Sunday, December 8, 2024
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पाकिस्तान में मजहबी कट्टरता

पाकिस्तान में मजहबी कट्टरता – दूसरे धर्म वालों के लिए पाकिस्तान में जगह नहीं!

पाकिस्तान में मजहबी कट्टरता इस कदर हावी है कि वहाँ हिन्दू, सिख, बौद्ध एवं ईसाई ही नहीं, मुहाजिरों, शियाओं, अहमदियों और सूफियों का अस्तित्व भी खतरे में है। भारत से पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर अलग हुआ किंतु पाकिस्तान से बांग्लादेश केवल इस कारण अलग हुआ कि पाकिस्तान के मुसलमान अपने आप को बांग्लादेश के मुसलमानों से अधिक श्रेष्ठ मानते थे तथा वे पाकिस्तान में पूर्वी बंगाल की राजनीतिक पार्टी की सरकार नहीं बनने देना चाहते थे।

भारत-पाकिस्तान के विभाजन ने तो 5 से 10 लाख मानवों के प्राण लिए थे किंतु पाकिस्तान-बांग्लादेश के विभाजन ने 30 लाख लोगों के प्राण लिए। घृणा का यह चक्र अभी थमा नहीं है। पाकिस्तान में आज भी पंजाबी मुसलमान, सिंधी मुसलमान, बिलोचिस्तानी मुसलमान, खैबर-पख्तूनी मुसलमान तथा पाक अधिकृत काश्मीर के मुसलमान एक-दूसरे को नीचा समझते हैं।

भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों को मुहाजिर कहा जाता है तथा उन्हें नीची दृष्टि से देखा जाता है। पाकिस्तान के विगत 72 साल के इतिहास को देखकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान के लोग तब तक लड़ते रहेंगे जब तक कि पाकिस्तान के कुछ विभाजन और नहीं हो जाएंगे। क्योंकि घृणा से घृणा ही जन्म लेती है।

पैंसठ के युद्धकाल में हिन्दुओं का दमन

ई.1965 के युद्धकाल में पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक हिन्दुओं को पाकिस्तानी मुसलमानों द्वारा जासूस और देशद्रोही घोषित किया गया। उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। इसलिए वे भागकर चोरी-छिपे भारत आने लगे। 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते में अल्पसंख्यकों की रक्षा पर भी बल दिया गया किंतु पाकिस्तान ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। आज भी वहाँ हिन्दुओं को द्वितीय स्तर का नागरिक समझा जाता है।

इकहत्तर के युद्धकाल में कई लाख हिन्दू शरणार्थियों का भारत आगमन

ई.1947 के बाद सिंध से हिंदुस्तान की तरफ हिंदुओं का एक बड़ा पलायन 1971 की लड़ाई के समय हुआ और 90,000 सिंधी-हिंदू पाकिस्तान से भारत आ गए। ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि उस समय भारत की सेना पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थारपारकार जिले में घुस गई थी जिसके संरक्षण के कारण सिंधी-हिन्दू रातों-रात पाकिस्तान छोड़कर भारत में प्रवेश करने में सफल हुए। 1971 के पलायन के समय देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी।

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वह इन हिन्दुओं को भारत में लेने के लिए तैयार नहीं हुई तथा सरकार ने इन हिंदुओं को भारत से पुनः पाकिस्तान की सीमा में धकेलने का प्रयास किया। सरकार ने इन शरणार्थियों पर गोली चलाने तक की धमकी दी किंतु ये शरणार्थी भारत की भूमि पर ही जीने-मरने को अटल थे, वे किसी भी सूरत में वापस पाकिस्तान लौटने को तैयार नहीं थे। अंत में भारत सरकार ने इन्हें स्वीकार किया तथा इन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की।

28 हजार से अधिक हिन्दू, पाकिस्तान से भारत के बाड़मेर जिले में आए। इन हिन्दुओं में गुरड़ा, लोहार, सिन्धी, पुरोहित, देशान्तरी, नाई, सुथार, बजीर, राजपूत, ग्वारिया, जाट, स्वामी, माहेश्वरी, दर्जी, ब्राह्मण, चारण, भील, मेघवाल, सुनार, लखवारा, भाट, ढोली, खत्री, कलबी आदि विभिन्न जातियों के लोग थे। इनमें से अधिकांश शरणार्थी बाड़मेर जिले में रहे और शेष भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर बस गए।

स्थिर हो गई है पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या

ई.1951 की जनगणना के अनुसार पश्चिमी पाकिस्तान की जनसंख्या 33.7 मिलियन थी जो वर्ष 2017 में बढ़कर 207.77 मिलियन हो गई। 1951 की जनगणना के अनुसार पश्चिमी पाकिस्तान में 1.6 प्रतिशत हिन्दू जनसंख्या थी, सैंतालिस वर्षों के पश्चात् 1997 में भी पाकिस्तान की हिन्दू जनसंख्या 1.6 प्रतिशत ही पाई गई। 1998 की जनगणना के अनुसार पाकिस्तान में 2.1 लाख हिन्दू जनसंख्या बची है। अधिकतर हिंदू पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रहते हैं। पाकिस्तान में रहने वाले कुल हिन्दुओं में से सिंध में 93 प्रतिशत, पंजाब में 5 प्रतिशत तथा ब्लूचिस्तान में 2 प्रतिशत रहते हैं।

पाकिस्तान में मजहबी कट्टरता के चलते जिस तेजी के साथ हिन्दू गायब हो गए, उसके कारण वर्ष 1998 के बाद से पाकिस्तान में हिन्दुओं के आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं। यदि 1950 से 1998 की अवधि को ही लिया जाए तो इस अवधि में हिन्दुओं की जनसंख्या स्थिर रही जबकि पाकिस्तान की कुल जनसंख्या 6 गुने से अधिक हो गई।

पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या में इसलिए वृद्धि नहीं हुई क्योंकि पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू या तो मुसलमान बन गए हैं या फिर पाकिस्तान से हिन्दुओं की जनसंख्या प्रकट एवं परोक्ष रूप से भारत में आई है जिसका अधिकांश हिस्सा सीमावर्ती रेगिस्तानी जिलों बाड़मेर, जैसलमेर तथा जोधपुर में निवास करता है।

पाकिस्तान से आज भी हिन्दुओं का पलायन जारी है। वे अपनी तथा अपने बच्चों की सुरक्षा की आशा में भारत आते हैं तथा भारत सरकार उन्हें नागरिकता से लेकर आवास, पेयजल, रोजगार, शिक्षा-चिकित्सा उपलब्ध कराने का प्रयास करती है।

पाकिस्तान में मुस्लिम लड़कों द्वारा जिस बड़ी तादाद में हिन्दू लड़कियों का बलपूर्वक अपहरण एवं बलात्कार करके उन्हें मुसलमानों से निकाह करने के लिए विवश किया जा रहा है तथा उनका धर्म-परिवर्तन करके उन्हें मुसलमान बनाया जा रहा है, इसको देखते हुए लगता है कि आने वाले कुछ दशकों में पाकिस्तान हिन्दू-विहीन देश हो जाएगा। पाकिस्तान के निर्माताओं ने ऐसे ही पाकिस्तान की कल्पना तो की थी!

सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूल

भारत विभाजन के समय उत्तर प्रदेश एवं बिहार से पाकिस्तान गए मुहाजिर मुसलमानों के नेता अल्ताफ हुसैन ने सितम्बर 2000 में लंदन में सार्वजनिक रूप से वक्तव्य दिया कि पाकिस्तान का निर्माण सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूल थी।

पाकिस्तान एवं बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के कारण भारत में जनसंख्या विस्फोट हो गया

ई.1947 में अखण्ड भारत की कुल जनंसख्या लगभग 39.5 करोड़ थी। भारत विभाजन के समय 23.85 प्रतिशत भूमि तथा 16 प्रतिशत जनसंख्या पाकिस्तान को मिली। अर्थात् 33 करोड़ जनसंख्या भारत को एवं 6.5 करोड़ जनसंख्या पाकिस्तान को मिली। आजादी के बाद भारत में जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम चलाया गया जबकि पाकिस्तान में इस्लामिक मान्यताओं के कारण जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम नहीं चलाया गया।

पाकिस्तान में मजहबी कट्टरता के कारण पाकिस्तान से भारत की ओर हुए बड़े स्तर पर जनसंख्या पलायन हुआ जिसके कारण भारत की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई। 1947 से 2019 के बीच भारत की जनसंख्या 33 करोड़ से बढ़कर 135 करोड़ हो गई तथा भारत में न केवल जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम विफल हो गया अपितु जनसंख्या विस्फोट भी हो गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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