मिला और वे दक्षिण अफ्रीका के डरबन नगर चले गये।

दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष

मोहनदास गांधी, दक्षिण अफ्रीका के नाटाल सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत होने वाले प्रथम भारतीय थे। उन दिनों दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार भारतीयों तथा अफ्रीकियों के प्रति रंगभेद की नीति अपनाती थी जिससे उन्हें कई प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते थे। एक बार गांधी को रेल से प्रिटोरिया की यात्रा करने के दौरान, रंगभेद का व्यक्तिगत अनुभव हुआ। उन्होंने दक्षिणी अफ्रीका सरकार की रंगभेद एवं दमन की नीति का विरोध किया। उन्होंने अफ्रीका के प्रवासी भारतीयों को संगठित करके सत्याग्रह आन्दोलन छेड़ दिया। मई 1894 में गांधी जी ने नाटाल इण्डियन कांग्रेस की स्थापना की।

1896 ई. में गांधीजी कुछ समय के लिये भारत आये तथा उसी वर्ष वे अपने परिवार के साथ पुनः दक्षिण अफ्रीका चले गये। डरबन में उग्रवादी दक्षिण अफ्रीकी श्वेतों ने गांधीजी के साथ अत्यंत दुर्व्यवहार किया। इस पर गांधी ने लगातार आठ वर्षों तक गोरी सरकार के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। उन्होंने अनिवार्य पंजीकरण, हस्त-मुद्रण, अन्तःप्रन्तीय प्रवास पर प्रतिबन्ध, बन्धक मजदूरों पर लगाये गये कर तथा ईसाई विवाहों के अतिरिक्त अन्य समस्त विवाहों को अमान्य ठहराने वाले कानूनों का विरोध किया।

1901 ई. में गांधी एक बार पुनः भारत लौटे परन्तु 1902 ई. में उन्हें ट्रांसवाल के एशिया वासियों तथा प्रवासी भारतीयों के निमन्त्रण पर पुनः दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इस बार गांधीजी ने फीनिक्स फार्म की स्थापना करके आन्दोलनकारियों को संगठित किया एवं उनके आश्रय का प्रबन्ध किया। गांधीजी ने आन्दोलनकारियों को सरकार के काले कानून के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध (सत्याग्रह) करने की शपथ दिलवाई। गांधीजी एक प्रतिनिधि मण्डल लेकर इंग्लैण्ड भी गये। 1907 ई. में उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोधी आन्दोलन चलाया जिसके लिए उन्हें दो माह के कारावास की सजा दी गई। जनरल स्मट्स की सरकार के साथ समझौता हो जाने पर उन्हें जेल से रिहा किया गया किन्तु प्रवासी भारतीय पठानों ने इस समझौते को भारतीय हितों के विरुद्ध विश्वासघात मानते हुए गांधीजी पर प्राण-घातक हमला किया। गांधीजी बच गये, फिर भी उन्होंने हमलावरों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही नहीं की। उधर जनरल स्मट्स की सरकार ने समझौते की शर्तों की अवहेलना करनी आरम्भ कर दी। इस पर गांधीजी ने पुनः सत्याग्रह आरम्भ कर दिया। इस बार उन्हें पुनः दो मास के कठोर कारावास की सजा दी गई। रिहाई के बाद जब गांधीजी ने फिर सत्याग्रह किया तो उन्हें पुनः गिरफ्तार करके तीन माह की सजा दी गई।

दक्षिण अफ्रीका की संघीय सरकार द्वारा तीन पौण्ड के पोल टैक्स को रद्द न करने के विरोध में नवम्बर 1913 में गांधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ किया तथा एक विशाल जुलूस का नेतृत्व करते हुए ट्रांसवाल में प्रवेश किया। इस पर उन्हें गिरफ्तार करके नौ माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। कुछ समय बाद ही सरकार ने उन्हें बिना शर्त रिहा कर दिया। इसके बाद जनरल स्मट्स के साथ हुए समझौते के कारण गांधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन समाप्त कर दिया। इसके बाद गांधीजी इंग्लैण्ड चले गये। 1914 ई. में प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ होने पर उन्होंने लन्दन में इण्डियन ऐम्बुलेंस कोर का गठन किया। इस संस्था ने युद्ध में घायल सैनिकों की बड़ी सेवा की। ब्रिटिश सरकार ने गांधी को युद्ध कालीन सेवा के लिये कैसरे हिन्द स्वर्ण पदक से सम्मानित किया।

भारत में वापसी

जनवरी 1915 में गांधी भारत लौट आये। 25 मई 1915 को गांधी ने अहमदाबाद में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की जो बाद में साबरमती आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1917 ई. में उन्होंने सत्याग्रह करके भारतीयों को बलपूर्वक ब्रिटिश उपनिवेशों में मजदूरी करने के लिए ले जाने की पद्धति बन्द करवाई तथा चम्पारन (बिहार) में नील की खेती में काम करने वाले मजदूरों और किसानों को गोरे मालिकों के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई। अगले वर्ष खेड़ा में किसानों को लगान से छूट दिलवाने के लिये ‘कर नहीं’ आन्दोलन चलाया। इसी वर्ष अहमदाबाद में मिल-मजूदरों की मांगों के समर्थन में आमरण अनशन किया।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source